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20.1.11

चलना होगा हर तौर मुझे

सोचता तो हूं
मैं भी
पल भर
ठहर कर
सुसता लूं
पर तभी याद आता है
निहारती होगी
कहीं सांझ, कहीं भौर मुझे

कहीं प्रियतम की प्रतीक्षा
कहीं पीडा के पलों से मुक्ती
कहीं स्वपनों का पल्वन
कहीं दिन भर की थकन
कहीं जाडे की ठिठुरन
कहीं


डैने फ़ैलाये फ़डफ़डा रहा होगा
रुक नहीं सकता
चलना होगा हर तौर मुझे

13.2.10

"ब्रेकिंग न्यूज़"




  • पुणे में आतंकी हमला
  • धमाके में दस की मौत।
  • करीब चालीस ज़ख़मी।
  • पुणे की जर्मन बेकरी में हुआ धमाका।
  • बेकरी के पास एक लावारिस बैग मिला।
  • दिल को दहला देनेवाली रोंगटे ख़डे कर देनेवाली ऐसी बडी ख़बर,,,! हमारे जीवन के साथ-साथ हमारे आस-पास के जीवों को भी हिला कर रख देती है।
  • यहाँ आतंकवाद के सामने एक ज़ुट होकर मुकाबला करने की ज़रूरत है ।
    आपस में उंच-नीच, धर्म-मज़हब,या फ़िर...
    नस्लवाद या राज्यवाद और "वेलेंटाईन डे" के विरोध में फ़िर अपने आप को "महान" बताने की दौड में...

    ...... कहीं हम सब ये तो नहिं भूल गये हैं कि हमारे देश को ज़रुरत है सौहार्द-एकता-अखंडता की।


    31.12.09

    साल २००९ जा रहा.....!!


    २१वीं सदी के आखिरी दशक की आखिरी शाम. ये साल बहुतों के लिए बहुत अच्छा रहा होगा तो बहुतों के लिए बहुत बुरा. कुछ लोगों के लिए ये साल मिलाजुला रहा होगा. सभी अपने - अपने तरीके से बीत रहे साल २००९ का मूल्यांकन कर रहे हैं. भारत का आम आदमी इस साल जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है उनमें क्रमशः महंगाई, मंदी, महामारी, बेरोज़गारी, अव्यवस्था आदि.
    आज मैंने भी इस गुजर रहे साल का अपने तरीके से मूल्यांकन करने बैठा तो विचार गद्द की जगह पद्द के रूप में निकल पड़े. इन्हीं विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ........

    साल २००९ जा रहा है......!!


    अमीरों को और अमीरी देकर
    गरीबों को और ग़रीबी देकर
    जन्मों से जलती जनता को 
    महंगाई की ज्वाला देकर
    साल २००९ जा रहा है.....


    अपनों से दूरी बढ़ाकर
    नाते, रिश्तेदारी छुड़ाकर
    मोबाइल, इन्टरनेट का 
    जुआरी बनाकर
    अतिमहत्वकान्क्षाओं का 
    व्यापारी बनाकर
    ईर्ष्या, द्वेष, घृणा में 
    अपनों की सुपारी दिलाकर
    निर्दोषों, मासूमों, बेवाओं की 
    चित्कार देकर
    साल २००९ जा रहा.....


    नेताओं की 
    मनमानी देकर
    झूठे-मूठे 
    दानी देकर
    अभिनेताओं की 
    नादानी देकर
    पुलिस प्रशासन की
    नाकामी देकर
    साल २००९ जा रहा.....


    अंधियारा ताल ठोंककर
    उजियारा सिकुड़ सिकुड़कर 
    भ्रष्टाचार सीना चौड़ाकर
    ईमानदार चिमुड़ चिमुड़कर
    अर्थहीन सच्चाई देकर
    बेमतलब हिनाई देकर
    झूठी गवाही देकर
    साल २००९ जा रहा.....


    धरती के बाशिंदों को 
    जीवन के साजिंदों को
    ईश्वर के कारिंदों को
    गगन के परिंदों को
    प्रकृति के दरिंदों को
    सूखा, भूखा और तबाही देकर
    साल २००९ जा रहा.....


