आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

7.5.10

अभी-अभी दिन था, अभी-अभी रात है

चंचल, चपल, नटखट तो आपने बहुत देखे सुने होंगे, मगर हमारे बाराबंकी शहर वाली में जो बात है, बखान कैसे करें ?
गिरा अनयन, नयन बिन्तु बानी इस चंचल का कहीं ठिकाना नहीं, राणा प्रताप के घोड़े के समान यहाँ है तो वहाँ नहीं वहाँ है तो यहाँ नहीं। एक दिन वह आई मन प्रफुल्लित हो गया। ऐसा लगा किअबू बिन अदहसवाला फ़रिशता गये। चारों ओर रोशनी ही रोशनी दिल खुश हुआ, हाथ में क़लम उठाया, फिर क्या हुआ।
ज़रा सी आँख जो झपकी तो फिर शबाब था तुरन्त चम्पत हो गई, नौ दो ग्यारह भी कह सकते है। उसका जाना बहुत नागवार गुज़रा।
अभी अभी दिन था, अभी अभी रात है।
दिल जल उठा, तन बदन में आग लग गई, आँखों के आगे अंधेरा छा गया, इस विरह के कारण अबबिरहाभी तो नहीं गा सकता था, उस कारण कि मूड ख़राब हो चुका था। कहाँ लिखनें का मन बनाया था, अब विचार भी पलायन कर गये, इस परेशानी में कलम जो टटोला, वह नहीं मिला, लगा कि वह भी कहीं सरक गया।
ग़ालिब ने कहा था कि मौत का दिन मुक़र्रर है, लेकिन क्या बतायें जनाब। इस चंचल का तो एक क्षण भी मुक़र्रर नहीं।
वैसे तो इसका हर धर से संबंध का़यम है, ‘हरजाईसमझाये। रूकती कहीं नहीं। आप ने आसमान में बिजली चमकती देखी होगी, वह किस प्रकार आती है और कैसे तुरन्त गा़यब हो जाती है। लगता हैं इस चंचल ने उसी से टेªनिंग ली है। एक साहब नें उपमा में कहा कि यह हमारे शहर वाली, उसी की छोटी बहन है। मैं नें इसका विरोध करते हुए कहा कि श्रीमान यह छोटी नहीं, बड़ी बहन है। रात भर ग़ायब, बस करवट बदलते रहिये।
इस चंचल को कोई काबू में नहीं कर पाया, यहाँ तक कि हमारे प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी, जो बड़ांे बड़ों को क़ाबू में कर लेती है, इसको आज तक दुरूस्त कर सकीं।
मैनें तो अपने शहर की बिज़ली के बारे में बता दिया, आप के यहाँ क्या हाल है ? कुछ बताइये ना
यह चुपसी क्यों लगी है, अजी मुँह तो खोलिये।

डॉक्टर एस.एम हैदर

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें