3:22 pm
sureda
इस जिले के गावं निडाना में चल रही खेत पाठशाला में आज महिलाएं, डिम्पल के खेत में कपास के कीड़ों की व्यापक पैमाने पर हुई मौत देख कर हैरान रह गई। डिम्पल की सास से पुछताछ करने पर मालूम हुआ कि तीन दिन पहले कपास के इस खेत में विनोद ने जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. आदि रासायनिक उर्वरकों का मिश्रित घोल बना कर स्प्रे किया था। यह घोल 5.5 प्रतिशत गाढ़ा था। इसका मतलब 100 लिटर पानी में जिंक की मात्रा आधा कि.ग्रा., यूरिया की मात्रा ढ़ाई कि.ग्रा.व डी.ए.पी. की मात्रा भी ढ़ाई कि.ग्रा. थी। पोषक तत्वों के इस घोल ने कपास की फसल में रस चूसकर हानि पहूँचाने वाले हरा-तेला, सफेद-मक्खी, चुरड़ा व मिलीबग जैसे छोटे-छोटे कीटों को लगभग साफ कर डाला तथा स्लेटी-भूंड, टिड्डे, भूरी पुष्पक बीटल व तेलन जैसे चर्वक कीटों को सुस्त कर दिया। इस नजारे को देखकर कृषि विज्ञान केन्द्र, पिंडारा से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. यशपाल मलिक व डा. आर.डी. कौशिक हैरान रह गये। उन्होने मौके पर ही खेत में घुम कर काफी सारे पौधों पर कीटों का सर्वेक्षण व निरिक्षण किया। हरे तेले, सफेद मक्खी, चुरड़ा व मिलीबग की लाशें देखी। इस तथ्य की गहराई से जांच पड़ताल की। डा.आर.डी.कौशिक ने कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में प्रयोगों द्वारा सुस्थापित प्रस्थापनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि पौधे अपने पत्तों द्वारा फास्फोरस नामक तत्व को ग्रहण नही कर सकते। |
डा. यशपाल-कांग्रेस घास के खतरे। |
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घोल के स्प्रे से मरणासन-हरा तेला। |
इस मैदानी हकीकत पर डा. कौशिक की यह प्रतिक्रिया सुन कर निडाना महिला पाठशाला की सबसे बुजर्ग शिक्षु नन्ही देवी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए फरमाया कि आम के आम व गुठ्ठलियों के दाम वाली कहावत को इस स्प्रे ने सच कर दिखाया, डा. साहब। इब हाम नै इस बात तै के लेना-देना अक् पौधे इस थारे फास्फोरस नै पत्ता तै चूसै अक् जड़ा तै। |
घोल के स्प्रे से सुस्त टिड्डा। |
जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव (पौधों के लिये पोषण व कीड़ों के लिये जहर) की जांच पड़ताल निडाना के पुरुष किसान पहले भी कर चुके हैं पर महिलाओं के लिये इस घोल के दोहरे प्रभाव देखने का यह पहला अवसर था। |
मे-मक्खी। |
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पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक। |
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सांठी वाली सूंडी। |
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सांठी वाली सूंडी का पतंग |
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घोल के स्प्रे से सुस्त-भूरी पुष्पक बीटल। |
