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31.3.10

'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' की खोज : ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय

हजारो वर्षों से विद्वानों द्वारा अध्ययन-मनन और चिंतन के फलस्वरुप मानव-मन-मस्तिष्‍क एवं अन्य जड़-चेतनों पर ग्रहों के पड़नेवाले प्रभाव के रहस्यों का खुलासा होता जा रहा है , किन्तु ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने हेतु किए गए लगभग हर आयामों के उपाय में पूरी सफलता न मिल पाने से अक्सरहा मन में एक प्रश्न उपस्थित होता है,क्या भविष्‍य को बदला नहीं जा सकता ? किसी व्‍यक्ति का भाग्यफल या आनेवाला समय अच्छा हो तो ज्योतिषियों के समक्ष उनका संतुष्‍ट होना स्वाभाविक है, परंतु आनेवाले समय में कुछ बुरा होने का संकेत हो तो उसे सुनते ही वे उसके निदान के लिए इच्छुक हो जाते हैं। हम ज्योतिषी अक्सर इसके लिए कुछ न कुछ उपाय सुझा ही देते हैं लेकिन हर वक्त बुरे समय को सुधारने में हमें सफलता नहीं मिल पाती है। उस समय हमारी स्थिति कैंसर या एड्स से पीड़ित किसी रोगी का इलाज कर रहे डॉक्टर की तरह होती है ,जिसने बीमारी के लक्षणों एवं कारणों का पता लगाना तो जान गया है परंतु बीमारी को ठीक करने का कोई उपाय न होने से विवश होकर आखिर प्रकृति की इच्छा के आगे नतमस्तक हो जाता है ।

ऐसी ही परिस्थितियों में हम यह मानने को मजबूर हो जाते हैं कि वास्तव में प्रकृति के नियम ही सर्वोपरि हैं। हमलोग पाषाण-युग, चक्र-युग, लौह-युग, कांस्य-युग ................ से बढ़ते हुए आज आई टी युग में प्रवेश कर चुकें हैं, पर अभी भी हम कई दृष्टि से लाचार हैं। नई-नई असाध्य बीमारियॉ ,जनसंख्या-वृद्धि का संकट, कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा ,कहीं भूकम्प तो कहीं ज्वालामुखी-विस्फोट--प्रकृति की कई गंभीर चुनौतियों से जूझ पाने में विश्व के अव्वल दर्जे के वैज्ञानिक भी असमर्थ होकर हार मान बैठे हैं। यह सच है कि प्रकृति के इन रहस्यों को खुलासा कर हमारे सम्मुख लाने में इन वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे हमें अपना बचाव कर पाने में सुविधा होती है। प्रकृति के ही नियमो का सहारा लेकर कई उपयोगी औजारों को बनाकर भी हमने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों का झंडा गाडा है , किन्तु वैज्ञानिकों ने किसी भी प्रकार प्रकृति के नियमों को बदलने में सफलता नहीं पायी है।

पृथ्वी पर मानव-जाति का अवतरण भी अन्य जीव-जंतुओं की तरह ही हुआ। प्रकृति ने जहॉ अन्य जीव-जंतुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ शारिरिक विशेषताएं प्रदान की वहीं मनुष्‍य को मिली बौद्धिक विशेषताएं , जिसने इसे अन्य जीवों से बिल्कुल अलग कर दिया। बुद्धिमान मानव ने सभी जीव जंतुओं का निरिक्षण किया, उनकी कमजोरियों से फायदा उठाकर उन्हें वश में करना तथा खूबियों से लाभ लेना सीखा। जीव-जंतुओं के अध्ययन के क्रम में जीव-विज्ञान का विकास हुआ। प्राचीनकाल से अब तक के अनुभवों और प्रयोगों के आधार पर विभिन्न प्रकार के जीवों ,उनके कार्यकाल ,उनकी शरिरीक बनावट आदि का अध्ययन होता आ रहा है। आज जब हमें सभी जीव-जंतुओं की विशेषताओं का ज्ञान हो चुका है , हम उनकी बनावट को बिल्कुल सहज ढंग से लेते हैं । कौए या चिड़ियां को उड़ते हुए देखकर हम बकरी या गाय को उड़ाने की भूल नहीं करतें। बकरी या गाय को दूध देते देखकर अन्य जीवों से यही आशा नहीं करते। बकरे से कुत्ते जैसी स्वामिभक्ति की उम्मीद नहीं करतें। घोड़े की तेज गति को देखकर बैल को तेज नहीं दौड़ाते। जलीय जीवों को तैरते देखकर अन्य जीवों को पानी में नहीं डालते। हाथी ,गधे और उंट की तरह अन्य जीवों का उपयोग बोझ ढोने के लिए नहीं करते।

इस वैज्ञानिक युग में पदार्पण के बावजूद अभी तक हमने प्रकृति के नियमों को नहीं बदला । न तो बाघ-शेर-चीता-तेदुआ-हाथी-भालू जैसे जंगली जानवरों का बल कम कर सकें , न भयंकर सर्पों के विष को खत्म करने में सफलता मिली , और न ही बीमारी पैदा करनेवाले किटाणुओं को जड़ से समाप्त किया। पर अब जीन के अध्‍ययन में मिलती जा रही सफलता के बाद यह भी संभव हो सकता है कि किसी एक ही प्राणी को विकसित कर उससे हर प्रकार के काम लिया जा सके। पर इस प्रकार की सफलता के लिए हमें काफी समय तक विकास का नियमित क्रम तो रखना ही होगा।

जीव-जंतुओं के अतिरिक्त हमारे पूर्वजों ने पेड-पौधों का बारीकी से निरिक्षण किया। पेड़-पौधे की बनावट , उनके जीवनकाल और उसके विभिन्न अंगों की विशेषताओं का जैसे ही उसे अहसास हुआ, उन्होने जंगलो का उपयोग आरंभ किया। हर युग में वनस्पति-शास्त्र वनस्पति से जुड़े तथ्यो का खुलासा करता रहा ,जिसके अनुसार ही हमारे पूर्वजों ने उनका उपयोग करना सीखा। फल देनेवाले बड़े वृक्षों के लिए बगीचे लगाए जाने लगे। सब्जी देनेवाले पौधों को मौसम के अनुसार बारी-बारी से खाली जमीन पर लगाया जाने लगा। इमली जैसे खट्टे फलों का स्वाद बढ़ानेवाले व्यंजनों में इस्तेमाल होने लगा। मजबूत तने वाली लकड़ी फर्नीचर बनाने में उपयोगी रही। पुष्‍पों का प्रयोग इत्र बनाने में किया जाने लगा। कॉटेदार पौधें का उपयोग बाड़ लगाने में होने लगा। ईख के मीठे तनों से मीठास पायी जाने लगी। कडवे फलों का उपयोग बीमारी के इलाज में किया जाने लगा, आगे पढें ।

सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं

दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद उल्ला बुखारी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाली सियासी पार्टियों ने आजादी के बाद से मुसलमानों को अपनी सत्ता की डोली का कहार बना दिया है।
बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया।
सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार।
मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी बदहाली की विरासत पर आप जैसे लोग आजादी के बाद से ही अपनी रोटियाँ सेकते आए हैं। शायद यही कारण है कि हर राजनीतिक पार्टी अब अपने पास एक मुस्लिम मुखौटे के तौर पर मुसलमान दिखने वाली एक दाढ़ी दार सूरत सजा कर स्टेज पर रखता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का शोषण राजनीतिक दल इन्हीं लोगों के माध्यम से कराते आए हैं। लगभग हर चुनाव के अवसर पर आप जैसे मुस्लिम लीडरों की बयानबाजी ही मुसलमानों की धर्मनिरपेक्ष व देश प्रेम की छवि को सशंकित कर डालती है और अपने विवेक से वोट डालने के बावजूद उसके वोटों की गिनती जीतने वाला उम्मीदवार अपने पाले में नहीं करता।

-मोहम्मद तारिक खान

इनकी नम्बरदारी.......(-डॉ० डंडा लखनवी )


इनकी नम्बरदारी.......
                  -डॉ० डंडा लखनवी


भाँति-भाँति के माउस  जगमें सबकी जयजयकारी।
दुनिया  के  कोने - कोने  मे  इनकी   नम्बरदारी।।
                              साधो इनकी नम्बरदारी।।


माउस  मेलों  -  ठेलों  में  हैं,
गुरुओं  में  हैं,   चेलों   में  हैं,
मिलते   माउस  रेलों   में  हैं,
कुछ  बाहर, कुछ  जेलों में हैं,
कुछ माउस घोषित आवारा, कुछ माउस सरकारी।
दुनिया  के  कोने - कोने  में   इनकी  नम्बरदारी।।


कम्प्यूटर  का माउस  - नाटा,
इधर से   उधर  करता  डाटा,
फ्री    कराता  सैर  -  सपाटा,  
नए समय का  बिरला   टाटा,
नाचे इनके  आगे दुनिया  ये  हैं  महा - मदारी। 
दुनिया  के  कोने - कोने मे  इसकी नम्बरदारी।।


माउस  सभी मकानों  में  हैं,
खेतों  में  खलिहानों  में  हैं,
गोदामों  -  दूकानों   में  हैं,
कोर्ट - कचहरी  थानों में हैं,
सदनों के  भीतर  बैठे  कुछ  माउस  खद्दरधारी।
दुनिया  के  कोने - कोने मे  इनकी नम्बरदारी।।


जनता  को  ये  डाट  रहे   है,
मालपुआ   खुद  काट  रहे  है,
माउस  जो  खुर्राट  रहे     हैं,
भ्रष्ट   प्रशासन   बाट  रहे  हैं,
कुछ डंडा अधिकारी माउस कुछ  माउस  पटवारी।  
दुनिया  के   कोने - कोने मे  इनकी  नम्बरदारी।।


माउस  थल में, माउस  जल में,
माउस  बसते हैं दल - दल   में,
माउस सबके  अगल - बगल  में,
माउस युग  की  हर हलचल में,
वैसे  नहीं  चुना गण-पति ने अपनी इन्हें  सवारी। 
दुनिया  के  कोने - कोने मे  इनकी  नम्बरदारी।।

30.3.10

लोकसंघर्ष परिवार ने अपना शुभचिंतक खो दिया

लोकसंघर्ष पत्रिका के कार्यक्रम को संबोधित करती मोना. .हार्वे


लोकसंघर्ष परिवार की शुभचिंतक तथा पत्रिका के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान अदा करने वाली अदाकारा मोना. .हार्वे की हत्या उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बदमाशों ने उनके सर को मेज के पाये से कूंच कर कर डाली। मोना फिल्म उमराव जान में रेखा की सहेली का रोल किया था। वह हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर थी। लालबाग के कंधारी लेन के मकान नंबर 26 में 62 वर्षीय मोना अकेले रहती थी। इससे पूर्व लखनऊ में ही अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठन की पूर्व अंतर्राष्ट्रीय महासचिव सुरजीत कौर की हत्या रात को उनके मकान में कैंची से गला काट कर कर दी गयी थी। उत्तर प्रदेश में सरकारें चाहे जो भी दावा करें, कानून व्यवस्था की स्तिथि ठीक नहीं है। अकेले रहने वाली महिलाओं का जीवन सुरक्षित नहीं रह गया है। राह चलते महिलाओं के साथ बदतमीजी, चेन स्नेचिंग आम बात है। प्रदेश के पुलिस मुखिया चाहे जो राग अलापे एक मामूली चोरी का खुलासा करने में असमर्थ हैं लोकसंघर्ष परिवार मोना जी हत्या से अत्यंत दुखी है और हमारे परिवार ने अपना एक शुभचिंतक खो दिया है।


नवाब वाजिद अली शाह की वाल पेंटिंग के साथ मोना.ए.हार्वे

29.3.10

तूने जो मूँद ली आँखें

पलक झपकते ही तूने जो मूँद ली आँखें,
किसे खबर थी कभी अब ये खुल पाएंगी
मेरी सदाएँ, मेरी आहें, मेरी फरियादें,
फ़लक को छूके भी नाकाम लौट आएँगी

जवान बेटे की बेवक्त मौत ने तुझको,
दिए वो जख्म जो ता़ज़ीश्त मुंदमिल हुए
मैं जानता हूँ यही जाँ गुदाज़़ घाव तुझे,
मा-आलेकार बहुत दूर ले गया मुझसे

