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24.12.09

रास्ट्र वादिता और प्रगति

आदरणीय अकबर जी से बात हुई और मैंने उनसे आज्ञा ली दरअसल मै रास्ट्र चिंतन और रास्ट्र प्रगति पर एक जन जाग्रति अभियान चलाना चाहता था जिसके लिए मैंने मांननीय अकबर जी से दनेटप्रेस को रास्ट्र वादी मंच के रूप में प्रयोग करने का आग्रह किया और मुझे ख़ुशी इस बात की है आंतरिक सामाभाव रखने वाले अकबर जी ने मेरे अनुग्रह को स्वीकार करते हुए मुझे इसकेलिए आज्ञा तो दी ही साथ ही प्रोत्साहित भी किया और अपनी सक्रीय भागीदारी का अस्वाशन भी दिया ,,,,अतः मै उनका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ और \हाजिर हूँ रास्ट्र वाद पर अपना चिंतन लेकर


जब कभी भी सामाजिक व्यवस्थाओ में परिवर्तन होता है ,--उनकी गति और अविरल प्रवाह में परिवर्तन होता है ,, तब नयी व्यवस्थाये जन्मती है और धीरे धीरे पुरानी व्यवस्थाये विलुप्त होने लगती है--- ,व्यवस्थाओ के इस परिवर्तन का समाज और रास्ट्र पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है , यह प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही हो सकता है ----, यदि प्रभाव सकारात्मक है तो थोड़ी हील हुज्जत के बाद ये व्यवस्था समाज द्वारा स्वीक्रत हो जाती है,---- और पुरानी व्यवस्था की जगह ले लेती है , परन्तु यदि यही प्रभाव नकारात्मक होता है,, तो इसके खिलाफ रास्ट्र वाद की दुहाई देता हुआ एक प्रबुद्ध वर्ग खड़ा हो जाता है ,,और व्यवस्था परिवर्तन का विरोध करता है ,, आम जन उस समय कर्तव्य विमूढ़ होता है ,,वह ना तो नयी व्यवस्था को पूर्णता अस्वीकार करता है--- और न ही स्वीकार ही , प्रबुद्ध वर्ग द्वारा असंगत व्यवस्था परिवर्तन के विरोध को और अल्प प्रबुद्ध वर्ग(यहाँ प्रबुद्ध वर्ग और अल्प प्रबुद्ध वर्ग के मेरे मानक के अनुसार चिंतन शील समाज का वह वर्ग जो प्रगति का तो विरोधी नहीं है- परन्तु किसी भी व्यवस्था परिवर्तन को पूर्ण चिंतन और मनन के साथ ही स्वीकार करता है तथा भविष्य की पीढियों पर उस व्यवस्था परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा इसके प्रति जाग्रत होकर ही व्यवस्था परिवर्तन को स्वीक्रति देता है -प्रबुद्ध वर्ग में आता है --समाज का वह वर्ग जो समाज और रास्ट्र के हितो के प्रति तो चिंतित होता है ,,परन्तु उसका यह चिंतन सामायिक और वर्तमान परस्थितियों को लेकर ही होता है समाज और रास्ट्र पर व्यवस्था परिवर्तन के द्वारा पड़ने वाले दीर्घ गामी प्रभाव को लेकर ये वर्ग मौन होता है अल्प प्रबुद्ध वर्ग में आता है ) द्वारा व्यवस्था परिवर्तन के समर्थन को आंख बंद कर के ही देखता है ,--- यदि पुरानी व्यवस्था असंगत और शोषक है तो यह वर्ग उसके शोषण को तो महसूश करता है और उसके परिवर्तन की उत्कंठा भी रखता है परन्तु यह बिना चिंगारी का ईधन है ,जो आग को जलाए तो रख सकता है परन्तु जिसमे आग उत्पन करने की क्षमता नहीं है यही वो वर्ग है जो दोनों वर्गों ( प्रबुद्ध और अल्प प्रबुद्द वर्ग ) द्वारा आसानी से अपने साथ जोड़ा जा सकता है ,,, इस वर्ग द्वारा राष्ट्रीयता रास्ट्र वाद और रास्ट्र भक्ति की कोई स्वनिर्धारित व्याख्या नहीं होती . यह विभिन्न वर्गों द्वारा निर्धारित रास्ट्र वाद की व्याख्याओ के अनुसार अपने आप को रास्ट्रवादी सिद्ध करने का प्रयाश करता रहता है,,, अब यहाँ जो मुख्य बात पर दिखती है वह यह है की समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग रास्ट्र वाद के स्पस्ट और तर्क पूर्ण अर्थ से ही अनभिग्य है तिस पर विभिन्न राजनैतिक और सामाजिकदलों ने
अपने फायदे के हिसाब से रास्ट्र वाद की मनगढंत व्यखाये करके कोढ़ में खाज का काम किया है ,, जिससे बहुत बड़ा और दीर्घ गामी नकारात्मक प्रभाव समाज पर पड़ा ,और आम जन की रूचि अस्मिता और आत्म गौरव से जुड़े इन शब्दों से हट गयी ,, इन शब्दों को इतना गूढ़ कर दिया गया की ये शब्द भारी साहित्य की तरह नीरश और भारी लगने लगे जिनका प्रयोग लिखने पढने और बोलने तक ही रह गया और आम जन का जुड़ाव इन शव्दों से ख़त्म होने लगा ,, जब की सीधे शव्दों में देखा जाए तो अपनी अस्मिता और पहिचान को बचाए रखने के लिए नकारात्मक व्यवस्था परिवर्तन का विरोध ही प्रखर रास्ट्र वाद है ,,और यही सच्ची रास्ट्र भक्ति है . क्यों की रास्ट्र वादिता है तो रास्ट्र है और रास्ट्र है तो राष्ट्रीयता और यही रास्ट्रीयता हमारी पहिचान है ,, तो इन अर्थो में रास्ट्र वाद कोई गूढ़ विषय न होकर वयक्तिक विषय है जो सीधे सीधे व्यक्ति विशेष से जुड़ा है,, रास्ट्र वाद की व्याख्या में दो सबसे महत्पूर्ण अवयव है रास्ट्र और जन ,, रास्ट्र संस्क्रति , अध्यात्म ,धर्म दर्शन तथा भूखंड का वह भाग है जिसमे जन निवास करते है ,,, जन किसी भी रास्ट्र में रहने वाले मनुष्यों का वह समूह जो उस रास्ट्र की सांस्क्रतिक ,अध्यात्मिक, धार्मिक और इतिहासिक पहिचान की ऱक्षI करते हुए और उससे गौरव प्राप्त करते हुए निरंतर उस रास्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए प्रयाश रत रहता है जन कहलाता है ,, यहाँ ये ध्यान देने योग्य बात है की किसी भी रास्ट्र की भौगोलिक सीमाए परिवर्तनीय हो सकती है परन्तु किसी रास्ट्र का आस्तित्व तभी तक है जब तक उसकी सांस्क्रतिक और अध्यात्मिक पहिचान जिन्दा है जिसके ख़त्म होते ही रास्ट्र विलुप्त हो जाता है , और वह केवल भूखंड का एक टुकड़ा मात्र रह जाता है . यही सांस्क्रतिक धार्मिक और अध्यात्मिक पहिचान जन में राष्ट्रीयता का बोध कराती है, परन्तु एक जो चीज सबसे महत्व पूर्ण है वह ये है की रास्ट्र और जन एक दुसरे के पूरक तो है, परन्तु रास्ट्र सर्वोच्च है , जन के पतन से रास्ट्र का शनै शनै पतन तो होता है परन्तु रास्ट्र के पतन से जन का सर्व विनाश हो जाता है , अतः रास्ट्र की सर्वोच्चता और अस्तित्व को बनाये रखना प्रत्येक जन का कर्तव्य है क्यों की रास्ट्र है तो जन , रास्ट्र प्रेम की यही भावना रास्ट्र वाद है जिसमे व्यक्तिगत हितो को तिरोहित करके संघ समाज समूह के विस्तर्त वर्ग में अपना हित देखा जाता है,,यही त्याग की भावना रास्ट्रवादी होने का गौरव प्रदान करती है ,, अगर इसे सीधे शब्दों में देखे तो अपनी पुरातन उर्ध गामी व्यवस्था संस्क्रति और गौरव को बचाए रख कर प्रगति के मार्ग पर बढ़ना ही सच्चा रास्ट्र वाद है-- , यही राष्ट्रीयता की भी सच्ची पहिचान है ,,जो आज कल विभिन्न राजनैतिक दलों संगठनों द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद की व्याख्या से सर्वथा अलग है , अगर हम विभिन्न राजनैतिक दलों और संगठनों द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद का विश्लेषण करे तो तो हम यही पाते है की उनके द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद अधूरा रास्ट्र वाद है, और वे पूर्ण रास्ट्र वादिता का समर्थन नहीं करते ,,क्यों की कोई भी वाद एक के द्वारा स्वीकार्य तथा दूसरे के द्वारा अस्वीकार्य और दूसरे के द्वारा स्वीकार्य और पहले के द्वारा अस्वीकार्य हो कर प्रखर रास्ट्र वाद की व्याख्या नहीं कर सकता ,,,,,,
इसे हम धर्म से भी नहीं जोड़ सकते ,क्यूँ की हम किसी विशेष धर्म को रास्ट्र वादी और दूसरे को रास्ट्र विरोधी तब तक नहीं मान सकते जब तक उस धर्म के मानने वाले रास्ट्र वाद की परिक्षI में पास या फेल नहीं होते , अब हम फिर उसी विषय पर आ जाते है की आखिर रास्ट्र वाद है क्या ?क्या किसी एक वर्ग विशेष द्वारा प्रतिपादित मानको को पूरा करना रास्ट्र वाद है या फिर दूसरे वर्ग द्वारा निर्धारित मानको को पूरा करना सच्चा रास्ट्र वाद है ,,,इसे हम आधुनिक परिपेक्ष में सबसे विवादस्पद विषय वन्दे मातरम को ले कर देख सकते है , एक वर्ग विशेष इसके गायन को प्रखर रास्ट्र वाद और इसके विरोध को रास्ट्र द्रोह मानता है , वही दूसरा वर्ग इसके गायन की बाध्यता को धार्मिक स्वतन्त्रता का हननमानता है,, अब इन दोनों में किसे रास्ट्र वादी कहा जाए और किसे नहीं ,,यहअपर मै अपने विचार स्पस्ट करना चाहूँगा " की किसी व्यक्ति के अन्दर रास्ट्र वाद को डर ,भय ,प्रलोभन और बाध्यता के द्वारा नहीं पैदा किया जा सकता है , यह वो भावना है जो व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर आत्म गौरव और सामाजिक त्याग से शुरू होती है ,,जो केवल और केवल जाग्रति के द्वारा ही संभव है , मै नहीं मानता की जो वन्देमातरम नहीं गाते वो रास्ट्र वादी नहीं और न मै ये मानता हूँ की जो वन्देमातरम गाते है वो प्रखर रास्ट्र वादी है ,,रास्ट्र वाद एक भावनात्मक जुड़ाव है जो संस्क्रति के प्रति महसूस होने वाले गौरव के रक्षIर्थ स्वत उत्पन्न होता है ,,ये बाध्यता नहीं है परन्तु आस्तित्व का संघर्ष है ,,अतः रास्ट्र वादिता के विराट स्वरूप को किसी गीत संगीत या दलगत राजनीति के मानको में ढालना उचित नहीं है ,,,रास्ट्र वाद आस्तित्व की पहिचान है ,,,जो जाति समाज वर्ग, धर्म और संघ से ऊपर उठी हुई त्याग की एक भावना है जो पूर्णता पुष्ट होने पर बलिदान में परिवर्तित हो जाती है ,,रास्ट्र वाद की उस श्रेष्ठता में पहुचने पर व्यक्तिगत आबश्यकताये व्यक्तिगत पहिचान , और व्यक्ति विषेयक सारे नियम रास्ट्र के हित में तिरोहित हो जाते है यही प्रखर रास्ट्र वाद की अति है ,, जो धर्म जाति और वर्ग संघर्ष से ऊपर है ,,रास्ट्र वादिता में जो एक चीज मुख्य रूप से दिखाई देती है वो हैआत्म त्याग की निस्वार्थ भावना ,, क्यूँ की इसके न रहते हुए रास्ट्र वाद की बात नहीं की जा सकती ,, जहा रास्ट्र जन के सम्मान पहिचान और गौरव के लिए उत्तरदायी होता है,, और जहाँ जन रास्ट्र के इतिहास प्रगति और उत्थान से गौरव पाते है,,वही रास्ट्र की सांस्क्रतिक विरासत को बनाये रखना और रास्ट्र को निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ाये रखना प्रत्येक जन का परम कर्तव्य होता है ,,,,,
इसे हम इस प्रकार समझ सकते है ,,की जन का एक वर्ग जहा रास्ट्र के लिए प्रगति और उत्थान कर उसके गौरव को निरंतर चर्मौत्कर्ष पर ले जाता है ,,वही दूसरा वर्ग रास्ट्र की संस्क्रति विरासत और इतिहास को सभाल कर आने वाले पीढ़ी को गौरवान्वित करने की व्यवस्था करता है,,और आने बाली पीढ़ी अपने गौरवान्वित इतिहास सेआत्म संबल प्राप्त कर के रास्ट्र के उत्थान में नित नए आयाम स्थापित करती है ,,,अतः रास्ट्र वादिता उत्थान की सीढ़ी है ,,,और चर्मोत्कर्स पर पहुचने का तरीका है

