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sureda
इस जिले के गावं निडाना में चल रही खेत पाठशाला में आज महिलाएं, डिम्पल के खेत में कपास के कीड़ों की व्यापक पैमाने पर हुई मौत देख कर हैरान रह गई। डिम्पल की सास से पुछताछ करने पर मालूम हुआ कि तीन दिन पहले कपास के इस खेत में विनोद ने जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. आदि रासायनिक उर्वरकों का मिश्रित घोल बना कर स्प्रे किया था। यह घोल 5.5 प्रतिशत गाढ़ा था। इसका मतलब 100 लिटर पानी में जिंक की मात्रा आधा कि.ग्रा., यूरिया की मात्रा ढ़ाई कि.ग्रा.व डी.ए.पी. की मात्रा भी ढ़ाई कि.ग्रा. थी। पोषक तत्वों के इस घोल ने कपास की फसल में रस चूसकर हानि पहूँचाने वाले हरा-तेला, सफेद-मक्खी, चुरड़ा व मिलीबग जैसे छोटे-छोटे कीटों को लगभग साफ कर डाला तथा स्लेटी-भूंड, टिड्डे, भूरी पुष्पक बीटल व तेलन जैसे चर्वक कीटों को सुस्त कर दिया। इस नजारे को देखकर कृषि विज्ञान केन्द्र, पिंडारा से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. यशपाल मलिक व डा. आर.डी. कौशिक हैरान रह गये। उन्होने मौके पर ही खेत में घुम कर काफी सारे पौधों पर कीटों का सर्वेक्षण व निरिक्षण किया। हरे तेले, सफेद मक्खी, चुरड़ा व मिलीबग की लाशें देखी। इस तथ्य की गहराई से जांच पड़ताल की। डा.आर.डी.कौशिक ने कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में प्रयोगों द्वारा सुस्थापित प्रस्थापनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि पौधे अपने पत्तों द्वारा फास्फोरस नामक तत्व को ग्रहण नही कर सकते।
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डा. यशपाल-कांग्रेस घास के खतरे। |
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घोल के स्प्रे से मरणासन-हरा तेला। |
इस मैदानी हकीकत पर डा. कौशिक की यह प्रतिक्रिया सुन कर निडाना महिला पाठशाला की सबसे बुजर्ग शिक्षु नन्ही देवी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए फरमाया कि आम के आम व गुठ्ठलियों के दाम वाली कहावत को इस स्प्रे ने सच कर दिखाया, डा. साहब। इब हाम नै इस बात तै के लेना-देना अक् पौधे इस थारे फास्फोरस नै पत्ता तै चूसै अक् जड़ा तै।  |
घोल के स्प्रे से सुस्त टिड्डा। |
जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव (पौधों के लिये पोषण व कीड़ों के लिये जहर) की जांच पड़ताल निडाना के पुरुष किसान पहले भी कर चुके हैं पर महिलाओं के लिये इस घोल के दोहरे प्रभाव देखने का यह पहला अवसर था।  |
मे-मक्खी। |
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पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक। |
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सांठी वाली सूंडी। |
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सांठी वाली सूंडी का पतंग |
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घोल के स्प्रे से सुस्त-भूरी पुष्पक बीटल। |
डा.यशपाल मलिक व डा. आर.डी.कौशिक ने जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव की इस नई बात को किसी ना किसी वर्कशाप में बहस के लिये रखने का वायदा किया। इसके बाद महिलाओं के सभी समूहों ने डा. कमल सैनी के नेतृत्व में कपास के इस खेत से आज की अपनी कीटों की गणना, गुणा व भाग द्वारा विभिन्न कीटों के लिये आर्थिक स्तर निकाले तथा सबके सामने अपनी-अपनी प्रस्तुती दी। सभी को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि इस कपास के खेत में हानिकारक कीटों की संख्या सिर्फ ना का सिर फोड़ने भर वाली है। इन कीटों में से कोई भी कीट हानि पहुँचाने की स्थिति में नही है। विनोद की माँ ने चहकते हुए बताया कि इस खेत में कपास की बिजाई से लेकर अब तक किसी कीटनाशक के स्प्रे की जरुरत नही पड़ी है। यहाँ तो मांसाहारी कीटों ने ही कीटनाशकों वाला काम कर दिया। ऊपर से परसों किये गए उर्वरकों के इस मिश्रित घोल ने तो सोने पर सुहागा कर दिया। नए कीड़ों के तौर पर महिलाओं ने आज के इस सत्र में कपास के पौधे पर पत्ते की निचली सतह पर पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक पकड़े। राजवंती के ग्रुप ने एक पौधे पर मे-फ्लाई का प्रौढ़ देखा। पड़ौस के खेत में सांठी वाली सूंडी व इसके पतंगे भी महिलाएं पकड़ कर लाई। इस सूंडी के बारे में अगले सत्र में विस्तार से अध्यन करने पर सभी की रजामंदी हुई।सत्र के अंत में समय की सिमाओं को ध्यान में रखते हुए, डा. यशपाल मलिक ने "कांग्रेस घास - नुक्शान व नियंत्रण" पर सारगर्भीत व्याखान दिया जिसे उपस्थित जनों ने पूरे ध्यान से सुना।
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