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31.12.09

चिट्ठाकारों को 2010 मुबारक

दि नेटप्रेस के माध्यम से 
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर चिट्ठाजगत के सभी चिट्ठाकारों को
लोकसंघर्ष परिवार की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं

-सुमन

30.12.09

नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी

हमारे समाज में बेरोजगारी अत्याधिक है दूसरी तरफ शिक्षण संस्थाओ में शिक्षा देने के लिए शिक्षकों का भी अभाव है। सरकार ने अध्यापकों के सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष तक करने का प्रस्ताव रखा और विश्वविद्यालयों में 70 साल तक की उम्र के अध्यापक अध्यापन कार्य कर सकेंगे । सरकार नयी पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी से हट रही है और इस तरह के प्रयोगों से शिक्षा का स्तर गिरेगा और आने वाली पीढ़ी का भी भविष्य अच्छा नहीं होगा । उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोगों के कारण कक्षा पांच का छात्र अंगूठा लगा कर छात्रवृत्ति प्राप्त करता है उसका मुख्य कारण यह है कि बेसिक विद्यालयों में अध्यापक की नियुक्त ही नहीं है। शिक्षा मित्रों का प्रयोग भाजपा सरकार ने किया उसके पीछे मंशा यह थी कि 2000 रुपये में हम अध्यापक रखेंगे और सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करेंगे अब सरकार शिक्षा मित्रों को ही कुछ प्रशिक्षण देकर स्थाई नियुक्ति करने की मंशा व्यक्त कर चुकी है । उसी तरह केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा रही है । जिससे शिक्षा व्यवस्था और पतन की तरफ बढ़ेगी । निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थान चाहे वह मेडिकल हों या टेक्निकल कोई भी संस्थान मानक के अनुसार काम नहीं कर रहा है उनसे निकलने वाले छात्र ज्ञान में अधकचरे होते हैं हद तो यहाँ तक हो गयी है कि उत्तर प्रदेश के अन्दर कोई भी राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज मानक के अनुसार शिक्षण कार्य नहीं कर रहा है । वहां भी अध्यापकों की कमी है अच्छा यह होगा की नयी पीढ़ी के निर्माण के लिए योग्य अध्यापकों की भर्ती की जाए तथा मानक के अनुसार प्रशिक्षित अध्यापक तैयार किए जाएँ । यदि यह काम प्राथमिकता के आधार पर नहीं किया गया तो शिक्षा व्यवस्था और अधिक अस्त-व्यस्त हो जाएगी ।
- सुमन

29.12.09

न्याय में देरी का अर्थ बगावत नहीं

माननीय उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने कहा कि न्याय में देरी होने से बगावत हो सकती हैइस बात का क्या आशय है ये आमजन की समझ से परे बात है न्यायपालिका ने त्वरित न्याय देने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की स्थापना की है फास्ट ट्रैक न्यायलयों में अकुशल न्यायधीशों के कारण फैसले तो शीघ्र हो रहे हैं किन्तु सुलह समझौते के आधार पर निर्णीत वादों को छोड़ कर 99 प्रतिशत सजा की दर है जिससे सत्र न्यायलय द्वारा विचारित होने वाले वादों की अपीलें माननीय उच्च न्यायलय में पहुँच रही हैंजिससे माननीय उच्च न्यायलयों में कार्य का बोझ बढ़ जाने से वहां की व्यवस्था डगमगा रही है और वहां पर न्याय मिलने में काफी देरी हो रही है कुछ प्रमुख मामलो में जनभावनाओ के दबाव के आगे उनकी पुन: जांच वाद निर्णित होने के बाद प्रारंभ की जा रही हैअपराधिक विधि का मुख्य सिधान्त यह है की आरोप पत्र दाखिल हो जाने के बाद पुन: विवेचना नहीं होनी चाहिए और ही संसोधन की ही व्यवस्था हैकानून में बार-बार संशोधन से न्याय की अवधारणा ही बदल जाती हैन्याय का आधार जनभावना नहीं होती हैसाक्ष्य और सबूतों के आधार पर वाद निर्णित होते हैंजेसिका पाल, रुचिका आदि मामलों में न्यायिक अवधारणाएं बदली जा रही हैं जबकि होना यह चाहिए की विवेचना करने वाली एजेंसी चाहे वह सी.बी.आई हो पुलिस हो या कोई अन्य उसकी विवेचना का स्तर निष्पक्ष और दबाव रहित होना चाहिए जो नहीं हो रहा हैमुख्य समस्या अपराधिक विधि में यह है जिसकी वजह से न्याय में देरी होती हैन्याय में देरी होने का मुख्य कारण अभियोजन पक्ष होता है जिसके ऊपर पूरा नियंत्रण राज्य का होता हैराज्य की ही अगर दुर्दशा है तो न्याय और अन्याय में कोई अंतर नहीं रह जाता हैआज अधिकांश थानों का सामान्य खर्चा उनका सरकारी कामकाज अपराधियों के पैसों से चलता हैउत्तर प्रदेश में पुलिस अधिकारियों करमचारियों का भी एक लम्बा अपराधिक इतिहास है कैसे निष्पक्ष विवेचना हो सकती है और लोगो को इन अपराधिक इतिहास रखने वाले अपराधियों से न्याय कैसे न्याय मिल सकता है ? जनता में अगर बगावती तेवर होते तो हम लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद के गुलाम नहीं होते ।

28.12.09

मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है

हमारा देश करप्शन की कू में चलता है,
जुर्म हर रोज़ नया एक निकलता है।
पुलिस गरीब को जेलों में डाल देती है,
मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है।।

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हर तरफ दहशत है सन्नाटा है,
जुबान के नाम पे कौम को बांटा है।
अपनी अना के खातिर हसने मुद्दत से,
मासूमों को, कमजोरों को काटा है।।

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तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।

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तुम्हारे अज़्म में नफरत की बू आती है,
नज़्म व नसक से दूर वहशत की बू आती है।
हाकिमे शहर तेरी तलवार की फलयों से,
किसी मज़लूम के खून की बू आती है।।

