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9.10.09

क्या पश्चिमी नग्नता में ही नारी उत्थान छिपा है ?


बात शुरू करते है नारी शास्क्तिकरण और नारी उत्थान की (जिसकी हवा बाँध कर कुछ चंद प्रगतिवादी अपनी पद प्रतिस्ठा और अर्थ की रोटियां सेक रहे है और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को दिग्भर्मित किये है ),,,, आखिर नारी वादी आन्दोलन है क्या? मै तो आज तक नहीं समझ पाया .,,,, क्या नारी वादी आन्दोलन वास्तव में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए की जा रही कोई क्रान्ति है ?,, या फिर पश्चिम से लिया गया एक खोखला दर्शन ,, जिससे स्त्री उत्थान तो संभव नहीं हां अवनति के द्वार अवस्य खुलते है ,,, अगर पश्चिम के इस दर्शन से कुछ हो सकता तो पश्चिमी समाज में स्त्रियो की जो दशा आज है शायद वो नहीं होती ,,,,,
हत्या ----दिसम्बर २००५ की रिपोर्ट के आधार अनुसार अकेले अमेरिका में ११८१ एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी ,,,,
अब अंत रंग साथियो ने येसा क्यूँ किया कारण आप सोचे ,,,,नहीं नहीं नहीं नंगा पन (कथित प्रगतिवाद ) इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ,,,
घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में ४.८ मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है ,,, और इनमे से कम से कम २० % हो अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण ---- पुरुष विरोधी मानसिकता और पारिवारिक व्यवस्थाओं में अविस्वाश और निज का अहम् (जो की कथित प्रगतिवाद की श्रेणी में आता है ) तो कतई नहीं होना चाहिए ,,,
सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में २००६ के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो ६०० औरते प्रति दिन आता है,,,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है ,,, वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते येसा सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके ,,,
कारण --- इन निकम्मे प्रगतिवादियों और नारी वादियों द्बारा खड़े किये गए पुरुष विरोधी बबंडर रूपी भूत की परिणिति से उत्पन्न स्त्री पुरुष बिरोध और वैमन्यस्यता ( स्त्रियों को पुरुषों के खिलाफ खूब भरा जाना और और पुरुषों का स्त्र्यो की सत्ता के प्रति एक भय का अनुभव )तो बिलकुल नहीं ये आकडे बहुत है मै कम दे रहा हूँ और उद्देश्य बस इतना ही है की पुरुष विरोध के कथित पूर्वाग्रह को छोडिये ( जिसे मै पश्चिम की दें मानता हूँ )
इसमें किसी तरह का कोई नारी विरोध नहीं है और ना ही मै ये चाह्ता हूँ की उनकी स्तिथि में सुधार ना हो ,, बल्कि मै तो आम उन स्त्रियों को समझाना चाहता हूँ (जो इन कथित प्रगतिवादी महिलाओं और पुरुषों के द्बारा उनके निजी लाभ के कारण उकसाई जा रही है) की इनके प्रगतिवाद में कोई दम नहीं अगर वास्तव में आप को समाज में अपनी स्तिथि को उच्चता पर स्थापित करना है तो आप को उस भारतीय परम्परा की ओर बापस आना होगा ( जो कहता है स्त्रिया पुरुषों से अधिक उच्च है ) है ,,,
अब कथित प्रगतिवादियों के लिए छोटा सन्देश आप को अपनी प्रस्थ भूमि पर फिर विचार करने की आवश्यकता है और देखना है की जिस प्रगतिवाद की दुहाई आप दे रही है और जिन्हें आप ने मानक के रूप में स्थापित कर रक्खा है ,, क्या प्रगति वाद से उनकी वास्तव में कोई भी प्रगति हुई इतने लम्बे चले पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल विच्च का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
’m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

28.8.09

प्रतिभाओं को अवसर - इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सराहनीय कार्य !

इस देश में प्रतिभाओं को कमी नही है, बस जरूरत है तो एक अदद अवसर और उचित मंच की। जिसके माध्यम से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें जाने ऐसी कितनी ही प्रतिभाएं हैं, जो एक उचित अवसर के अभाव में गुमनामी के अंधेरे में दम तोड़ देती हैं एक टीवी चॅनल के रियलिटी शो के माध्यम से सुदूर ग्रामीण अंचल बहराम पुर ( उडीसा ) के शारीरिक कमियों से ग्रस्त युवाओं के प्रिंस डांस ग्रुप ने शानदार नृत्य प्रस्तुत कर देश भर के दर्शकों का दिल जीतकर अपने अटूट जज्बे और अदभुत प्रतिभा का प्रदर्शन किया है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा प्रतिभाओं को सामने लाने और उन्हें उचित अवसर प्रदान करने का यह बहुत ही सराहनीय प्रयास किया जा रहा है
पहले पहल दूरदर्शन में यह बात देखने को मिलती थी। जिसमे शास्त्रीय नृत्य , संगीत और बाद्य यंत्रों पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन हुआ करता था । नीजि चेनलों के आ जाने से देश की प्रतिभाओं को उचित अवसर और मंच मिलने की सम्भावना बढ़ने लगी । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया धीरे-धीरे मनोरंजन , ख़बरों एवं ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों के दायरे से निकलकर अब देश की प्रतिभाओं हेतु प्रतिभा प्रदर्शन का उचित मंच साबित होने लगा । प्रारम्भ में केवल फिल्मी क्षेत्रों से जुड़े गीत , संगीत और नृत्य से जुड़ी प्रतिभाओं के प्रदर्शन का माध्यम बना एवं लंबे समय तक बना रहा , इससे ऐसा लगने लगा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सिर्फ़ फिल्मी कला क्षेत्रों से जुड़ी प्रतिभाओं के प्रदर्शन के मंच तक ही सिमटकर रह गया है, जिसमे नैसर्गिक और स्वाभाविक प्रतिभा प्रदर्शन के अपेक्षा नक़ल को ज्यादा तवज्जो दी जाती रही है । यंहा तक कि छोटे-छोटे बच्चे भी फिल्मी गाने की नक़ल कर प्रेम और प्यार के नगमे गाते नजर आते रहे । ऐसा देखने को मुश्किल ही मिला हो कि प्रतियोगी स्वयं द्वारा रचित गीत संगीत अथवा निर्मित नृत्य शैली का प्रदर्शन कर रहा हो ।
किंतु रियलिटी शो के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा लोगों को नैसर्गिक और स्वाभाविक प्रतिभा और हुनर के प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया जा रहा है और वह भी फिल्मी क्षेत्रों के आलावा अन्य कला क्षेत्रों में।
कुछ अपवादों को छोड़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की यह नई भूमिका अत्यन्त प्रशंसनीय और सराहनीय है, जो देश की प्रतिभाओं को प्रसिद्धि पाने और कला एवं हुनर के प्रदर्शन हेतु उचित मंच और अवसर प्रदान करने का कार्य कर रही है । युवा पीढियों के साथ सभी उम्र के कलाकारों अथवा प्रतिभाओं को रचनात्मक और सकारात्मक कार्यों की ओर प्रेरित कर रही है । इससे देश के सुदूर अंचलों एवं कोने-कोने में विद्यमान उभरती प्रतिभाओं की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से आशा कुछ ज्यादा बढ़ गई है । अतः इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कंधे पर भारी जिम्मेदारी आन पड़ी है कि स्वस्थ्य मनोरंजन के साथ-साथ देश की छुपी हुई प्रतिभाओं को प्रदर्शन का उचित अवसर बिना किसी पूर्वाग्रह के प्रदान कर सके । आशा है, मीडिया अपने जिम्मेदारी पर खरा उतरेगा और देश तथा समाज के लोगों की खुशहाली और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा ।