बिना रास्ट्र के जन अस्तित्व हीन है अतः आस्तिव को बचाए रख ने के लिए रास्ट्र वादिता नितांत आवश्यक है ,,,परन्तु रास्ट्र वादिता प्रलोभन नहीं है वह स्वीक्रति है, निर्भरता नहीं है उन्नति है ,,,, और प्रखर रास्ट्र वादिता से नित नयी उन्नति की जा सकती है और उन्नति के लिए नए आयाम स्थापित किये जा सकते है ,,,अतः रास्ट्र वादिता और प्रगति की प्रचलित वो धारणा की रास्ट्र वादिता में संस्क्रति और इतिहास के संरक्षण के कारण रास्ट्र वादिता प्रगति के मार्ग में बाधक है और प्रगति से रास्ट्र वादिता खो जाती है,,नितांत भ्रामक है,,,अतः रास्ट्र वादिताऔर प्रगति दोनों एक दूसरे के पूरक है ,,,प्रगति के नए आयामों के संयोजन के बिना तथा पुराने गौरव को बचाए बिना रास्ट्र को बचाना मुश्किल है ,,,अतः प्रखर रास्ट्र वादिता के लिए प्रगति वादिता आवश्यक है ,,परन्तु यह भी ध्यान रखना होगा की प्रगति वादिता के मानक रास्ट्र के गौरव मय इतिहास और संस्क्रति को ध्यान में रख कर ही तय करने होगे वही सच्ची रास्ट्र भक्ति होगी और वही सच्ची रास्ट्र वादिता होगी अंत में दो शब्दों के साथ मै अपनी लेखनी को विराम देता हूँ ,,,
"जिस व्यक्ति के अन्दर अपनी संस्क्रति सभ्यता और इतिहास को सजोने की क्षमताऔर प्रगति के नित नए आयाम स्थापित करने की तत्परता नहीं है वो न तो रास्ट्र वादी है और न ही प्रगति वादी है वो निरे पशु के सिवा कुछ भी नहीं है " ,

9.10.09

क्या पश्चिमी नग्नता में ही नारी उत्थान छिपा है ?


बात शुरू करते है नारी शास्क्तिकरण और नारी उत्थान की (जिसकी हवा बाँध कर कुछ चंद प्रगतिवादी अपनी पद प्रतिस्ठा और अर्थ की रोटियां सेक रहे है और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को दिग्भर्मित किये है ),,,, आखिर नारी वादी आन्दोलन है क्या? मै तो आज तक नहीं समझ पाया .,,,, क्या नारी वादी आन्दोलन वास्तव में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए की जा रही कोई क्रान्ति है ?,, या फिर पश्चिम से लिया गया एक खोखला दर्शन ,, जिससे स्त्री उत्थान तो संभव नहीं हां अवनति के द्वार अवस्य खुलते है ,,, अगर पश्चिम के इस दर्शन से कुछ हो सकता तो पश्चिमी समाज में स्त्रियो की जो दशा आज है शायद वो नहीं होती ,,,,,
हत्या ----दिसम्बर २००५ की रिपोर्ट के आधार अनुसार अकेले अमेरिका में ११८१ एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी ,,,,
अब अंत रंग साथियो ने येसा क्यूँ किया कारण आप सोचे ,,,,नहीं नहीं नहीं नंगा पन (कथित प्रगतिवाद ) इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ,,,
घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में ४.८ मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है ,,, और इनमे से कम से कम २० % हो अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण ---- पुरुष विरोधी मानसिकता और पारिवारिक व्यवस्थाओं में अविस्वाश और निज का अहम् (जो की कथित प्रगतिवाद की श्रेणी में आता है ) तो कतई नहीं होना चाहिए ,,,
सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में २००६ के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो ६०० औरते प्रति दिन आता है,,,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है ,,, वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते येसा सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके ,,,
कारण --- इन निकम्मे प्रगतिवादियों और नारी वादियों द्बारा खड़े किये गए पुरुष विरोधी बबंडर रूपी भूत की परिणिति से उत्पन्न स्त्री पुरुष बिरोध और वैमन्यस्यता ( स्त्रियों को पुरुषों के खिलाफ खूब भरा जाना और और पुरुषों का स्त्र्यो की सत्ता के प्रति एक भय का अनुभव )तो बिलकुल नहीं ये आकडे बहुत है मै कम दे रहा हूँ और उद्देश्य बस इतना ही है की पुरुष विरोध के कथित पूर्वाग्रह को छोडिये ( जिसे मै पश्चिम की दें मानता हूँ )
इसमें किसी तरह का कोई नारी विरोध नहीं है और ना ही मै ये चाह्ता हूँ की उनकी स्तिथि में सुधार ना हो ,, बल्कि मै तो आम उन स्त्रियों को समझाना चाहता हूँ (जो इन कथित प्रगतिवादी महिलाओं और पुरुषों के द्बारा उनके निजी लाभ के कारण उकसाई जा रही है) की इनके प्रगतिवाद में कोई दम नहीं अगर वास्तव में आप को समाज में अपनी स्तिथि को उच्चता पर स्थापित करना है तो आप को उस भारतीय परम्परा की ओर बापस आना होगा ( जो कहता है स्त्रिया पुरुषों से अधिक उच्च है ) है ,,,
अब कथित प्रगतिवादियों के लिए छोटा सन्देश आप को अपनी प्रस्थ भूमि पर फिर विचार करने की आवश्यकता है और देखना है की जिस प्रगतिवाद की दुहाई आप दे रही है और जिन्हें आप ने मानक के रूप में स्थापित कर रक्खा है ,, क्या प्रगति वाद से उनकी वास्तव में कोई भी प्रगति हुई इतने लम्बे चले पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल विच्च का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
’m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