    कुछ सवाल पैदाकर 
    कुछ बवाल पैदाकर
    हल नए ढूंढने को
    पल नए ढूंढने को
    कल नए गढ़ने को
    पथ नए चढ़ने को
    एक अनसुलझा सा काम देकर 
    साल २००९ जा रहा.....

    - प्रबल प्रताप सिंह

    10.9.09

    ....क्यों देर हुई साजन...


    क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?

    क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।

    तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?

    अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।

    उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।

    तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।

    बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।

    कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।

    थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,

    क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।

    अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।

    अब ख़ैर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।

    9.9.09

    मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।


    देखो तो एक सवाल हूँ
    समझो तो , मैं ही जवाब हूँ ।।

    उलझी हुई,इस ज़िन्दगी में।
    सुलझा हुआ-सा तार हूँ।।

    बैठे है दूर तुमसे , गम करो
    मैं ही तो बस, तेरे पास हूँ।।

    जज्वात के समन्दर में दुबे है।
    पर मैं ही , उगता हुआ आफ़ताब हूँ

    रोशनी से भर गया सारा समा
    पर मैं तो, खुद ही में जलता हुआ चिराग हूँ ।।

    जैसे भी ज़िन्दगी है, दुश्मन तो नही है।
    तन्हा-सी हूँ मगर, मैं इसकी सच्ची यार हूँ।।

    जलते हुए जज्वात , आंखो से बुझेंगे
    बुझ कर भी बुझी, मैं ऐसी आग हूँ।।

    कैसे तुम्हे बता दें , तू ज़िन्दगी है मेरी
    अच्छी या बुरी जैसे भी, मैं घर की लाज हूँ ।।

    कुछ रंग तो दिखाएगी , जो चल रहा है अब।
    खामोशी के लबो पर छिड़ा , में वक्त का मीठा राग हूँ।।

    कलकल-सी वह चली, पर्वत को तोड़ कर
    मैं कैसे भूल जाऊ, मैं बस तेरा प्यार हूँ।।

    भुजंग जैसे लिपटे है , चंदन के पेड़ पर
    मजबूरियों में लिपटा हुआ , तेरा ख्बाव हूँ।।

    चुप हूँ मगर , में कोई पत्थर तो नही हूँ।
    जो तुम कह सके, मैं वो ही बात हूँ

    बस भी कर, के तू मुझको याद
    वह सकेगा जो, में ऐसा आव हूँ।।

    मेहदी बारातै सिन्दूर चाहिए
    मान लिया हमने जब तुम ने कह दिया , मैं तेरा सुहाग हूँ।।

    खुद को समझना, कभी तन्हा और अकेला।
    ज़िन्दगी के हर कदम पर , मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।

    8.9.09

    ......उसे तलाश करो.....






    सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो।.
    किनारे छूटा है साहिल, उसे तलाश करो।.

    था अपना साया भी इस वक़्त साथ छोड़ गया।
    कहॉ वो हो गया ओझल उसे तलाश करो।

    ना ही ज़ख़म,ना तो है खून फिर भी मार गया।
    कहॉ छुपा है वो कातिल, उसे तलाश करो।

    भूला चला है वक़्त जिन्दगी के लम्हों को।
    मगर धड़कता है क्यों दिल? उसे तलाश करो।

    ये कारवॉ है तलाशी का, लो तलाश करें।
    लो हम भी हो गये शामिल, उसे तलाश करो।

    वो बोले हम है गुनाहगार उनके साये के।
    कहां पे रह गये ग़ाफिल उसे तलाश करो।

    लूटा दिया था हरेक वक़्त उनके साये में।
    मगर नहिं है क्यों क़ाबिल, उसे तलाश करो।

    समझ रहे थे ज़माने में हम भी कामिल हैं।
    हमारा खयाल था बातिल उसे तलाश करो।

    अय “राज” खूब तलाशी में जुट गये तुम भी।
    बताओ क्या हुआ हॉसिल? ,उसे तलाश करो।

    1.9.09

    ....दर्पण....



