कुछ शर्म करो बेगैरत गिलानी दुश्मन के स्वतन्त्रता दिवस को "एकता दिवस" और अपने गौरान्वित कर देने वाले "15 अगस्त" को "काला दिवस" के रूप में मना रहे हो। शेम ! शेम !! शेम !!!
किसी शायर को यूँ भी कहना चाहिए था कि:-
न संभलोगे तो मिट जाओगे अहले कश्मीर,
तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी, दास्तानों में !
2 टिप्पणियाँ:
bahut badiya..
Meri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......
A Silent Silence : Ye Paisa..
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सही बात है। आभार और आशीर्वाद।
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