23.8.09

मेरी विदाई

घर में कुछ चहल पहल हो रही है। तैयारी की जा रही है किसी कार्यक्रम की।

देखुं , आज कौन-कौन मेरे घर पर आया है? एक कोने में दादा दादी और नाना नानी बैठे है।

अंकल आंटी भी आये हुए हैं। मामा मामी के साथ चिंकु, बंटी, भी आये हैं। सूरत वाले अंकल ने तो मेसेज भेजा है कि उन्हें कहीं ओफ़िस के काम से जाना हुआ है, इसीलिये नहीं आ सकते।

आज कोई फ़ंकशन है। मेरे प्रिंसिपल और कुछ टिचर्स भी आये हैं। पर......अभी तक मेरी सहेलियां क्यों नहीं आई? परेशान हुं मैं!!!!

मेरी मौसी-मौसा भी नहीं आये। अंकल आंटी दूर क्यों बैठे हैं मुझसे?

हरबार प्यार से मेरे साथ खेलनेवाले चिंकु बंटी आज मेरे पास क्यों नहीं बैठते?

क्यों सब मुझसे दूर दूर भाग रहे हैं ?

कहीं से घी की तो कहीं से आ रही अगरबत्ती के धुएं की बदबू मुझे बेचैन कर रही है।

ये कैसा कार्यक्रम है जिसमें सन्नाटा छाया हुआ है?

मैं ये नहीं समझ पा रही कि मुझे कोई प्यार से पुचकारता क्यों नहीं है?

साथ में खेलनेवाली सहेलियां भी आज गायब हैं। घर के बाहर लगी भीड़ में कानाफुसी चल रही है।

लो अब मेरी विदाई का वक़्त आ गया।

मेरे चहेरे से कपड़ा हटाया गया ताक़ि कोई मुझसे मिलना चाहे तो मिल ले।

पर सब लोग मुंह पर कपड़ा डालकर रोने लगे। कोई आगे नहीं आया।

मुझे विदा करने भी नहीं

हाँ....... मेरी मम्मी दौड़ती चिल्लाती मेरे करीब आई। मेरे चहेरे को चूमने लगी। रिश्तेदार लोग उसे मुझसे दूर हटाने की कोशिश कर रहे थे पर वो थी कि मुझे छोड़ ही नहीं रही थी।

छोड़ती भी कैसे....?

उसने मुझे अपने उदर में नौ महिने जो रखा था। मुझे अपना अमृत जो पिलाया था।

वो अच्छी तरह जानती थी कि उसकी बेटी का आख़री दिन है। फिर मैं कभी वापस आनेवाली नहीं हुं।

क्योंकि आज मेरी मृत्यु हुई है।

लोग कह रहे थे कि मेरी मृत्यु “स्वाइन फ़्ल्यु” से हुई है।

अब मैं समझी कि सब कोई दूर दूर क्यों भाग रहे थे मुझसे।
वाह री दुनिया ! क्या रिश्ते निभाते है लोग!!!! जब जान पर बनती है, अपने भी पराये हो जाते हैं।

14.8.09

मां चिंता मत करना मै ठीक हूं: आतंकी अजमल कसाब

प्रिय मां
तुम चिंता मत करना मै ठीक हूं। यहां भारत में मेरे भाई लोग मेरा अच्छे से ख्याल रख रहे हैं। मेरी अच्छी ख़ातिरदारीहो रही है। कोई मुझे कुछ नहीं कहता है, सब मुझसे अच्छा व्यवहार करते हैंमां एक दिन तो मैंने ख़ातिरदारी करवानेकी हद तोड़ दी मैने....मैने जेल के अधिकारियों से जेल का खाना नहीं, मटन बिरयानी मांगी पर जज नहीं माना, नहींतो मुझे वो मिल जाती...लेकिन चलो कोई बात नहीं बाकी सब चीज़े तो ठीक है..मुझे किताब मिलती है, पढ़ने के लिएमेरा टाइम पास नहीं होता जेल में... मेरे रहने की व्यवस्था तो ठीक है लेकिन बाहर नहीं जाने देतेयही ग़लत है यहांभारत में...लेकिन यहां मेरे कई दोस्त हो गये हैं जो अलग अलग जुर्म में यहां सज़ा काट रहे हैं..कोई अपनी बीवी केकत्ल में सज़ा काट रहा है तो कोई बलात्कार के जुर्म में। लेकिन मज़ा है.. सब मेरे ही भाई है। हर कोई यहां मुझे बडे़भाई की तरह मानता है। क्योंकि मैने बड़ा काम किया था इसलिये...मां तेरे बेटे ने तेरा और अपने देश का नामरोशन किया है। लेकिन एक बात गलत है, मेरे देश का नाम रोशन नहीं हो रहा है। क्योंकि यहां पर तो हर कोई मानरहा है कि मै पाकिस्तानी हूंलेकिन मेरा अपना देश ही ये नहीं मान रहा है कि मै वहां का हूंये बात रह-रह कर मुझेखलती है। वहां का क्या हाल है, मां। मुझे पता चला है कि आईएसआई ने तुम्हें कहीं छुपा कर रखा है। चलो कोई बातनहींये तुम्हारी और मेरी सुरक्षा के लिये है मांथोड़ा कोऑपरेट करना उनसे...क्योंकि वो नहीं चाहते कि पाकिस्तानफंस जाये औऱ तुम्हे या मुझे कोई परेशानी हो। मां तुम तो मुझे कुछ ज्यादा खिला पाई। लेकिन यहां भारत मेंमेरा वेट पांच किलो बढ़ गया है। मां तुझे तो पता था कि मुझे हार्निया है। लेकिन परेशान मत होना पाकिस्तान में तोमेरा इलाज नहीं हो पाता, लेकिन यहां भारत में मेरा ठीक से इलाज चल रहा है और मेरी हालत में सुधार है। मां यहांसाफ सुथरा खाना मिलता है..मेरे लिये अलग से खाना बनाने वाला आता है और वो यहीं रहता है..यहां मुझे खतरा हैकि कहीं कोई मुझे ज़हर दे दे खाने में...लेकिन तुम घबराओ मत यहां मैं हाईसिक्योरिटी में हूं। मुझे कुछ नहीं होगा।मेरे ऊपर केस चल रहा हैलेकिन परेशान मत होना। मैं कभी कभी छूट जाउंगा। यहां का कानून बहुत मददगार हैहम जैसों को माफ कर देता है..तुम याद करो। merajawab.blogspot.com पर पढ़े शेष