वह हम नवायी वाह राज़ो नियाज़़ की बातें,
भली सी लगती थी फहमाइशें भी मुझको तेरी
एक-एक बात तेरी थी अजीज तर मुझको,
हज़ार हैफ् ! वो सव छीन गयी मता--मेरी

हमारी जिंदगी थी यूँ तो खुशग़वार मगर,
जरूर मैंने तुझे रंज भी दिए होंगे
तरसती रह गयी होंगी बहुत तम्मानाएँ,
बहुत से वलवले पामाल भी हुए होंगे

ये सूना-सूना सा घर रात का ये सन्नाटा,
तुझी को ढूँढती है बार-बार मेरी नज़र
राहे-हयात का भटका हुआ मुसाफिर हूँ,
तेरे बगैर हर एक राह बंद है मुझपर

मगर यकीं है मुझे तुझको जब भी पा लूँगा,
खतायें जितनी भी हैं सारी बक्श्वा लूँगा

ता़ज़ीश्त-आजीवन, मुंदमिल- धुन्धलाना, वलवले- भावनाएँ, हैफ् - अफ़सोस, मता-- सम्पत्ति

महेंद्र प्रताप 'चाँद'
अम्बाला
भारत

पकिस्तान के रावलपिंडी से प्रकाशित चहारसू (मार्च-अप्रैल अंक 2010) से श्री गुलज़ार जावेद की अनुमति से उक्त कविता यहाँ प्रकाशित की जा रही हैजिसका लिपिआंतरण मोहम्मद जमील शास्त्री ने किया है

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

28.3.10

अल्लाह के घर महफ़ूज़ नहीं हैं

महफ़ूज़ नहीं घर बन्दों के, अल्लाह के घर महफूज़ नहीं।
इस आग और खून की होली में, अब कोई बशर महफ़ूज़ नहीं॥
शोलों की तपिश बढ़ते-बढ़ते, हर आँगन तक आ पहुंची है।
अब फूल झुलसते जाते हैं, पेड़ों के शजर महफ़ूज़ नहीं॥
कल तक थी सुकूँ जिन शहरों में, वह मौत की दस्तक सुनते हैं ।
हर रोज धमाके होते हैं, अब कोई नगर महफ़ूज़ नहीं॥
दिन-रात भड़कती दोजख में, जिस्मों का ईधन पड़ता है॥
क्या जिक्र हो, आम इंसानों का, खुद फितना गर महफ़ूज़ नहीं॥
आबाद मकां इक लमहे में, वीरान खंडर बन जाते हैं।
दीवारों-दर महफ़ूज़ नहीं, और जैद-ओ-बकर महफ़ूज़ नहीं॥
शमशान बने कूचे गलियां, हर सिम्त मची है आहो फुगाँ ।
फ़रियाद है माओं बहनों की, अब लख्ते-जिगर महफ़ूज़ नहीं ॥
इंसान को डर इंसानों से, इंसान नुमा हैवानों से।
महफूज़ नहीं सर पर शिमले, शिमलों में सर महफूज़ नहीं॥
महंगा हो अगर आटा अर्शी, और खुदकश जैकेट सस्ती हो,
फिर मौत का भंगड़ा होता है, फिर कोई बशर महफ़ूज़ नहीं॥

-इरशाद 'अर्शी' मलिक
पकिस्तान के रावलपिंडी से प्रकाशित चहारसू (मार्च-अप्रैल अंक 2010) से श्री गुलज़ार जावेद की अनुमति से उक्त कविता यहाँ प्रकाशित की जा रही हैजिसका लिपिआंतरण मोहम्मद जमील शास्त्री ने किया है

सुमन
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27.3.10

गिरगिट हैं या भारतीय संघ के अधिकारी


बाबरी मस्जिद को तोड़ने के अपराधिक मामले में आई.पी.एस अधिकारी अंजू गुप्ता ने लाल कृष्ण अडवानी आदि अभियुक्तों के खिलाफ न्यायलय के समक्ष जोरदार तरीके से अभियोजन पक्ष की तरफ से गवाही दी। श्रीमती अंजू गुप्ता ने अपने बयानों में लाल कृष्ण अडवानी के जोशीले भाषण को बाबरी मस्जिद ध्वंश का भी एक कारण बताया है। इसके पूर्व 7 वर्ष पहले श्रीमती अंजू गुप्ता के बयान का आधार पर अभियुक्त तथा पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवानी को विशेष न्यायलय ने आरोपों से उन्मोचित कर दिया था । इस तरह से अदालत गवाह अधिकारियों के गिरगिट की तरह रंग बदलने के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं करती है । उस समय के कमिश्नर फैजाबाद जो घटना के लिए जिम्मेदार थे, एस.पी गौड़ वह आज भी भारतीय संघ में प्रतिनियुक्त पर तैनात हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख अधिकारी जो बाबरी मस्जिद ध्वंस के समय थे वे रिटायर हो चुके हैं या मर चुके है। सवाल इस बात का है कि क्या उस समय भारतीय संघ इतना कमजोर हो चुका था कि वह एक मस्जिद कि सुरक्षा नहीं कर पाया ? दूसरी तरफ नौकरशाही कि कोई जिम्मेदारी तय न होने के कारण वह गिरगिट कि तरह रंग बदलती रहती है । कोई भी मामला हो नौकरशाही बड़े से बड़े अपराध कर रही है और भारतीय संघ उनको दण्डित करने में अक्षम साबित हो रहा है । हद तो यहाँ तक हो जाती है कि बड़े से बड़ा अपराधी नौकरशाह समयबद्ध प्रौन्नति के तहत कैबिनेट सचिव तक हो जाता है और उसके द्वारा किये गए अपराधों के लिए दण्डित नहीं किया जाता है, यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है । श्रीमती अंजू गुप्ता को न्यायलय के समक्ष शपथ पूर्वक बयान बार-बार बदलने पर बर्खास्त करके अपराधिक विधि के अनुरूप वाद चलाना चाहिए तभी लोकतंत्र बचेगा

सुमन
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एक्सिस बैंक की 999वीं शाखा का उद्‌घाटन संपन्न


सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों में एक्सिस बैंक की शाखा का उद्‌घाटन समारोह संपन्न हुआ। समारोह में मुख्यातिथि एसडीएम सत्यवान इंदौरा तथा विशिष्ट अतिथि बैंक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजेश वधवा रहे। मुख्यातिथि सत्यवान इंदौरा तथा विशिष्ट अतिथि राजेश वधवा ने दीप प्रज्ज्वलित करके बैंक की 999वीं शाखा का विधिवत रूप से शुभारंभ किया। उद्‌घाटन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यातिथि एसडीएम सत्यवान इंदौरा ने बैंक शाखा को क्षेत्र के लोगों को समर्पित करते हुए कहा कि यह बैंक अपनी कार्यशैली को लेकर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाए हुए है। उन्होंने उमीद जताई कि यह बैंक उपभोक्ताओं की जरूरत एवं सुविधाओं के अनुसार अपनी सेवाएं देगा। इस मौके पर बैंक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजेश वधवा ने बताया कि उनका बैंक आधुनिक तकनीक एवं व्यक्तिगत सेवाएं देने के मामले में देश का तीसरा बड़ा बैंक है। आज देशभर के मुख्य शहरों व कस्बों में उनके बैंक की एटीएम मशीनें स्थापित हैं जो लोगों को 24 घंटे सेवाएं दे रही हैं। ईडीसी नेटवर्क में उनका बैंक देश में दुसरे स्थान पर है। उनके बैंक की सबसे खास बात यह है कि उनका उपभोक्ता देश की किसी भी ब्रांच से अपने खाते का संचालन कर सकता है। बैंक के शाखा प्रबंधक रोहित गुप्ता ने सभी का अभिनंदन किया तथा आश्र्वासन दिया कि उपभोक्ताओं को उनके बैंक की तरफ से कोई दिक्कत नहीं आएगी।

26.3.10

बसपाईयों ने फूंका मानसिंह मनहेड़ा का पूतला


सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों में बसपा के प्रदेश महासचिव राजसिंह चौहान की अध्यक्षता में के बसपा वर्करों ने अपनी ही पार्टी के प्रदेश प्रभारी मानसिंह मनहेड़ा का पूतला फूंका बसपा वर्कर कस्बे के बस स्टैंड पर इकट्ठा हुए तथा मानसिंह मनहेड़ा के खिलाफ जोरदार नारेंबाजी करते हुए उनका पूतला फूंक डाला। वर्करों को संबोधित करते हुए बसपा के प्रदेश महासचिव राजसिंह चौहान ने कहा कि आज हरियाणा प्रदेश में मानसिंह मनहेड़ा के खिलाफ आंदोलन तेज होता जा रहा है। पार्टी की अध्यक्षा मायावती ने मानसिंह मनहेड़ा को हरियाणा का प्रभारी बनाकर भेजा था लेकिन मनहेड़ा ने पूरें हरियाणा में बसपा को कांग्रेस के हाथों बेचकर मायावती की पीठ में छूरा घोपने का काम किया है। मानसिंह मनहेड़ा ने प्रदेश के दलित समाज कों धोखा दिया है प्रदेश का दलित समाज किसी भी सूरत में मनहेड़ा की घटिया राजनीति को बर्दास्त नहीं करेगा उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनावों में बसपा को जो भी वोट मिले वह मनहेड़ा के नाम पर नहीं बल्कि कुमारी मायावती के नाम पर मिले हैं। लोकसभा चुनावों में मनहेड़ा ने बिना वर्करों की सलाह के अपनी मनमर्जी से कांग्रेस पार्टी से मिलकर टिकट बांटे जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश में पार्टी का वोट प्रतिशत था वह कम हुआ उन्होंने कहा कि मानसिंह मनहेड़ा की तानाशाही से तंग आकर काफी वर्करों ने पार्टी को अलविदा कह दिया हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मनहेड़ा कांग्रेस पार्टी का एजेंट है तथा उन्हे सिर्फ पैसे से प्यार है।

लो क सं घ र्ष !: उ0प्र0 सरकार का गुप्त हिन्दुत्व एजेन्डा

मुजफ्फरनगर जिले की खतोली तहसील में स्थित थाना मंसूरपुर के ग्राम पोर बालियान में एक मस्जिद को गिरा कर उस पर पुलिस चौकी स्थापित करने का मामला चर्चा में आया है। समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार को संज्ञान में लेते हुए उ0प्र0 अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष एस0एम0ए0 काजमी ने मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी से रिपोर्ट भी तलब कर ली है। पुलिस का कहना है कि उसने ग्राम पंचायत की भूमि पर नाजायज तौर पर बनी इमारत से उसे रिक्त कराया है। जबकि मुस्लिम पक्ष के अनुसार ग्राम पंचायत की भूमि का पट्टा एक मुसलमान शरीफ को हुआ था जिसके मरणोपरांत उसके लड़के ने इस पर मस्जिद दारूल उलूम देवबन्द से फतवा लेने के बाद बनवाई थी।
यह बात बिल्कुल दुरूस्त है कि किसी विवादित भूमि पर मस्जिद नहीं बनवाई जा सकती है मस्जिद के लिए शरई हुक्म है कि वह भूमि हर विवाद से पाक-साफ हो और उसे ईश्वर के नाम पर वक्फ किया गया हो। मुजफ्फर नगर की मस्जिद यदि ग्राम समाज की भूमि पर धोखाधड़ी से बनवाई गई थी तो वह मस्जिद की ईमारत तो हो सकती है अल्लाह का इबादतगाह नहीं।
मुजफ्फरनगर की तहसील खतोली के ग्राम पोर बालियान की यह मस्जिद जो उस क्षेत्र के एक पुलिस अधिकारी राजू मल्होत्रा ने बुलडोजर चलवा कर उस पर पुलिस चैकी का बोर्ड लगवाने का कार्य बगैर जिला प्रशासन के किया जैसा कि जिलाधिकारी संतोष कुमार यादव के बयान से जाहिर है जो समाचार पत्रों में आया। विवादित भूमि का पट्टा ग्राम प्रधान द्वारा वर्ष 1967 में गांव के एक भूमिहीन शरीफ अहमद के नाम हुआ था जिनके मरने के पश्चात उनके वारिस पुत्र द्वारा इस पर मस्जिद का निर्माण बाकायदा दारूल उलूम देवबंद से फतवा हासिल कर करवाया था। गांव के लोग उस पर वर्षों से नमाज अदा करते चले आ रहे थें।
यह सही है कि सार्वजनिक भूमि पर बगैर अनुमति के केाई धार्मिक स्थल नहीं निर्मित किया जाना चाहिए और जिसको गंभीरता से लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी प्रांतों से सितम्बर 2009 के पूर्व में सार्वजनिक भूमि पर निर्मित धार्मिक स्थलों को चिंहांकित करने के निर्देश भी दिए हैं।
परन्तु पुलिस प्रदेश के हर थाने व पुलिस लाइन में अवैध रूप से बनाए गये मंदिरों के बारे में क्या कहेगी? क्या यह नेक काम अपने स्वयं के घर से नही प्रारम्भ कर सकती थी? अकेले मस्जिद पर कार्यवाई करना क्या न्यायोचित है?
आज प्रदेश में मस्जिद बनाने के लिए मुसलमान डरता है वक्फ बोर्ड जिसका अपर सर्वे आयुक्त स्वयं जिले का हाकिम यानि जिलाधिकारी होता है वह मस्जिद के नाम पर अनुमति यह कहकर नहीं देता कि इससे शांति भंग होने की संभावना उत्पन्न हो सकती है। मुसलमानों को साफ तौर पर संविधान में दी गई उनकी धार्मिक आजादी का उल्लंघन है परन्तु मंदिर बनाने के लिए कोई रोक नहीं चाहे वह थाना हो या कोतवाली या तहसील परिसर।
कहने को तो भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है परन्तु धर्म निरपेक्षता का अनुसरण करने के क्या यही तौर तरीके हैं कि देश के दूसरे नम्बर के बहुसंख्यक जिन्हें अल्पसंख्यक कहकर उन्हें विशेष अधिकार का दर्जा भी दिया गया है उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर इस प्रकार से आघात किया जाये। उनकी सामाजिक व शैक्षिक उन्नति पर सम्प्रदायिक भावना से ओत प्रोत होकर अंकुश लगाया जाए यह कहाँ का इंसाफ है क्या खुफिया तौर पर प्रदेश में यह हिन्दुवत्व वाली विचारधारा के एजेण्डे का हिस्सा तो नहीं।

