प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
ये लो जी संसद का शीतकालीन सत्र भी समाप्त हो गया और बीमारी के कारण महात्मा अन्ना का अनशन भी ख़त्म हुआ. ठंडी फूफी अपने शीत अस्त्रों से उत्तर भारत, ख़ास तौर पर दिल्ली वासिओं का हुलिया टाईट किये हुए हैं. इन सब घटनाओं से बिना व्यथित हुए डॉ. हरीश अरोड़ा फेसबुक पर साहित्यकार संसद को चलाने में व्यस्त और मस्त हो रखे हैं. मित्रो आप भली-भाँति समझ गए होंगे कि आज मैं आप सभी का परिचय कराने जा रहा हूँ एक और ब्लॉगर डॉ. हरीश अरोड़ा से.
उनके परिचय में क्या कहूँ... उनकी रचनाधर्मिता उनके जीवन को खुद बयां करती है..
यह फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं. वर्ष १९८७ से साहित्य लेखन के क्षेत्र में आये. विद्यालयी शिक्षा के दौरान इनकी रूचि साहित्य में नहीं थी. लेकिन 12 कक्षा के दौरान कविता लेखन में रूचि जागृत हुयी. कॉलेज की शिक्षा के दौरान कुछ युवा रचनाकारों के साथ मिलकर वर्ष १९८८ में 'युवा साहित्य चेतना मंडल' संस्था का निर्माण किया. यह संस्था आज साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिए योगदान देने के साथ साथ प्रकाश के क्षेत्र में भी आ चुकी है. आगे पढ़ें...मैं किसी के सांस की अंतिम घडी हूँमैं किसी के गीत की अंतिम कड़ी हूँ.जिंदगी घबरा के बूढी हो गयी है,मैं सहारे के लिए अंतिम छड़ी हूँ.