    जाने कैसा ये बंधन है?

    उजला तन और मैला मन है।


    एक हाथ से दान वो देता।

    दूजे से क्यों जाने लेता।


    रहता बन के दोस्त सभी का।

    पर ये तो उनका दुश्मन है।


    इन्सानो के भेष में रहता।

    शैतानों से काम वो करता।


    बन के रहता देव सभी का।

    पर ना ये दानव से कम है।


    चाहे कितने भेष बनाये।

    चाहे कितने भेद छुपाये।


    राज़ उसके चेहरे में क्या है?

    देखो सच कहता दर्पण है।

    28.8.09

    दंगा:


    एक चौराहा था , सुन्दर सा चौराहा ,,
    चहकता हुआ चौराहा , महकता हुआ चौराहा ,,,
    वहा उड़ती हुई पतंगे थी , घूमती हुई फिरंगे थी ....
    सजती हुई मालाये थी,, लरजती हुई बालाये थी ,,,
    चमकते चमड़े की दूकान थी,महकते केबडे की भी शान थी ,,
    रफीक टेलर भी वही था , और हरी सेलर भी वही था ,,,
    वहा पूरा हिन्दुस्तान था , हर घर और मकान था ,,
    मेल मिलाप और भाई चारा था , कोई नहीं बेचारा था ,,
    पर एक चीज वहा नहीं थी , जो होना ही सही थी ,,
    वहा नहीं था तो पुरम ,पुर और विहार नहीं था ...
    वहा नहीं था तो दालान ,वालान और मारान नहीं था,,,
    गली कासिम जान भी नहीं थी, और गली सीता राम भी नहीं थी ,,,,
    वहा हिन्दू भी नहीं था , वहा मुसलमान भी नहीं था ,,
    था तो केवल हिन्दुस्तान था , था तो केवल भारत महान था ,,
    फिर एक आवाज आई मैं हिन्दू हूँ ,,
    उसकी प्रतिध्वनी गूंजी मैं मुसलमान हूँ ,,,
    और उस लय का गला घुट गया ,जो कह रही थी मैं हिन्दुस्तान हूँ ,,
    सुनते ही सन्नाटा पसर गया ,,
    उड़ते उड़ते हरी पतंग ने लाल पतंग मजहब पूछ लिया ,,
    हरी ने रफीक के सीने में चाकू मार दिया ,,
    सब्जियों में भी दंगा हो गया , अपना पन सरेआम नंगा हो गया ,,
    बैगन ने आलू के कान में फुसफुसाया ,,मियां प्याज को पल्ले लगाओ ,,
    कद्दू ने कुछ जायदा ही फुर्ती दिखाई,प्याज को लुढ़का दिया,,,
    और वो पहिये के नीचे गया ,,
    लहसुन ने मिर्ची को मसल दिया , क्यों की वो हिन्दू थी ,,
    अब तो वहा पर कोहराम था ,क्यूँ की दंगा सरेआम था ,,
    एक दूकान दूसरी दूकान से धर्म पूछ रही थी ,,
    एक नुक्कड़ दूसरे नुक्कड़ से धर्म पूछ रहा था ,,
    अब वहा पे वालान थे ,अब वहा पे मारान थे ,,
    अब वहा पे पुरम था , अब वहा पे विहार भी था ,,
    अगर कुछ नहीं था तो ,,
    वहा पे हिन्दुस्तान नहीं था , मेरा भारत महान नहीं था ,,
    अब वहा पर केवल हिन्दू था और मुसलमान था ,,
    और वीरान ही वीरान था ,,
    तभी किसी ने कहकहा लगाया और ताली बजाई ,,,
    फिर उसने लम्बी साँस ली और ली अंगडाई,,
    वो मुस्कराया क्यूँ की अब उसके मन का जहान था,,
    फिर वह धीरे से बुदबुदाया मैं हिन्दू हूँ ,,
    फिर वह धीरे से फुफुसाया , मैं मुसलमान हूँ ,,
    और चल दिया अगले चौराहे पर,,
    हिन्दुस्तान को हिन्दू और मुसलमान बनाने के लिए ,,
    क्यों की यही तो उसका धर्म है और कर्म भी ,,
    आखिर नेता जो है .....

