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1.7.09

जल्द ही प्रस्तुत करेंगे.

भारत जैसे विकासशील समाजों में फैले जातिवाद और सम्प्रदायवाद जैसे दकियानूसी विचारों से लड़ना मीडिया की एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी हैगरीबी और अन्धविश्वास के खिलाफ लोगों की लड़ाई को ताकत देना मीडिया का एक सामाजिक और व्यवसायिक कर्तव्य हैखासकर तब, जब हमारे अधिकतर नागरिक जागरूक नही हैंऐसे में नए विचारों को उन तक पंहुचाना और उनका पिछडापन दूर करना मीडिया का ही काम है, ताकि नागरिक एक ताकतवर जागरूक राष्ट्र का हिस्सा बन पायें
दोस्तों, जस्टिस मार्कण्डेय काटजू का यह पूरा आलेख गैर-ज़िम्मेदार है भारतीय मीडिया के शीर्षक से जल्द ही प्रस्तुत करेंगेबस, थोड़ा इंतजार..........

30.6.09

हां मुझे राजनेताओं से डर लगता है....

ये भी एक ऐसा सच है जिसे सुनकर हो सकता है कि कुछ लोगों को हंसी जाये लेकिन क्या करें डर लगता है तोलगता है। मै एक बार लखनऊ से आते वक्त रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन के इंतजार में खड़ा था। कुछ ही देर में मैनेदेखा कि मेरे आसपास खड़े लोग किसी चीज़ को बड़ी ही तल्लीनता से देख रहे है। अक्सर हम लोगों से हो जाता जैसेबूढ़ा आदमी मंदिर आने पर सर झुका लेता है औऱ जैसे 22-23 साल के लड़के किसी सुंदरी को देखकर उसको बड़ीही तल्लीनता से देखते है उसी तरह मेरे आसपास खड़े लोग एक दिशा की ओर देख रहे थे मैने भी उत्सुकतावश उसओर देखा..मैने देखा कि कुछ पुलिसवाले हाथों बंदूक लिये खड़े थे...संख्या की बात करुं तो लगभग पांच से सात लोगहोंगे। मैने देखा कि उनके पास एक आदमी और खड़ा था लेकिन वो वर्दी में नहीं था। सर पर अंगोछा बांधे, पैरों मेंसैंडिल, धारियों वाली शर्ट और काली रंग की पैंट। धारियां वो नहीं जैसा कि हिंदी फिल्मों में ट्रेंड है दिखाने का। बड़ाही साधारण सा आदमी था वो लंबी सी मूंछ,भरा चेहरा गुटखा खा रहा था शायद, साथ में पुलिसवालों से हंसीमज़ाकभी कर रहा था। पुलिस वाले भी उसकी बातों पर हंस रहे थे। लेकिन एक बात जो साधारण नहीं थी वो थी उसकेहाथों में पड़ी वो हथकड़ी जिसकी मोटी सी रस्सी एक मोटे से पुलिस वाले के हांथों में भी बंधी थी। एक मजेदार बातबताता हूं कि अक्सर आपने भी इस तरह की घटना देखी होगी कि बदमाशों के हाथों की हथकड़ी की रस्सी हमेशामोटे से पुलिसवाले के हाथों में बांधी जाती है ताकि बदमाश भागे भी तो भी भाग सके क्यों कि भारी आदमी कोकहां तक घसीटेगा ...शायद.....मैने भी उसके हथकड़ी पहने सख्त से चेहरे को देखकर थोड़ा डर महसूस किया। क्योंबदमाशों से पाला ज़रा कम ही पड़ा है उस वक्त मेरी उम्र 19 के आसपास रही होगी और मीडिया जगत में मेरी इंट्रीनहीं हुई थी। डर के मारे एक बार देखने के बाद मै दोबारा उन लोगों को एक टक देखा भी नहीं....हां डर की वजह सेतिरछी नज़र से देख रहा था। उसी तरह जिस तरह अगर कोई स्मार्ट सा लड़का किसी लड़की को प्रेम पत्र थमा देऔऱ लड़की मना भी कर दे तो भी हर रोज वो लड़की तिरछी नज़रों से उसे देखेगी ज़रुर चाहे नाक भौं सिकोड़ ही क्यों रही हो। उसी तरह मुझे भी बदमाश देखने की लालसा तो थी इसीलिए मै तिरछी नज़र से देख रहा था। अब डर भीलग रहा था...लेकिन डर पर काबू पाया औऱ प्रेमचंद का फैन हूं इसलिए उनकी किताब पढ़ने लगा गोदान....