मो0 तारिक खान

25.3.10

भारत का पहला डेडिकेटेड ऑनलाइन न्यूज़ चैनल " प्रहरी लाइव" की शुरूआत


इंटरनेट पर ब्लोगिंग, पॉडकास्टिंग और वोडकास्टिंग  के बाद अब समय आ गया है , लाइव ब्लागिंग का. क्योंकि  शुरुआत हो चुकी है भारत के पहले ऑनलाइन न्यूज़ चैनल, प्रहरी Live की.
हमारी अब तक की कोशिश रही है की ब्लाग को एक सशक्त मीडिया के रूप  स्थापित किया जाये. इस दिशा में यह आवश्यक हो चला है ब्लाग उतना ही तीव्र, प्रभावी और तथ्यपरक हो जितना कि अन्य मुख्यधारा के औजार हैं और इसके लिए वीडियो से बढ़कर  कोई और जरिया नहीं है .
प्रहरी Live एक ऐसा माध्यम होगा जहाँ आप एक साथ खबरों को पढ़  सुन और देख सकते हैं. इसके अलावा आप अपनी प्रतिक्रियाएं भी टेक्स्ट, आडियो और वीडियो फोर्मेट  में व्यक्त कर सकेंगे . इंटरनेट की उपलब्ध तमाम विशेषताओं को एक मंच पर समेट कर, इन्टरनेट के चाहने वालों के लिए प्रस्तुत करने की हमारी योजना आज साकार हो "प्रहरी Live " के  रूप में सामने है .प्रहरी Live ब्लाग पर सक्रिय अत्यंत प्रभावशाली और बेबाक अभिव्यक्तियाँ एक सहज, सुलभ और सशक्त माध्यम को पाकर एक बेहतर विकल्प  हैं . 
इस योजना को अमली जामा पहनने के  लिए गत ४ महीनो से अथक शोध और परिश्रम किया जा रहा था. हालांकि आपके सामने प्रस्तुत यह पोर्टल अभी निर्माण प्रक्रिया में है. साईट पर उपलब्ध सामग्री केवल परिचयात्मक है. जिसका हमारे उद्देश्यों से कोई सरोकार नहीं है. जल्द हीं तकनीकी जटिलताओं को दूर कर हम अपने मूल रूप में आपके सामने होंगे. आशा है आप सभी का भरपूर सहयोग मिलेगा 

संभालो अपने जीवन की कली को

सरकार का विज्ञापन या निम्नकोटि के शोहदों का उवाच

पहले माओवादियों ने खुशहाल जीवन का वादा किया
फिर, वे मेरे पति को अगवा कर ले गए
फिर, उन्होंने गाँव के स्कूल को उड़ा डाला
अब, वे मेरी 14 साल की लड़की को ले जाना चाहते हैं
रोको, रोको, भगवान के लिए इस अत्याचार को रोको

यह विज्ञापन भारत सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा जनहित में जारी किया गया है अब, वे मेरी 14 साल की लड़की को ले जाना चाहते हैं यह बात संभावनाओं पर है और इस तरह के आरोप प्रत्यारोप मोहल्ले के तुच्छ किस्म के शोहदे किया करते हैं। भारत सरकार के विज्ञापनों में इस तरह के अनर्गल आरोप लगाने की परंपरा नहीं रही है । गृह मंत्रालय माओवाद के कार्य क्रियाशील क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को समाप्त करता है। विधि सम्मत व्यवस्था जब समाप्त होती है तब हिंसा का दौर शुरू होता है । आज देश की राजधानी दिल्ली से लेकर लखनऊ तक प्रत्येक विधि सम्मत कार्य को करवाने के लिए घूश की दरें तय हैं . घुश अदा न करने पर इतनी आपत्तियां लग जाएँगी की इस जनम में कार्य नहीं होगा। एक सादाहरण सा ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में अच्छे-अच्छे लोगों को दलाल का सहारा लेना पड़ता है और तुरंत कार्य हो जाता है यदि आप अपना लाइसेंस बगैर घूश के बनवाना चाहते हैं तो कई दिनों की प्रक्रिया बनवानी पड़ेगी जिसमें आपका हर तरह से उत्पीडन किया जायेगा। चौराहे पर ट्राफ़िक पुलिस की भी ड्यूटी उसको चौराहे की वसूली के आधार पर मासिक देने पर ही लगती है और भ्रष्टाचार का यह रूप गृह मंत्रालय को नहीं दिखता है। राजधानी से दूर के हिस्सों में अधिकारीयों का जंगल राज है और अधिकारियों द्वारा सीधे सीधे आदिवासियों व किसानो के यहाँ डकैतियां डाली जा रही हैं जिसका विरोध होना लाजमी है। कौन सा कुकर्म इन लोगो ने गाँव की भोली जनता के साथ नहीं किया है । मैं माओवाद समर्थक नहीं हूँ लेकिन इस भ्रष्ट तंत्र के साथ भी नहीं हूँ यदि समय रहते भारत सरकार ने अपने नौकरशाहों को भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं किया तो देश की सारी सम्पदा उनके बैंक खातों में ही नजर आएगी। इस तरह के विज्ञापन जारी कर गृहमंत्रालय समझ रहा है की हम चरित्र हत्या कर के अपनी असफलताओं को छिपा लेंगे। एस.पी.एस राठौर, के.पि. एस गिल जैसे अधिकारियों को सरकार माओवादी घोषित क्यों नहीं करती ? अब सरकार को चाहिए की अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के चरित्र चित्रण आए दिन मीडिया में छाए रहते हैं उसकी ओर ध्यान दे।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