    27.8.09

    ......जब वो गाती है....


    झुमती गाती और गुनगुनाती ग़ज़ल,

    गीत कोई सुहाने सुनाती ग़ज़ल

    ज़िंदगी से हमें है मिलाती ग़ज़ल,

    उसके अशआर में एक ईनाम है,

    उसके हर शेर में एक पैगाम है।

    सबको हर मोड़ पे ले के जाती ग़ज़ल।

    उसको ख़िलवत मिले या मिले अंजुमन।

    उसको ख़िरमन मिले या मिले फिर चमन,

    वो बहारों को फिर है ख़िलाती ग़ज़ल।

    वो इबारत कभी, वो इशारत कभी।

    वो शरारत कभी , वो करामत कभी।

    हर तरहाँ के समाँ में समाती ग़ज़ल।

    वो न मोहताज है, वो न मग़रूर है।

    वो तो हर ग़म-खुशी से ही भरपूर है।

    हर मिज़ाजे सुख़न को जगाती ग़ज़ल।

    वो मोहब्बत के प्यारों की है आरज़ू।

    प्यार के दो दिवानों की है जुस्तजु।

    हो विसाले मोहब्बत पिलाती ग़ज़ल।

    वो कभी पासबाँ, वो कभी राजदाँ।

    उसके पहलु में छाया है सारा जहां।

    लोरियों में भी आके सुनाती ग़ज़ल।

    वो कभी ग़मज़दा वो कभी है ख़फा।

    वक़्त के मोड़ पर वो बदलती अदा।

    कुछ तरानों से हर ग़म भुलाती ग़ज़ल।

    वो तो ख़ुद प्यास है फ़िर भी वो आस है।

    प्यासी धरती पे मानो वो बरसात है।

    अपनी बुंदोँ से शीद्दत बुझाती ग़ज़ल।

    उसमें आवाज़ है उसमें अंदाज़ है।

    इसलिये तो दीवानी हुई राज़ है।

    जब वो गाती है तब मुस्कुराती ग़ज़ल।

    25.8.09

    ....तेरी यादें.....


    मैं चुराकर लाई हुं तेरी वो तस्वीर जो हमारे साथ तूने खींचवाई थी मेरे परदेस जाने पर।

    में चुराकर लाई हुं तेरे हाथों के वो रुमाल जिससे तूं अपना चहेरा पोंछा करती थी।

    मैं चुराकर लाई हुं वो तेरे कपडे जो तुं पहना करती थी।

    मैं चुराकर लाई हुं पानी का वो प्याला, जो तु हम सब से अलग छूपाए रख़ती थी।

    मैं चुराकर लाई हुं वो बिस्तर, जिस पर तूं सोया करती थी।

    मैं चुराकर लाई हुं कुछ रुपये जिस पर तेरे पान ख़ाई उँगलीयों के नशाँ हैं।

    मैं चुराकर लाई हुं तेरे सुफ़ेद बाल, जिससे मैं तेरी चोटी बनाया करती थी।

    जी चाहता है उन सब चीज़ों को चुरा लाउं जिस जिस को तेरी उँगलीयों ने छुआ है।

    हर दिवार, तेरे बोये हुए पौधे,तेरी तसबीह , तेरे सज़दे,तेरे ख़्वाब,तेरी दवाई, तेरी रज़ाई।

    यहां तक की तेरी कलाई से उतारी गई वो, सुहागन चुडीयाँ, चुरा लाई हुं “माँ”।

    घर आकर आईने के सामने अपने को तेरे कपडों में देख़ा तो,

    मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी?

    मैं तुज में तो समाई हुई हुं।

    “तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”

    मैं तेरे साथ - साथ हूँ.........

