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13.4.10

स्वदेशी परिंदों पे.........

                                        -डॉ० डंडा लखनवी    

स्वदेशी     परिंदों    पे   परदेसी    पर   हैं ।
मगर    अपने   अंजाम    से    बेख़बर  हैं ॥


कल     "ईस्ट इंडिया  कंपनी"  ने  चरा था,
अब  उससे  भी  शातिर बहुत  जानवर  हैं॥


उधर   उसने    कल-कारखाने     हैं    खाए,
इधर   कामगारों     की    टूटी   कमर  हैं॥


सियासत   के   गहरे  समन्दर   में    देखो-
गरीबों    को    चारा    बनाते    मगर   हैं॥


ठगी,    चोरी,     मक्कारी,   वादाखिलफ़ी,
बचे  रहबरों    के   यही   अब    हुनर   हैं?


लगी    करने   सरकारें   भी   अब   डकैती,
कि  इंसाफ़ो-आईन  सभी   ताक़   पर  हैं॥


शहीदों    के    आँसू   उन्हें     खोजते   हैं,
नएयुग के आशफ़ाको-बिस्मिल किधर हैं॥ 
  

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