- मो0 तारिक नय्यर

27.12.09

गन्दा आरोप नहीं, गन्दा आदमी

उनसे कह दो, गुजरे हुए गवाहों से-
झूंठ तो बोले, मगर झूंठ का सौदा करे

यह पंक्तियाँ हमने अपने बचपन में किसी कवि के मुख से सुनी थी जिसका प्रभाव आज भी मन पर है आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी जी के ऊपर लगाया गया आरोप गन्दा नहीं हैगंदे आदमी पर यह आरोप लग के आरोप शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगाश्री तिवारी जी आजादी की लड़ाई से आज तक दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैंउनका एक अच्छा उज्जवल व्यक्तित्व जनता के समक्ष रहा है दूसरा व्यक्तित्व न्यूज़ चैनल के माध्यम से जनता के सामने आया हैलखनऊ से दिल्ली , देहरादून से हैदराबाद तक का सफ़र की असलियत उजागर हो रही हैयह हमारे समाज के लिए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बात हैभारतीय राजनीति में, सभ्यता और संस्कृति में इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं लेकिन बड़े दुःख के साथ अब यह भी लिखना पड़ रहा है कि पक्ष और प्रतिपक्ष में राजनीति के अधिकांश नायको का व्यक्तित्व दोहरा हैइसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए बस ईमानदारी से एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है बड़े-बड़े चेहरे अपने आप बेनकाब हो जायेंगेगलियों- गलियों में हमारे वर्तमान नायको की कहानियाँ जो हकीकत में है सुनने को मिलती हैं। इन लोगो ने अपने पद प्रतिष्ठा का उपयोग इस कार्य में जमकर किया है जो निंदनीय हैइसलिए ऊपर लिखी पंक्तियाँ वास्तव में उनके व्यक्तित्व के यथार्थ को प्रदर्शित करती हैं
- सुमन

26.12.09

राज्य का मुखिया राज्यपाल

संविधान के अनुच्छेद 155 के तहत राष्ट्रपति किसी भी राज्य के कार्यपालिका के प्रमुख राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करता हैआन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी के कारनामो को देखने के बाद कार्यपालिका की भी स्तिथि साफ़ होती नजर राही हैझारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार के मामले आने के बाद वहां भी राज्यपाल श्री शिब्ते रजी के ऊपर उंगलियाँ उठी थीराज्यपाल की भूमिका पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैंइस पद का इस्तेमाल केंद्र में सत्तारूढ़ दल अपने वयोवृद्ध नेताओं को राज्यपाल नियुक्त कर उनको जीवन पर्यंत जनता के टैक्स से आराम करने की सुविधा देता हैइन राज्यपालों के खर्चे शानो शौकत राजा रजवाड़ों से भी आगे होती हैलोकतंत्र में जनता से वसूले करों का दुरपयोग नहीं होना चाहिए लेकिन आजादी के बाद से राज्यपाल पद विवादास्पद रहा हैजरूरत इस बात की है कि ईमानदारी के साथ राज्यपाल पद की समीक्षा की जाएअच्छा तो यह होगा की इस पद की कोई उपयोगिता राज्यों में बची नहीं है इसको समाप्त कर दिया जाए
- सुमन

25.12.09

विधायिका पर अपराधियों का कब्ज़ा

राजनीति पर अपराधियों का कब्ज़ा हो गया है आए दिन कोई कोई राज़नीतज्ञ किसी किसी घोटाले में लिप्त नजर रहा है कांग्रेस के 85 वर्षीय नेता श्री नारायण दत्त तिवारी जो राज्यपाल हैं सेक्स स्केण्ड़ल में उनका नाम आया है इससे पूर्व श्री तिवारी जैसे राजनेता का नाम सेक्स स्केण्ड़ल में चुका है इन राजनेताओं का चरित्र देखकर लगता है कि यह सब समाज के लम्पट तत्व हैं और इन्होने अपनी यूनियन बनाकर विधायिका पर ही कब्ज़ा कर लिया है
- सुमन

24.12.09

संघ का अंतर्द्वंद्व - भाजपा का अस्तित्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दावा तो सांस्कृतिक संगठन होने का करता है परन्तु उसने भारत की बहुलतावादी संस्कृति एवं सहअस्तित्व की भावना से हमेशा परहेज ही किया। उसके गैर-राजनीतिक होने के दावे की हकीकत से देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। बाजपेई और आडवाणी 85 वर्ष के करीब हो गये, वे अपनी उम्र और भूमिका दोनों का सफर तय कर चुके हैं। उनके शरीर नश्वर हैं..... समाप्ति की ओर अग्रसर। लेकिन भाजपा की आत्मा - ”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघभी 85 साल की होने के बावजूद तो स्वयं को मृतप्रायः स्वीकार करने को तैयार और ही अपने राजनीतिक संस्करण भाजपा को ही।
सत्ता में आने के लिए भाजपा बार-बार अपनी आत्मा यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घोषित सोच के साथ समझौता करने के बावजूद राजनीतिक क्षितिज पर पराभव की ओर अग्रसर है। अपने राजनीतिक संस्करण की इस दुर्दशा पर बहुत चिन्तित है संघ। बड़ी कुलबुलाहट, बड़ी छटपटाहट का शिकार है संघ। पूर्व संघ प्रमुख के.सी.सुदर्शन भाजपा नेतृत्व से शिकायतें करते ही रह गये कि भाजपा सत्ता के नशे में परिवार के योगदान को भुला बैठी। भागवत संघ परिवार के मुखिया बनने के बाद लोकसभा चुनावों में पार्टी की पराजय को बर्दाश्त नहीं कर सके। अपनी 60वीं वर्षगांठ की ओर अग्रसर भागवत चीख उठे - ”बदलाव जरूरी है।समाचार माध्यमों एवम् राजनीतिक हल्कों में भाजपा ने कुलबुलाहट को शान्त करने का प्रयास किया। राजनाथ सिंह पार्टी में आन्तरिक लोकतंत्र के नाम पर मामले को शान्त करते नजर आये। वे पार्टी के जिस आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे, पूरा देश उसके अस्तित्वहीन होने से परिचित है।
आखिर 18 दिसम्बर को वह घड़ी ही गयी जब संघ के प्रतिनिधि के तौर पर गडकरी ने भाजपा की शीर्षसत्ता यानी उसके अध्यक्ष पद पर आसीन हो गये। भागवत के निर्देशन मेंहेडगेवार भवनमें भाजपा को एक बार फिर जिन्दा रखने के लिए जो ब्लूप्रिन्ट तैयार किया गया था, उसको अगली जामा पहनाया जाने लगा।
गडकरी की क्या पहचान होगी? उनके सामने पार्टी की लगभग वही स्थिति है तो सन 1984 में भाजपा की थी। संघ का स्वास्थ्य हमेशा जन-मानस के रूधिर से ही पनपता रहा है। तब संघ को अयोध्या में एक प्रतीक नजर गया। उस प्रतीक के झुनझुने को लाल कृष्ण आडवाणी को एक रथ पर बैठा कर पकड़ा दिया गया। वे पूरे देश में उस झुनझुने को बजा-बजाकर आवाम की शान्ति-चैन छीनने निकल पड़े क्योंकि फासिस्ट संघ के राजनीतिक संस्करण भाजपा को जीने के लिए तमाम लाशों की जरूरत थी। उधर संघ परिवार अपने अन्य अनुषांगिक संगठनों के साथ मिलकर अयोध्या के प्रतीक को ध्वंस करने के ब्लूप्रिन्ट को अमली जामा पहनाने की तैयारी करता रहा। उस दौर में पूरे देश में काफी लाशें गिराने में संघ और भाजपा सफल रहे। उन लाशों से गुजर कर आखिरकार भाजपा को एक नया जीवन मिल गया। केन्द्र में सत्तासीन होने का उसका रास्ता प्रशस्त हुआ था परन्तु वह 24 पार्टियों का सर्वमान्य नेता कथित उदारमना अटल बिहारी बाजपेई के नाम पर सहमत होने पर ही सम्भव हो सका था।
उस दौर ने जनता के सामने संघ परिवार की सोच को साफ-साफ पेश कर दिया था। उसके इस चेहरे से भी जनता अब परिचित हो गयी है।
अब देखना होगा कि गडकरी के हाथ में भागवतहेडगेवार भवनसे कौन सा झुनझुना और कैसा रथ भेजते हैं। हमें सतर्क रहना होगा क्योंकि मृतप्रायः भाजपा को नया जीवनदान देने के लिए संघ फिर लाशों की राजनीति करने से नहीं हिचकेगा। हम जनता से यही गुजारिश कर सकते हैं कि जागते रहो और फासिस्ट संघ की नई चाल से सतर्क रहो।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अयोध्या के प्रतीक रूपी झुनझुने की अवधारणा तैयार करने के पहले संघ परिवार ने सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के मध्य तक कई पैतरों का इस्तेमाल किया था। पहले उन्होंने स्वामी विवेकानन्द को अपनाने का प्रयास किया परन्तु स्वामी विवेकानन्द के शिकागो के ऐतिहासिक भाषण की यह लाईनें किभूखों को धर्म की नहीं रोटी की जरूरत होती हैभाजपा के रास्ते पर आकर खड़ी हो गईं। फिर उन्होंने शहीदे-आजम भगत सिंह को अपना प्रतीक बनाने का प्रयास किया तो भगत सिंह का खुद को नास्तिक घोषित करने का मामला भाजपा के आड़े गया। तब उन्होंनेगांधीवादी समाजवादका प्रलाप शुरू किया तो जनता ने गांधी के हत्यारे के रूप में भाजपा को चित्रित कर उसे लोकसभा में दो सीटों तक पहुंचा दिया। सम्भव है शुरूआती दौर में संघ एक बार फिर इस तरह के प्रतीकों का इस्तेमाल करने की असफल कोशिश करे परन्तु अन्तोगत्वा उसे जिन्दा रहने के लिए लाशों की ही जरूरत पड़ेगी। उसका इतिहास तो यही बताता है।
- प्रदीप तिवारी

23.12.09

जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने की साजिश

समय में वनों को बचाए रखने के लिए वन सम्पदा को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित किया गयावन सम्पदा को बनाये रखने के लिए विभिन्न तरह के विधियों का निर्माण किया गयाजिसका असर यह हुआ कि सरकार, उद्योगपति विभिन्न योजनाओ के नाम पर जमकर वन सम्पदा को नष्ट करने के अधिकारी हो गएवन सम्पदा से जनता वंचित हो गयीवन विभाग ने विभिन्न योजनाओ के तहत कागज पर ही पेड़ लगायेजनता ने अपनी जमीनों के ऊपर पेड़ लगाकर पर्यावरण से लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहीजिसका हश्र यह हुआ कि पेड़ मालिक को जब अपने उपयोग के लिए अथवा व्यावासिक उपयोग के लिए उनको कटवाने की जरूरत होती है तो नियमो और उपनियमों का सहारा लेकर पुलिस कुल बिक्री मूल्य का 60 प्रतिशत रुपया ले लेती है10 प्रतिशत वन विभाग ले लेता है पेड़ मालिक को बिक्री मूल्य का 30 प्रतिशत ही मिलता है उसी तरह से इजारेदार कम्पनियां उद्योगपति जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने के लिए काफी दिनों से प्रयासरत हैं। उनकी योजना यह है कि जल राष्ट्रीय सम्पदा घोषित हो जाए और आम आदमी अपने इस्तेमाल के लिए जल सोत्रों से जल बिना अनुमति के प्राप्त कर पावेजल व्यापार करने के इच्छुक बड़े-बड़े उद्योगपति शहरों की जल आपूर्ति प्राप्त करना चाहते हैं और उनका एकाधिकार हो जाने पर गरीब तबके के लोग, पशु-पक्षी पानी नहीं पा सकेंगेपानी के बगैर जीवन असंभव है जिसपर वह एकाधिकार चाहते हैंउत्तर प्रदेश में नगर निगम वाले शहरों में वाटर टैक्स वसूलने की व्यापक तैयारियां की जा रही हैं और मीटर से पानी दिया जायेगा और मीटर के हिसाब से ही पानी का मूल्य वसूला जायेगाशहरों के अन्दर एक बड़ा हिस्सा पानी खरीद कर अपना जीवन बचा सकता है उस तबके का क्या होगा ? पानी के सोत्रों को गन्दा करने का काम सबसे ज्यादा उद्योगजगत करता हैआज जरूरत इस बात की है कि जल स्रोत्रों को गन्दा होने दिया जाएजल स्रोत्रों को गन्दा करने वाले उद्योगजगत को नगर नियोजकों के खिलाफ कानून बनाने की आवश्यकता है की जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने कीमुनाफा खोर चाहते हैं की शहरों में मीटर प्रणाली के हिसाब से पानी की आपूर्ति होने लगे और आपूर्ति में असफल होने के नाम पर स्वायतशाषी संस्थाओं से जल आपूर्ति उन्हें मिल जाए
- सुमन