4.8.09

“आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है

आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है, आज तो मेरी मम्मी ने अच्छे अच्छे पकवान
बनाये होंगे। ख़ीर पूरी, लड्डू। मज़ा आयेगा घर जाकरपिन्टु बोला। शाम को
तूँ मेरे घर आयेगा?
अच्छा आउंगा,”कल शबेबारत है ? मेरे दादा का भी कल फ़ातिहा है कल मुज़े
भी हलवा पुरी ख़ाने को मिलेगा। तूँ भी मेरे घर आना।राजा ने कहा।
शाम को राजा पिन्टु के घर पहोंचा। पिन्टु कि मम्मी ने राजा को खीर पूरी,
लड्डू, दिये। पिन्टु ने राजा से कहाचल छत पर खेलेंपिन्टु और राजा छत
पर खेलने लगे। खेलते खेलते बॉल राजा के हाथ से छुट गइ।, और सीढी से नीचे
की और लुढकने लगी। भागता हुआ राजा नीचे की तरफ उतरने लगा। बॉल सीढी से
सटे कमरे में चली गइ। राजा कमरे की और बढा, दरवाज़ा थोडा ख़ुला सा था।
आतुरता वश राजा ने दरवाज़े को धीरे से खोला। कमरे में अँधेरा था। कुछ बदबु
सी रही थी। राजा ने अपने हाथों से टटोलकर बॉल को ढुंढ लिया और जल्दी से
बाहर कि तरफ भागने लगा। भागते भागते उसके पैर से कोइ चीज़ टकरा गइ।कौन
है वहां”? किसी बिमार कि आवाज कानों में लगी। और कमरे में लाइट जलने लगी।
राजा ने देखा कि एक बूढा आदमी पलंग पर लेटा हुआ था। पलंग के नजदीक छोटा
सी एक टिपोइ रखी थी। एल्युमिनीयम की प्लेट में एक लड्डु आधा खाया हुआ। एक
कटोरी में ख़ीर थोडी प्लेट में ढुली हुई थी। बूढा आदमी कमज़ोर, बिमार लग
रहा था। कमरे की बदबू ही बता देती थी कि कमरे में बहोत दिनों से सफ़ाइ
नहिं हुई।
राजा भागता हुआ कमरे से बाहर निकल आया। इतने में पिन्टु भी वहां आगया।
क्या बॉल मिली? चल खेलें कहकर पिंन्टु राजा को फ़िर से छत पर ले गया। पर
राजा का अब मूड नहिं रहा था। उसने पिंन्टु से पूछा तेरे घर में कौन कौन
हैं?
पिन्टु बोला मैं मम्मी पापा और दादाजी।‘ “पर मैने तेरे दादा को तो नहिं
देखा कहां हैं वो?
वो बिमार हैं, एक बात बताउं राजा! मेरे दादा पहले बिमार नहिं थे। मेरी
दादी के मर जाने के बाद वो बिमार रहने लगे। तूं किसी से कहना मत पर मेरी
मम्मी उन्हें बहोत परेशान करती है। दादी के साथ भी यही होता रहा
था।पिन्टु ने गंभीर स्वर में कहा।तेरे पापा को ये सब पता था?” राजा
बोला।नहिं ! पापा पहले ज़्यादातर बाहर टुर पर ही रहते थे। उनके आने पर
भी दादा दादी कुछ नहिं कहते थे।पता है जब दादी मर गइ तब मेरे दादा बहोत
रोये थे। अभी भी अकेले अकेले रोते है। मुज़े बड़ा तरस आता है अपने दादा
पर, क्या करुं मैं भी मम्मी से डरता हुं। किसी किसी बहाने मुज़े वो पापा
कि डाँट ख़िलाती रहती है।पिन्टु की आंखें भर आईं। ये मम्मी पापा कैसे होते
हैं राजा? पहले तो हमारे बुज़ुर्गों से पराये सा व्यवहार करते हैं फ़िर
उनके मरने के बादश्राद्ध”, औरफ़ातिहाका नाटक करते है।“ ”मगर मेरी
अम्मी अब्बू ने तो मेरे दादा दादी के साथ ऐसा नहिं किया।?” एक मान भरे
स्वर में राजा ने कहा।‘ ”तूं नसीबदार है राजा! मुज़े तो अब मेरी मम्मी पर
भी तरस रहा है कि वो भी जब किसी की सास बनेगी तो क्या उसकी बहु भी
मम्मी के साथ ऐसा ही करेगी?”पिन्टु नम्र स्वर में बोला।पता नहिंचल
बहोत देर हो गई है। अब्बू गुस्सा हो जायेंगे राजा बोलाकल तूं भी मेरे
घर ज़रूर आना। हलवा खाएंगे साथ मिलकर रातभर राजा करवटें बदलता रहा। उसे
पिन्टु की हर बात याद रही थी। छोटा सा दिमाग बडी बडी बातों में उलज़ रहा
था। अचानक उसे कुछ डरावना ख़याल आया। तन पर ओढी हुइ चादर दूर हटाकर एकदम
दौडा अपनी दादी के कमरे की और.. दादी अम्मा एनक़ लगाये क़ुरानशरीफ़ कि
तिलावत कर रही थी। शायद दादाअब्बा की रुह के सवाब के लिये। उसने एक रुख़
अपने अम्मी अब्बू के कमरे कि तरफ़ किया।
दोनों बेख़बर सो रहे थे।

28.7.09

एक सबक़ ईमानदारी का !!

अम्मी को “केंसर’ होने की वजह से अम्मी को लेकर मुझे बारबार
रेडीएशन के लिये बडौदा ओंकोलोजी डिपार्टमेंन्ट में जाना होता था। शरीर के
अलग अलग हिस्सों के “केन्सर” से जूझते लोग और उनकी मृत्यु को थोडा दूर
ले जाने कि कोशिश करते उनके रिश्तेदारों से मिलना लगा रहता था। हांलाकि
मैं भी तो अस्पताल का ही हिस्सा हुं।
पर ये तो “केन्सर”!!!! ओह!
मरीज़ से ज़्यादा मरीज़ के रिश्तेदारों को देखकर दिल में दर्द होता था। एक
तरफ “केन्सरग्रस्त” का दयाजनक चहेरा, दुसरी तरफ अपने की ज़िंदगी की एक
उम्मीद लिये आये उनके रिश्तेदार। बड़ा दर्द होता था। कोइ पेट के “केन्सर’
से जूझ रहा था , तो कोई गले के। कोई ज़बान के तो कोई गर्भाशय के! बडे बडे
लेबल लगे हुए थे “केन्सर” से बचने के या उसको रोकने के।
बडौदा जिले का ये बड़ा सरकारी अस्पताल है। यहाँ रेडीएशन
और् किमोथेरेपी मुफ़त में दी जाती है। देशभर से आये मरीज़ों का यहाँ इलाज
होता है। दूर दूर से आनेवाले मरीजों और उनके रिश्तेदारों के रहने के
लिये अस्पताल के नज़दीक ही एक ट्र्स्ट “श्रीमती इन्दुमति ट्र्स्ट”
ने व्यवस्था कर रखी है, जिसमें मरीज़ों तथा उनके एक रिश्तेदार को दो वक़्त
का नाश्ता और ख़ाना दिया जाता है।
रहीम चाचा और आएशा चाची भी वहीं ठहरे हुए थे।
आयशा चाची को गले का केन्सर था। हररोज़ के आने-जाने से मुझे उनके साथ बात
करना बड़ा अच्छा लगता था। कहते हैं ना कि दर्द बांटने से कम होता है मैं
भी शायद उनका दर्द बाँटने की कोशिश कर रही थी। घर से दूर रहीमचाचा
आयशाचाची अपने दो बच्चों को अपनी बहन के पास छोडकर आए थे। उनका आज
तैइसवाँ “शेक”(रेडीएशन) था।
“कल और परसों बस बेटी अब दो ही शेक बाक़ी
हैं ,परसों दोपहर, हम अपने वतन को इन्दोर चले जायेंगे।“ रहीमचाचा ने कहा।
तो अपने बच्चों के लिये आप यहां से क्या ले जायेंगे? मैने पूछा। ”बेटी
मेरे पास एक हज़ार रुपए है। सोचता हुं आमिर के लिये बैट-बाल और रुख़सार के
लिये गुडिया ख़रीदुंगा। बेटी अब तो काफ़ी दिन हो गये है। अल्लाह भला करे इस
अस्पताल का जिसने हमारा मुफ़्त ईलाज किया। भला करे इस ट्र्स्ट का जिसने
हमें ठहराया, ख़िलाया,पिलाया। और भला करे इस रेलवे का जो हमें इस बिमारी
की वज़ह से मुफ़्त ले जायेगी। अब जो पाँच सौं रुपये है देख़ें जो भी
ख़िलौने ,कपडे मिलेंगे ले चलेंगे।
उस रात को घर आनेपर मैने सोचा कि कल इन लोगों का आख़री दिन है मैं
भी इनके हाथों में कुछ पैसे रख़ दुंगी। दुसरे दिन जब मैं वहाँ पहुंची चाचा
चाची बैठे हुए थे। मैने सलाम कहकर कहा “चाची क्या ख़रीदा आपने? हमें भी
दिख़ाइये।“आज तो आप बडी ख़ुश हैं। “
चाची मुस्कुराई और रहीमचाचा के सामने शरारत भरी निगाह
से देख़ा। मैंने चाचा के सामने जवाब के इंतेज़ार में देख़ा। चाचा बोले” अरे
बेटी ये अल्लाह की नेक बंदी से ही पूछ।
क्यों क्या हुआ? मैने पूछा!
रहीमचाचा बोले” कहती है’ हमने मुफ़त ख़ाया पीया तो क्या हमारा
फ़र्ज़ नहीं कि हम भी कुछ तो ये ट्र्स्ट को दे जायें? अल्लाह भी माफ़ नहीं
करेगा हमें” बच्चों के लिये तो इन्दोर से भी ख़रीद सकते हैं। बताओ बेटी
अब मेरे पास बोलने के लिये कुछ बचा है?”
रहीम चाचा की बात सुनकर मैं चाची को देख़ती रही। अपने आप से शर्म आने
लगी मुझे।
हज़ारों की पगारदार, कमानेवाली मैं!! एक ग़रीब को कुछ पैसे देकर अपनी
महानता बताने चली थी। पर इस गरीब की दिलदारी के आगे मेरा सर झुक गया।
वाह!!!आयशा चाची वाह!!!
सलाम करता है मेरा सर तुम्हें जो तुम मुझे ईमानदारी का सबक़ दे गई।

27.7.09

संतुष्टि किस बला का नाम है ?

