4:58 pm
kishore ghildiyal
कल से आरम्भ होने वाली भारत अफ्रीका क्रिकेट सिरीज का परिणाम देखने व जानने की इच्छा हर खेल प्रेमी को हैं जिसके लिए हमारे पास सवेरे से कई फोन भी आ चुके हैं समय अभाव के चलते अभी तक हम कुछ ज्यादा आंकलन नहीं कर सके हैं पर फिर भी अगर अंको की दृष्टी से देखे तो कल यानी ६ तारीख का दिन भारत हेतु शुभ रहेगा यदि भारत टॉस जीतता हैं तो उसे पहले बल्लेबाजी करनी चाहिए,कल गौतम गंभीर व सचिन के सितारे बहुत ही बढ़िया स्थिति दर्शा रहे हैं हो सकता है इन दोनों में से कोई एक कल बड़ा स्कोर बना ले,अगर गेंदबाजों की बात करे तो कल इशांत शर्मा कुछ विशेष कर सकते हैं ऐसा उनके सितारे दर्शा रहे हैं |वैसे सम्पूर्ण आंकलन अभी नहीं हो पाया हैं इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं दी जा सकती हैं कुल मिलकर कल का दिन भारत हेतु बढ़िया रहेगा |
9:02 am
संगीता पुरी
एक बच्चे का हंसता खिलखिलाता मुस्कराता चेहरा जहां हमें खुशियों से सराबोर करता है , उसके साथ खेलते हम खुद अपने भूले हुए बचपन को जी लेते हैं, कुछ क्षणों के लिए सारे गम को भूल जाते हैं , वहीं अतिवृद्धावस्था को झेल रहे लोगों का जीवन हमारे सामने एक भयावह सच उपस्थित करता है, जिसे देखकर हम कांप से जाते हैं। इतना ही नहीं , उनकी तनावग्रस्त बातों को सुनकर चिडचिडाहट उपस्थित पाते हैं । समय और परिस्थिति के अनुसार इन सभी जगहों पर थोडा बहुत परिवर्तन भले ही मिल जाए , पर यह सत्य है कि सभी मनुष्य बचपन से लेकर बुढापे तक के इस यथार्थ के जीवन को झेलने को मजबूर है।
अपनी अपनी परिस्थिति में उम्र के साथ सभी व्यक्ति के जीवन के अनुभव क्रमश: बढते ही जाते हैं , आगे चलकर खास खास क्षेत्रों में भी उम्र में बडे लोगों के अनुभव हमारे लिए बहुत सीख देने वाला होता है। 50 से 70 वर्ष की उम्र तक अपने से बडों की सीख के महत्वपूर्ण होने से इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इस उम्र के लोगों के अनुभव से लाभ उठाते हुए उनकी हर बात में से कुछ न कुछ सीखने की प्रवृत्ति व्यक्ति को विकसित करनी चाहिए । पर जब वे स्वयं 50 वर्ष के हो जाते हैं , तो बडों के समान उनके विचारों का भी पूरा महत्व हो जाता है , हां 60 वर्ष की उम्र तक के व्यक्ति से उन्हें कुछ सीख अवश्य लेनी चाहिए। पर 60 वर्ष की उम्र के बाद धर्म , न्याय आदि गुणों की प्रधानता उनमें दिख सकती है , पर सांसारिक मामलों की सलाह लेने लायक वे नहीं होते हैं,
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4:13 pm
संगीता पुरी
इस दुनिया में आने के बाद हमारी इच्छा हो या न हो , हम अपने काल , स्थान और परिस्थिति के अनुसार स्वयमेव काम करने को बाध्य होते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं , अपने काल , स्थान और परिस्थिति के अनुरूप ही हमें फल प्राप्त करने की लालसा भी होती है। पर हमेशा अपने मन के अनुरूप ही प्राप्ति नहीं हो पाती , जीवन का कोई पक्ष बहुत मनोनुकूल होता है , तो कोई पक्ष हमें समझौता करने को मजबूर भी करता रहता है। पर यही जीवन है , इसे मानते हुए , जीवन के लंबे अंतराल में कभी थोडा अधिक , तो कभी थोडा कम पाकर भी हम अपने जीवन से लगभग संतुष्ट ही रहते हैं। यदि संतुष्ट न भी हों , तो आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इतनी भागदौड करनी पडती है और हमारे पास समय की इतनी कमी होती है कि तनाव झेलने का प्रश्न ही नहीं उपस्थित होता। पूरा आलेख पढने के लिए
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5:18 pm
संगीता पुरी
इसकी पहली कडी को लिखने के बाद दूसरे कार्यों में व्यस्तता ऐसी बढी कि आगे लिखना संभव ही न पाया। 2012 दिसंबर को दुनिया के समाप्त होने के पक्ष में जो सबसे बडी दलील दी जा रही है , वो इस वक्त माया कैलेण्डर का समाप्त होना है। माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी , इस सभ्यता के कुछ अवशेष खोजकर्ताओं ने भी ढूंढे हैं। माना जाता है कि माया सभ्यता के लोगों को गणित, ज्योतिष और लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल थी। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलिंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। इसका कैलिंडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है, जो बक्तूनों में बंटा है। इस कैलिंडर के हिसाब से 394 साल का एक बक्तून होता है और पूरा कैलिंडर 13 बक्तूनों में बंटा है, जो 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है। इस आलेख को पूरा पढने के लिए यहां क्लिक करें !!