22.12.09

पाकिस्तान में सेना और भारत में नौकरशाही सत्ता पलट में माहिर हैं

पाकिस्तान में जब सेना को सरकार जब पसंद नहीं आती है तो वह तख्तापलट कर देती हैकिन्तु इसके विपरीत हमारे देश में यह कार्य बखूबी नौकरशाही बड़े आराम से करती रहती हैअमेरिकन साम्राज्यवाद को दुनिया में चुनौती देने वाली भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की सरकार को नौकरशाही ने अपने कारनामो से जनता से सत्ताच्युत करा दिया थाश्रीमती इंदिरा गाँधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम जनता के हितों के लिए लागू किया था तथा उनके पुत्र संजय गाँधी ने 5 सूत्रीय कार्यक्रम जारी किया थाउस समय की नौकरशाही शक्तिशाली प्रधानमंत्री नहीं चाहता था उसने आपातकाल के नाम पर गाँव से लेकर दिल्ली तक बेगुनाह लोगों को फर्जी मुकदमों में बंद कर दिया थानसबंदी के नाम पर जबरदस्ती अविवाहित नवजवानों की नसबंदी कर दी गयी थी और प्रेस पर तरह-तरह के आरोप लगा कर उनके भी नकेल डाल दी गयी थीजिन नवजवानों ने इन सब नौकरशाही के गलत कार्यों का विरोध किया या तो वह मार डाले गए या फर्जी मुकदमों में जेलों में निरुद्ध कर दिए गए
इस समय उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार है नौकरशाही तरह-तरह से सरकार को हमेशा के लिए सत्ताच्युत करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैप्रदेश के पूर्व महानिदेशक ने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम नवजवानों को या तो एन्कोउन्टर के नाम पर मरवा दिया है या कड़े कानूनों के तहत जेलों में बंद करवा दिया था पूरे प्रदेश में अफसरशाही अंतर्गत धारा 198 उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम के तहत चलने वाले वादों में जबरदस्ती जुर्म इकबाल करा कर या सुलह समझौते वादों में सौ प्रतिशत सजा कर तमगा जीतने की होड़ मचा रखी है जिसके उदाहरण बाराबंकी जनपद में देखने में रहा हैएक उपजिलाधिकारी के यहाँ इस धारा के अंतर्गत चलने वाले सभी वादों में सजा हो चुकी है कई मुकदमों में वादी और प्रतिवादी में सुलह हो चुकी थीसुलह के पश्चात भी सजा सुनाई गयी हैअनुसूचित जाति/ जनजाति निवारण अधिनियम के तहत कोई भी विवेचना नहीं की जा रही हैअभियुक्त घटना के दिन चाहे प्रदेश से बाहर ही क्यों हो विवेचना अधिकारी उसको घटना स्थल पर दिखाकर वाद में आरोप पत्र न्यायलयों में भेज रहे हैंइससे यह महसूस होता है की जब नौकरशाही अति उत्साह में फर्जी आंकड़ों के नाम पर जनता का भला करने लगे कानून के नाम पर जनता का उत्पीडन करने लगे तो समझ लेना चाहिए की नौकरशाही जिस दल की सरकार है उसको मौन रहकर सत्ताच्युत करना चाहती हैं
-एडवोकेट सुमन

21.12.09

अपनी केचुल बदलती भाजपा

लोकसभा चुनाव में चारो खाने कांग्रेस से चित्त होने के पश्चात भाजपा ने अपनी पुरानी केचुल यानी अडवाणी को उतार फेंका है, अब वह पार्टी के लिए कोच की भूमिका निभाएंगे और लोकसभा में अपनी पुरानी प्रतिद्वंदी सोनिया गाँधी से दो-दो हाथ करने सुषमा स्वराज मैदान में उतर रही हैं साथ ही अडवाणी के चहेते राजनाथ सिंह भी बड़े बे- आबरू होकर अध्यक्ष की कुर्सी से उतारे जा चुके हैं इस पद पर संघ ने अपनी राईट च्वाइज़ को सुशोभित किया है जिनका बचपन जवानी दोनों ही संघ के आँगन में बीता है
दरअसल संघ ने खूब सोच समझ कर टू टायर व्यवस्था इस बार की है पार्टी संघ संचालक चलाये और सदन में सुषमा स्वराज कांग्रेस से नाराज दलों को अपनी लच्छेदार बातों से उसी प्रकार रिझा कर लायें जैसे कि पार्टी के अवकाश प्राप्त लीडर अटल बिहारी बाजपेई उदारवादी एवं धर्म निरपेक्ष मुखौटा चढ़ा कर अन्य दलों को साथ मिला कर किया करते थे ज्ञातव्य रहे की सुषमा स्वराज जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन के समय राजनीति में आई थी और नितीश कुमार , लालू यादव, शरद यादव मुलायम सिंह सभी के साथ वह जनता पार्टी में कंधे से कंधा मिला कर चल चुकी हैं
-तारिक खान

15.12.09

‘‘आस्तीन के सांप और दूध पिलाने वाले’’