20.8.09

अतीतजीवी राजनीति की बंधक एक पार्टी

जिन्ना पर जसवंत सिंह के उन्मुक्तविचार भाजपा को रास नहीं आए। पड़ोसी देश के मृत राष्ट्रपिता पर ऐसी क्या नीति है, जिसका उल्लंघन उन्होंने किया है? जिन्ना भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते रहे हैं, पर मरने के बाद वह भारतीय जनता पार्टी के विभाजन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, यह सोचकर उन्हें कब्र में भी आश्चर्य हो रहा होगा। पहली बार जब लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के बारे में दो मीठे शब्द कहे थे तो उनके रहनुमा से लेकर अनुयाइयों तक में फूट पड़ गई। अब वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना पर एक पुस्तक लिखी है जो जिन्ना के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करती है। एक दिन पहले ही पार्टी ने इस पुस्तक से अपने को अलग करते हुए कहा था कि जसवंत सिंह के व्यक्तिगत विचारों का पार्टी की नीतियों से कोई लेना-देना नही, पर जसवंत के उन्मुक्त विचार पार्टी नेताओं को रास नहीं आए। यह सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की एक पड़ोसी देश के मृत राष्ट्रपिता को लेकर ऐसी क्या नीति है, जिसका उल्लंघन जसवंत सिंह ने किया है? इसका उत्तर स्पष्ट मगर चिंताजनक है। भाजपा अभी भी भूतकाल के परदे में आराम महसूस करती है। पीछे देखने की आदत इतनी गंभीर है कि पार्टी का भविष्य दिख रहा है और ही भविष्य की राजनीति की चिंता है। मंदिर वहीं बनाओ जहां भूत में मंदिर था, भारत सोने की चिड़िया था, कभी पूरा एशिया हिंदू था और हमारी ऐतिहासिक धरोहर में कुछ काला नहीं, ऐसे विचारों को जेहन में भरकर राजनीति करने से एक व्यावहारिक कट्टरपंथ पार्टी में घर कर गया है। तभी तो वरुणगांधी के विषैले शब्दों पर आपत्ति नहीं हुई, जो चुनाव में भारी पड़ा। प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने युवा नेताओं की एक कतार खड़ी कर रखी है वहीं भाजपा आडवाणी का विकल्प ढूंढ़ने में विफल रही और उन्हें फिर से विपक्ष के नेता का पद थमा दिया। इस्तीफा देने के बाद उन्हें भी पद वापस स्वीकारना पड़ा, क्योंकि नकारने का मतलब था पार्टी को अंतर्कलह के अंधड़ में अकेला छोड़ना। भाजपा के अंदर की उठापटक के बीच हो रही चिंतन बैठक से भारतीय राजनीति में रुचि रखने वालों को इस पार्टी के भविष्य को लेकर ही चिंता हो रही होगी। दरअसल पिछले चुनाव में हारने से पहले ही पार्टी के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न् लग चुका था। जनता इस ऊहापोह को भांप चुकी थी, तभी उसने केंद्र की सत्ता में आने का मौका नहीं दिया। अब सवाल यह है कि भाजपा अगला चुनाव लड़ने के लिए बचेगी और बचेगी तो किस रूप में ?