24.3.10

दीन पर भारी पड़ता मुसलमान का दुनियावी प्रेम

नवाबों के शहर लखनऊ में अमरीकी राजदूत रिमोथी जे0 रोमर ने गत सप्ताह मुस्लिम शैक्षिक संस्थानों व सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत इमाम बाड़े का दौरा कर कहा कि वह राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुहब्बत व अमन के पैगाम को लेकर यहां आए हैं। यह दौरा ठीक उस समय क्यों हुआ जब आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन यहां आयोजित हो रहा था, यह एक विचारणीय प्रश्न है?
मुसलमानों के शरई अधिकारों को सुरक्षित रखने, उनके शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान की तदबीरे ढूढ़ने तथा मुस्लिम एकता को कायम रखने के दृष्टिकोण से आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के 21वें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नदवा यूनीवर्सिटी में हुआ तदोपरान्त एक जलसे आम ऐशबाग ईदगाह में हुआ जहां एक लाख से ऊपर मुसलमानों के ढारे मारते समुद्र ने उलमाए ए दीन के उपदेश व वसीहते सुनी।
इससे तीन दिन पूर्व अमरीकी राजदूत रिमोथी जे0 रोमर ने लखनऊ में अपने दौरे के दौरान मुस्लिम शैक्षिक संस्थान शिया कालेज, करामत हुसैन गल्र्स डिग्री कालेज व ऐतिहासिक इमामबाड़ों का भ्रमण किया और शहर लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब की जमकर तारीफ की।
यह दोनों उल्लेखनीय घटनाएं परस्पर विरोधाभासी लगती है क्योंकि एक ओर अमरीका की विश्व स्तरीय मुस्लिम विरोधी नीतियों , जिसके चलते ईराक, अफगानिस्तान की ईंट से ईंट बज गई लाखों व्यक्ति शान्ति के नाम पर अमरीका के सैन्य अभियान में मारे गये जिनमें काफी संख्या में औरते व मासूम बच्चे थे और अब पाकिस्तान का नम्बर चल रहा है। ईरान व यमन दूसरा निशाना है जहाँ अमरीका किसी भी समय सैनिक कार्यवाई कर सकता है। दूसरी ओर मुस्लिम उलेमा का अधिवेशन जिसमें अमरीका व इजराइल के विरूद्ध प्रस्ताव पारित कर मुसलमानों के ऊपर जुल्म व अत्याचार ढाने का विरोध किया गया तथा इजरायल के साथ बढ़ती हिन्दुस्तानी दोस्ती पर चिंता व्यक्त की गई।
परन्तु इसके विपरीत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा व आर्थिक अनुदान प्राप्त करामत मुस्लिम गर्ल्स डिग्री कालेज व शिया पी0जी0 कालेज में अमरीकी राजदूत का आदर सत्कार करना और छात्राओं के द्वारा उनके गले में मालाएं डालना एक विरोधाभासी बात लगती है। और सबसे अधिक तो इमामबाड़े में उनका खैर मकदम आश्चर्यजनक है जहाँ अनेक बार अमरीका के विरूद्ध उलेमा ने भाषण देकर अमरीका और उसके पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के पुतले जलाएं गये।
मुस्लिम समुदाय द्वारा ऐसे समय पर अमरीकी राजदूत का महिमामण्डप किया जाना जब अमरीका का संरक्षण प्राप्त इजरायल द्वारा मुसलमानों की अति पवित्र माने जाने वाली मस्जिद अक्सा से नमाजियों को मार भगाया गया और विरोध करने पर कई लोगों को जान भी गवानी पड़ी। परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में इसके विरूद्ध जोरदार आवाज उठी। परन्तु अमरीका खामोश है और इजरायल के विरूद्ध उठती हर आवाज को दबाने में लगा हुआ है।
दर हकीकत मुलसमानों की पूरे विश्व में थुकका फजीहत का मुख्य कारण यही है कि उनका चरित्र खोखला हो चुका है उसे दूसरी कौमों की भांति दुनिया के सुख-संसाधनों की चाह अधिक और दीन धर्म केवल सामाजिक आवश्यकता तक ही उनके अन्दर सीमित रह गया है। उस पर स्वार्थहित इतना हावी हो गया है कि किसी से भी उसे दो टके मिलने की उम्मीद हो तो वह अपनी लार टपकाने लगता है।


-मोहम्मद तारिक खान

अपने ही देश में आतंकित क्यों?