अब हैं हमारे जनप्रतिनिधि महान
जो करते हैं राजनीति जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की।
पर लागू नहीं होता कोई कानून,
न लगता है NSA, न लगता है मकोका।
आखिर जनता और रियाया है इन्ही के खिलवाड़ की चीज।
क्यूं नही लगवाते रोक, जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की राजनीति पर?
न्हीं लगवायेंगे! क्योंकि हमाम में सब हैं नंगे।
क्या राष्ट्रीय! क्या क्षेत्रीय!
इन्होंने ही तो पाला था भस्मासुर पंजाब का,
जिसने मरवाये, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं अनेक,
जिनकी तादात हजारों में नहीं लाखों में थी।
यही हाल कश्मीर, आसाम, मणिपुर का अभी भी है।
मरे जा रहे हैं रोज अनेक, कभी गोलियों से, कभी बारूद के धमाकों से,
उड़ते हैं चीथड़े, खून के लोथड़े, इंसानी अंगों के और इंसानियत के भी।
मरते हैं रोज वर्दी वाले या बिना वर्दी के,
हैं तो सब ही भारत मां के सपूत।
फिर ऐसा क्यूं होता है?
वर्दी वाला मरा तो इंसान मरा, बिना वर्दी के मरा तो कुत्ता मरा।
आखिर क्यूं चलवाते हैं,
प्रदर्शनकारी भीड़ पर गोली?
आखिर क्यों करवाते हैं,
फर्जी एन्काउन्टरों में सतत् हत्यायें?
आखिर क्यूं छीनते हैं,
जीवित रहने का नैसर्गिक संवैधानिक अधिकार?
कानून व्यवस्था के बहाने, फर्जी क्राइम रिकार्ड के नाम
सिर्फ और सिर्फ फर्जी आंकड़ेबाजी के लिए,
जनता को ही बेवकूफ बना झूठी वाहवाही के लिए।
जनता का ध्यान मूल मुद्दों से हटाने के लिए,
छोड़ते रहते हैं शिगूफों पर शिगूफे, ताकि आये ही न ध्यान,
रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा और महंगाई का।
हमारे ही प्रतिनिधि, मुखिया सरकार के,
चलवाते हैं बाकायदा अभियान,
भरते हैं जेलें गरीब गुरबा जनता से,
फर्जी मुकदमें तो है बपौती, पुलिस और प्रशासन की।
क्या इस अमानवीयता के बिना कानून व्यवस्था रह जाएगी अधूरी।
खड़ा है इस भ्रष्टाचार की नींव पर,
घूस के रूपयों का बहुत बड़ा साम्राज्य।
दबी जा रही है अदालतें ढाई करोड़ मुकदमों के बोझ से,
बेगुनाह साबित होने में लग जाते हैं चार-छः साल।
फिर भी छीना ही जाता रहता है जनता का,
सामान्य जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार
होती रहेंगी सतत् हत्यायें मानवता की फर्जी एन्काउन्टरों में।
क्यूं बढ़ावा देते रहते हैं झूठी बहादुरी को?
तमगे और आउट आॅफ टर्न प्रमोशन देकर।
आखिर क्यूं करवाते रहते हैं सतत्,
संविधान की हत्या?
जबकि संविधान से ही पाते हैं,
ताकत और शासन का अधिकार।
फिर क्यूं रख देते हैं संविधान को,
सजाकर सिर्फ अलमारी में?
जहन से निकाल ही क्यूं देते हैं,
संविधान और जनता को?
फिर भी देते फिरते हैं संविधान की दुहाई।
जनता को सिर्फ बेवकूफ बनाने की खातिर।
जबकि खुद ही नहीं करते संविधान का पालन,
करते हैं राजनीति - जाति, धर्म, क्षेत्रवाद और हत्या की।
आखिर ऐसा क्यूं है?
वर्दी वाला मरा तो इंसान मरा, बिना वर्दी के मरा तो कुत्ता मरा।
बागी भी तो हैं इंसान और भारत मां के ही सपूत।
पर उनके मन में है एक आग,
उस आग को ही क्यूं ठंडा नहीं करते?
पानी क्यूं नहीं डालते उस पर?
इंसान क्यूं मारते हैं?
क्यूं बनाते हैं, नीति दमनकारी?
आखिर जानबूझकर क्यूं करते हैं नीतिगत गलती?
वह आग पैदा तो आप ही करते हैं,
आकण्ठ व्याप्त भ्रष्टाचार की विष बेल पर।
आखिर क्यूं पिला रहे हैं दूध आस्तीन के सांपों को?
क्या राज्य की कुर्सी राष्ट्र से ज्यादा जरूरी है?
एक राज्य में कुर्सी न मिले तो क्या कम रह जाता रूतबा राष्ट्र में?
इंदिरा का बलिदान क्या कम है समझने के लिए?
क्यूं नहीं करते स्वच्छ पारदर्शी राजनीति?
क्या तब पेट न भरेगा या रोटी पड़ जाएगी कम?
जिन्ना ने मरवाया था बीस लाख, ठाकरे और राज मरवायेंगे करोड़ों।
जिन्ना ने करवाया था देश के दो टुकड़े, प्रान्त में छिपे जिन्ना करवायेंगे अनेक।
फिर क्यूं नहीं लगवाते रोक, जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की राजनीति पर?
नजर बन्द करें इन भस्मासुरों को या डालें काल कोठरियों में।
इन्हें पूरी तरह काट दें समाज और देश दुनिया से।
संेसर काटें इनकी जहरीली वाणी का,
नहीं घुलेगा जहर समाज में नहीं लगेगी आग।
अभियान7 चलाना है तो चलाएं इनके ही खिलाफ,
और शासन तन्त्र में आकण्ठ व्याप्त भ्रष्टाचार के ही खिलाफ।
जो है राष्ट्रद्रोह से भी बढ़कर राष्ट्र के जन-जन के प्रति अपराध,
यही है असली अपराधी समाज के।
ताज में कसाब से निपटाया ब्लैक कैट
बार्डर के दुश्मनों से तो निपट सकते हैं तोप और बुलेट से पर,
आस्तीन के सापों से निपटेंगे कैसे?
माहिर पुलिस रोज करती है फर्जी मुठभेड़ मरते हैं अनेक
क्या है कोई व्यवस्था देश में?
जो इन भस्मासुरों से करे वास्तविक मुठभेड़।
क्यूं बढ़ने और पकने ही दें ऐसे फोड़ों को?
जो बन जाएं नासूर रिसने लगे मवाद और खून।
शुरू में ही क्यूं नहीं नश्तर से देते चीर,
ऐसे गम्भीरतम मामलों में?
कहां खो गयी है विशेषता राष्ट्र की?
कुछ बताएंगे विधि-विशेषज्ञ,
कुछ करेंगे, हमारे विद्वान न्यायाधीश।
इतने बड़े देश में एक अरब की आबादी में।
जूझ रहा है निहत्था सिर्फ एक खिलाड़ी महान।
क्या है कोई ‘‘जांबाज मानुस’’ जो करे मुठभेड़,
अन्त करे इन भस्मासुरों का आस्तीन के सांपों का।।

