"अशिक्षा समाज प्रदत्त अभिशाप है।"
अभिशापित व्यक्ति के कष्टों का अंत नहीं। उसके कारण वह पग-पग
पर कष्ट भोगता है। देरसबेर समाज को भी उसके दंश झेलने पड़ते हैं।
एक अभिशप्त नारी की व्यथा को इस लोकगीत में अनुभव कीजिए।
-डॉ० डंडा लखनवी लोकगीत
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सुहात नाहीं हमका अंगुठा लगाना॥
जब मैं जाती बैंक पइसा निकारै,
अंगूठा पकड़ बबुआ शेखी बघारै,
मिजाज वहिका लागै तनी आशिकाना॥
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥
पोस्टमैन आवै मनिआडर जो लावै,
छापै अंगूठा की कसि कसि लगावै,
सिहात नाहीं वहिका अंगुठा दबाना।
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥
आवै चुनाव मतदान करै जाई,
अंगुठा थमाय बाद अंगुरी थमाई,
चलत नाहीं हुआं सैयां कोऊ बहाना।
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥
2 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर
apne ek anpad mahila ki pida ko bhout hi sunder dang se samne lane ka peryas kia hai. apko bhadhi....
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