मै कोई शायर नहीं और न ही मै कोई लेखक हूँ। भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग कर अपने पांडित्य का लोहा मनवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझता। मै सीधा-सरल व्यक्ति हूँ, पक्का मुसलमान और कट्टर राष्ट्रवादी हूँ। अकबर खान मेरा नाम है।
कुछ बरसों तक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में काम किया तथा खूब वाहवाही बटोरी परन्तु इसी दौरान मैंने अपनी भारतीय समाज रूपी फसल में विभिन्न प्रकार के कीड़े एवं कबाड़ देखा, जिसे समाप्त करना अति आवश्यक है
आखिर आज हम अपने ही देश में आतंकित क्यों है? आतंकवाद से, भ्रष्टाचार से, लापरवाही से, अनियमितता से, अनुशासनहीनता से तथा ................से, ...................से और .......................से दरअसल समानार्थक से दिखने वाले यें शब्द हमारे समाज की विभिन्न बिमारियों की ओर इंगित करते हैं
आज सबसे पहले आतंकवाद से सम्बन्धित एक अति संवेदनशील रग को छेड़ते हैं इस दर्द से जूझने वाले भली-भांति समझ सकते हैं कि मेरा मकसद तो केवल राहत है. हालाँकि इस रग को छेड़ने से थोडा या बहुत दर्द तो अवश्यम्भावी है इस बात के लिए मै क्षमा का याचक हूँ
उस आतंकवाद की बात करेंगे, जो देश के अन्दर इसी देश के लोगों द्वारा फैलाया जाता है जैसा की मैंने शुरू में ही कहा था कि मै एक सीधा और सरल व्यक्ति हूँ इसलिए बात भी सीधी ही करता हूँ
तो क्या आपकी राय में इस देश में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में मुसलमानों का ही हाथ होता है? अगर हाँ, तो आखिर ऐसा क्यों हैं? आपकी निष्पक्ष एवं ईमानदार राय(टिप्पणियों) के बाद आगे की बात ........................

23.3.10

प्रबंधक कमेटी के गठन में प्रधानमंत्री बड़ा रोड़ा : झींडा

सफीदों, (हरियाणा) : हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के गठन में आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंजाब के मुखयमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बहकावे में आकर सबसे बड़ा रोड़ा बने बैठे हैं। यह बात हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश सिंह झींडा ने लोक निर्माण विश्रामगृह में पत्रकार समेलन को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार ने प्रदेश के सिखों की भावना को देखते हुए हरियाणा की अलग कमेटी बनाने को मंजूरी देने का मसौदा तैयार किया है लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंजाब के मुखयमंत्री प्रकाश सिंह बादल के दबाव में आकर इसके गठन को लेकर देरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अलग कमेटी के गठन में जो भी उनके अधिकारों के बीच में आएगा हरियाणा के सिख उसका डटकर विरोध करेंगेहरियाणा के सिख अपनी मांगों को लेकर अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष अपना संघर्ष् करवाएंगे उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक लोग हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी की मांग को धार्मिक मांग कहकर उसे उलझाने का प्रयास कर रहे हैं। झींडा ने साफ किया कि उनकी यह मांग धार्मिक नहीं बल्कि हरियाणा-पंजाब बंटवारे के वक्त बने कानून उनकी यह संविधानिक मांग सपष्ट है। उन्होंने पंजाबी भाषा को हरियाणा में दूसरी भाषा का दर्जा देने के लिए मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हुड्डा ने पंजाबी भाषा को दूसरा दर्जा देकर हरियाणा में एक इतिहास रच दिया है। उन्होंने कहा कि पंजाबी भाषा को देश की दूसरी भाषा घोष्ति कराने को लेकर हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को कई बार ज्ञापन सौंपा चुकी है। उनकी इस मांग को सबसे पहले हरियाणा में लागू करके मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश की जनता को मानसमान प्रदान किया है। ऐसे हालात में हरियाणा के लोगों का भी फर्ज बनता है कि वे मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की इस पहल का आभार प्रकट करव्ं। हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने ये फैसला किया है कि पंजाबी भाष को प्रदेश में दूसरा दर्जा दिए जाने पर रविवार ख्त्त् मार्च को पिपली (कुरूक्षेत्र) में मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अभिनंदन करके उनका आभार प्रकट करेंगे

यह लोहिया की सदी हो -वेदप्रताप वैदिक

डॉवेदप्रताप वैदिक जी ने यह आलेख हमे -मेल से भेजा है, जो यहाँ आपके लिए प्रस्तुत हैI