17.8.09

स्वतंत्रता

कितनी बार कमला से कहता हूँ -----कि मेरी किताबें मत छेडा करे पता नहीं उसे सफाई का क्या भूत सवार रहता है सब कुछ इधर उधर रख देती है-------कब से बैँक की पास बुक देख रहा हूँ मिल ही नहीं रही-------- अब बुढापे मे नज़र भी कम्ज़ोर हो गयी है-------
शायद पुरानी डायरी मे होगी--------हाँ-- यहीं है-- जैसे ही मैं डायरी उठाता हूँ एक पुराना सा पत्र मेरे हाथ मे आ जाता है एक दम सिहर जाता हूँ-------जितनी बार ये हाथ आता है पढे बिना नहीं रहा जाता-------फिर खोल लेता हूँ--------
प्रिय अजय
सादर नमस्कार
व्याकुल तो बहुत हूँ मगर फिर भी गौर्वन्वित महसूस कर रहा हूँ-------वो इस लिये कि मैं अपने देश के काम तो आया दुख इस बात का है किमैँ अपनी पूजनीय मातृभूमी की और सेवा ना कर सका -----अज ये पत्र भी एक कैदी मित्र के सहयोग से लिखना संभव हुआ है------15 तारीख को मुझे फाँसी होनी तय हुई है-------तुम जानते ही हो कि मेरे माता पिता मेरे जन्म लेते ही भगवान को प्यारे हो गये थे----- और गाँव के हरीराम चाचा ने पाला पोसा और देश प्रेम का पाठ पढाया आज मैं इस काबिल हुअ कि माँ के लिये बलिदान दे सकूँ-------
बस मेरी एक अँतिम इच्छा मेर दोस्त होने के नाते पूरी कर देना------- मुझे अभी भी ये मलाल है कि मैं जीते जी भारत को आज़ाद होते नहीं देख सका माँ के पैरों की बेडियाँ नहीं काट सका पता नहीं हमारा बलिदान काम आयेगा भी कि नहीं------ये मेरी अवाम खुली हवा मे साँस ले पायेगी भी कि नहीं------- जने इन जालिमआअँग्रेजों ने कितनी मासूम लील लिये-------कितनों को फाँसी चढा दिया--मगर इन्की प्यास बुझती नज़र नहीं आ रही------फिर भी एक विश्वास लिये जा रहा हूँ कि मेरा देश जरूर आज़ाद होगा---शहीदों का खून व्यर्थ नहीं जायेगा-------बस मेरी एक अँतिम इच्छा जरूर पूरी कर देना--------मैं तुम्हारा सदैव ऋणी रहूँगा मेरी अस्थियोँ को मेरे गाँव के खेतों मे छिडक देना ताकि इसी माँ की कोख से फिर जन्म लूँ----- जै हिन्द बन्देमातरम-
तुम्हारा निरँकार
पत्र् पढते ही अनायास आँखें बह चली------- धन्य थे तुम ---अच्छा हुअ तुम चले गये नहीं तो अगर आज़ाद भारत के आज के नेताऔ काआचरण देख कर दुखी होते------शायद एक और आज़ादी का बिगुल बजा देते भ्रश्टाचार से आज़ादी का ------- मैं तुम्हारा दोस्त हो कर भी तुम से कुछ ना सीख सका-------तेरे अवतार का फिर से इस देश को इन्तज़र है तू धन्य है--------
और मैं वहीं बैठ जाता हूँ -------- अतीत का एक एक पल आँखों के आगे घूमने लगता है------ अतीत के गर्त में दबे पन्ने खुलने लगे-------- सत्तर साल पहले की घटना कल की ही लगने लगी आँखों से अश्रु झर झर वहने लगे--------- कितना प्यारा था ये निरंकार -------, अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था -------- बचपन में ही उसके पिता का स्वर्ग वाश हो गया ----------माँ भी दो साल का छोड़ कर स्वर्ग सिधार गयी --------मीहान पुर गाव के पुजारी हरिराम ने ने इसका पालन पोषण किया वा नाम रख्खा निरंक्न्कार सिंह---------- जैसा नाम वैसा गुण निरंकार निरंकार ही निकला------- बचपन से गाव बालो की हर तरह से मदद करना ही उसका काम बन गया------ चाहे बूढे राम अवतार को नहलाना धुलना हो या मुनिया दादी के घावो में पट्टी करना------ किसी के बैल को नाथना हो या या बैल गाड़ी के पहिये की चिक निकालना ----- किसी को बैल गाडी से शहर पहुचाना हो याया फिर किसी का छप्पर बनबाना --------सब निरंकार का मानो अपना ही काम हो --------पूरा गाव बस्ती मानो उसका अपना ही घर हो और गावं के हर व्यक्ति मानो उसके परिवारी--------- जन जेष्ठ की तपती धूप हो या पौष की हाड काँप ठंड --------उसका उसपे कोई प्रभाव नहीं पड़ता ------गावं बाले उसकी तरह तरह से बडाई करते ---------हरिराम भी जव गावं में निकलते तो फूले नहीं समाते कहते यह सब भगबान नारायण की महिमा है जो मुझे शादी ना करके भी पुत्र सुख प्राप्त ह्युआ है-------- निरंकार भी अपने पिता सामन गुरु की हर आज्ञा का पालन करता था -----------पर ये स्नेह बंधन जयादा दिन ना टिक सका ---------ये प्रेम बंधन एक दिन में ही विखर गया --------सावन मॉस की शाम की बात हरिराम भगवान् नारायण की पूजा में तल्लीन जाप कर रहे थे पास ही निरंकार बैठा भोग का इंतजाम कर रहा थ \------------- आसमान बादलो से मढा था हलकी फुहार भी पड़ रही थी ----तेज तेज सनसनाती हवा के झोके आते और चले जाते ---बीच बीच में बिजली की कड़कएक नया संगीत पैदा कर रही थी और मंदिर की निश्चलता को भंग कर रही थी -----शाम का झुक झुका बढ़ता जा रहा था----- तभी कुछ घुड़सवार मंदीर के सामने आकर रुके ------उनमे से एक गोरा अफसर और तीन चार गोरे और देशी सिपाही मंदिर मर्यादा का उलंघन करते हुए तेजी के साथ मंदिर में प्रविष्ट हुए -------उनका अफसर हरिराम की ओर मुखातिब होते हुए बोला तुम्हें क्रांत्कारियो की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है –“क्रांत्कारियो की मदद करके तुमने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की है इसकी तुम्हें सजा मिलेगी उसकी ये बाते सुनकर निरंकार सिंह हत्प्र्व्ह रह गया ---पर हरिराम के चेहरे पर कोई भय का भावः या सिकन नहीं आई बल्कि उनके चेहरे का तेज चमकने लगा और आंखे गुस्से से लाल हो गयी और माथे पर आत्म सम्मान और आत्म गौरव का भावः झलकने लगा------------ उन्होंने कहा महोदय अपनी मात्र भूमि की सेवा से बढ़ कर दुनिया में कोई पुन्य का काम नहीं मुझे गर्व है की मैंने अपनी माँ के लिए जान निछावर करने बाले वीरो की मदद की है”---------- अफसर ये सुनते ही आग बबूला हो गया-------- उसने तुंरत हरिराम को गिरफ्तार कर लिया और अपने साथ थाने ले गया निरंकार उनके सामने गिर कर रोया --------हरिराम नाराज होते हुए----- बोला निरंकार ये मेरा अपमान है तू मेरा अपमान कर रहा है मैंने तुझे साद स्वाभिमानी बन्ने की शिक्षा दी और तू आज इन गोरो के आगे गिडगिडा रहा है आज मैं तुम्हें अंतिम उपदेश देता हूँ कभी भी इन अंग्रेजो के सामने मत झुकना ये हमारी माँ के अपराधी है विनाश करना इनका और प्रतिशोध लेना इनसे”---------------- उनकी बात सच हुई ------लगता था जैसे भगवान् ही बोल रहे हो उनके मुख से ---------सुबह हरिराम की लाश मंदिर में पंहुचा दी गयी ---------वो अंग्रेजी पुलिस की बर्बरता की गाथा कह रही थी-------- उनकी थाने में इतनी पिटाई की गयी की उनकी म्रत्यु हो गयी--------- सारे गावं में मातम का माहौल हो गया ------सब दवी जवान से अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार की बात करते पर कोई भी प्रतिशोध के लिए तैयार नहीं था ---- निरंकार का अंतिम आसरा जीवन का स्तम्भन भी छिन्न छिन्न हो गया --------उसके दिमाग में अपने गुरु के कहे हुए वाक्य गूजने लगे --------उसने अपने गुरु की समाधी के पास ही अंग्रेजी हुकूमत की एक एक ईट उखाड़ फेकने का प्रण किया------ और अब निरंकार सिंह बन गया वैरागी से जुनूनी क्रांतकारी ---------सबसे पहले उसने थाने में घुस कर उस अंग्रेज अफसर की हत्या कर अपने गुरु की हत्या का बदला लिया---------- फिर बन गया वो अंग्रेजी हुकूमत का मोस्ट वांटेड और निकल पड़ा अपनी भारत माँ को आजाद कराने वो वीर भारती पुत्र--------- अब उसका बस एक ही लक्ष अंतिम इच्छा या अरमान था -------- माँ भारती को आजाद कराना पर--------- दुर्भाग्य से वो पड़ा गया और परिणिति फाँसी ---------उसका पत्र मिलते ही मैं उससे मिलने जेल गया था ------मरने से कुछ ही समय पहले उसके चेहरे पर जो तेज कान्ति और चमक थी--------- वो अलौकिक थी वह निश्चिंत भावः से जेल के अन्दर गीता का पाठ कर रहा था -------उसे देख कर मेरे आंशु निकलने लगे मुझे रोते देख कर वह हस कर बोला अरे अज्जे तू रो रहा है क्या तुझे अपने मित्र को अपनी माँ के काम आते देख सुख नहीं मिलता शांति नहीं मिलती ? क्या तू चाहता है की मेरी माँ गुलाम रहे ?और हम चैन से सोये नहीं मित्र एक जन्म कया यैसे हजार जन्म मैं इस धरती माँ पर निछावर कर सकता हूँ-------- एक फाँसी क्या सैकडो बार फाँसी पर चढ़ सकता हूँ------ हम गीता पढने बाले हिन्दू है हमारा पुनर्जन्म पर विस्वाश है -------मैं दुबारा जाम लूँगा फिर पैदा होऊंगा वा अपनी माँ का कर्ज उतारूंगा------ मैं फिर क्रांतिकारी बनूगा ,----- उस समय उसकी ऐसी तेज पूर्ण बाते सुनकर मुझे अपने आप से घर्णा होने लगी -------मुझे लगा मैंने अपना जीवन निर्थक व्यर्थ कर दिया और तभी घंटी बजी और उसे फाँसी के लिए ले जाया जाने लगा------- , इन्कलाब के साथ उसने फाँसी के फंदे को चूम कर अपने आप अपने गले में डाल लिया -------- सभी अंग्रेज अफसर जो वहा थे यैसे देश भक्त पे आश्चर्य चकित रह गए------ देशी सिपाहियों के सर शर्म से झुक गए ------उस दिन गावं का हर बच्चा रोया मानो गाव पे पहाड़ टूट पड़ा हो------- जाने कितने बे सुध हो गए कितनो ने अन्न ग्रहण नहीं किया --------कितनी माये बिलखती रही अपने प्यारे लाल के लिए फिर ऐसी क्रांति आई --------उस गावं का बच्चा खडा हो गया अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्व --------पूरा देश खडा हो गया और पैर हिलने लगे अंग्रेजी हुकूमत के--------- , “ अजी क्या कर रहे हो क्या अभी तक किताब नहीं मिली मैं सेवक से निकलबाती हूँ चाय तैयार है चाय लेलो पत्नी के इन शब्दों ने मुझे अतीत से वर्तमान में ला पटका --------मैंने अपने आंशु अगौंछे से पोछे और चस्मा ठीक करकेबहार आ गया------- आज अंग्रेजी हुकूमत नहीं है तो क्या हमारी माँ स्वतंत्र है ------क्या आज हमारे नेता हमारी माँ को बेच नहीं रहे है ??क्या यही स्वतंत्रता है? तभी मेरे कानो में निरंकार के बचन गूंज पड़े मैं पुना पैदा होऊंगा पुना जन्म लूँगा अपने कर्तव्य धर्म के निर्वाह के लिए माटी का कर्ज को चुकाने के लिए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