    देखो तो एक सवाल हूँ
    समझो तो , मैं ही जवाब हूँ ।।
     
    उलझी हुई,इस ज़िन्दगी में। 
    सुलझा हुआ-सा तार हूँ।।
     
    बैठे है दूर तुमसे , गम करो
    मैं ही तो बस, तेरे पास हूँ।।
     
    जज्वात के समन्दर में दुबे है। 
    पर मैं ही , उगता हुआ आफ़ताब हूँ
     
    रोशनी से भर गया सारा समा
    पर मैं तो, खुद ही में जलता हुआ चिराग हूँ ।।
     
    जैसे भी ज़िन्दगी है, दुश्मन तो नही है। 
    तन्हा-सी हूँ मगर, मैं इसकी सच्ची यार हूँ।।
     
    जलते हुए जज्वात , आंखो से बुझेंगे  
    बुझ कर भी बुझी, मैं ऐसी आग हूँ।।
     
    कैसे तुम्हे बता दें , तू ज़िन्दगी है मेरी
    अच्छी या बुरी जैसे भी, मैं घर की लाज हूँ ।।
     
    कुछ रंग तो दिखाएगी , जो चल रहा है अब।
    खामोशी के लबो पर छिड़ा , में वक्त का मीठा राग हूँ।।
     
    कलकल-सी  वह चली, पर्वत को तोड़ कर
    मैं कैसे भूल जाऊ, मैं बस तेरा प्यार हूँ।।
     
    भुजंग जैसे लिपटे है , चंदन के पेड़ पर
    मजबूरियों में लिपटा हुआ , तेरा ख्बाव हूँ।।
     
    चुप हूँ मगर , में कोई पत्थर तो नही हूँ।
    जो तुम कह सके, मैं वो ही बात हूँ
     
    बस भी कर, के तू मुझको याद
    वह सकेगा जो, में ऐसा आव हूँ।।
     
    मेहदी बारातै सिन्दूर चाहिए
    मान लिया हमने जब तुम ने कह दिया , मैं तेरा सुहाग हूँ।।
     
    खुद को समझनाकभी तन्हा और अकेला। 
    ज़िन्दगी के हर कदम पर , मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।    

    19.8.09

    मुझे आज मेरा वतन याद आया...



    मेरे ख्वाब में आके किसने जगाया।

    मुझे आज मेरा वतन याद आया।

    जो भुले थे वो आज फिर याद आया।

    मुझे आज म्रेरा वतन याद आया।


    वो गांवों के खेतों के पीपल के नीचे।

    वो नदिया किनारे के मंदिर के पीछे।

    वो खोया हुआ अपनापन याद आया।

    मुझे आज मेरा वतन याद आया।


    वो सखियोंसहेली की बातें थीं न्यारी।

    वो बहना की छोटी-सी गुडिया जो प्यारी।

    वो बचपन की यादों ने फिर से सताया।

    मुझे आज मेरा वतन याद आया।


    वो भेडों की, ऊंटों की लंबी कतारें।

    वो चरवाहों की पीछे आती पुकारें।

    कोई बंसरी की जो धुन छेड आया।

    मुझे आज मेरा वतन याद आया।


    वो बाबुल का दहलीज पे आके रूकना।

    वो खिड़की के पीछे से भैया का तकना।

    जुदाई की घड़ियों ने फिर से रुलाया।

    मुझे आज मेरा वतन याद आया।


    मेरे देश से आती ठंडी हवाओ!

    मुझे राग ऐसा तो कोई सुनाओ।

    जो बचपन में था अपनी मां ने सुनाया।

    मुझे आज मेरा वतन याद आया।

    18.8.09

    मुस्कुराता तूं चलाजा


    आदमी है, आदमी से मिलता-मिलाता तू चलाजा।

    गीत कोई प्यार के बस गुनगुनाता तू चलाजा।


    गर तुझे अँधियारा राहों में मिले तो याद रख़,

    हर जगह दीपक उजाले के जलाता तू चलाजा।


    जो तुझे चुभ जायें काँटे, राह में हो बेखबर,

    अपने हाथों से हटा कर, गुल बिछाता तू चलाजा।


    सामने तेरे ख़डी है जिंदगानी देख ले,

    बीती यादों को सदा दिल से मिटाता तू चलाजा।


    राज़ हम आये हैं दुनिया में ज़ीने के लिये।

    हँस के जी ले प्यार से और मुस्कुराता तू चलाजा।

    17.8.09

    ये प्रेम है ......!!