यह
लोहिया की सदी हो

जन्म शताब्दियां तो कई नेताओं की मन रही हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि स्वतंत्र भारत में क्या राममनोहर लोहिया जैसा कोई और नेता हुआ है? इसमें शक नहीं कि पिछले 63 सालों में कई बड़े नेता हुए, कुछ बड़े प्रधानमंत्री भी हुए, लेकिन लोहिया ने जैसे देश हिलाया, किसी अन्य नेता ने नहीं हिलाया।
उन्हें कुल 57 साल का जीवन मिला, लेकिन इतने छोटे से जीवन में उन्होंने जितने चमत्कारी काम किए, किसने किए? जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से लोहिया का अपने युवाकाल में कैसा आत्मीय संबंध था, यह सबको पता है। लेकिन यदि लोहिया नहीं होते तो क्या भारत का लोकतंत्र शुद्ध परिवारतंत्र में नहीं बदल जाता?
वे लोहिया ही थे, जो नेहरू की दो-टूक आलोचना करते थे। चीनी हमले के बाद लोहिया ने ही नेहरू सरकार कोराष्ट्रीय शर्म की सरकारकहा था। उन्होंने हीतीन आनेकी बहस छेड़ी थी। यानी इस गरीब देश का प्रधानमंत्री खुद पर 25 हजार रुपए रोज खर्च करता है, जबकि आम आदमीतीन आने रोजपर गुजारा करता है। लोहिया ने ही उस समय की अति प्रशंसित गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति पर प्रश्नचिह्न् लगाए थे और नेहरूजी कीविश्वयारीपर तीखे व्यंग्य बाण चलाए थे।
उन्होंने सरकारी तंत्र के मुगलिया ठाठ-बाट की निंदा इतने कड़े शब्दों में की थी कि सारा तंत्र भर्राने लगा था। उन्होंने देश के हजारों नौजवानों में सरफरोशी का जोश भर दिया था। सारे देश में तरह-तरह के मुद्दों पर सिविल नाफरमानी के आंदोलन चला करते थे। राजनारायण, मधु लिमये, रवि राय, किशन पटनायक, एसएम जोशी, लाडली मोहन निगम, जॉर्ज फर्नाडीज जैसे कई छोटे-मोटे मसीहा लोहिया ने सारे देश में खड़े कर दिए थे। कहीं जेल भरो, कहीं रेल रोको, कहीं अंग्रेजी नामपट पोतो, कहीं जात तोड़ो, कहीं कच्छ बचाओ, कहीं भारत-पाक एका करो जैसे आंदोलन निरंतर चला करते थे।
लोहिया के आंदोलनों में अहिंसा का ऊंचा स्थान था, लेकिन वे वस्तु की हिंसा यानी तोड़-फोड़ को हिंसा नहीं मानते थे। उन्होंने प्राण की हिंसा करने वाली यानी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाली अपनी ही केरल की सरकार को गिरवा दिया था। लोहिया ने भारत के नेताओं और राजनीतिक दलों को यह सिखाया कि सशक्त विपक्ष की भूमिका कैसे निभाई जाती है? लोकसभा में लोहियाजी की संसोपा के दर्जनभर सदस्य भी नहीं होते थे, लेकिन वहां बादशाहत संसोपा की ही चलती थी। जब लोहिया और मधु लिमये सदन में प्रवेश करते थे तो वह समां देखने लायक होता था। एक करंट-सा दौड़ जाता था। मंत्रिमंडल के सदस्य लगभगअटेंशनकी मुद्रा में जाते थे और स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चेहरे पर बेचैनी छा जाती थी।
दर्शक दीर्घा में बैठे लोग कहते सुने जाते थे, वो लो, डॉक्टर साहब गए। डॉक्टर लोहिया ने अपनी उपस्थिति से लोकसभा को राष्ट्र का लोकमंच बना दिया। जिस दबे-पिसे इंसान की आवाज सुनने वाला कोई नहीं होता, उसकी आवाज को हजार गुना ताकतवर बनाकर सारे देश में गुंजाने का काम डॉ लोहिया करते। कोई मामूली मजदूर हो, कोई सफाई कामगार हो, कोई भिखारी या भिखारिन हो- डॉ लोहिया उसे न्याय दिलाने के लिए अकेले ही संसद को हिला देते थे। लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह कई बार बिल्कुल पस्त हो जाते थे। मई 1966 में जब डॉ लोहिया ने मेरा अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पीएचडी का शोध-प्रबंध हिंदी में लिखने का मामला उठाया तो इतना जबर्दस्त हंगामा हुआ कि सदन में मार्शल को बुलाना पड़ा। डॉ लोहिया और उनके शिष्यों के तर्क इतने प्रबल थे कि सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने मेरा समर्थन किया। इंदिराजी के हस्तक्षेप पर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज ने अपना संविधान बदला और मुझे यानी प्रत्येक भारतीय को पहली बार स्वभाषा के माध्यम सेडॉक्टरेटकरने का अधिकार मिला।
डॉ लोहिया के व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण था। वे देखने में सुंदर नहीं थे। उनका कद छोटा और रंग सांवला था। उनके खिचड़ी बाल प्राय: अस्त-व्यस्त रहते थे। उनके खादी के कपड़े साफ-सुथरे होते थे, लेकिन उनमें नेहरू या जगजीवनराम या सत्यनारायण सिंह जैसी चमक-दमक नहीं रहती थी। वे सादगी और सच्चई की प्रतिमूर्ति थे। वे जिस विषय पर भी बोलते थे, उसमें मौलिकता और निर्भीकता होती थी। वे सीता-सावित्री पर बोलें, शिव-पार्वती पर बोलें, हिंदू-मुसलमान या नर-नारी समता पर बोलें, अंग्रेजी हटाओ या जात तोड़ो पर बोलें- उनके तर्क प्राणलेवा होते थे। जो एक बार डॉ लोहिया को सुन ले या उनको पढ़ ले, वह उनका मुरीद हो जाता था।
डॉ लोहिया ने अपने भाषण और लेखन में जितने विविध विषयों पर बहस चलाई है, देश के किसी अन्य राजनेता ने नहीं चलाई। सिर्फ डॉ भीमराव आंबेडकर और विनायक दामोदर सावरकर ही ऐसे दो अन्य विचारशील नेता दिखाई पड़ते हैं, जो डॉ लोहिया की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। डॉ लोहिया ने जर्मनी से डॉक्टरेट की थी। इस खोजी वृत्ति के कारण वे हर समस्या की जड़ में पहुंचने की कोशिश करते थे। सप्रू हाउस में उस समय रिसर्च कर रहे डॉ परिमल कुमार दास, प्रो कृष्णनाथ और मेरे जैसे कई नौजवान उनके अवैतनिक सिपाही थे। इसी का परिणाम था कि 1967 में डॉ लोहिया देश में गैर कांग्रेसवाद की लहर उठाने में सफल हुए। जनसंघियों और कम्युनिस्टों ने भी उनका साथ दिया और देश के अनेक प्रांतों में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं। यदि डॉक्टर लोहिया 10-15 साल और जीवित रहते तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता था? अब से 30-35 साल पहले ही भारत का चमत्कारी रूपांतरण शुरू हो जाता और अब तक वह दुनिया की ऐसी अनूठी महाशक्ति बन जाता, जिसका जोड़ इतिहास में कहीं नहीं मिलता।
जो भी हो, डॉ लोहिया असमय चले गए हों, लेकिन उनके विचार इस इक्कीसवीं सदी के प्रकाश-स्तंभ की तरह हैं। सप्त-क्रांति का उनका सपना अभी भी अधूरा है। जाति-भेद, रंग-भेद, लिंग-भेद, वर्ग-भेद, भाषा-भेद और शस्त्र-भेद रहित समाज का निर्माण करने वाले नेता अब ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते। इस समय सभी दल चुनाव की मशीन बन गए हैं। वे सत्ता और पत्ता के दीवाने हैं। यदि डॉ लोहिया का साहित्य व्यापक पैमाने पर पढ़ा जाए तो आशा बंधेगी कि शायद आदर्शवादी नौजवानों की कोई ऐसी लहर उठ जाए, जो इस भारत को नए भारत में और इस दुनिया को नई दुनिया में बदल दे। लोहिया को गए अभी सिर्फ 43 साल ही हुए हैं। उनका शरीर गया है, विचार नहीं, विचार अमर हैं। विचारों को परवान चढ़ने में कई बार सदियों का समय लगता है। अभी तो सिर्फ पहली सदी बीती है। हम अपना धैर्य क्यों खोएं? क्या मालूम आने वाली सदी लोहिया की सदी हो?