श्मशान और कब्रिस्तान तक, लगे हैं जिन्दगी के मेले ---- ललित शर्मा
जहां से हम चलते हैं वहीं फ़िर पहुंच जाते हैं घूम घाम कर, धरती गोल है। ईश्वर की सारी सृष्टि ही गोल है, कहीं भी चौकोर नही हैं। चौरास्ते नहीं है, भटकने का जो खतरा होता है। भूल भूलैया से निकल कर सीधा वहीं आना पड़ता है जहां कोई आना नहीं चाहेगा। लेकिन मुझे सुकून वहीं मिलता है जहां आने से लोग डरते हैं। घर से बैठ कर ही जलती चिताओं को देखता हूँ। उसकी लपटें धीरे धीरे बढते हुए एका एक गगन चूमने लगती हैं। फ़िर मद्धम होकर शांत हो जाती हैं। फ़िर अंगारे धधकते रहते हैं कितना गर्व और गुमान भरा है इस देह में। जिसकी अकड़ भस्म होने पर ही निकलती है। शायद श्मशान ही वह जगह जहाँ मनुष्य को अपने किए की याद आती है, भले बुरे कर्मों का चिंतन करता है और वापस आकर पुन: उसी प्रक्रिया में लग जाता है। इसीलिए श्मशान बैराग कहा गया है।
वकील साहब कोर्ट से आ जाते हैं तब तक मैं एक पोस्ट लिख देता हूँ। उनका वाहन अस्पताल में जनरल चेकअप के लिए भर्ती है। तभी अख्तर खान अकेला जी याद आती है वकील साहब उन्हे फ़ोन लगा कर बुलाते हैं। तब तक हम कार लेकर आ जाते हैं। अकेला साहब के साथ चल पड़ते हैं कोटा भ्रमण को। वकील साहब बताते हैं कि कोटा की सुंदर जगहों में एक श्मशान है मुक्तिधाम किशोरपुरा में जिसे कोटा के एक बिड़ला परिवार ने सजाया संवारा है। हम श्मशान में पहुंच जाते हैं। चम्बल के तीर यह श्मशान वास्तव में इस लायक है कि यहां चिरविश्राम लिया जा सकता है।
आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है। कुछ चिताएं अभी भी सुलग रही हैं, कुछ की भस्म ठंडी हो रही है।ज्वालाएं अंधेरे को दूर भगाने का पुरजोर प्रयास कर रही हैं। देह जला कर अंधेरा दूर भगाने का प्रयास नमन योग्य है।मैं कुछ देर खड़े होकर उन्हें अंतिम नमस्कार करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ उन्हे सदगति प्रदान करे। अरे मेरे संकट मोचक पास ही हैं, मेरे साथ यहाँ तक आ पहुंचे।प्रणाम है बाबा तुम्हे, यूँ ही साथ रहा करो। पास ही एक अखाड़ा है जहां गदाधारी महावीर विराज मान है, कुछ पहलवाल जोर लगाने के बाद भांग रगड़ा लगाते हैं और फ़िर मस्त हो जाते हैं ठंडाई पीकर। वकील साहब ने बताया कि यहां आधा किलो भांग रोज ही चढा ली जाती है। भांग का नाम सुनकर मैं तो सिहर उठता हूँ। बनारस के काशी विश्वनाथ जी की यात्रा का स्मरण हो जाता है।
अंधेरा हो चला है कुछ ठंड भी है वातावरण में,अकेला साहब अब अधरशिला दिखाने ले चलते हैं। यह प्रकृति का एक चमत्कार है कि एक विशाल शिला यहां एक बिंदु पर आकर टिक गयी है। अधरशिला के पास ही एक मंदिर है यहां प्यारे मिंया महबूब साहब स्थान है। इस स्थान से मंदिर के कंगुरे दिखाई देते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव की एक अनुठी मिशाल है। कवि यौगेन्द्र मौद्गिल की पंक्तियां याद आ जाती हैं- मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से, संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से.." हम अधरशिला देखते हैं। अधरशिला के नीचे थोड़ी सी जगह है जहां से बच्चों को पार कराया जाता है। अकेला भाई ने बताया कि किवदंती है कि हराम का जना बच्चा इसमें फ़ंस जाता है और सही बच्चा पार निकल जाता है। सोचना पड़ा कि जब बच्चा इस संकरी जगह में परीक्षा दे रहा होगा तो उसके माँ बाप के चेहरों पर किस किस तरह के भाव उमड़ रहे होगें। ये परीक्षा बच्चों की नहीं माँ बाप की होती है। समझ लो कि "हूई गति सांप छछुंदर केरी"