अभीपंद्रह से बीस मिनट हुए होंगे कि मैने फिर देखा कि लोग उसी तरफ देख रहे थे जिस तरफ पहले देख रहे थे। मुझेलगा कि फिर कोई बदमाश होगा या उसी को देख रहे होंगा जिसको पहले देख रहे थे। लेकिन जब वे लोग लगभगपांच दस मिनट तक देखते रहे तो मैने भी देख ही लिया। मै देखता हूं कि लगभग 15 से 20 पुलिसवाले, चार से पांचकाले वस्त्रधारी जांबाज़, खड़े थे सबके हाथों में बंदूखे सब बड़े सख्त चेहरे से सभी की ओर घूरकर देख रहे थे। मैने भीजिज्ञासावश देखने लगा मुझे लगा कि यार लगता है कि कोई बड़ा गैंगस्टर है..... लगताहै कि कहीं पेशी होगी...फिरसोचने लगा कि यार इतने ख़तरनाक अपराधी को ट्रेनों से सफर क्यों करवाते हैं....... यार कितना रिस्क रहता है।लेकिन देखते ही देखते मेरे विचारों ने मुझे मूर्ख बना दिया। सफेद कुर्ता, सफेद पैजामा, सफेद जूते टफ्स कम्पनीके......मूंछे लंबीं काली, ...बाल काले, दोनो हाथों की आठ अंगुलियों में सोने की अंगूठियां, अब सिर्फ हीरे की पहचानहै मुझे .....नगों की जानकारी कम है लेकिन वो यहां देना ग़ैरज़रुरी है, दांये हाथ में एक ब्रेसलेट सोने का , बांये हाथमें एक रिस्ट वॉच सोने की लग रही थी पर हो सकता है कि धोखा हो क्योंकि वो बार-बार कुर्तें की बांहो से ढंक जारहा था सो मै ठीक से देख नहीं पाया.... दांये हाथ में मोबाइल संभवत: वो विंडो मोबाइल रहा होगा क्योंकि काफीचौड़ा था, सेहत में मोटा, कद ज्यादा छोटा तो नहीं पर मुझसे थोड़ा छोटा था, खड़ा था .... तो किसी से बोलता और हीं हंसी मज़ाक,...... हां आसपास खड़े पुलिसवाले औऱ काले वस्त्रधारी वीर जिन्हे ब्लैक कैट कमांडो कहते हैं, वोलोगों को धक्का देकर उनसे दूर रहने की हिदायत ज़रूर दे रहे थे।मुझे लगा कि चलों अच्छा है लोगों को बदमाशों सेदूर रहना चाहिए। सफेदपोश महाशय कभी फोन पर बात करते तो कभी साथ में खड़े सहयोगी संभवत वो उनकापीए होगा क्योंकि रह रह कर वो उस चिल्ला भी देते थे। मैं उन्हे बड़ा अपराधी समझ बैठा था कि तभी एक भीड़ गई और वो नेता जी( नाम नहीं लूंगा यार कुछ तो संस्पेंस रहने दो, मुझे राजनेताओं से डर लगता है यार) के नामके नारे लगा रही थी हाथों में बैनर लिये। .ये खेल चल ही रहा थी कि मेरी दिल्ली की ट्रेन गई और मेरे साथ वोदोनों लोग लाव लश्कर के साथ बैठ गये ये अलग बात है नेता जी और चमचे एसी क्लास में, मै स्लीपर में औऱ वोबदमाश जनरल कोच में। सीट पर बैठकर मै विचारों पर नये सिरे से विचार करने लगा .....कि देखों यार मै दोनों कोबदमाश समझने लगा था जबकि एक तो उसमें से नेता जी थे। अभी मानसिक द्वंद चल ही रहा था कि अचानक मेरादिमाग ठनका......फिर ख्याल आया कि यार ये नेता जी तो कई बार घोटालों, औऱ हत्याओं, साथ ही ग़ैरकानूनी रुपसे हथियार रखने में नाम आता रहा है...ये अलग बात है कि साबित हुआ हो...इनका चेहरा टीवी पर देखा था ये तोमहाशय बाहुबली नेता है। तब समझ में आने लगा कि क्यों पुलिसवाले दोनो के साथ खड़े थे एक की रक्षा के लिएऔर एक से रक्षा के लिए। लेकिन दोनों की फितरत एक ही थी। यहां तक की काम भी एक जैसा करते थे इसलिएइनसे तो लोगों की रक्षा करनी चाहिए। इसलिए मै कहता हूं कि यार मुझे इन राजनेताओं से बहुत डर लगता हैक्योंकि पुलिस भी इनकी रक्षा करती है अगर कहीं इनसे बात बिगड़ गई तो फिर मेरी मदद कौन करेगा। जनरलकोच वाले से कर लेगा लेकिन एसी क्लासवाले से कैसे करेगा क्यों कि भाईसाहब एसी का टिकट मंहगा आता हैऔऱ जनरल औऱ स्लीपर का कम रुपयों में।