डा.यशपाल मलिक व डा. आर.डी.कौशिक ने जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव की इस नई बात को किसी ना किसी वर्कशाप में बहस के लिये रखने का वायदा किया। इसके बाद महिलाओं के सभी समूहों ने डा. कमल सैनी के नेतृत्व में कपास के इस खेत से आज की अपनी कीटों की गणना, गुणा व भाग द्वारा विभिन्न कीटों के लिये आर्थिक स्तर निकाले तथा सबके सामने अपनी-अपनी प्रस्तुती दी। सभी को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि इस कपास के खेत में हानिकारक कीटों की संख्या सिर्फ ना का सिर फोड़ने भर वाली है। इन कीटों में से कोई भी कीट हानि पहुँचाने की स्थिति में नही है। विनोद की माँ ने चहकते हुए बताया कि इस खेत में कपास की बिजाई से लेकर अब तक किसी कीटनाशक के स्प्रे की जरुरत नही पड़ी है। यहाँ तो मांसाहारी कीटों ने ही कीटनाशकों वाला काम कर दिया। ऊपर से परसों किये गए उर्वरकों के इस मिश्रित घोल ने तो सोने पर सुहागा कर दिया। नए कीड़ों के तौर पर महिलाओं ने आज के इस सत्र में कपास के पौधे पर पत्ते की निचली सतह पर पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक पकड़े। राजवंती के ग्रुप ने एक पौधे पर मे-फ्लाई का प्रौढ़ देखा। पड़ौस के खेत में सांठी वाली सूंडी व इसके पतंगे भी महिलाएं पकड़ कर लाई। इस सूंडी के बारे में अगले सत्र में विस्तार से अध्यन करने पर सभी की रजामंदी हुई।सत्र के अंत में समय की सिमाओं को ध्यान में रखते हुए, डा. यशपाल मलिक ने "कांग्रेस घास - नुक्शान व नियंत्रण" पर सारगर्भीत व्याखान दिया जिसे उपस्थित जनों ने पूरे ध्यान से सुना।
7:09 pm
sureda
चितंग नहर की गोद में बसा है, जिला जींद का राजपुरा गाँव। जी हाँ। वही चितंग जिसे कभी फिरोज़ साह तुगलक ने बनवाया था। नहरी पानी की उपलब्धता का किसानों की सम्पनता से रिश्ता चोली दामन वाला होता है। इसीलिए तो पुराने समय से ही इस इलाका के किसानों को चितंग के चादरे वाले लोग कहा जाता है। यह चादरा, यहाँ के किसानों की समृद्धि का प्रतीक था। अब इस गाँव में किसानों के कन्धों पर यह चादरा तो कहीं नजर नहीं आता। पर किसानां का ब्यौंत अर् स्याणपत आज भी दूर से ही नजर आती है। प्रकृति के खेल देखो, इस गाँव के जाये नै तो हरियाणा में राज कर राख्या सै जबकि इस गाँव से निकलने वाली सभी सड़कों के किनारों पर एक अमेरिका के जाये का साम्राज्य है। मिर्चपुर को जाने वाली सड़क पर भी हम इस महानुभाव के दर्शन किए बगैर काले के खेत में नहीं पहुँच सकते। यहाँ सड़क के किनारे ही बिजली के ट्यूबवैल का कोठडा है, जामुन व जमोवै के पेड़ हैं। इन्ही पेड़ों में से एक की गहरी छाया में खेत पाठशाला की शुरुवात हो रही है। दिन है 5 जून, 2008 का, बार है वीरवार व समय है क़लेवार का। पाठशाला के छात्रों के रूप में जहाँ एक तरफ़ किसान यूनियन की झलां में को लिकडे हुए महेंद्र, प्रकाश, धर्मपाल व भू0 पु0 सरपंच बलवान जिसे साकटे किसान थे वहीं बाबु के भारी वजूद तले दबे शरीफ व शरमाऊ अजमेर जिसे युवा किसान भी थे। भैंसों के पुन्ज़ड ठा-ठा कै दूध का अंदाजा लाने वाले भीरे बरगे किसान भी थे। विभाग कि तरफ़ से कृषि विकास अधिकारी व खंड अधिकारी, दोनों कोहलै म्हं के सांगवान थे। दिन के ग्यारह बजे सी, एक छैल-छींट युवा किसान ने अपनी हीरो-होंडा वहाँ आकर रोकी। मिलीबग से लथपथ कांग्रेस घास के दो पौधें सबके बीच फेंकते हुए बोला,"थाम आडै कैम्प लाए जावो। उडे इस बीमारी नै मेरी बाडी का नाश कर दिया। "
कई जनें एक स्वर में विशेषज्ञों की तरह टूट कर पड़े, "कांग्रेस घास नै उखाड़ कर मिलीबग सम्मेत मिट्टी में दबा दे। बांस रहेगा, ना बाँसुरी।"
या सुन कै खूंटा ठोक पै भी चुप नहीं रहा गया, "दोनों को मिट्टी में क्यों दबा दे?"