कुछ दिनों पहले मुझे एक केस के सिलसिले मे चंडीगढ़ जाना पड़ गया। मेरे साथ कुछ और लोग भी थे. रास्ते में हम में से एक आदमी को करनाल के नजदीक मधुबन पुलिस लाईन में किसी काम से जाना था. हम दोपहर तक पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर पंहुच गए थे. जिस आदमी को वहां काम जाना था वह कार से उतरकर हमे यह कहकर अंदर चला गया कि तुम सभी यही रुको मै दस मिनिट मे काम निपटाकर आता हूँ। वह आदमी तो अपने काम से पुलिस लाइन मे चला गया और हम भी कार से उतरकर उसकी इंतजार करने लगे लेकिन गर्मी के कारण हमारी जान पर बन आई। कुछ ही मिनिटो मे हम पसीने से तरबतर हो गए. अधिक गर्मी को देखते हुए हमने फैंसला किया कि ए.सी. चलाकर कार मे बैठा जाए और पुलिस लाईन में गए साथी का इंतजार किया जाए . हम सभी कार मे ठंडक का आनंद लेने बैठे ही थे कि मेरी नजर पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर की दीवार पर चली गई। मैंने देखा कि उस दीवार पर एक आदमी बड़े आराम से सो रहा था। शायद वह कोई मजदूर होगा जो दोपहर मे आराम कर रहा होगा। लेकिन मै यह सोच सोचकर हैरान था कि वह आदमी इतनी गर्मी मे किस तरह से सो रहा है. मै सोच रहा था कि लोग बगैर पंखे, कूलर और ए.सी. के सोना तो क्या बैठ भी नहीं सकते. यह आदमी किस तरह से आराम से सो रहा है और वह भी खाली दीवार पर. लोगों को तो मोटे मोटे गद्दों पर भी नींद नहीं आती तो वह आदमी किस तरह से विपरीत परिस्थतियों में आराम फरमा रहा है . यह पूरा दृश्य देखकर मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही सवाल उभरा कि संतुष्टि कहते किसे हैं और यह मिलती किन्हें है? एक व्यक्ति तो काँटों की सेज़ पर भी संतुष्ट है, जबकि दूसरा फूलों की सैय्या पर भी नही सो सकता। कोई तो बताये कि आख़िर संतुष्टि किस बला का नाम है?

26.7.09

तुगलक की विरासत और हमारी-----

वर्तमान को इतिहास से जोडने में हमारी प्राचीन धरोहरे एक सेतु का काम करती हैं। आज जब हम अपनें वर्तमान के एश्वर्य पर गर्व करते है वही इतिहास की विशालता हमारे उस गर्व को धुमिल कर देती है।दिल्ली में जहाँ लाल किला, इंडिया गेट, कुतुब मीनार जैसी विख्यात ऐतिहासिक महत्व की जगह हैं। वही कम परिचित इमारतें जैसे हौज खास गाँव में तुगलक का सुन्दर किला भी एक देखने लायक जगह है। यह तुगलक शासन की एक महत्वपूर्ण निशानी है। १३९८ में तुगलक का बना हुआ यह किला ईडों-इस्लामिक शैली में बना हुआ है। शहर की भीड-भाड से दूर, शांत कोने में दम साधे खडी यह इमारत सबको आकर्षित करती है। बाहर से साधारण सी दिखने वाले इस किले की भव्यता भीतर जा कर ही पता चलती है। अंदर घने पेड बेहद खूबसूरत नजारा प्रस्तुत करते हैं। हौज खास का नामकरण " हौज खास" यानी शाही टँकी खिलजी के नाम पर पडा। गयासुदीन ने भारत के काफी बडे भाग पर शासन किया १३२० से १४१२ तक। तुगलक के शासन के खत्म होते ही दिल्ली कई राज्यों में बंट गई। अलाऊद्दीन खिलजी ने सिरी फोर्ट के निवासीयों के लिये इस पानी की टंकी को बनवाया था। इसके साथ ही तुगालाक का किला है और मदरसा भी है जहाँ से कई सारी सिढियाँ शाही टैक की ओर जाती हैं।
वर्तमान का आँखों देखा सच।
बेशक हौज खास गाँव आज एक अमीर इलाका माना जाता है। यहाँ सैलानियों का तांता लगा रहता है और यहाँ बुटीक, कलात्तमक, बेहतरीन रेस्तरा है।पर उपेक्षित से पडे इस नयनाभिराम किले की हालत को देखकर बेहद दुख होता है, जरूर हमारे देश में पुरातत्तव विभाग है पर अभी वह गहरी नीदं ले रहा है, जाने कब वह नींद से जागेगा और उपेक्षित पडे इस किले की सुध लेगा। इतिहास हमारा कल है जिस की नींव पर हमारा आज खडा हुआ है, पर जब इतिहास के पाँव लडखडा रहे हो तो हमें अपने आज पर इतना गर्व करना शोभा नहीं देता। सभी पुरानी इमारतें की सुरक्षा सरकार और आम आदमी का परम दायित्व होना चाहिये।

20.7.09

शब्द नित्य है या अनित्य??

आज मैं जो ये लेख डाल रहा हूँ ये परम आदरणीय माननीय अन्योनास्ती जी के अथक प्रयाश और मेहनत के कारण ही सम्भब हो सका (तेरा तुझे समर्पित क्या लागत है मोर )मैं ये लेख माननीय अन्योनास्ती जी के चरणों में समर्पित कर रहा हूँ
''शब्द नित्य है या अनित्य '' यह एक लम्बी और संभवता कभी न ख़त्म होने वाली चर्चा का विषय भी हो सकता है अपने अध्ययन में जो कुछ समझ और ग्रहण कर पाया उसके आधार पर मैं यहाँ पर कुछ कहने का प्रयास कर रहा हूँ
'' अनेक दार्शनिको का मत है क्यूँ कि शब्द प्रयास के फल स्वरूप उत्पन्न होता है अतः वह नित्य हो ही नहीं सकता और क्यूँ कि शब्द कि उत्पत्ति होती है ,,,,,,अतः ये विचार कि शब्द नित्य है गलत है' ''
.............शब्द इसलिए भी नित्य नहीं है क्यूँ कि एक निश्चित समय के बाद उसकी अनुभूति रुक जाती है ,,, उसका आभास ख़त्म हो जाता है ,,,,,, शब्द के वेग को घटाया और बढाया जा सकता है ........ यदि यह नित्य है तो ये नहीं होना चाहिए था ,,,,,,,,,,, इससे भी इसकी अनित्यता ही प्रमाणित होती है इस मत के दार्शनिको का कथन है कि हजारो प्राकट्य- कर्ता मिल कर भी '' किसी नित्य वस्तु ' को घटा या बढा नहीं सकते हैं ...... अब शब्द को नित्य स्वीकारने वाले दार्शनिको का मत भी जन लिया जाये
उनका मानना है उपरोक्त विचार कि शब्द नित्य नहीं अनित्य है स्वीकारना गलत है ,,,,,,,उनका मानना है कि शब्दों की उत्पत्ति नहीं होती केवल प्रकटीकरण होता है
क्यूँ कि शब्दों का प्रकटी - करण मात्र होता है , उत्पत्ति नहीं ------ इससे पता चलता है कि शब्द पहले से उपलब्ध थे अतः शब्द की नित्यता सिद्ध होती है,,,, इसे हम इस प्रकार समझ सकते है ,,, जब हम चकमक पत्थर के दो टुकडो को आपस में रगड़ कर अग्नि प्राप्त करते हैं तो अग्नि की उत्पत्ति नहीं होती बल्कि उसका प्रकटी - करण मात्र होता है
,,,, ,शब्द उर्जा है और उर्जा का विनाश नहीं होता उसकी अवस्था परिवर्तित होती रहती है
,,,, जिस प्रकार चकमक पत्थर में अग्नि, प्रकटी करण से पहले वह अग्नि उसमे उर्जा के रूप में स्थित थी ठीक इसी प्रकार उच्चारण - कर्ता के आभाव में शब्द अदृश्य रूप में विद्यमान था किसी समय विशेष पर जब शब्द की अनुभूति नहीं होती है तो यह नहीं समझना चाहिए की शब्द अनित्य है बल्कि उसका एक ही कारण है ,,, कि शब्द का उच्चारण करने वाली वस्तु का विषय (शब्द ) से संपर्क नहीं हो सका था ,,,,,,जिस प्रकार, ' क 'शब्द नित्य है इसे आने बाली पीढियां उसी रूप में जानेगी और पिछली पीढियां भी उसी रूप में जानती रही हैं -------- चाहे उसके स्थूल (भौतिक ) रूप में कितना ही परिवर्तन क्यूँ न हो जाये (क, k),,,,, शब्द का वेग कभी घटता या बढ़ता नहीं है बल्कि शब्द की पुनरावर्ती उसके वेग की तीव्रता या मंदता का अनुभव कराती है अतः शब्द नित्य है और हमारे पास कोई कारण नहीं की हम कह सके की शब्द अनित्य है ,,,,,,,अब दूसरे पक्ष द्वारा ये जोर देकर कहा जा सकता है,, कि शब्द वायु का परिवर्तित रूप है वायु के ही संग्रह - विग्रह से ही इसकी उत्पत्ति होती है ----- अतः हम मान सकते है कि वायु का अभिर्भाव ही शब्द के लिए हुआ है अब क्यूँ कि शब्द वायु से उत्पन्न होता है इस लिए ये नित्य नहीं हो सकता है (एक दार्शनिक ),,,,, मेरे विचार से उपरोक्त विचार ही सारहीन है क्यूँ कि अगर शब्द केवल वायु का परिवर्तन मात्र होता तो उसे व्यक्त करने के लिए किसी माध्यम की आबश्यकता नहीं पड़ती वह स्वतंत्र रूप से वायु से निर्मित हो सकता था परन्तु ऐसा नहीं होता है ; वायु स्वतंत्र रूप से कोई शब्द उत्पन्न नहीं करती है बल्कि

