मित्रो आज की रचना मेरी नहीं मेरी एक मित्र अनु अग्रवाल ने ये मुझे भेजी है. वो बहुत ही संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है और उनकी कविताओं में भावना एवं एकरसता रहती है. माँ और पिता के ऊपर लिखी गयी रचना है. माँ के ऊपर बहुत सी रचनाये लिखी गयी परन्तु माँ शब्द ही येसा है, जिस पर जितना लिखा जाए वो अधुरा ही है. उसकी महानता को हम व्यक्त ही नहीं कर सकते. निर्मला जी के शब्दों में,,
माँ की ममता ब्रह्मण्ड से विशाल है॥
माँ की ममता की नहीं कोई मिसाल है,,माँ पर लिखी गयी इस अमूल्य रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें अनुग्रहीत करें
मैं जब पैदा हुई तो कितनी मजबूर थी ,,
इस जहान की सोच से मैं दूर थी,,,,
हाथ पैर तब मेरे अपने न थे ,,
मेरी आँखों में दुनिया के सपने न थे ,,
कद मेरा बहुत छोटा था ,,
मुझको आता सिर्फ रोना था ,,
दूध पीकर काम मेरा सोना था ,,
मुझको चलना सिखाया था माँ ने मेरी,,
मुझको दिल में बसाया था पापा ने मेरे ,,,
माँ पापा के होने से हर एक सपना मेरा अपना था ,,,
दूकान का हर एक खिलौना मेरा अपना था ,,
माँ पापा के साये में दुलार परवान चढ़ने लगा ,,
वक़्त के साये में कद मेरा बढ़ने लगा ,,,
एक दिन एक लड़का मुझे भा गया ,,
बनके दूल्हा वो मुझे ले गया ,,,
माँ पापा की जिम्मेदारी से अब मैं दूर होने लगी ,,
फिर माँ पापा को मैं भूलने लगी ,,,
सांसो का रिश्ता अब मेरा न था ,,,
माँ पापा का साया अब पराया था ,,
ऐसे माँ पापा की क्या मिशाल दूँ ,,
अपने हाथों से हर पल मुझे दुलारा था ,,,
हर गलती पर सर मेरा पुचकारा था ,,
चाहती हूँ उनके सजदे में रख दूँ अपनी तकदीर ,,
इस जहान की सोच से मैं दूर थी,,,,
हाथ पैर तब मेरे अपने न थे ,,
मेरी आँखों में दुनिया के सपने न थे ,,
कद मेरा बहुत छोटा था ,,
मुझको आता सिर्फ रोना था ,,
दूध पीकर काम मेरा सोना था ,,
मुझको चलना सिखाया था माँ ने मेरी,,
मुझको दिल में बसाया था पापा ने मेरे ,,,
माँ पापा के होने से हर एक सपना मेरा अपना था ,,,
दूकान का हर एक खिलौना मेरा अपना था ,,
माँ पापा के साये में दुलार परवान चढ़ने लगा ,,
वक़्त के साये में कद मेरा बढ़ने लगा ,,,
एक दिन एक लड़का मुझे भा गया ,,
बनके दूल्हा वो मुझे ले गया ,,,
माँ पापा की जिम्मेदारी से अब मैं दूर होने लगी ,,
फिर माँ पापा को मैं भूलने लगी ,,,
सांसो का रिश्ता अब मेरा न था ,,,
माँ पापा का साया अब पराया था ,,
ऐसे माँ पापा की क्या मिशाल दूँ ,,
अपने हाथों से हर पल मुझे दुलारा था ,,,
हर गलती पर सर मेरा पुचकारा था ,,
चाहती हूँ उनके सजदे में रख दूँ अपनी तकदीर ,,
दिखती है उनके कदमो में जन्नत की तस्वीर,,,
अनु अग्रवाल