- महेन्द्र द्विवेदी

12.12.09

छुद्र स्वार्थों की राजनीति है प्रदेश विभाजन

तेलंगाना को प्रदेश बनाने की बात के बाद पूरे देश में तमाम नए राज्यों को बनाने की बात उठ खड़ी हुई है क्षेत्रिय राजनीति कने वाले लोग छुद्र राज़नितज्ञ अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने अपने प्रदेश का विभाजन करना चाहते हैंप्रदेश विभाजन से उपजे हुए राजनेता मधु कोड़ा ने पूरे प्रदेश का अधिकांश बजट अपने खाते में जमा कर लिया था क्षेत्रिय राजनीति करने वाले नेता गण ख़ुद पूरे प्रदेश के मालिक नही हो सकते हैं तो वह चाहते हैं की प्रदेश का विभाजन करके किसी तरह मुख्यमंत्री हो जायें तो अपने पूरे परिवार के सदस्यों नाते रिश्तेदारों के साथ प्रदेश का सम्पूर्ण बजट अपने खाते में कर लेंइन लोगों ने विकास, प्रगति शब्दों का नया अर्थ गढ़ डाला है जिसका मतलब है की अपने परिवार का विकास ही प्रदेश की जनता का विकास हैउत्तर प्रदेश में बहुत सारे जनपद मंडल मुख्यालय बनाये गए हैं, विकास तो नही हुआहाँ, अफसरशाही दलालों छुद्र राजनेताओं की परिसंपत्तियों में हजारो गुना की वृद्धि हुई है यदि अफसर शाही और राजनेता समयबद्ध तरीके से काम करें तो नए जनपद मुख्यालय, मंडल मुख्यालय तथा प्रदेश विभाजन की आवश्यकता नही रहेगीसरकार काम काज में बगैर धन दिए कोई भी पत्रावली आगे नही बढती है प्रशासनिक अफसरों ने प्रत्येक कार्य के लिए अपने दरें निश्चित कर रखी है जब तक उसका भुगतान नही होता है तब तक उनके हस्ताक्षर होना सम्भव है। दूर के ढोल सुहावने होते हैं और राजधानी बना देने से विकास नही होता है और नई राजधानी बनते ही दलालों प्रोपर्टी डीलरो, नगर नियोजकों का समूह विकास करने लगता हैवहां के मूल निवासी अपनी संपत्ति को उनके हाथों बेच कर , रिक्शा चलने से लेकर बर्तन माजने तक का कार्य उन्ही दलालों के घर में करना शुरू कर देते हैंउनके परंपरागत कार्य छीने जाने की वजह से उनके घर की औरतें वैश्यावृत्ति अपनाने को मजबूर हो जाती हैंप्रदेश विभाजन से कुछ स्वार्थी तत्वों को छोड़कर आम जनता को कोई लाभ नही होता हैआज जब महंगाई अपनी चरम सीमा पर है तब राजनेता अफसरशाही उसका कोई समाधान करने की बजाये प्रदेश विभाजन करवाने की जुगत में लगे हुए हैंमूल समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए लोर्ड करज़न की नीति अपना कर अपना हित साध रहे है

11.12.09

यमराज को भी मिलेगा नोबेल शान्ति पुरस्कार

'शान्ति के लिए युद्ध' के नारे के साथ अमेरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने दुनिया का बहुचर्चित नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया व्हाईट हाउस के प्रवक्ता रोबेर्ट गिब्स ने बताया कि "श्री ओबामा युद्ध के नायक के रूप में नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया है" नोबेल शान्ति पुरस्कार ने साम्राज्यवादी देशों के मुखिया को शान्ति पुरस्कार देकर नोबेल समिति ने अपने को भी सम्मानित किया है और अपना नकली मुखौटा उतार दिया है आने वाले दिनों में नोबेल शान्ति पुरस्कार यमराज को भी दिया जा सकता है और इस पर किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए अफगानिस्तान में शान्ति के लिए 30 हजार सैनिक भेजे जा रहे हैं ईराक में भी प्रतिदिन उनके शोषण के ख़िलाफ़ युद्ध जारी है पकिस्तान में ओबामा के तालिबानी लड़ाके पाकिस्तानी सरकार शान्ति का पाठ अपने नागरिको को पढ़ा रही है शान्ति का अर्थ अमेरिकन साम्राज्यवादियों उसकी पिट्ठू मीडिया ने बदल दिया है
संयुक्त राष्ट्र संघ साम्राज्यवादियों के हितों की पूर्ति के लिए विश्व संगठन है उसी तरह नोबेल पुरस्कार समिति साम्राज्यवादियों के हितों की रक्षा के लिए लोगों को सम्मानित पुरस्कृत किया करती है नोबेल पुरस्कार अधिकांश विवादित होते हैं और साम्राज्यवादी शक्तियां उनका इस्तेमाल अपने हितों के लिए करती रहती हैं
इजारेदार ओद्योगिक घरानों द्वारा स्थापित सरकारें उन्ही के हितों के लिए कार्य करती हैं आज दुनिया में भूंख प्यास से लेकर प्रत्येक चीज पर इनका कब्ज़ा हो चुका है हवा पानी से लेकर सभी प्राकृतिक सोत्रों को भी इन लोगों ने बरबाद कर दिया है मुनाफा इनका धर्म है, नरसंहार इनका अस्त्र है सारे नागरिकों को गुलाम बनाना इनका मुख्य उद्देश्य है अपने उद्देश्य के लिए ये ताकतें सम्पूर्ण मानवता को भी नष्ट कर देंगी इनका लोकतंत्र, स्वतंत्रता, न्याय, शान्ति में विश्वाश नही है ये शब्द इनके लिए मानवता को ध्वंश करने के औज़ार हैं