इस खींचतान में एंडी विशेषज्ञों की एक नई सलाह सामने आई, "कांग्रेस घास नै उखाड़ कर मिलीबग सम्मेत जलाओ और फेर इसने मिट्टी में दाबो।"
इब भी खूंटा ठोक की सवालिया कड़छी(?) यूँ ही उपर देख, इन विशेषज्ञों से रहा नहीं गया, "तू तो सदा ऐ उल्टे बीन्डे की तरफ़ तै पकड़ा करै!"
"कांग्रेस घास अर इस मिलीबग के साथ कुछ भी करने से पहले, हमें इस घास व कीड़े की परिस्थितियों का पूर्वावलोकन व बारीकी से निरिक्षण करना चाहिए।" - खूंटा ठोक नै भी बात घुमाई।
घाम भी लहू चलान आला था अर टेम भी भला ना था। सिकर दोपहरी। फेर भी आज सभी नै सामूहिक रूप से लिख पाडण का कड़ा फैसला ले लिया। तीन समूहों में बंट कर तीन जगह पर कांग्रेस घास पर मिलीबग का अध्यन शुरू किया। सवा घंटा किसी भी ग्रुप में किसी को भी मिलीबग व चिट्टियों के सिवाय कुछ नज़र नहीं आया। फ़िर अचानक धर्मपाल चिल्लाया, "देखियो, यू तो मिलीबग कोन्या दीखता। इसके ये सफ़ेद मोम्मिया तंतु तो मिलीबग के मुकाबले बहुत लंबे सै। इसकी चाल देखो। मिलीबग तो सात जन्म में भी इतना तेज़ कोन्या चलै। यु के? यु तो थोड़ा सा करेलदें ही गंजा होगा।" मुहँ आगे तै ढाट्ठा हटा कर, महेंद्र थोड़ा सा शर्माते हुए कहने लगा, "मरेब्ट्टे का एक आध पै तो यु उल्टा बींडा भी कसुत फिट बैठ जा सै। "
भीरे नै टेक में टेक मिलाई, "खूंटा ठोकू पौधानाथ जी, इब क्यूँ जमा मोनी बाबा बनगे। कुछ तो बताओ।"
" के बोलू भीरे, उतेजना अर् आश्चर्य राहु केतु बन मेरे दिमाग पै बैठे सै।", खूंटा ठोक नै धीरे धीरे बात सरकाना शुरू किया। "थाम नै बेरया सै यु के ढुँढ दिया। यु छोटा सा कीड़ा तो Cryptolaemus बीटल सै। थोक के भाव मिलीबग को खाने वाला। इसे आस्ट्रेलियन बीटल भी कहते है। पैदा होने से लेकर मरने तक यह कीड़ा, 2300 से 5000 तक मिलीबग खा जाता है। यु देखो इसका प्रौढ रहा। सन्तरी से सिर आला काला मिराड। बस तीन-चारमिलीमीटर लंबा। इसकी मादा आगै की होण लाग रही सै।या चार सौ के आस-पास अंडे देगी। या अपने अंडे मिलीबगके अण्डों में रखेगी ताकि इसके नवजात शिशुवों को पैदाहोते ही भर पेट खाना मिलीबग के बच्चों के रूप में मिलजाए। प्रकृति के खेल देखो - कांग्रेस घास मानव के लिए प्रलयकारी तथा मिलीबग के लिए पालनहार। मिलीबग कपास के लिए प्रलयकारी तथा क्रिप्टोलैमस बीटल के लिए पालनहार। " और इस तरहसे राजपुरा,रूपगढ व निडाना के किसानो ने यहाँ की परिस्थितियों में कांग्रेस घास पर सात किस्म की मांसाहारीबीटल्स ढूंड ली जो मिलीबग का सफाया करती है। उनकी जानकारी अगले अंकों में।