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30.12.10

आया नया साल रे

आया नया साल रे
होगा कुछ कमाल रे
जाते हुए साल तू
न डोरे हम पे डाल रे।

होगा एक नया घोटाला
निकलेगा जन का दिवाला
नेता-वेता, लाला-वाला
करेंगे कुछ गड़बड़ झाला
बोलता है कवि कितना
ज़बान को संभाल रे।

पेट्रोल, डीज़ल देंगे दगा
प्याज ज़ुल्म ढाएगा
मुंबई जलाने को
फिर कसाब आएगा
नया साल खेलेगा
नई -नई चाल रे।

हत्यारी बसों के नीचे
लोग कई आयेंगे
सडको के झगड़ों में
कितने मारे जायेंगे
प्रेम की न यहाँ
गल पायेगी दाल रे।

विधवाएं शहीदों की
संसद में रोयेंगी
अफज़ल की पीढ़ियाँ
चैन से सोयेंगी
देशभक्त होने का
रहेगा मलाल रे।

कुछ न कुछ तो हो अच्छा
कुछ न कुछ तो हो भला
रहे जिससे सबका
तन और मन खिला
नए साल करना तू
कुछ ऐसा धमाल रे।

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