मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियाँ पीछे से लगी है। 8 गोलियाँ पीठ में लग कर सीने से निकली हैं। एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी है जबकि एक गोली बाँईं जाँघ पर लगी हैं और यह गोली हैरत अंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बाएँ कूल्हे के पास निकली है। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सम्बंध में प्रकाशित समाचारों और उठाये जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियाँ चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हंै इसलिए क्रास फायरिंग में उसे पीछे से गोलियाँ लगीं लेकिन इन्काउन्टर या क्रास फायरिंग में कोई गोली जाँघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है। आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5 x 1 सेमी0 का जो घाव है उस के बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था। पीठ में गोलियाँ लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है किन्तु विशेषज्ञ इस बात पर हैरान है कि फिर आतिफ के पीठ की खाल इतनी बुरी तर कैसे उधड़ गई? पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी0 के भीतर कई जगह रगड़ के निशानात भी पाए गए।
साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रास फायरिंग के बीच आ गया। इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है साजिद को जो गोलियाँ लगी हैं उन में से तीन पेशानी (Fore head) से नीचे की ओर आती हैं। जिस में से एक गोली ठोढ़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है। साजिद के दाहिने कन्धे पर जो गोली मारी गई है वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है। गोलियों के इन निशानात के बारे में पहले ही स्वतन्त्र फोरेन्सिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊँचाई पर था। जाहिर है दूसरी सूरत उस फ्लैट में सम्भव नहीं है। दूसरे यह कि क्रास फायरिंग तो आमने सामने होती है ना कि ऊपर से नीचे की ओर।
साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह किसी गैर धारदार वस्तु ;(Blunt Force By object or surface) से लगा है। पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है। लेकिन 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ व साजिद के साथ मारपीट की गई थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के केस में पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ उसे भी आयोग के कार्यालय भेजा जाए। लेकिन एम0 सी0 शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सी0 डी0 सम्बंधित जाँच अफसर के सुपुर्द की गई।
बटाला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो रोल अदा किया है वह न कि तशवीश-नाक है बल्कि इससे देश के मुसलमानों व अन्य लेागों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर सरकार इस मामले की न्यायिक जाँच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जाँच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी।
वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न रायें पाई जाती हैं। कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़ कर देखते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद संवाददाताओं से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है क्योंकि न्युकिलियर समझौता के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियों के पहुँचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है। समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार सोनिया गाँधी बटाला हाउस इन्काउन्टर की जाँच कराना चाहती थीं लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया कि वह कारण क्या है?
बटाला हाउस इन्काउन्टर की न्यायिक जाँच की माँग केन्द्रीय सरकार के अलावा न्यायालय भी नकार चुके हैं। सब का यही तर्क है कि इससे पुलिस का मारल गिरेगा। केन्द्रीय सरकार और न्यायालय जब इस तर्क द्वारा जाँच की माँग ठुकरा रही थीं उसी समय देहरादून में रणवीर नाम के एक युवक की इन्काउन्टर में मौत की जाँच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ। आखिर पुलिस के मारल का यह कौन सा आधार है जिस की रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्याग दिया जा रहा है।
-अबू ज़फ़र आदिल आज़मी
मोबाइल: 09540147251
(समाप्त)
साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रास फायरिंग के बीच आ गया। इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है साजिद को जो गोलियाँ लगी हैं उन में से तीन पेशानी (Fore head) से नीचे की ओर आती हैं। जिस में से एक गोली ठोढ़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है। साजिद के दाहिने कन्धे पर जो गोली मारी गई है वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है। गोलियों के इन निशानात के बारे में पहले ही स्वतन्त्र फोरेन्सिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊँचाई पर था। जाहिर है दूसरी सूरत उस फ्लैट में सम्भव नहीं है। दूसरे यह कि क्रास फायरिंग तो आमने सामने होती है ना कि ऊपर से नीचे की ओर।
साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह किसी गैर धारदार वस्तु ;(Blunt Force By object or surface) से लगा है। पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है। लेकिन 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ व साजिद के साथ मारपीट की गई थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के केस में पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ उसे भी आयोग के कार्यालय भेजा जाए। लेकिन एम0 सी0 शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सी0 डी0 सम्बंधित जाँच अफसर के सुपुर्द की गई।
बटाला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो रोल अदा किया है वह न कि तशवीश-नाक है बल्कि इससे देश के मुसलमानों व अन्य लेागों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर सरकार इस मामले की न्यायिक जाँच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जाँच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी।
वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न रायें पाई जाती हैं। कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़ कर देखते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद संवाददाताओं से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है क्योंकि न्युकिलियर समझौता के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियों के पहुँचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है। समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार सोनिया गाँधी बटाला हाउस इन्काउन्टर की जाँच कराना चाहती थीं लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया कि वह कारण क्या है?
बटाला हाउस इन्काउन्टर की न्यायिक जाँच की माँग केन्द्रीय सरकार के अलावा न्यायालय भी नकार चुके हैं। सब का यही तर्क है कि इससे पुलिस का मारल गिरेगा। केन्द्रीय सरकार और न्यायालय जब इस तर्क द्वारा जाँच की माँग ठुकरा रही थीं उसी समय देहरादून में रणवीर नाम के एक युवक की इन्काउन्टर में मौत की जाँच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ। आखिर पुलिस के मारल का यह कौन सा आधार है जिस की रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्याग दिया जा रहा है।
-अबू ज़फ़र आदिल आज़मी
मोबाइल: 09540147251
(समाप्त)
2 टिप्पणियाँ:
ab aap uski attma ki shanti ke liye dua kare bus.
गिरी जी की राय ठीक है लेकिन इंसाफ़ की लड़ाई भी कानूनी तरीके से लड़ते रहे
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