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9.2.10
स्वयं को समय दे पाना भी दूभर I
11:08 am
Akbar Khan Rana
1 comment
आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में इंसान इस कद्र लिप्त हो चुका है कि अपने-आपको समय दे पाना भी दूभर हो गया है. ऐसे में वह कह उठता है :-
ज़रा देर में आना ऐ होश I
अभी कहीं मै गया हुआ हूँ II
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रज़िया "राज़"
says:
9.2.10
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सिर्फ एक शे'र में सारी ज़िंदगी को कहे जाते हैं अकबरख़ान।
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1 टिप्पणियाँ:
सिर्फ एक शे'र में सारी ज़िंदगी को कहे जाते हैं अकबरख़ान।
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