हम कह सकते है वायु एवं शब्द में सहअस्तित्व है जिस प्रकार ' दूध में माखन ' घुला होता है ठीक इसी प्रकार शब्द वायु में मिला होता है
--------दूध को विलोकर मक्खन प्राप्त किया जा सकता है ठीक इसी प्रकार मुख से जब शब्द का उच्चारण होता है तो वायु विक्षोभित होती है और हमें शब्द का आभास हो जाता है ,,परन्तु इसका ये मतलब भी नहीं है की वायु रहित क्षेत्र मेंशब्द नहीं होता बल्कि शब्द तो हर जगह विद्यमान रहता है, बस हमारी कर्नेंद्रियाँ ( श्रवणेन्द्रियाँ ) उसे ग्रहण नहीं करती है जब हम आंख बंद करके मनन करते है तब क्या वो अवस्था शब्द रहित होती है -------नहीं ऐसा नहीं होता ; परन्तु वायु से शब्द की उत्पत्ति की विचारकता समाप्त हो जाती है ------मनन करने से मन में अनेक तरह के विचार उत्पन्न होते है और वे शब्द का ही सम्मिश्रण है , अब चूंकि मन स्थूल शरीर का भाग नहीं होता अतः वहां वायु के होने का सवाल ही नहीं है
,,,,, चूंकि मन आत्मा का भाग है और आत्मा पञ्च तत्व से निर्मित नहीं होती अतः शब्द पञ्च तत्व से निर्मित नहीं होते है...... अब नयी व्याख्या के अनुसार हम कह सकते है की शब्द एक तरह का आकर्षण है या चुम्बकीय क्षेत्र है ,,,,जो समय अनुसार स्थान परिवर्तन करके नित्य रहता है -------अब ये सिद्धांत कि वायु के संग्रह- विग्रह से शब्द की उत्पत्ति होती है कितना भ्रामक है ,,,,,, हम वंशी बजाते है गिटार वजाते है और भी कितने तरीके के वाद्य यंत्र है उन सब में शब्द का प्रकटी करण ही होता है निर्माण नहीं वंशी में प्रवाहित वायु हमारे शरीर से उर्जा ग्रहण करके वेग प्राप्त करती है और छिद्रों से विक्षुद्रित होती है और शब्द का प्रकटीकरण होता है ///// शब्द पुनः विश्रित होकर वायु में घुल जाताहै यह शब्द का उर्जा रूप है .... इसी प्रकार अन्य वाद्य यंत्रो का भी यही गुण है
,,,,,,अब वेदांग का यह कथन पूर्णता सत्य प्रतीत होताहै '' वायु का निर्माण ही शब्द के लिए हुआ है '' क्यूँ कि बिना वायु के हमारी कर्ण- इन्द्रियां शब्द का आभास नहीं कर सकती है .... अतः ये आबश्यक है की शब्द के आभास के लिए वायु हो
इन उदाहरणों से स्पस्ट है कि शब्द अनादि , अनन्त और नित्य हैं इसी लिए वेदों को भी नित्य कहा गया है क्यूँ कि वेद न तो कभी उत्पन्न किये गए है और न ही उत्पन्न किये जा सकते है और न किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी स्थिति में उनकी रचना ही की जा सकती है
. इसीलिए भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है ''अक्षरम ब्रह्म स्वभावो अध्यात्म मुच्यते ''
शब्द को ही ब्रह्म बताया है अतः वेद की अपौरुषेयता पर संदेह करना ...... कठिन ही नहीं असंभव है ..... और ये विचार करना की वेद की रचना किसी ईश्वर या ब्रह्मा द्वारा हुई है गलत है यूँ कि वेद नित्य शव्दों संग्रह है किताब का नाम नहीं है ,
,,,,

17.7.09

देश व जनता के विरूद्व हुए, अपराधिक मामलों की जाँच रिपोर्ट सार्वजनिक हो !

देश में आए दिन समाचारपत्रों और न्यूज़ चैनलों के माध्यम से देश और जनता के अहित से जुड़े अपराधिक मामलों की ख़बरों को जोर शोर से प्रस्तुत किया जाता है और धीरे धीरे दिन बीतने पर ये मामले ओझल होने लगतेहैं और उनकी जगह कोई नई ब्रेकिंग न्यूज़ स्थान बना लेती है किंतु समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों द्वारा बहुत कम इस बात की जहमत उठायी जाती होगी कि उन मामलों पर क्या कार्यवाही चल रही है और चल रही है तो किस गति से और किस स्तर पर क्या उन मामलों को ठंडे बस्ते में डालकर शासन प्रशासन अथवा सत्तासीन पार्टी राजनीतिक लाभों के लिए, अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही है या फिर पर मामलों को उलझाने की कोशिश की जा रही है या फिर जबरन दोषी साबित करने की कोशिश कर रही है
अभी तक की बात करें तो यह देखने में आया है कि देश और जनता के हितों से जुड़े बड़े बड़े मामले राजनीतिक खीचातानी के चलते या तो उलझ कर रह गए है या फिर उन्हें ठंडे बस्ते मैं डाल दिया गया है चाहे वह चारा घोटाला की बात हो , बोफोर्स तोप खरीद प्रकरण की बात हो , ताज कोरिडोर मामला हो , नकली और मिलाबती खाद्य पदार्थों का बड़े पैमाने पर धंधा हो या फिर अन्य कोई देश और जनता के हितों के सरोकारों के मामले हो कई मामलों मेंदेश और जनता को इन सब बातों से अनजान और अनभिज्ञ रखकर उस पर लीपा पोती करने की कोशिश की जाती है अतः सुस्त और टाल मटोल रवैया के कारण अपराधिक मामलों के किसी अंजाम तक पहुचने के फलस्वरूप देश में ऐसे मामलों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है और देश और जनता पीड़ित और छले जाने हेतु मजबूर है
अतः जरूरी है कि देश और जनता के हितों से जुड़े इस तरह मामलों पर हो रही कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट प्रतिमाह रखी जानी चाहिए और इसे जनता के सूचना के अधिकार में शामिल करते हुए शासन द्वारा स्वतः ही जनता को दिया जाना चाहिए इससे देश और जनता यह जान सकेगी कि अपने हितों से जुड़े अपराधिक मामलों पर कितनी और क्या कार्यवाही हो रही है इससे ऐसे मामलों में जनता की निगरानी स्वतः ही बढ़ जायेगी और वह समीक्षा कर पाएगी और आवश्यक एवं समुचित कार्यवाही होने पर उचित कार्यवाही हेतु दवाब भी बना सकेगी ताकिअपराधियों को उनके अंजाम तक पहुचाया जा सके प्रशासन को भी इस अनिवार्यता के चलते इन मामलों मेंतत्परता से उचित और ईमानदार कार्यवाही करने हेतु बाध्य होना पड़ेगा
ऐसा कदम जरूर ही देश में होने वाली अपराधिक गतिविधियों में रोक लगाने , शासन प्रशासन को अपराधिक मामलों में त्वरित गति से और पूर्णतः जवावदेही से कार्यवाही करने और जनता का न्याय और क़ानून व्यवस्था मेंविश्वास बढ़ाने हेतु मील का पत्थर साबित होगा

12.7.09

Real Test of Democracy

How should our elected representatives behave and work? Does winning an elected post entitle them to indulge in corruption and self-serving activities? It seems that some people join politics to serve the society , whereas others join to fill their coffers. The real test of democracy is how strongly it works at the grass root level. In Narnaul district, on the same day newspapers have reported two contrast news items about our elected Sarpanchs (village Heads). The Hindi daily Jagran reports on July 10, 09.