क्या ये भारत माँ का अपमान नहीं है ?????/




क्या भारतीय झंडे का ये उपयोग भी है ?

29.6.09

कितनी तीव्र व्यथा ,,,



कितनी तीव्र व्यथा ,,,
ढो रहे हो हे तुच्छ जीव,,,
शायद ही सुख भान किया हो,,,कभी
शायद ही श्रम दान ना किया हो ,,,,कभी
कितना घ्रूणित है तुमारा जीवन ,,,
कितना कुंठित है तुमारा मन ,,,
कभी व्योम के पार ,,,
तुममे देखता हूँ,,,
कभी निज ह्रदय के उदगार,,,
तुममे देखता हूँ ,,,
कितना मस्त है ,,,
जीवन तुम्हारा ,,,
कितना व्यस्त है ,,,
जीवन तुमारा ,,,
पर मन ना कोई क्षोभ,,,
दिखता न कोई लोभ ,,,
हो प्रयासित ,,,
करने को प्रसारित ,,,
कर्म वड्या वधिकारस्तु,,,
माँ फलेसु कदाचिन,,,
है कितनी वयघ्रता ,,,
उन्नत नशा ,,,
कितनी दारुण दशा ,,,
कितनी तीव्र व्यथा ,,,

क्या चोरी रोकना इससे अच्छा विकल्प नही?

पंजाब की तर्ज़ पर हरियाणा सरकार ने भी अपने दफ्तरों, बोर्डों, निगमों, विश्वविद्यालयों, व स्थानीय निकायों में एयरकंडीशनरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है।

सभी प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्षों, बोर्डों व निगमों के प्रबंध निर्देशकों, मुख्य कार्यकारी अधिकारियों व सचिवों, मंडलायुक्तों, उपायुक्तों व राज्य के विश्वविद्यालयों के सभी रजिस्ट्रारों को सरकार के इस निर्णय की जानकारी दे दी गई है।

इस सुविधा को ख़त्म कर देने की बजाय, अगर बिजली की चोरी को रोक दिया जाए तो ज्यादा अच्छी बात होगी। ताकि बिजली बोर्डों और निगमों को ज़्यादा पैसा मिल पाए तथा वें अधिक बिजली उत्पादन में सक्षम हो सकें। तो क्या एयरकंडीशनरों को बंद करवाने की बजाय बिजली की चोरी को रोक देना अपेक्षाकृत अच्छा विकल्प नही?

28.6.09

बेशर्मी की इन्तहा नही तो और क्या है?

जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट क्षेत्र में सिर्फ़ निर्वस्त्र लोगों के लिए पहला होटल खुलने जा रहा है। 'दि डेली टेलीग्राफ' के अनुसार होटल में आने वाले सभी अतिथियों को रिसेप्शन पर ही अपने वस्त्र छोड़ने होंगे और परिसर में नंगे रहना होगा।
ईश्वर ने मानव को शर्म के एहसास के साथ पैदा किया है, यही कारण है कि संसार में आने के बाद उसने हमेशा अपने शरीर को ढकने की कोशिश की। आरम्भिक काल में जब मनुष्य कपड़े नही बना पाया था तो उसने अपने अंगों को पत्तों और जानवरों की खाल से ढका। जर्मनी का यह वाकया बेशर्मी की इन्तहा नही तो और क्या है?

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