6.8.09

मायावती की पूरक बजट, मै हूं हिमायती...

उत्तर प्रदेश की या तो किस्मत खराब है या तो यहां के नेता ज़रुरत से ज्यादा ही स्याणे हो गये हैं, या ये भी हो सकताहै कि दोनों ही हो। जिस तरह का पूरक बजट आया है उसे देखकर लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के 47 से ज्यादा ज़िलेसूखाग्रस्त हुये ही हो। प्रदेश में 47 ज़िले सूखा ग्रस्त घोषित हो चुके हैं लेकिन इस बजट को देखकर लोगों को येलग रहा होगा प्रदेश सूखाग्रस्त नहीं मूर्तित्रस्त है। जिस कारण यहां हर रोज़ कभी हाथी तो कभी सुश्री मायावतीअपनी औऱ साथ में उनके गुरु काँशीराम की मूर्तियां लगवाई जा रही हैं। आपको बता दूं कि मूर्ति में होने वाला खर्चहै लगभग 512 करोड़ से ज्यादा लेकिन आपको ये जानकर औऱ ज्यादा शर्म आयेगी कि सूखाग्रस्त ज़िलों के लियेसिर्फ 250 करोड़ रुपये खर्च का बजट लाया गया है। शर्म इसलिये कि यार हमने ही तो चुना है मायावती को। पतानहीं खुद ने या किसी और ने लेकिन वोट तो हमें ही देने होते हैं। बड़ा संकट खड़ा हो जाता है जब वोटिंग का समयआता है। समझ में ही नहीं आता है कि किसे वोट दें... उस वक्त तो सभी एकदम देवता स्वरुप नज़र आते है लेकिनअसली रंग दिखता है कुछ समय सत्ता में बीत जाने पर, जब पता चलता है कि घोटाले में हर किसी का नाम आया।तो फिर यूपी के लोगों तैयार हो जाओ, इस लेख में दो बातों पर ज़ोर दूंगा कि एक तो मायावती के मज़ेदार औऱलोगों को बेवकूफ बनाने वाले पूरक बजट पर.....दूसरा क्या इस वक्त उनके अलावा कोई विकल्प है आपके पासशेष merajawab.blogspot.com पर पढ़ें ....

1.8.09

" स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "

" स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "


किसी अखबार में कोर्ट - रूलिंग के बारे में पढ़ा था उसकी भाषा कुछ ऐसी थी जैसे कोर्ट का होमोसेक्स्सुअल्टी या समलैंगिकता के पक्ष में निर्णय देना तथा शासन द्वारा सम्बंधित सजा की धारा समाप्त करना नैसर्गिक एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर किया गया महान कार्य है | अगर समाचार-पत्र द्वारा उल्लिखित भाषा और निर्णय आदि की भाषा एक ही है ,
"तो फिर हमें सोचना पड़ेगा की नैसर्गिक एवं प्राकृतिक का वास्तविक अर्थ क्या हैं ? क्या वो जो कुछ बीमार सोच वाली मानसिकता के लोग परिभाषित कर रहे हैं ,या वो जो इस ' प्रकृति ' द्वारा हमें ' नैसर्गिक ' रूप से दिया या प्रदत्त किया गया है ?"
कहीं अति आधुनिक एवं तथा कथित प्रगति शील कहलाने की अंधी दौड़ में हम अपने पैरों पर कुल्हाडी तो नहीं मारे ले रहें हैं ,जब की अभी तक प्रकृति के साथ की गयी अपनी मूर्खताओं की अलामाते मानव - समाज भुगत रहा है ,फिर भी उसकी आंखे नहीं खुल रहीं हैं |||