राष्ट्रपति से मिलने के लिए सरपंच के संग महिलाएं गईं:
नारनौल : राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बुलावे पर जिले के गाव कोथल खुर्द की महिला सरपंच रोशनी देवी शुक्रवार अपराह्न उपायुक्त ए. श्रीनिवास के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुईं। उनके साथ उनकी मंडली की 18 महिलाएं भी गई हैं। राष्ट्रपति 11 जुलाई को इस जत्थे से भेंट करेंगी। 11 जुलाई को राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद यह टीम शाम तक नारनौल पहुच जाएगी। मालूम हो कि गाव कौथल खुर्द की महिला सरपंच रोशनी देवी व उनकी मंडली द्वारा शराबियों के खिलाफ छेडे़ गए क्रातिकारी अभियान से प्रभावित होकर ही राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हे बुलावा भेजा था।

इस महिला मंडली की कार्यशैली अनूठी थी, जिसके कारण यह चर्चा में आ गई। इस समूह ने गाव में सार्वजनिक स्थल पर शराब पीने वालों पर अंकुश लगाने के लिए मंदिर के नाम 500 रुपये की पर्ची काटनी शुरू कर दी थी, जो शराबियों पर बहुत भारी पड़ी। वास्तविकता भी यही है कि इसी कारण यह समूह ज्यादा कारगर साबित हुआ। हालांकि इसके अलावा उन पर नैतिकता के आधार पर भी शराब को छोड़ने के लिए दबाव बनाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि अब गाव में शराब पीकर घूमने वालों पर पूरी तरह अंकुश लग चुका है। इससे भी बड़ी बात यह है कि महिला मंडली इस उद्देश्य की पूर्ति के बाद भी शांत नहीं बैठी है और दायरे को बढ़ाते हुए सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाना शुरू कर दिया है।
गबन के आरोप में ग्राम सचिव व सरपंच नामजद:

नारनौल : गांव दोचाना के सरपंच धर्मपाल एवं ग्राम सचिव उमेश चंद पर अदालत के निर्देश पर धोखाधड़ी एवं आपराधिक षडयंत्र रचने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। सरपंच और सचिव के खिलाफ गांव के ही एक पंच द्वारा अदालत में इस्तगासा दायर कर उसके एवं कुछ अन्य पंचों के फर्जी हस्ताक्षर कर ग्रांट लेने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज कराने की अपील की गई थी।

जानकारी के अनुसार गांव दोचाना के पंच मदनलाल ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में गत 6 जुलाई को एक इस्तगासा पेश कर सरपंच एवं ग्राम सचिव पर मामला दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश देने की गुहार लगाई थी। मदनलाल ने इस्तगासा में बताया कि ग्राम पंचायत दोचाना के सरपंच धर्मपाल ने विभिन्न तारीखों में पंचायत पुस्तिका व कार्यवाही कमेटी रजिस्टर में उसके तथा कुछ अन्य पंचों, महिला पंच देवी और मुमताज अली तथा सुरेश कुमार पंच के फर्जी हस्ताक्षर कर एवं अंगूठे लगा कर प्रस्ताव पारित कर लिए। जबकि उक्त पंचों के सामने इस प्रकार की कोई बैठक हुई ही नहीं थी। सरपंच धर्मपाल ने पंचायत के सदस्यों का कोरम पूरा दिखाने की नीयत से प्रस्तावों पर फर्जी हस्ताक्षर कर लिए थे। ऐसा कर सरपंच ने सरकार से ग्रांट भी प्राप्त कर ली। इस्तगासा में यह भी कहा गया कि ग्राम सचिव उमेश चंद ने भी सरपंच धर्मपाल से फर्जी हस्ताक्षरों के माध्यम से पारित इन प्रस्तावों को अटेस्ट करके इस अपराध में सरपंच का सहयोग किया है। पंच मदनलाल ने इस संबंध में पुलिस महानिदेशक एवं अन्य संबंधित पुलिस अधिकारियों को भी शपथ पत्र के साथ एक शिकायती दरखास्त भेजी थी, किंतु पुलिस ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। शिकायतकर्ता पंच मदनलाल के अधिवक्ता सुरेंद्र ढिल्लो ने बताया कि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए गत 6 जुलाई को धारा 156 सीआरपीसी के तहत इसे नारनौल सदर थाना में भेज दिया था। जिस पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने सरपंच व ग्राम सचिव कि खिलाफ गत बुधवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 406 व 120 बी के तहत मुकदमा नंबर 159 दर्ज कर लिया है।

6.7.09

क्या वो लड़कियां वैश्याएँ थीं!!!!

