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28.5.11

वो दिन !

मेरे मित्र श्री सतीश मंगला ने मुझे एक कविता भेजी है। मुझे वह कविता काफी पंसद आई। यह कविता मै आपके समक्ष रख रहा हुं। शायद आपको भी पसंद आए। कृप्या गौर फरमाएं..........

आज भी नही हूँ भुला ...........................
वो दोस्तो के साथ की हुई मस्ती ............
वो छोटी सी गलियों वाली अपनी प्यारी सी बस्ती .................
वो किसी को सताना वो किसी को मानना .....................
वो किसी के इन्तेजार मे जब निगाहें थी तरसती
जब भी बैठ के सोचता हूँ वो पुरानी बातें ,
वो बीते हुए लम्हे, वो गुजरी राते ..........
न जाने कहाँ आ फंसा हूँ ये कैसा है समंदर
है उस पार जाना और न मांझी है न कश्ती.......................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती ..........................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती .................

6.12.10

मृग- अभिलाषा

( कविता )

मृ्ग अभिलाशा
हम विकास की ओर !
किस मापदंड मे?
वास्तविक्ता या पाखन्ड मे !
तृ्ष्णाओं के सम्मोहन मे
या प्रकृ्ति के दोहन मे
साईँस के अविश्कारों मे
या उससे फलिभूत विकारों मे
मानवता के संस्कारो मे
या सामाजिक विकारों मे
धर्म के मर्म या उत्थान मे
या बढ्ते साम्प्रदायिक उफान मे
पूँजीपती के पोषण मे
या गरीब के शोषण मे
क्या रोटी कपडा और मकान मे
या फुटपाथ पर पडे इन्सान मे
क्या बडी बडी अट्टालिकाओं मे
या झोंपड पट्टी कि बढती सँख्याओं मे
क्या नारीत्व के उत्थान मे
या नारी के घटते परिधान मे
क्या ऊँची उडान की परिभाषा मे
या झूठी मृ्ग अभिलाषा मे
ऎ मानव कर अवलोकन
कर तर्क और वितर्क
फिर देखना फर्क
ये है पाँच तत्वोँ का परिहास
प्राकृ्तिक सम्पदाओँ का ह्रास
ठहर 1 अपनी लालसाओँ को ना बढा
सृ्ष्टि को महाप्रलय की ओर ना लेजा