ज्ञात सृष्टि में केवल मानव प्रजाति ही एक ऐसी प्रजाति है, जो बारहों मास अपनी इच्छानुसार यौन-क्रिया में सक्षम है जब की अन्य सभी का ऋतु-काल होता है और प्रकृति इस के द्वारा उनकी पजाति का वंशवर्धन व अग्रवर्धन कराती है ,यौन क्रीडा में आनन्द अन्य जीवों को भी आता ही होगा | परन्तु यह मानव प्रजाति ही है जो केवल और केवल मात्र अपने आनन्द के लिए ही रति-क्रीडा करती है ,और उस आनंद को बढाने हेतु नित नए एवं कृत्रिम तरीकों का भी अविष्कार करती रहती है ; यह '' होमोसेक्सुएलिटी '' भी उसी क्रम में आती है | यहाँ तक उसका स्वर्ग और जन्नत भी सेक्स रहित नहीं है वहां भी हूरें या अप्सराएँ है |
ब्रेकिंग न्यूज
किसी समाचार-पत्र में अभी हाल में यह समाचार पढ़ा उसमें उल्लेख था कि
'' डी यु '' , इसका पूर्ण रूप तो आप में से जिसके मतलब की यह ख़बर हो वह ख़ुद ढूंढे ; हाँ ख़बर में प्रोफेसर शब्द आने के कारण मैं ''यु '' का मतलब युनवर्सिटी मान रहा हूँ | हाँ तो '' युनवर्सिटी '' के एक प्रोफेसर [ डाक्टरेट है ] ने अपने किसी तथा- कथित बयान में कोर्ट तथा विधायिका द्वारा इस संदर्भित विषय के पक्ष जो भी निर्णय लिए है उस पर प्रसन्नता प्रकट की है , अरे भाई चौंकिए मत प्रोफेसर साहब अपने लिए नही अपने होनहार कुल -भूषण '' सपूत '' , भाई जब पूर्वज कह ही गए हैं '' लीक छोड़ चले तीन ,'शायर सिंह सपूत ' तो प्रकृति द्वारा निर्धारित लीक छोड़ने के कारण ''सपूत '' ही तो हुए ; के लिए , एक सुंदर - सुशील - होंनहार बहू , '''सपू ''' के लिए एक अर्धांगिनी ??? अरे नही भाई आप गलत समझ रहे हैं ,सही शब्द यहाँ पर ''' अर्धंगना ''' होगा , भाई मैं यहाँ भ्रमित हूँ कि सही शब्द क्या होगा , अगर आप की समझ में आजाये तो मुझे भी बतावें ||
है कोई योग्य स्त्रै लड़का की निगाह में ???
पूर्ण विवरण गत दिनों के किसी हिन्दी समाचार में ढूंढें यह सूचना वहीं से साभार उठाई गई है |

वैसे जान लें कि भारतीय समाज में यह ' विशिष्टता '' पहले से थी ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में कुछ ग्रह स्थिति और योग होने पर पुरुष समलैंगिकता का फलित कहा गया है , और जहाँ तक याद रहा है अबदुर्र रहीम 'खानखाना' साहेब ने भी अपनी ज्योतिष्य की छोटी सी पुस्तक '' खेतु कौतुकम् " में भी एक दो दोहे इस संभावना पर '' हिन्दी फारसी संस्कृत मिक्स '' भाषा में कहे हैं ||
श्री काशिफ़ आरिफ़/Kashif आरिफ ने भी हिन्दी ब्लोगिंग की देन पर ' कुरान शरीफ का हवाला दिया है ' ||


वैसे पुरुष -समाज के लिए एक जानकारी और चेतावनी :--
ज्यादा वैज्ञानिक विवरण में जाते हुए संक्षेप में बता रहा हूँ 'पुरानी लोकोक्ति कि पोस्ट -कार्ड को तार समझाना की समझदारी ही से पढें :-->

''पुरषों में ''पुंसत्व '' का निर्धारण करने वाले ''जेनोमिक गुण सूत्रों '' कि संख्या खतरनाक ढंग से खतरनाक स्तर तक कम हो चुकी हैं और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहने की पूर्ण संभावनाएं पाई जा रहीं हैं ; जब कि स्त्रियों में ऐसा कोंई विशेष परिवर्तन नहीं सामने आया है | अतः पुरुष समाज सवधान रहें या नही अगले एक हजार से पॉँच-छः हजार साल बाद पुरुष के स्थान पर केवल " नाना पाटेकर के डाएलोग ' एक मच्छर आदमी को [पुरुषों के सन्दर्भ में ] .......वाली बिरादरी ही बचेगी , और फिर क्योंकि पुरुष संतान होगी नहीं अतः कुछ दिनों में पुरुष नामक प्रजाति का '' कुरु कुरु स्वाहाः '' हो जायेग और यह धरती ,शौकत थानवी के उपन्यास वाला परन्तु वास्तविक "ज़नानिस्तान " बन के रह जायेगी परन्तु वहाँ पुरुष तो थे पर व्यवस्थाएं उलट थीं ||
हाँ यह भी हो सकता है की जब भी उत्पन हो एक ही पुरूष संतान हो जिसे समाज की मुखिया या रानी अपने ' ' इस्तेमाल 'के लिए आलराईटस रिज़र्व' स्टाइल '' में रख ले ? चीटियों मधु -मक्खियों के तरीके से ? तब उस पुरूष के लिए युद्घ नही महायुद्ध हुआ करेंगे ,जिसपर ' गाथाएं ' लिखी जाया करेंगी ?
अभी तक तो औरों का कहा दोहरा रहा था अब मेरी बात, वैसे यह भी मेरा नहीं है शास्त्रों का ही कहा है परन्तु ईश्वरवादी हूँ अतः इसे ही मेरा ही विचार समझें '' शास्त्रों में कहा गया है कि जब - जब पृथ्वी का भार बढ़ जाता वह पुकार लगाती है '' तो भगवान पहले पृथ्वी का भार किसी प्रकार से जैसे हैजा [कालरा ] प्लेग , ताउन , रोज - रोज छोटे-राजाओं [ एक गाँव के चक्रवर्ती सम्राटों ] के मध्य मूंछ ऊँची नीची , कुत्ते की पूंछ की छोटी-बड़ी जैसी बातों पर युद्ध आदि से जिसमें गाँव के गाँव ,नगर के नगर आबादी विहीन हो जाते थे ,द्वारा इस का प्रबंधन कर दिया करते थे || हाँ अगर इससे भी काम न चले तो महाभारत करा के भार कम कर दिया करते थे ; अरे भाई आबादी कम होगी तो भार भी तो कम होगा ; प्रति व्यक्ति आप औसत ७६ किलो मान ही सकते हैं |
वैस पहले देव दानव के युद्ध समान्य सी बात थी , जब तक ''अमृत '' का अविष्कार हुआ नहीं था | दानवों की ओर से शुक्राचार्य मृत-संजीवनी विद्या के साथ थे अतः जब देवता हार कर थक-थका जाते या ब्रेक टाइम आ जाता तो पृथ्वी वासियों को अपनी ओर से '' वरदान नामक गिफ्ट पॅकेज '' का करार कर भेज देते थे आदि-आदि;" परन्तु अब लगता है कि यह सब कारगर नहीं रहा तो उपर वाला डैमेज कंट्रोल में स्वाइन-फ्लू , होमोसेक्स्सुअलिटी के वायरस भेज रहा है "
कुरु कुरु स्वाहा

29.7.09

फिर भड़की आरक्षण की आग.....

राजस्थान में पिछली सरकार यानि बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुई हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। पर किसी ने ये सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी डाला गया तो वो फिर भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यही नहीं, अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण की आवाज़ उठा दी, लेकिन जाति के आधार पर नहीं और ही पिछड़े होने के आधार और ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। शेष merajawab.blogspot.com पर पढ़ें......