लगभग दो साल पहले की बात है जब मैं अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था। इस वक्त एक अलग ही जोश था . दुनिया बदलने वाला टाइप का...उस वक्त सभी लड़कों की तरह मै भी दोस्तों के साथ रहता था। और हम सभी पांच लड़के इंदिरापुरम् में रहा करते थे। वैसे तो ये इंदिरापुरम.... ग़ाज़ियाबाद में आता है . लेकिन नोएडा-दिल्ली के पास ही है तो यहां का इलाका पॉश है। ऊंची सैलरी वाले लोग यहां ज्यादा रहते है। ऊंची बिल्डिंग हैं और ऊंचे लोग। एक शाम की बात है कि मै अपनी बिल्डिंग एस पी एस के पास के प्लाज़ा में चावल खरीदने जा रहा था। मेरे साथ मेरा दोस्त था.. जो कुछ दूर तो मेरे साथ आया लेकिन गर्लफ्रेंड के फोन ने उसे थोड़ा अलग कर दिया था। मै प्लाज़ा के पास पहुंचा थोड़ी भीड़ थी ...कुछ लोग दुकानों से सामान खरीद रहे थे। कुछ लड़के वहां पर आने जाने वाली लड़कियों को निहार रहे थे.....लकड़ी का काम चल रहा था फर्नीचर की दुकान थी.... कुछ लोग वहां बनी रेलिंग.. जो सीमेंट की बनी हुई और एक बार्डर की तरह काम कर रही कि कोई बाइक सवार प्लाज़ा के अंदर बाइक लेकर चला आये। उस रेलिंग पर बहुत लोग बैठे थे। कुछ मंगोलिया के लोग थे जो चीनी लोगों की तरह लग रहे थे मेरा दोस्त उनसे बातें करने लगा। उनकी समझ में अंग्रेजी ही रही थी। नोएडा के कॉल सेंटर्स में ये लोग काम करते थे। कुछ लड़के बैठे सिगरेट के कश उड़ा रहे थे। मै दुकान की सीढ़ियां चढ़ ही रहा था कि एक हट्टे-कट्टे मोटे से आदमी...वहां बैठी दो लड़कियों पर ज़ोर से चिल्लाया.... लड़कियों की उम्र यही कोई बीस से पच्चीस के बीच रही होगी.... रंग सांवला या कहूं कि सांवला से थोड़ा और काला.... दोनों लड़कियों ने एक सस्ती सीटी शर्ट जिसका रंग उड़ चुका था,पहन रखी थीं। बाल बांधे हुए थे, जिसमें क्लिप लगी थी, दोनों ने बेहद साधारण जीन्स पहन रखी थी.... पैरों में हवाई चप्पल थी... लिबास दोनों के बेहद साधारण थे.... उन्हें देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो बेहद गरीब परिवार से होंगी या कहें कि किसी घर पर नौकरानी का काम करती होंगी.... मै एक ऐसा आदमी हूं जो हर किसी से नहीं बोलता, लेकिन सबको देखकर आब्जर्व ज़रुर करता हूँ. लेकिन वो लड़कियां इतनी साधारण थी कि इत्तेफाक देखिये कि मेरी नज़र भी उन पर पहले नहीं पड़ी.....पर उस तगड़े आदमी की नज़र उन पर पड़ गई थी। वो आदमी करीब पांच फुट दस इंच के आस पास होगा मुझसे लंबा था.... तगड़ा सा.... बरमूड़ा नीचे पहन रखा था..... स्पोर्ट्स शू पहन रखे थे..... एक ब्लैक कलर की टी शर्ट पहन रखी थी.... हाथ में मोबाइल था.... पसीने से लथपथ था.... शायद थोड़ा मोटा होने की वजह से जागिंग से लौटा होगा या किसी दुकान पर समान ले रहा होगा... उसने चिल्लाकर कहा कि ... लड़की यहां कैसे बैठी है....वो लड़कियां तो एक बार को इतनी वज़नी आवाज़ सुनकर सहम गई.. और बोलीं.....हम तो यूं ही बैठे हैं बाजार घूमने आये थे........डर की वजह से उनकी आवाज़ लड़खडा रही थी शायद......मोटा आदमी बोला....साली मा*** यहां यूं ही बैठी है ***... उस आदमी की आवाज़ के भारीपन में गालियां सुनकर वो और ज्यादा डर गई..... डर कर बोली भाई साहब गाली काहे दे रहे हैं.... हम यहां घूमने नहीं सकते क्या ?... यहां और भी लोग तो बैठे थे आप उनसे कुछ क्यों नहीं कहते। आदमी का गुस्सा सांतवे आसमान पर चढ़ चुका था क्योंकि अब ये उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था..... उसने अपने गुस्से से लाल मुंह से बोला.....साली ***, मा***, रंडी साली तू मुझसे पूछ रही है.... साली ****ड़ी उठ यहां से.... इतना कहकर वो मारने के लिए आगे बढ़ा.... लेकिन इतने में लड़कियां डर के मारे खड़ी हो गई... लेकिन मोटे से आदमी का गुस्सा शांत नहीं हुआ.. उसने एक ज़ोरदार लात जड़ दी एक लड़की के... वो लड़की इस ज़ोरदार लात पड़ने से एकदम से बिखर गई.... बेसुध होकर वो लड़की इस तरह गिर पड़ी जिस तरह भूकंप के झटके से कोई बिल्डिंग भरभरा कर गिर जाती है। पहले वाली लड़की को तो होश नहीं आया काफी देर तक..... लेकिन इतने में दूसरी लड़की दीदी कह कर रोने लगी। उसके आंसू देखकर मेरी रुह कांप गई क्योंकि उसका रोना कोई आम रोना नहीं था। उसके रोने में वो दर्द था जो दर्द लिये हर झुग्गी वाला जीता है....जो विरोध करता है.... वो बदमाश बन जाता है...औऱ जो सहता है वो दम तोड़ देता है.... या जिनमें इतनी भी हिम्मत नहीं होती वो इसी तरह से बेबसी के आंसू लेकर रोते हैं।क्योंकि इन आंसूओं में वो बेबसी होती है जो कहती है कि वो कुछ नहीं कर सकते.... क्योंकि उनका साथ यहां कोई नहीं देगा.... इस समाज में क्योंकि यहां वही सभ्य माना जाता है जिसके कपड़े सभ्य होते हैं... और वो तो इन लड़कियों के बेहद साधारण थे। ख़ैर जहां कुछ लोग इसे सभ्यता मानते वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं। कुछ लोग आगे बढ़े उस आदमी को रोकने के लिए। लेकिन अभी भी कोई उन लड़कियों को उठाने को आगे नहींआया। दूसरी लड़की ने रोते हुए अपनी दीदी को हाथ देकर उठाया.... और उसके कपड़े झाड़कर बोली की चलो दीदी यहां से चलें.... इतने में वो मोटा आदमी बोला .... जाती कहां है मा*** रुक तेरी मां***... जाती कहां है.... इतना कहकर वो आगे बढ़ा लेकिन पहले से उसे रोक रहे लोगों ने एक बार फिर उसे रोका तब उसने राज़ खोला भड़कने का....मुझे रोको मत भाईसाहब ये साली दोनो रंडियां हैं कॉलगर्ल हैं.... इतना कह कर उसने एक बार फिर दौड़कर उन दोनों के बाल पकड़ लिए। इतने में मुझे भी लगा कि मामला बढ़ रहा है तो मैने कहा कि लोगों का साथ मुझे भी जाना पड़ेगा क्योंकि रोकने वाले ज्यादातर दुकान वाले थे जो नहीं चाहते होंगे कि उनका वो मोटा ग्राहक उनकी दुकान से सामान खरीदे। मैने उस मोटे आदमी से जो मुझसे सेहत में डबल था.... उससे कहा कि सर जी आप क्यों इन्हें मार रहे हो यार.... जाने दो इन्हें जा तो रही हैं। तो वो बोला कि अरे नहीं भाई साहब मै तो इन्हे अभी पुलिस के हवाले करुंगा..... मैने कहा कि यार आप कैसे कह सकते है कि ये रंडियां हैं। इतना कहने पर वो तो मुझपर भी तेल पानी लेकर चढ़ने लगा। बोला क्यों बे तू भी साले लगता है इनसे मिला हुआ है। मैने अपना नाम जुड़ने से पहले और लोगों की नज़र में आने से पहले उसकी अक्ल ठिकाने लगाई कि अबे ****ड़े साले यहीं घुसा दूगां समझ गया। साले यहीं रहता हूं एफ सात सौ पांच में...साले एक फोन पर यहीं मां** जायेगी। समझ गया मेरे तेवर देख कर वो भी समझ गया कि यहीं का लोकल है लगता है.... इतने मेरा दोस्त गया वो ज़रा मुझसे तगड़ा है। दोनों को देखकर उस मुटल्ले की अक्ल ठिकाने आई.... तब वो बड़े ही प्यार से बोला कि भाईसाहब ये कॉल गर्ल हैं। इतने में उन लड़कियों को अपने उपर लांछन लगता देख वो भड़क गई और बोली नहीं भाईसाहब हम पास की हैं . यहीं बंगाली कॉलोनी के पास मेरा घर है... मेरे भाईया रिक्शा चलाते हैं..... हम तो सिर्फ पास के सब्जी मार्केट से सब्जी लेने आये थे....तो सोचा कि यहां थोड़ी देर बैठ जायें..... इतने में मोटा फिर भड़का साली झूठ बोल रही है.... मारने बढ़ा लेकिन पहले ही मेरे दोस्त ने उसके हाथ को रोका। दोनों लड़कियां अपने बाल छुड़ा कर दूर हट गई.... अब मसला ये हो गया कि किसे सच माना जाये औऱ किसे गलत....मुद्दा अब कुछ लोगों के बीच था.... एक तो ख़ुदउन लडकियों के बीच, दूसरा उस मोटे आदमी के बीच जिसे पता नहीं कहां से पता चल गया था कि वो लड़कियां कॉलगर्ल थी.... तीसरा मेरे बीच। क्योंकि वहां पर खड़े बाकी सब लोग तो वो पूरा मामला किसी हिंदी फिल्म केक्लाइमेक्स की तरह बड़े चाव से देखभर रहे थे। इतने में मै बोला कि पुलिस के हवाले करने से कोई फायदा नहीं होगा अगर ये लड़कियां कॉलगर्ल नहीं होंगी तो भी वो फंस जायेंगी इस चक्कर में....तो ऐसा करना चाहिए कि इन्हें जाने देना चाहिए और हिदायत देनी चाहिए कि आइंदा आयें.... ये बात पहले तो उस मोटे आदमी को पची नहीं पता नहीं क्यों.... लेकिन जब उन लडकियों ने कहा कि वो नहीं आयेंगी.... तब जाकर वो मान गया..... उन लड़कियों ने लंबी सांस ली और धीमें कदमों से चलीं गयी। जो लड़की रो रही थी.... वो लगातार रोये जा रही.... सुबक रही थी लगता था पहली बार इस तरह के माहौल में आई थी..... क्योंकि उसे डर था कि वो बच नहीं पायेगी और कुछ कुछ गलत हो जाएगा.... और रोते रोते ही जैसे ही उसने सुना कि जाने को कह दिया गया है वो बोली जल्दी जल्दी चलो दीदी जल्दी घर चलो हम यहां कभी नहीं आयेंगे..... रोते ही जा रही थी.. उसी तरह से जिस तरह अगर आप कभी दुर्घटनाग्रस्त होकर अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हों और फिर आपकी जान बच जाय . उस वक्त आपके परिवारवाले आपको देखकर रो रहे हों कि आप मौत के मुंह से बच कर आये है। जिस तरह की भावना उस वक्त आती है वैसी ही खुशी झलक रही थी उसके आंसुओं में....कहीं कहीं मन में डर भी था कहीं ये छिन जाए.... और मन में एक तरह की ठंडक..... एक सुकून ये सोचकर कि चलो बच गये.... वो दोनों चले गये। सभी अपने अपने घर चले गये लेकिन मेरा मानसिक द्वंद चल रहा। अगले दिन मै उसी प्लाजा में गया वहां कि बेकरी सेपैटी, और पेस्ट्रीज खाने। वहां पहुंचा कि बेकरी वाले ने मुझे पहचान लिया और बोला कि.... कल तो बड़ी बहस होगई सर... मैने कहा हां यार बेकार में वो मोटा उन लड़कियों को पीट रहा था.... बेकरी वाला चुप हो गया फिर बोला.... सर वो आदमी सही कह रहा था.... मैने उसकी बात सुनी तो मेरे दिमाग सन्न रह गया.... उसने कहा कि मै उन्हें पिछले कुछ दिन से उन्हें नोट कर रहा था... वो कॉल गर्ल ही लग रही थी.... औऱ तो और मैने तो उनमें से एक को तो उस मोटे से आदमी की कार में बैठकर कहीं जाते हुए भी देखा था.... उसकी बात सुनकर मेरी पैटी मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही था.... उस वक्त मुझे अपनी बेवकूफी पर जवाब नहीं सूझ रहा था....मै जिन्हें गलत समझ रहा असल में वो सही थे और मै बेफिज़ूल में उस मोटे आदमी से लड़ बैठा.... मैने बेकरीवाले से पूछा ....तो फिर वो उनसे लड़ क्यों रहा था.... बेकरी वाला बोला कि अरे भाईसाहब पैसे की बात फिट नहीं बैठी होगी.... इसलिए वो मोटा साला ...ठर्की ...बिगड़ गया होगा... ये सब रोज़ का धंधा है सर.... पैसे वाला है इसलिए अय्याशी करता है साला.... मै अब कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था कि सच क्या है क्योंकि कल की बहस एकदम सही थी कुछ भी बनावटी नहीं लग रहा था क्या उस लड़की के आंसू झूठे थे? क्या ये बेकरीवाला सही कह रहा है ? क्या कल की बहस फिज़ूल थी ? क्या मोटा आदमी अय्याश और वो लड़कियां वैश्या थीं ?........
(नोट: लड़कियां कुछ कुछ भोजपुरी में बोल रही थी, मैने उसे हिंदी में परिवर्तित किया है)
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