    ये प्रेम है ......!!

    दुख तो हर हाल में देगा।

    तेरे साथ होने पर भी .....

    तेरे जाने के मौसम मे भी!

    सोचती हूँ ......!!

    दुखी होना है अगर हर हाल में......

    तो तेरे साथ में रह कर दुखी होना बेहतर है

    रोने को एक कन्धा तो होगा ......

    दुश्मन ही सही.... अपना-सा एक बन्दा तो होगा !!

    ये प्रेम है .........!!!

    दुख तो हर हाल में देगा।

    दुख से सुख की अनुभूती है।

    प्रेम बिन ज़िन्दगी अधूरी है

    प्रेम से सारी खुशिया हैं।

    प्रेम बिन ज़िन्दगी सूखी भूमि है।

    प्रेम है तो सुन्दरता है।

    अनुभूती है

    खुशियाँ है

    दुख है

    आंसू हैं

    संवेदना है

    सारे रिश्ते नाते हैं

    जो अपनापन समझता है !!

    ये प्रेम है .......

    दुख तो हर हाल में देगा !!

    दुख तो हर हाल में देगा !!!

    तूं लेजा ना लेजा मुझे...


    मैं तो आऊंगी तेरी गली। चाहे कोई कहे पग़ली।

    तू लेजा ना लेजा मुझे(2)

    वादिओं में बसेरा मेरा, तुझसे हो सवेरा मेरा।(2)

    मैं बनके उडू तितली…

    तू लेजा ना लेजा मुझे।

    तुझसे हो उजाला मेरा,तू ही है सहारा मेरा।(2)

    तुझसे मैं बनी बिजली…

    तू लेजा ना लेजा मुझे। मै तो आऊंगी…

    ये बहारें तुम्हीं से ही हैं ,ये नज़ारे तुम्ही से ही हैं(2)

    चाहे फूल हो चाहे कलि…

    तू लेजा ना लेजा मुझे।

    झरमर-झर जो सावन मिले,सौंधी-सौंधी ख़ुशबू खिले।(2)

    मैं बरसुं बनके बिजली…

    तू लेजा ना लेजा मुझे।

    14.8.09

    फिर आज तिरंगा छाया है।



    देख़ो भारतवालो देख़ो, फ़िर आज़ तिरंगा छाया है।

    है पर्व देश का आज यहाँ, ये याद दिलाने आया है।

    रंग है केसरीया क्रांति का, और सफ़ेद है जो शांति का।

    हरियाला रंग है हराभरा, पैग़ाम देश की उन्नति का।

    अशोकचक्र ने भारत को प्रगति करना जो सिखाया है।

    देख़ो भारतवालो देख़ो

    वो वीर सिपाही होते हैं,सरहद पे शहीदी पाते है।

    वो भारत के शुरवीर शहीद सम्मान राष्ट्र का पाते है।

    वो बडे नसीबों वाले हैं, मरने पर जिन्हें उढाया है।

    देख़ो भारतवालो देख़ो।

    हम वादा करते है हरदम, सम्मान करेंगे इसका हम।

    चाहे जो जान चली जाये, पीछे ना हटेंगे अपने क़दम।

    जन-गण-मन गीत सभी ने फ़िर एक ऊंचे सुर में गाया है।

    देख़ो भारतवालो देख़ो।

    कश्मीर से कन्याकुमारी तक, बंगाल से कच्छ की ख़ाडी तक।

    उत्तर से दक्षिण, पश्चिम से पूरब की हर हरियाली तक।

    हर और तिरंगा छाया है, और भारत में लहराया है।

    देख़ो भारतवालो देख़ो।