26.7.09

ऐसा सच सामने लाया जाए जो देश और समाज हित में हो !

एक टीवी चॅनल में इन दिनों प्रसारित हो रहे एक करोड़ ईनाम वाले "सच का सामना" कार्यक्रम पर सच अथवा हकीकत के सार्वजानिक किए जाने पर व्यापक बहस का मुद्दा बना हुआ है एक ओर जहाँ यह कार्यक्रम सेलिब्रिटी प्रतिभागी के निजी जीवन के विभिन्न पहलुओं की सच्चाई को परत दर परत खोलने की दिशा में आगे बढ़ता है वहीं स्टेज दर स्टेज यह कार्यक्रम बेहद निजता के करीब पहुंचता जाता है और इतने करीब कि जो मर्यादाओं और सीमाओं को लांघते हुए बेहद निजी जीवन की ओर झाँकने का प्रयास होता हैवह भी परिवार के बहुत निजी सहयोगी पत्नी , सम्मानीय माता पिता एवं भाई बहनों के साथ आम जनता के सामने जहाँ सारी सीमाओं को लांघते हुए जीवन मूल्य और सामाजिक रिश्तों की मर्यादा धराशाई होने लगती है कुछ ऐसी बातें जिनका परदे में रहना ही परिवार तथा समाज के लिए हितकर होता है, उन्हें उभारकर परिवार में बिखराव , मर्यादाओं की धज्जियाँ उडाना , आपसी विश्वाश और सम्मान की भावना का ध्वस्त होना एवं सामाजिक प्रतिष्ठा को दावं पर लगने की संभावनाओं की ओर अग्रसर होने से इनकार नही किया जा सकता है क्योंकि इसी अवधारणा पर आधारित कार्यक्रम अमेरिका , ग्रीस और कोलंबिया में भी प्रसारित हो चुके हैं और इसी प्रकार की परिणिति के चलते इन्हे बंद करना पड़ा है
इसमे प्रतिभागी का भाग लेने का आधार अलग-अलग हो सकता है जहाँ एक ओर इसमे एक करोड़ रुपये का लालच , विवादस्पद होकर प्रसिद्धि पाने की चाह और डूबते कैरियर को सहारा देने की चाह अथवा अभिव्यक्त ना हुई या अपूर्ण हुई चाहत के चलते दीवानगी माना जा सकता है वहीं दूसरी ओर कार्यक्रम को ज्यादा लोकप्रिय बनाने हेतु कार्यक्रम ज्यादा रोचक एवं स्टेज दर स्टेज ज्यादा निजता की परत उघाड़ कर उत्सुकता पैदा करने का प्रयास कहा जा सकता है साथ ही विवादस्पद रूप देकर टी आर पी बढ़ाने की चाह से भी इनकार नही किया जा सकता है
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का नाम देकर इसके पूरे स्वरुप को पूरी तरह उचित नही कहा जा सकता है ऐसी अभिव्यक्ति जो परिवार और समाज के हित में नही हो उसे उचित नही कहा जा सकता है पारिवारिक रिश्ते को विघटन की ओर ले जाने और असामाजिक अवं अमर्यादित गतिविधियों के सार्वजनिक प्रदर्शन पारिवारिक संस्था और समाज की सेहत के लिए ठीक नही माने जा सकते हैं इस तरह के कार्यक्रम को सही रूप में प्रस्तुत किया जाए एवं अवैध संबंधों और निजता से जुड़े अमर्यादित सीमा रहित प्रश्नों को दरकिनार किया जाए तो ऐसे कार्यक्रम देश और समाज के हित में एक नई क्रांति का आगाज और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक नए युग का सूत्रपात कर सकते हैं झूठ पकड़ने की मशीन के प्रयोग से सच को सामने लाने की अवधारणा को अपनाते हुए कथित रूप से आरोपित व्यक्ति और देश में छुपे बहरूपियों द्वारा दिए जाने वाले साक्षारकात की हकीकत को सामने लाकर बेनकाब किया जा सकता है
आशा है भारतीय परिवेश के अनुरूप इस तरह के कार्यक्रम को सुसंस्कारित रूप में परिमार्जित एवं संसोधित कर नए रूप में प्रस्तुत किया जावेगा जो देश और समाज के हित के अनुरूप सर्वग्राह्य होगा

क्या प्रेम करने वालो को जीने का अधिकार नही?

हमारे देश मे सबको जीने का समान अधिकार दिया गया है। लेकिन आज भी कुछ रुढिवादिता हमारे समाज में पसरी हुई है, जिसे दूर करना जरुरी है। हरियाणा के जींद जिले के सिंघ्वल गाँव में जो घटना हुई. उससे सीधा कानून को चुनोती दी गई है और पुलिस भी खाप पंचायत के आगे झुकी नज़र आती है। मटार के रहने वाले वेदपाल का कसूर सिर्फ़ इतना था कि वह अपनी पत्नी को लेने गया था, जहाँ उसकी पीट-पीट कर हत्या कर दी गईक्या आज के समाज मे प्यार करना कोई जुर्म है? एक तरफ़ तो पुलिस लोगो की हिफाजत करने की बात करती तो दूसरी तरफ़ वेदपाल जैसे लोग जो पुलिस पर विश्वास कर जाते है, उन्हें मौत जैसी सजा मिलती है। क्या प्रेम करने वालो को जीने का अधिकार नही?
वेदपाल
की हत्या करने वाले सोनिया के पिता अन्य तीन लोगो को कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ से उनको दो दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है।वहीं इस मामले में कईं सामाजिक संगठनों ने हाईकोर्ट मे अर्जी दायर की है और इंसाफ की मांग की है।

17.7.09

तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है......