पास ही एक कब्रिस्तान है जहाँ बहुत सारे लोग कयामत का इंतजार कर रहे हैं कितनी लगन है इस इंतजार में। नहीं तो किसी का इंतजार करना, ना रे बाबा ना, मेरे लिए तो बहुत कठिन काम है। लेकिन यहां तो इंतजार करना ही पड़ेगा। यहां किसी की सिफ़ारिश पर्ची या टेलीफ़ोन पैरवी नहीं चलती। सभी को इंतजार करना पड़ता है। अकेला साहब ने बताया कि कोटा के प्रसिद्ध डॉ ए क्यु खान साहब ने अपनी कब्र खुदवा रखी है। इनकी पत्नी का इंतकाल लगभग 30 वर्ष पूर्व हो गया था। डॉक्टर साहब की ख्वाहिश थी कि उनकी फ़ौत के बाद वे अपनी पत्नी की कब्र के पास ही दफ़न हों। इसलिए इन्होने एडवांस बुकिंग इस्लामिक रिवाज के अनुसार करवा ली। इस्लामिक रवायत के अनुसार जो भी शख्स अपने दफ़न के लिए जगह आरक्षित करता है उसे प्रतिवर्ष उस कब्र के बराबर अनाज भरकर ईद से पहले गरीबों में बांटना पड़ता है और इस कार्य को डॉ ए क्यु खान साहब पिछ्ले 30 सालों से अंजाम दे रहे हैं।
श्मशान और कब्रिस्तान से अब हम चल पड़े बाजार की तरफ़ जहां उम्दा पान हमारा इंतजार कर रहे थे। पेशे से पत्रकार और अधिवक्ता अख्तर खान अकेला साहब उर्दु साहित्य पर भी अच्छी पकड़ रखते हैं। उन्होने “अकेला” तखल्लुस का राज भी खोला। पान की दुकान पर जाने से पहले हमने कोटा की उम्दा कुल्फ़ी का स्वाद लिया। पान के तो कहने की क्या थे। 90 नम्बर की किमाम ने जायका ही ला दिया पान में। यहीं पर हमारी मुलाकात कोटा से प्रकाशित देनिक कोटा ब्यूरो के सम्पादक जनाब कय्यूम अली एवं प्रेस क्लब के कोटा के महासचिव जनाब हरिमोहन शर्मा जी से हुई। सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। कोटा जैसे एतिहासिक शहर में घुमना तो कम ही हुआ पर दिनेश जी के साथ घुमना अच्छा लगा। इसके पश्चात अकेला साहब के चेम्बर में भी गए जहाँ एडवोकेट आबिद अब्बासी और नईमुद्दीन काजी जी से भी भेंट हुई। अकेला साहब ने कुरान पाक की एक प्रति दिनेश जी को भेंट की और मुझे कोटा के इतिहास से संबंधित एक पुस्तक भी। मैं सभी का शुक्रगुजार हूँ।
मैने अधरशिला से एक चित्र लिया जिसमें अधरशिला में लगा ध्वज और मंदिर एक साथ नजर आ रहा है। एक चक्कर हमने कोटा के परकोटे का भी लगाया। लेकिन किला वगैरह नहीं देख पाए उसे बाद के लिए रख छोड़ा कोटा के विषय में एक जानकारी और दे दूँ कि यहां थर्मल, हाइड्रो, एटमिक, और गैस से बिजली का निर्माण होता है। मेवाड़ एक्सप्रेस रात डेढ बजे कोटा से चित्तौड़ जाती है। हम घर पहुंच कर जीम लिए और रवि स्वर्णकार जी से फ़ोन पर बात हुई, वे रावत भाटा में थे। कोटा होते तो मुलाकात हो जाती। कुछ देर आराम करने के बाद एक बजे उठे तो पता चला की गाड़ी कुछ देर लेट चल रही है। वकील साहब के साथ स्टेशन पहुंचे तो पता चला गाड़ी एक घंटे लेट है। प्लेटफ़ार्म पर वकील साहब से चर्चा होती रही। वकील साहब का जीवन भी संघर्ष से भरा प्रेरणादायी है। ट्रेन आ गयी, हमारा रिजर्वेशन नहीं था लेकिन आराम से सोने के लिए सीट मिल गयी। तब तक सुबह का अखबार भी आ चुका था। वकील साहब से हमने विदा ली और चल पड़े चित्तौड़ गढ की ओर इंदुपुरी, पद्मसिंग और रानी पद्मिनी से मिलने के लिए…………..।
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