देश के राष्ट्रीय खेल की वर्तमान में क्या दशा है इसका आंकलन वर्तमान में देश की सरजमीं पर चल रही विश्व कप प्रतियोगिता से भली-भांति लगाया जा सकता है जब उसके सातवें स्थान पर आने की आशा पर हांकी संघ के पदाधिकारी व खिलाड़ी गर्व की अनुभूति प्रदर्शित करते दिखलाई दे रहे हैं। हांकी के लिए हमारी सरकार के दिल में क्या जगह है और इसका क्या सम्मान है इसका एक उदहारण यह है कि दिल्ली में आयोजित विश्व कप प्रतियोगिता के प्रसारण अधिकार टेन स्पोर्ट्स चैनल को बेंच दिया गया है जो बड़े घरों की जीनत है।
किसी भी खेल की लोकप्रियता की अलख जगाने के लिए उसके प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण योगदान रहता है और यह गौरव हो और यह पतन की ओर जा रहा हो। जी हाँ हम बात कर रहे हैं अपने राष्ट्रीय खेल हाकी की जिसके स्वर्णिम इतिहास का कीर्तिमान पूरे विश्व में स्थापित करने में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद व कुंवर दिग्विजय सिंह का महत्वपूर्ण योगदान व अथाह परिश्रम रहा है।
वर्ष 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के पश्चात एक भी ऐसा अवसर नहीं आया जिस पर देशवासी गर्व कर सकें। वह चाहे एशियाई खेल हो या विश्व कप वह चाहे चैंपियंस ट्राफी हो या सैफ खेल । सभी प्रतियोगिताएं में हमारे राष्ट्रीय खेल की प्रतिष्ठा तार-तार होती रही और हमारा हाकी संघ के पदाधिकारी अपनी बदनीयती के कारण एक दूसरे के गिरहबान में ही झांकते रहे। एक पत्रकार आशीष खेतान ने स्टिंग ऑपरेशन कर के हाकी संघ के भीतर फैले भ्रष्टाचार के जाल को सही समय पर चक दे इंडिया नाम की अपनी रिपोर्ट के शीर्षक के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया था बावजूद इसके कोई सुधार हमारी कार्यप्रणाली में नहीं आया और स्तिथि अब यहाँ तक आ पहुंची है की टीम के खिलाड़ी ब्लैक मेलिंग पर उतर आये हैं ।
लोगों के दिलों में खेल के प्रति लोकप्रियता जगाने के लिए एक माहौल मीडिया द्वारा उत्पन्न कराया जाता है और खेल का सजीव प्रसारण इस का सशक्त माध्यम है परन्तु राष्ट्रीय खेल हाकी को इसके गौरवमयी इतिहास की और पुनः वापसी के लिए हमारी सरकार और उसका खेल मंत्रालय जरा सा भी चिंतित नहीं है और न ही हाकी के प्रति युवाओं में अभिरुचि जाग्रत करने के लिए सरकार के पास योजना है ।अन्यथा सरकार व्यावसायिकता की दौड़ में न शामिल होकर राष्ट्रीय खेल हाकी का प्रसारण अधिकार दूरदर्शन के पास ही रखती जिससे हाकी के खेल का व्यापक प्रचार-प्रसार होता ।
-मोहम्मद तारिक खान
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