कमाल की उठापटक चल रही है आज कल उत्तर प्रदेश की राजनीति में....मायावती बलात्कार पीड़ितों को मुआवज़ा देकर तथाकथित भला काम कर रही थीं। उनके सचिव गांव गांव जाकर हैलीकॉप्टर से लड़कियों औऱ महिलाओं को 25 हज़ार से लेकर 75 हज़ार तक की कीमत अदा माफ करियेगा मुआवज़ा दे रहे थे। इस शुभ काम या कहें कि ज़बान बंद करने की कीमत या ये भी कह सकते है कि बलात्कार पीड़ित महिलाओं के जले पर नमक छिड़कने का भला कर रही थीं। एक तो पहले ही उनके आत्मविश्वास को तोड़ दिया गया औऱ बजाए आरोपियों को मृत्युदंड दिये महिलाओं को पैसे थमा रही हैं। भाई मैं तो इस तरह के मामले पर तालिबान का समर्थन करता हूं कि जब भी उनके राज में कोई पुरुष किसी महिला के साथ छेड़छाड़ करता या बलात्कार करता तो उसको ऐसा दंड दिया जाता था कि फिर कभी वो ये करने के हालत में ही न रहे। मतलब आप समझ गये होंगे। लेकिन भईया ये भारत है हम है सबसे बड़े लोकतंत्र। यहां पर सबको जीने का हक है चाहे वो बलात्कारी हो या बलात्कार पीड़ित। यहां पर किसी भी कत्ल में शामिल मुजरिम को सिवाय कुछ दिन की सज़ा के अलावा कुछ नहीं मिलता। तभी तो आजकल फैशन हो गया है कि पांच पांच सौ में लोगों का मर्डर हो जाता है। क्योंकि कानून कड़ा नहीं है। और अगर कोई ये कहता है कि कानून कड़ा है तो मै बता दूं तो वे दलाल भी तो कानूनविद् है जो ऐसे अपराधियों को छुड़ा लेते है प्रोफेशनल बनकर। खैर मुद्दे से भटक गया था मुद्दा है मायावती के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को उनकी कीमत अदा अरे फिर गलती हो गई माफ करियेगा मुआवज़ा देने औऱ इसी मुद्दे पर कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के बयान के बाद भड़की आग में झुलसे उनके घर औऱ उत्तर प्रदेश की राजनीति की। रीता के बयान को सही नहीं ठहरा रहा हूं ये दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। कार्यकर्ता कह रहे है कि मायावती पर की गई टिप्पणी अशोभनीय थी और बीएसपी कार्यकर्ताओं द्वारा रीता का घर प्रतिशोध की ज्वाला में जल गया तो एक बात मै ऐसे कार्यकर्ताओं को याद दिला दूं कि.......आगे की बात पढ़ने के लिए केसरिया...पधारो म्हारे ब्लाग

11.7.09

ये आम रास्ता नहीं है.....

मेरी एक बहुत बुरी आदत बनती जा रही है कि मुझे गलत लगने वाली बातें गलत ही लगती है। हमारे नोएडा शहर में एक ट्रेंड चल रहा है...मुझे ये तो नहीं पता कि हर शहर में ऐसा होता है या नहीं लेकिन हमारा नोएडा लगता है आम लोगों का शहर नहीं रह गया है। जहां भी जाओ एक बोर्ड हर तरफ मिलता है और वो बोर्ड है...ये आम रास्ता नहीं है..का ...भगवान कसम मेरी नजर में तो ऐसी जगह पता नहीं कौन सी है.. जो आम लोगों के लिए हो। सुरक्षा के नाम पर हर सेक्टर में गेट पर एक लोहे का दरवाजा लगा होता है औऱ बड़े से बोर्ड पर लिखा होता है कि ये आम रास्ता नहीं है अंग्रेजी में भी अंग्रेजी बुद्धुओं के लिए भी लिखा होता हैं वो भी अंग्रेजी में साथ बड़ी मूंछों वाले कुछ लठैत...ये बोर्ड कोई आम बोर्ड नहीं है। इन बोर्डस पर बाकायदा घुसने का समय और जाने का समय लिखा जाता है। अगर आप गलत समय पर आये तो अंदर नहीं जा सकते और अगर चले गये तो वापस तो नहीं जाने दिया जाएगा। या तो आप उस वक्त लड़ाई करिये या फिर गुंडो की तरह दादागिरी दिखाकर आइये..... भाई साहब आम आदमी तो आ ही नहीं सकता है। मैने एक चीज़ नोटिस की है कि अगर हर रास्ता आम न रहे तो आम आदमी कहां रहे। अक्सर इस तरह के बोर्ड आपको उन सेक्टर्स में मिलते है जो तथाकथित पॉश इलाके होते है और हेहेहेहेहेहेहेहेहे...आप तो समझते ही होंगे कि पॉश इलाकों में आम आदमी कहां रहते हैं ?...माफ करियेगा वो लोग रहते ही कहां हैं वो तो ज्यादातर विदेशों में रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि वो आदमी कहां रहे जो उन कॉलोनियों के दूसरी तरफ रहते हैं। आपमे से ही ज्यादातर लोग ये सोच रहे होंगे कि दूसरा रास्ता भी तो हो सकता है। तो उनकें लिए जवाब है कि रास्ते तो बहुत हैं पर वो रास्ता कोई खास है क्या। सिर्फ इसलिए कि पॉश सेक्टर है चारों तरफ सो बार्डर लगा दो और हर दरवाजे पर मुछ्छड़ सिक्योरिटी गार्ड खड़ा कर दो बस। आखिर क्या है ये.... आम रास्तों को लोग क्यों खास बना रहे हैं सिर्फ उन चंद लोगों के लिए जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या डर है उन्हें चोरी डकैती का। अरे जिसे चोरी करनी होगी वो क्या छह फुट के दरवाजे के उस पार नहीं जा सकता है। दिखावे के लिए दरवाजे लगाने से कोई जगह खास नहीं हो जाती है। ऊपर से ये बोर्ड जो ये कहता है कि ये आम रास्ता नहीं है....क्या घटियापन है उन लोगों का जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या खास है उस रास्ते पर। आम आदमी का रास्ता क्यों नहीं है वो ..जरा कोई तो मुझे बताये। क्या जरा सा भी ये पता चलता है उन लोगों को कि किसी आदमी को कितनी परेशानी होती है जब चार कदम की दूरी को वो पचास कदमों से पूरी करता है। कौन देता है ये हक कि किस रास्ते को आम बनाना है और किसे खास ?...... कौन होता है ये कहने वाला कि ये रास्ता आम नहीं है। ज़रा कोई तो मुझे बताये कि क्या खास है उन रास्तों पर ????

10.7.09

मोबाइल गुमशुदा ही क्यों होता है....