10.12.09

बप्पा पुलिस महानिदेशक बेटवा घोटालेबाज

पुलिस में भर्ती कराने के लिए पुलिस महानिदेशक ट्रेनिंग डी पि सिन्हा के पुत्र रितेश सिन्हा व बहुजन समाज पार्टी के सहारनपुर के नेता धूम सिंह के रैकेट का पर्दाफाश हुआ है। फिलहाल दोनों गिरफ्तार किए गए हैं । उच्च स्तर के पुलिस अधिकारियों की छवि घोटालेबाज, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर के रूप में आए दिन जनता के सामने प्रदर्शित होती रहती है। हमारी न्यायव्यवस्था के समक्ष अधिकांश वाद इन्ही भ्रष्टाचारियों के पर्वेक्षण में दाखिल होते है और उनके द्वारा लिखी गई बातें या विवेचना के आधार पर ही न्यायपालिका न्याय का कार्य करती है। इस तरह से क्या न्याय होता है क्या अन्याय होता है यह समझने की आवश्यकता है । कोई भी भर्ती होने वाली होती है तो बेरोजगारों को ठगने के लिए तरह तरह के रैकेट कार्य करने लगते हैं । जिसमें राजनेता उच्च अधिकारी व दलाल शामिल होते हैं । करोडो रुपये बेरोजगारों से ठगा जाता है और बेरोजगार नवजवानों को कोई लाभ भी नही होता है। अगर जांच की जाए तो अधिकांश उच्चाधिकारी किसी न किसी घोटाले में लिप्त हैं। अब सरकार अपने कर्मचारियों व अधिकारियो की निष्पक्ष भर्ती करने में भी असमर्थ हैं। एक-एक अधिकारी अरबों रुपयों की परिसम्पतियों का मालिक है जो उसको मिलने वाली तनख्वाह से कई गुना ज्यादा होती है स्तिथि यह है की जिसको हम शासन व प्रशासन कहते हैं वह सफेदपोश अपराधियों का जमावड़ा होता है ऐसे में आम नागरिक का भला कैसे होगा सारी व्यवस्थाएं असफल हैं । इस भर्ती रैकेट मामले में पुलिस महानिदेशक डी.पी सिन्हा व उनके पुत्र के ख़िलाफ़ सकारात्मक कार्यवाही सम्भव नही है क्योंकि सत्तारूढ़ दल व नौकरशाही का यह गठजोड़ है और बप्पा पुलिस महानिदेशक हैं और बेटवा घोटालेबाज है

9.12.09

संसद में अटल जी

लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पर बहस के दौरान संसद में श्री बेनी प्रसाद वर्मा सांसद ने माननीय अटल बिहारी वाजपेई पर टिपण्णी कर दी जिससे संसदीय चर्चा रुक गई और भारतीय जनता पार्टी ने श्री बेनी प्रसाद वर्मा से माफ़ी मांगने के लिए कहा किंतु श्री वर्मा ने माफ़ी मांगने से इनकार कर दियासवाल इस बात का नही है कि माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी हमारे प्रधानमंत्री रहे है हिन्दी के अच्छे वक्ता हैंसवाल यह है कि बाबरी मस्जिद के समय उनकी भूमिका एक षड़्यंत्रकारी की थी जिसकी पुष्टि भी लिब्रहान आयोग ने की हैहमारे छात्रजीवन में श्री अटल बिहारी बाजपेई जी जब चुनाव लड़े थे और पराजित हुए थेउस समय उनपर यह आरोप था कि वह क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तरफ़ से गवाही देने का कार्य किया करते थे जिसके बड़े-बड़े पोस्टर लखनऊ शहर में लगते थे और उसका कभी भी खंडन माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने नही कियाउसी चुनाव में माननीय अटल जी के चाचा जी जिनका नाम मुझे अब याद नही है, उन्होंने ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तरफ़ से उनके द्वारा गवाही देने वाली बात की पुष्टि भी की थी माननीय अटल जी कभी भी निर्विवाद नेता नही रहे हैहिंदू राष्ट्र बनने की परिकल्पना में आज भी वह शामिल हैं जो भारतीय संविधान के विरुद्ध है जबकि धर्म आधारित राज्य जनता को न्याय लोकतंत्र स्वतंत्रता नही दे सकते हैंहमारा देश एक बहुजातीय, बहुधर्मीय, बहुभाषीय हैविविधिता में एकता हमारा मूलमंत्र है इसी आधार पर हम प्रगति कर सकते हैंश्री बेनी प्रसाद वर्मा एक समझदार बुजुर्ग राजनेता हैं उनकी टिपण्णी भी ग़लत नही हो सकती है लेकिन तमाम सारे विवादों को टालने के लिए उन्होंने खेद प्रकट किया जो उचित था

8.12.09

हड्डियों से यहां कोठियां सजें

कृषक और मजदूर हमारे तरसें दाने-दाने को,

दिनभर खून जलाते हैं वो, रोटी, वस्त्र कमाने को,

फिर भी भूखों रहते बेचारे, अधनंगे से फिरते हैं,

भूपति और पूंजीपतियों की कठिन यातना सहते हैं,

भत्ता-वेतन सांसद और मंत्रियों के बढ़ते जाते हैं,

हम निर्धन के बालक भूखे ही सो जाते हैं।


शव निकल रहा हो और शहनाइयां बजें।

दुखियों की हड्डियों से यहां कोठियां सजें।।


-मुहम्मद शुऐब एडवोकेट

7.12.09

धन्य हैं हमारी खुफिया एजेंसियां

हमारी खुफिया एजेंसियां 26 जनवरी , 15 अगस्त, 6 दिसम्बर जैसे मौकों पर व आतंकी मामलों में मीडिया के माध्यम से मालूम होता है की वो काफ़ी सक्रिय हैं और देश चलाने का सारा भार उन्ही के ऊपर हैखुफिया एजेंसियों की बातें और उनकी खुफिया सूचनाएं बराबर अखबार में पढने इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने को मिलती हैंछुटभैया नेता रोज प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है और छपने पर अखबार खरीद कर जगह-जगह किसी किसी बहाने लोगो को पढवाता रहता है और उसी तरह खुफिया एजेंसियां मीडिया में अपने समाचार प्रकाशित करवाती रहती हैं। खुफिया सूचनाओं का अखबारों में प्रकाशित होना क्या इस बात का धोतक नही है कि जान बूझ कर वह प्रकाशित करवाई जाती हैं और उन सूचनाओ में कोई गोपनीयता नही हैअक्सर विशिष्ट अवसरों से पहले तमाम तरह की कार्यवाहियां मीडिया के माध्यम से मालूम होती हैं जो समाज में सनसनी भय फैलाने का कार्य करती हैं अंत में वो सारी की सारी सूचनाएं ग़लत साबित होती हैंनागरिक उस विशिष्ट अवसर से पहले इन सूचनाओ से भयभीत रहते हैं जबकि खुफिया जानकारियों का गोपनीय रहना आवश्यक होता है और किसी घटना होने के पूर्व उन अपराधियों को पकड़ कर घटना को रोकने का कार्य होना चाहिए लेकिन हमारी खुफिया तंत्र का कार्य घटना हो जाने के पश्चात् शुरू होता हैभारतीय कानूनों के तहत सबूतों को बयानों को अंतर्गत धारा 161 सी आर पी सी के तहत केस ड़ायरी में दर्ज किया जाता हैउस केस ड़ायरी को विपक्षी अधिवक्ता देख सकता है पढ़ सकता हैछोटी से लेकर बड़ी घटनाओं तक सारे सबूतों बयानों को प्रिंट इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से जनता को बताया जाता हैइस तरह का कृत्य भी अपराध है जिसको हमारा खुफिया तंत्र पुलिस तंत्र रोज करता हैखुफिया सूचनाओ का कोई महत्त्व नही रह जाता हैइन दोनों विभागों की समीक्षा ईमानदारी से करने की जरूरत है अन्यथा इन दोनों विभागों का कोई मतलब नही रह जाएगाअगर खुफिया तंत्र इतनी छोटी सी बात को समझ पाने में असमर्थ है तो धन्य है हमारे देश की खुफिया एजेंसियां

