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ख्वाब एक हकीकत
ख्वाब है या कुछ और
ख्वाब ही सा लगता है.
बहरहाल, कुछ भी हो बड़ा हसीन है,
ख्वाब ही तो वो शहर है
जहां हम अपनी मर्जी के मालिक होते हैं.
ख्वाब और हकीकत में एक
अदना सा फासला है,
हकीकत मैं और ख्वाब आईना.
ख्वाब क्या है
कुछ अधूरी ख्वाहिशें.
कुछ दिल में दफ़न अरमान
कुछ आने वाले कल की तस्वीरें,
यही तो ख्वाब है!
ख्वाब देखो!
सच हो जाते हैं अक्सर ख्वाब.
आओ देखें मिलकर हम सब ख्वाब....!
हकीकत में तब्दील करने को...!!
(लेखिका) डॉ. अमरीन फातिमा
1 टिप्पणियाँ:
एक अच्छी अभिव्यक्ति मगर शब्दों की अधिकता
कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.?
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