28 जून को मेरा मोबाइल और पर्स मेरे ही घर से चोरी हो था। कुछ दिनों तक तो मुझे लगा कि मेरा मोबाइल घर में ही कहीं रखा होगा। कुछ दिन बाद यकीन हो गया कि मेरा मोबाइल घर से ही चोरी हो गया है। एक टीवी चैनल में काम करता हूं तो टाइम नहीं मिल पाया कि पोलीस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सके। चूंकि मोबाइल घर से चोरी हुआ था तो मेरा घर थाना सेक्टर 24 में आता है। मैं समय निकालकर थाने मे पहुंचा पहली बार किसी अपने काम से थाने में आया था। थाने में प्रवेश करते ही मैने देखा कि हर कोई अपने काम में मग्न था। आम आदमी वहां पहुंचे तो उनकी भाषाओं को समझने मे काफी देर लग जाये। एक तो एक दम अक्खड़, सख्त से चेहरे, लंबे चौड़े साथ में कुछ छोटे कद के भी थे। कुल मिलाकर जब मै वहां पहुंचा तो करीब 10 लोग होंगे। हाँ कुछ लोग बंदीग्रह में भी थे गर्मी की वजह से वहां दरवाजे के बाहर एक पंखा लगा था। अंदर पानी की बोतल थी लेकिन ज्यादा झांक नहीं सका क्योंकि वहा पर अंधेरा बहुत था। एक कमरा था जिसमें थाना प्रभारी निरीक्षक लिखा थासाथ में जो उस वक्त वहां नियुक्त थे उनका नाम..प्रभारी निरीक्षक का नाम था कैलाश चंद। दूसरे कमरे में जाने से पहले बाहर ही कुछ कुर्सियां औऱ रखी हुई थीं और एक पुलिस की वर्दी में महाशय बैठे थे नाम था फतह सिंह। अब मै उनके पास कमरे में गया जहां पर कुछ लिखा पढ़ी का काम चल रहा था। मैने वहां जाकर अपनी बात कही कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हो गया है क्या आप रिपोर्ट लिखेंगे। उन्होंने कहा क्यों नहीं मैने कहा कि तो फिर एक पर्चा दे दीजिए। उन्होने तुरंत एक पर्चा दे दिया। मैने तुरंत लिखा सारी जानकारी लिख दी कि मेरा मोबाइल और पर्स मेरे घर में चोरी हो गया है। ये घटना सुबह आठ बजे से नौ बजे के बीच की है। और भी कई जानकारी लिखी और लेकर वहां गया तो उन्होने कहा कि यार ये राम कहानी क्यों लिख दी बस इतना करों कि ये लिख दो मोबइल गुम हो गया है। मै दोबारा पर्चा लेकर गया औऱ मैने फिर वहीं बातें लिखी जो पहले लिखी थीं। इस बार दो पर्चें लेकर गया था। मैने कहा कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हुआ है कि गुम। उन्होने मेरी तरफ़ नाक सिकोड़कर कहा कि तो फिर ऐसा करो कि साहब से मिलकर आ जाओ। मै तुरंत कैलाश चंद के पास गय़ा जो कि वहां के थाना प्राभारी थे। उन्हे पूरी बात बताई फिर उन्होने कहा कि ठीक है जाकर पर्चा दे दो। मै वापस आया तो वो दूसरे साहब जी मानने को तैयार नहीं हुए कि फोन चोरी हुआ है। वो दोबारा लेकर गये पर्चा कैलाश जी के पास। वापस आये तो तेवर बदले हुए थे। मुझे समझाने लगे बोले कि यार फोन गुमशुदा ही होता है ,चोरी नहीं होता। मैने कहा कि क्यों जब मेरे घर से मोबाइल चोरी हुआ है तो मै गुमशुदा की रिपोर्ट दर्ज क्यों करवाऊं? उन्होने बारामदे में बैठे मोटे से पुलिस वाले के पास भेज दिया, कुछ देर मुझे टरकाया, लेकिन जब मै माना तो मुझे उस मोटे से पुलिस वाले के पास भेजा। उनका नाम था फतह सिंह, मोटे से, गोल चेहरा सख्त चेहरा, सांवला सा रंग, बाहर बैठे थे बारामदे में पर्चा लेकर बोले कि फोन कैसे चोरी हुआ, मैने कहा कि मेरा भाई सुबह कोचिंग के लिए निकला और मुझे बाताये बगैर वो दरवाजा बंद करके चला गया लेकिन दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था। मै उठा आठ बजकर पचास मिनट पर मैने देखा कि मेरी पर्स और मोबाइल वहां नहीं था। इतना कहते ही फतह सिंह बोले कि आपकी लापरवाही है इसमें हम क्या कर सकते हैं। मैं उनकी बात सुनकर सन्न रह गया। मुझे ऐसे जवाब की आशंका नहीं थी। मै उस वक्त क्या कहूं ये मुझसे कहते नहीं बन रहा था क्योंकि मै तो वहां मदद मांगने गया था। पर मैं बोला भाई साहब दरवाजा खुला था इसका मतलब ये तो नहीं कि आपका काम खत्म हो जाता है दरवाजा बंद होने से या खुला होने से। आप मेरी रिपोर्ट लिखिये। वो बोले कि ऐसा करों कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवा दो। मैने कहा कि नहीं फोन चोरी हुआ है। उन्होने मुझसे कहा कि फोन चाहिए या नहीं। मैन कहा कि चाहिए। तो बोले कि तो फिर गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओ। मैने कहा कि चोरी कि रिपोर्ट दर्ज करवाने पर नहीं मिलेगा इसका मतलब। वो बोले ऐसा है कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओं वर्ना कहीं और जाओ। मैने कहा कमाल की बात कर रहे है आप। मैरे घर इस थाने के अंतर्गत आता है तो मै और कहाँ जाउंगा। इस पर उन्होने कहा कि मै नहीं लिखुंगा ऱिपोर्ट, कहीं औऱ जाकर लिखवाओं। अब मेरे मुझे जो झटका लगा वो शायद ज्यादातर लोगों को लगता होगा। जो लोग पुलिस स्टेशन मे आते होंगे। मै अभी तक सोचता था कि पता नहीं लोग कैसे कहते है कि पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। लेकिन उनका गुस्सा और मुजरिमों को डराने वाले अंदाज को देखकर मै तो बिलकुल नहीं डरा। हां अक्सर लोग डरकर उनकी बात मान जाते होंगे। मैने कहां कि तो फिर ठीक आप मुझे लिख कर दे दीजिए कि आप मेरी रिपोर्ट नहीं लिखेंगे। उन्होने कहा नहीं दूंगा और मेरा प्रार्थना पत्र मेरी ओर फेंक दिया। उस वक्त मुझे पुलिस स्टेशनों की हालत औऱ असलियत सामने गई। इस बीच मुझे एक और जानकारी मिली कि दिनभर में सैकड़ों मोबाइल चोरी होते हैं कहां तक चोरी की शिकायतें लिखेगा कोई। ये बातें मुझे लिखा पढ़ी करने वाले पुलिसवाले ने बताई। मै परेशान हो गया कुछ काम होते देख मै हताश होता लेकिन पत्रकार ठहरा हताश होना सीखा नहीं है मैने। मैने तुरंत अपने एक मित्र को फोन किया उसने अपने एक मित्र जो कि आईबीएन 7 में कार्यरत है, उसके पास फोन किया ब्रजेश नाम के उस शख्स ने अपने फोन पर थाना प्राभारी से क्या बात की ये तो पता नहीं। लेकिन उसके बाद मेरा काम बनता हुआ नजर आने लगा और जो पुलिस वाले अभी तक मुझ पर हावी हो रहे थे वो हलके पड़ गये और फतह सिंह की डराने के अंदाज पर मित्र का एक फोन भारी पड़ गया और उन्होने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकताआप लिखा पढ़ी वाले के पास जाइयें वो रिपोर्ट लिखेगा। मैने देखा कि पहले जो सुस्ती वो लोग दिखा रहे थे इस बार तेजी से काम हो रहा था। मुझसे दो कॉपियां लिखवा ली थी एक कॉपी खुद रख ली और अब मेरे पास तो बस वो दूसरी कॉपी है जिसमें तो मोहर है और ही कोई सूबूत की मैं पुलिस स्टेशन पर गया था। एक कॉपी तो उन्होने रख ली है औऱ नाम भी बता दिया है कि अश्वनी जी जांच करेंगे पर जांच होगी या नहीं ये जांच का विषय ज़रुर बन गया है।