अपनी कलम के बूते पर दूसरों का शोषण रोकने वाला विशेषतौर पर कस्बाई मीडियाकर्मी आज खुद ही सर्वाधिक शोषित है, कभी-कभी तो शोषकों(अख़बार मालिकों) की नीतियों से इस कद्र दुखी होता है कि उसे यह दुनिया ही नहीं सुहाती और अपनी जान तक दे देता है। ऐसी ही चर्चा फेसबुक पर हो रही है, जिसे यहाँ आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।
Anil Attri देश के अग्रणी अखबार समूह ने उ.प्र. पंचायत चुनाव में अपने वरिष्ठ पत्रकारों को पैसा उगाहने का जिम्मा दिया है। अखबार प्रबंधन की योजना इस चुनाव से करीब 20 से 25 करोड़ रुपए का मुनाफा कूटने की है। कल रात एक पत्रकार मित्र ने अपना दुखड़ा रोते हुए कहा कि अनिल भाई पत्रकारिता में अब यही दिन देखना बाकी था कि हमें सरपंच का चुनाव लड़ने वाले लोगों से पैसे मांगने होंगे। लेकिन यह पत्रकारिता का नया चेहरा नहीं है....जय हो.....
- Anil Attri आलोक भाई हर प्रत्याशी से 3 से 5 हजार तय किए गए हैं। औसतन हर जिले में 800 से 900 गांव हैं। हर गांव में कम से कम 4 प्रत्याशी तो तय मानिए। आप जोड़ लीजिए कितना बनता है। विज्ञापन लें लेकिन जिस प्रकार ब्यूरो चीफ और उसके भी ऊपर के स्तर के पत्रकारों को इस काम में लगाया जा रहा है वह अफसोसजनक है.
- Deep Sankhla अनिल भाई जय तो बाज़ार की बोलनी चाहिए, हमारे सामने अब दो ही विकल्प हैं, बकरा या बकरे की अम्मा।
- Anil Attri बिल्कुल सही कहा आपने अरुण भाई
- Deep Sankhla यह सब तकनीक की चका चौंध का परिणाम है , मीडिया बड़े घरानों की बपौती बन गया, कोई कम लागत से उनकी बराबरी कैसे कर सकता है ।
- Anil Attri हां, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है दीप जी....
- Deep Sankhla हम सब , चौन्ध्याये जो हैं .
- Arun KhoteIt is unfortunate that every one knows about the mechanism, process, functions and execution of other pillars of the democracy but about forth pillar (?) of democracy nobody knows. Particular common people.
We need to take up this issue on t...hree level. One to establish debate and discussion among intellectuals and peoples movements. Second to develop orientation, awareness and skill for Media Advocacy of activist level particular to the grass root level activist. Third to coordinate with the journalists who are sensitive and concern on peoples issue. - Nidhi Yadav evrything has become business whrer emotions have no place
its only profit and loss game sir! - O P Veerendra Singh चुप रहने के लिये भी और, बोलने के लिये भी केवल और केवल पैसा बोलता है . हमारा केवल दर्शक की भूमिका अदा करेंगे .... पर कब तक???
- Akhilesh Akhil बहुत ही बुरा हाल है भाई . चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा है .
- Ravish Kumar क्या करें ..अब तो सिर भी नहीं रहा जिसे शर्म से झुका दें ...
- Arun Khote रविश भाई ऐसी जरुरत नहीं है . लोग आप जैसों पैर विश्वास करते हैं और आप की वक्तिगत मज़बूरी भी जानते हैं . इस मज़बूरी के आगे रास्ता जरुर है .................
- Ram Kumar Singhअत्तरी जी ये तो बड़े अखबारों का पुराना काला चेहरा है जो अब लोकसभा ,विधानसभा चुनाव से होते हुए पंचायत चुनाव तक आ पंहुचा है ॥ हमने तो दस्तक टाइम्स के मई 2009 अंक मे आवरण कथा चुनावी मंडी मे बिकता मीडिया कुछ बड़े अखबारों की फोटो के साथ छापने की गुस्ताखी की थी जिस पर ढेर सारे लोगो की प्रातक्रिया शाबासी के रूप मे मिली थी ओर काबिले तारीफ तो ये बात थी कि उनमे से कुछ अपने भाई बंधू उन्ही अखबारों मे कार्यरत थे ॥ चिंता मत करिय जल्द ही भारत की जनता हम लोगो को गाली दे दे कर ठीक कर देगी ॥ तब इन मालिको को भी समझ मे आ जाएगा कि जिस साख के बल पर पत्रकारिता को बेच रहे है वही साख 2 कोड़ी की नहीं बचेगी ॥तब तक हम लोगो को झंडा उठाए रखना होगा ...जय हो नारद मुनि की ।
- Vijay Rana Don't help this newspaper by hiding its name. Name and Shame this merchant of news. Tell every reader around. Put on Internet, Write blogs and leave comments on every website about this newspaper. Send chain mails - one person sending 100 emails, asking everyone to send to at least to 100 other people. Lets' do it today. Now.
- Alok Kumar नाम बताइए
- Arun Khote major question is how to sensitize,make aware and involve common people on the issue. Still majority people of the country do not have access in the internet. Max internet users are urban based and stil more then 70 % people are living in the village who do not know internet. Until they will not be part of any move thing will not be change. What would be mechanism ? Other wise whole practice will be limited to the urban base middel class.
- Anil Attri@दीप जी, ओपी वीरेंद्र सिंह, अखिलेश भाई,
रवीश जी, रामकुमार, राणाजी- आप सभी ने इस गंभीर विषय पर चिंता जताई इसके लिए साधुवाद तो नहीं ही दूंगा। लेकिन इस मकड़जाल से कैसे निकला जाए इस पर विचार जरूरी हो गया है। मीडिया की हर विधा इसकी गिरफ्त में ह...ैं।
रही बात नाम बताने की तो इस हमाम ऐसा कौन बचा है जो नंगा नहीं रह गया हो। कहीं प्रबंधन तो कहीं हमारे अपने मीडियाकर्मी इसे अंजाम दे रहे हैं। सभी जानते हुए भी अनजान हैं। - Akbar Khan अपनी कलम के बूते पर दूसरों का शोषण रोकने वाला विशेषतौर पर कस्बाई मीडियाकर्मी आज खुद ही सर्वाधिक शोषित है, कभी-कभी तो शोषकों(अख़बार मालिकों) की नीतियों से इस कद्र दुखी होता हैकि उसे यह दुनिया ही नहीं सुहाती और अपनी जान तक दे देता है.