दीन दुखियो के डेरों में मिल जायेंगे।
प्रेम के सात फेरो मिल जायेंगे।
मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं-
राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे॥
वो धनुष की सिशओं में मिल जायेंगे।
नन्दी वन के अभावो में मिल जायेंगे।
प्रेम पन मातु सीता सा होवे अगर-
राम वन की लताओं में मिल जायेंगे॥
सींक के वाण में राम मिल जायेंगे।
जल कठौते में भी राम मिल जायेंगे।
ये शिला जैसा तन-मन से चाहे अगर-
पाँव की धूल में राम मिल जायेंगे॥
वो जटायु के क्रंदन में मिल जायेंगे।
या विभीषण के वंदन में मिल जायेंगे।
भक्त की लालसा हो दरस की अगर
राम तुलसी के चन्दन में मिल जायेंगे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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