10:46 am
Sumit Pratap Singh
प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
इंसान की शुरू से ही दूसरे के घर में ताक-झाँक करने की आदत रही है. जब हमने विज्ञान में प्रगति की तो हमारी पृथ्वी के वैज्ञानिक अपने ग्रह को छोड़ दूसरे ग्रहों में ताक-झाँक करने लगे. "तुम डाल-डाल हम पात-पात" की कहावत को चरितार्थ करते हुए दूसरे ग्रहों के वासी, जिन्हें हम एलियन कहते हैं, भी समय-समय पर अपनी-अपनी उड़न तश्तरी में सवार हो हमारी पृथ्वी पर ताक-झाँक करने आते रहते हैं. एक दिन ऐसे ही एक उड़न तश्तरी धरती पर उतरी, तो उस समय वहाँ दो हिंदी ब्लॉगर टहल रहे थे. उड़नतश्तरी से कुछ एलियन धरती की जाँच-पड़ताल करने निकले, तो इन दोनों ब्लॉगरों ने उन्हें नींद की दवा डालकर बनाया हुआ सूजी का हलवा खिला दिया. जब बेचारे एलियन नींद में मस्त हो धरती पर आराम फरमाने लगे, तो ये दोनों ब्लॉगर उड़न तश्तरी पर सवार हो पूरी दुनिया की सैर करने लगे. उनमें से
एक ब्लॉगर उड़न तश्तरी में उड़ते-उड़ते जब बोर हो गये, तो नीचे उतर
नुक्कड़ पर बैठकर पंचायत करने लगे.
दूसरे ब्लॉगर अब तक उड़न तश्तरी पर सवार हो इधर से उधर घूम रहे हैं. जी हाँ हम बात कर रहे हैं उड़न तश्तरी वाले समीर लाल जी की .
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1:42 pm
Sumit Pratap Singh
सादर ब्लॉगस्ते!
आप सभी को अपने परिवार, रिश्तेदारों, पड़ोसियों व सभी दोस्तों-दुश्मनों के साथ बीती लोहड़ी और आगामी मकरसंक्रांति की ह्रदय से हार्दिक शुभकामनाएँ. साथियो क्या आप जानते हैं कि दिल्ली नगर निगम कब आस्तित्व में आया. नहीं जानते? चलिए हम किसलिए हैं? दिल्ली नगर निगम संसदीय क़ानून के अंतर्गत 7 अप्रैल, 1958 में आस्तित्व में आया. दिल्ली के पहले निर्वाचित मेयर थीं अरुणा आसफ अली और लाला हंसराज गुप्ता ने प्रथम मेयर के रूप में अपनी सेवा दी.आज आपकी मुलाक़ात करवाने जा रहे इसी दिल्ली नगर निगम में अतिरिक्त उपायुक्त पद पर कार्यरत सुरेश यादव जी से. जो दिल्ली नगर निगम की सेवा करते हुए हिंदी साहित्य की सेवा में भी कर्मठता से लगे हुए हैं.
2:17 pm
Sumit Pratap Singh
प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
आप यह भली-भाँति जानते होंगे कि हिन्दू धर्म में कितने वेद हैं. क्या नहीं जानते? चलिए हम बता देते हैं. वेदों की संख्या कुल चार है. ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद. ऋगवेद, यजुर्वेद व सामवेद को वेदत्रयी के नाम से संबोधित किया जाता था. इतिहास को हिन्दू धर्म में पंचम वेद की संज्ञा दी गई है. प्राचीन काल में जो ब्राम्हण जितने वेदों का ज्ञान प्राप्त करता था उसके नाम के पीछे उसी आधार पर चतुर्वेदी, त्रिवेदी व द्विवेदी आदि उपनाम लगाए जाते थे. आज हम जिन ब्लॉगर महोदय से मुलाक़ात करने जा रहे हैं वह भी त्रिवेदी उपनाम को धारण किये हुए हैं. अब यह तो ज्ञात नहीं कि उन्हें तीन वेदों का ज्ञान है अथवा नहीं, किन्तु ब्लॉग शास्त्र को वह भली-भाँति पढ़ रहे हैं.
5:13 pm
Sumit Pratap Singh
दिल्ली शहर में ठण्ड का भयानक रूप देखते हुए शोभना वैलफेयर सोसाइटी ने गरीबों को गर्म कपड़े वितरित करने की योजना बनाई तथा आज दिनांक ८ जनवरी, २०११ को गरीबों को गर्म कपड़े वितरित किये ताकि ठण्ड से किसी गरीब की जान न जा पाए.
4:23 pm
शबनम खान
फोन पर मैसेज आया, “तुझे कभी आठ घंटों में प्यार हुआ है?” प्रिया समझ गई फैसल को फिर किसी से प्यार हो गया है। उसने जवाब भेजा, “नहीं...पर जानती हूं तुझे हुआ है।”
प्रिया का मन फिर काम में नहीं लगा। जैसे-तैसे खानापूर्ति करके वो ऑफिस से जल्दी निकल तो आई लेकिन इतनी जल्दी घर जाने का न ही उसका मन था और न ही आदत। काफी देर बस स्टॉप पर खड़े रहने के बाद प्रिया को एक खाली बस आते हुए दिखाई दी। हालांकि वो बस उसके घर की तरफ नहीं जा रही थी लेकिन प्रिया को लगा जैसे ये बस सिर्फ उसी के लिए आई है। प्रिया बस में चढ़ गई और खाली सीटों में से अपनी पसंदीदा बैक सीट पर खिड़की के पास बैठ गई। फैसल और प्रिया कॉलेज के दिनों में अक्सर इसी तरह खाली बसों में शहर के चक्कर लगाया करते थे। टिकट की कोई चिंता ही नहीं रहती थी क्योंकि बैग के कोने में स्टूडेंट बस पास पड़ा होता था।
फोन फिर वाइब्रेट हुआ। इस बार मैसेज संदीप का था। संदीप प्रिया का कलीग था। ऑफिस से दोनों अक्सर साथ आते-जाते थे। प्रिया जानती थी संदीप उसे पसंद करता है लेकिन प्रिया जानकर अनजान बने रहना ही ठीक समझती थी। फैसल के जाने के बा उसने अपने आपको एक दायरे में सीमित कर लिया था। मैसेज में संदीप ने लिखा था कि वो कहां है? प्रिया को याद आया कि जल्दबाज़ी में वो संदीप को बताकर आना भूल गई है। प्रिया ने जवाब दिया, “तबियत ठीक नहीं थी, जल्दी चली आई।” अब प्रिया ने फोन बैग में रख दिया। इस वक्त उसकाकिसी से बात करने का मन कर रहा था।
खिड़की से शाम की ठंडी हवा आ रही थी। प्रिया आंखे बंद कर सीट से टिक गई। प्रिया को अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। रह रह कर वह फैसल के “आठ घंटे के प्यार” के बारे में सोच रही थी। हालांकि वो काफी पहले अपने आपको समझा चुकी थी कि अब फैसल की ज़िंदगी में अब चाहे जो कुछ हो उसे फर्क नहीं पड़ेगा। अपने इस फैसले पर वो काफी खुश भी थी लेकिन फैसल का ये नया प्यार प्रिया को चैन नहीं लेने दे रहा था। प्रिया लगातार सोच रही थी कि फैसल उसके दो साल के प्यार को इस तरह कैसे भुला सकता है? क्या उसे एक बार भी प्रिया की याद नहीं आई? आठ घंटों का प्यार वाकई कोई प्यार हो सकता है?
सोचते सोचते प्रिया की आंखों से आंसू बह निकले। खुद को संभालते हुए वो अपने अपना रूमाल ढूंढने लगी। आदतन आज भी वो अपना रूमाल ऑफिस में ही भूल आई थी। प्रिया कुछ सोच ही रही थी कि इतने में किसीने एक सफेद रंग का जैंट्स रूमाल उसके आगे कर दिया। प्रिया ने नज़रे उठाकर देखा तो एक लड़का बेहद आकर्षक मुस्कान चेहरे पर लिए उसे देख रहा था। उसने रूमाल लेने से इनकार किया तो लड़ने ने “प्लीज़” कहकर उससे अपनी बात मनवा ली। प्रिया ने आंसू पोंछकर उसे “थैंक्स” करते हुए रूमाल वापस दे दिया। वो लड़का उसकी बगल वाली सीट पर ही बैठ गया। आधे घंटे की औपचारिक बातों के बाद दोनों ने एक दूसरे को अपना फोन नंबर दिया। लड़के का स्टॉप आया तो वो बाय करके चले गया। उसके जाते ही प्रिया ने तुरंत बैग से अपना फोन निकाला और फैसल को मैसेज किया, “आधे घंटे मेंप्यार हो सकता है क्या?”
(शबनम ख़ान)
9:08 pm
Sumit Pratap Singh
प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
प्राचीन काल से ही लोगों के संदेश को लाने और ले जाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय किये जाते रहे हैं. पहले घोड़ों के द्वारा डाक इधर से उधर पहुँचाई जाती थी. प्रेमी अपनी प्रेम पातियों को अपने प्रीतम तक पहुंचाने के लिए कबूतरों का प्रयोग भी करते थे. गुप्त संदेशों को शीघ्रता से भेजने के लिए समय-समय पर बाजों की सहायता भी ली जाती रही. धीरे-धीरे प्रगति हुई और संदेशों को हवाई जहाज में भी उड़ना पड़ा.फिर कंप्यूटर महाराज आये और इन्टरनेट का जाल फैंका और अब पत्रों का स्थान कम्प्यूटरी पत्रों ने ले लिया.किन्तु आज भी पारंपरिक डाक व्यवस्था का महत्त्व कम हुआ है और न ही डाकिया बाबू का.
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10:16 am
Sumit Pratap Singh
प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
अंग्रेजी नव वर्ष का आगमन हो चुका है इसलिए अंग्रेजी में ही शुभकामनाएं स्वीकारें
। "हैप्पी न्यू इयर टु यू।" वैसे हम हिन्दुस्तानियों का नव वर्ष 22 मार्च, 2012 से आरम्भ होगा। शक संवत, जो कि 78 ईसवी से आरंभ माना जाता है, को कुषाण सम्राट कनिष्क ने आरम्भ किया था किन्तु शक शासकों द्वारा अधिक प्रयोग किये जाने के कारण इसे शक संवत के नाम से जाना जाने लगा। इसमें चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आसाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ व फाल्गुन नामक बारह मास होते हैं। इसलिए आनेवाले शक संवत, 1934 की शुभकामनाएं भी आपको स्वीकार करनी पड़ जायेंगी। आगे पढ़ें...