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8.12.10

मानवाधिकार का सिसिकता कानून

देश में मानवाधिकार असमंजस

हमारे देश में अंतर्राष्ट्रीय संधि के बाद वर्ष १९९३ में राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून बना कर मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया फिर राज्यों में मानवाधिकार गठित किये गये लेकिन मानवाधिकार मामले आज भी जस के तस बढ़ रहे हें और हात यह हें के कानून में प्रथक से मानवाधिकार न्यायालयों के खोलने के स्पष्ट प्रावधान होने के बाद और इन न्यायालयों में मानवाधिकार सरकरी वकीलों की आवश्यक नियुक्ति के प्राव्धना होने के बाद भी कार्यवाही नहीं की गयी हे कल्पना कीजिये देश में ऐसा आयोग जिसके अध्यक्ष सुर्पिम कोर्ट के सेवानिव्रत्त न्यायधीश होते हें और अरबो रूपये इस आयोग पर खर्च होते हें कानून १७ वर्ष पहले बना दिया गया और आज तक भी इस कानून की पालना केंद्र सरकार करने में अक्षम रही हे । यह स्थिति तो इन हालात में हे जब भाजपा और कोंग्रेस ने राष्ट्रिय और राज्य स्तर पर मानवाधिकार प्र्कोष्टों का गठन कर इन पदों पर रिटायर्ड जजों को ही नियुक्त किया हे । राजस्थान में हाल ही में जस्टिस इसरानी जो राजस्थान कोंग्रेस के मानवाधिकार प्रकोष्ट के प्रदेश अध्यक्ष हें उनकी कोटा यात्रा के दोरान एक कार्यक्रम रखा गया जिसमे भी मानवाधिकार न्यायालय खोलने की बात उठाई गयी अब आप सोच लें के देश में १७ वर्ष पूर्व बना मावाधिकार कानून आब तक लागू नहीं किया जा सका हे तो जनाब यह केसा मानवाधिकार हे इस देश में । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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