6.12.09

कलंक दिवस है आज

6 दिसम्बर 1992 को नियोजित तरीके से अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला गया थाभारतीय संविधान के अनुसार देश धर्म निरपेक्ष है और सभी को अपना धर्म मानने उपासना करने का संवैधानिक अधिकार हैदेश के अन्दर एक छोटा सा तबका जो पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संचालित होता था और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद से संचालित होता है। साम्राज्यवादियों के इशारे पर देश कि एकता और अखंडता को कमजोर करने की नियत से यह प्रलाप करता है कि वह देश का यह स्वरूप बदल कर एक ऐसे धार्मिक राष्ट्र के रूप में तब्दील कर देना चाहता है कि जिससे वर्तमान देश का स्वरूप ही बचा रहेऐसे तत्वों ने देश के अन्दर गृहयुद्ध करवाने के लिए बाबरी मस्जिद विवाद खड़ा किया था। देश धार्मिक विवाद में फंसा रहे और उसकी प्रगति रुकी रहे जिससे देश साम्राज्यवादी ताकतों के सामने खड़ा न हो सके । इस विवाद से आज तक मुक्ति नही मिल पायी है और हम आर्थिक रूप से भी कमजोर हुए है और हमारी प्रगति बाधित हुई है ।
देश का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आया था जो चीजें जिस स्तिथि में थी उसको संविधान और कानून के दायरे में ही रखकर ही हल किया जा सकता है किंतु, 6 दिसम्बर की घटना ने देश में एक मजबूत सरकार होने का जो भ्रम था उसको तोड़ दियायदि उन्मादियों और दंगाइयों को राज्य द्वारा कहीं कहीं से संरक्षण प्राप्त होता तो यह घटना नही घटतीराज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप है जब उसकी उदारता या संलिप्प्ता के कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं तो संविधान, न्यायव्यवस्था, पुरानी विरासत सब कुछ टूटता है मिलती सिर्फ़ बर्बादी हैराजनीतिक दलों ने क्षणिक फायदे के लिए दोनों तरफ़ से आग में घी डालने का कार्य किया है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित हो सके6 दिसम्बर को इस देश में रहने वाले अधिकांश लोगो का विश्वाश टूटा था इसलिए यह दिन देश के लिए कलंक दिवस है और जो लोग शौर्य दिवस की बात करते हैं, वह लोग मुखौटाधारी हैंमुखौटाधारी इसलिए हैं कि जब जहाँ जैसा स्वार्थ आता है उसी के अनुसार वो बोलने लगते हैकभी वह कहते हैं कि बाबरी मस्जिद थी, कभी वह कहते हैं राम मन्दिरशौर्य दिवस के नाम पर जो जहर बोया गया है उसका विष कितने समय में समाप्त होगा यह कहना मुश्किल है। हजारो नीलकंठ हार जायेंगे उस जहर को समाप्त करने में। उस दिन देश हारा था, अराजक ,उन्मादी और देशद्रोही जीते थे । उन्ही का शौर्य दिवस है , हम हारे थे इसलिए कलंक दिवस है ।

5.12.09

पुलिस पर कब्ज़ा करने की नई रणनीति

टेलिकॉम कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए आबादी क्षेत्र में नियमो-उपनियमों का उल्लंघन मोबाइल टावर लगा कर रखा हैजिससे अधिकांश जनता का जीना दूभर हो गया हैटेलिकॉम कंपनियों ने लोगो की छतों पर मोबाइल टावर लगा रखे हैंमोबाइल टावर को संचालित करने के लिए बड़े-बड़े जनरेटर छत पर रखे हैंजनरेटर चलने से उत्पन्न कंपन से पड़ोसियों के मकान चिटक रहे हैंशोर से आबादी क्षेत्र में रहने वाले लोगो को काफ़ी असुविधा होती हैमोबाइल टावर क्षेत्र में तरंगो से लगातार बन रहे बादल से मानव जीवन के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा यह आने वाला समय ही बताएगामोबाइल टावर के कारण जगह-जगह विवाद उत्पन्न हो रहे हैं जिनसे निपटने के लिए टेलिकॉम कंपनियों ने पुलिस विभाग को अपने कब्जे में करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन को प्रस्ताव दिया है कि प्रदेश के 15 सौ थानों में पुलिस लाइन्स में मोबाइल टावर लगाने के लिए किराए पर दे दिए जाएँयह उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैनागरिको से विवाद होने पर पुलिस टेलिकॉम कंपनियों की तरफ़ ही होती है और यदि वह पुलिस विभाग के किरायेदार हो जाएँ तो मालिक और किरायेदार मिलकर नागरिको का जीना दूभर कर देंगेटेलिकॉम कंपनियों ने बहुत सोच समझ कर पुलिस विभाग पर कब्ज़ा करने की रणनीति अपनाई हैटेलिकॉम कंपनियां जनता से तरह तरह के लोक लुभावन वादे करती हैं जो वास्तव में अप्रत्यक्ष रूप से ठगी के कोटि अपराध होता हैएक छोटा सा बिन्दु लगा कर बहुत ही महीन शब्दों में लिखा होता है कि कुछ शर्तें लागू हैं जिनको उपभोक्ता ध्यान नही दे पाता है और ठगा जाता हैइस तरह से टेलिकॉम कंपनियां अपने अपराधों में पुलिस के नजदीक रहकर छिपाना चाहती हैं