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27.2.10

मोयली - किसान हितेषी सम्भीरका

खानदानी परिचय:
निडाना इगराह के किसानों द्वारा मोयली के नाम से जानी जाने वाली इन परजीव्याभ सम्भीरकाओं की जाति को कीट वैज्ञानिक Aphidius के नाम से पुकारते हैं| जीवों के नामकरण की द्विपद्धि प्रणाली के मुताबिक़ इनके वंशक्रम का नाम Hymenoptera तथा कुणबे का नाम Aphiidae होता है| इस परिवार में Aphidius नाम की तीस से ज्यादा जातियां तथा तीन सौ से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं| जो कुल मिलाकर अल की चालीस से ज्यादा प्रजातियों को अपनाशिकार बनाती हैं|
जीवन यात्रा:
मोयली नामक इस सम्बीरका का जीवनकाल सामान्यतौर पर 28 से 30 दिन का होता है| सहवास के बाद मोयली मादा अपनी 14 -15 दिवसीय प्रौढ़ अवस्था में एक-एक करके 200 से ज्यादा अंडे देती है| दूधो नहाओ-पूतो फलन के लिए मोयली मादा को ये अंडे चेपों के शरीर में देने होते हैं| अंड-निक्षेपण के लिए उपयुक्त 200 से ज्यादा चेपे ढूंढ़ लेना ही मोयली मादा की प्रजनन सफलता मानी जाती है| पर यह काम इतना आसान भी नही है| इसके लिए मोयली मादा को चेपा खूब उल्ट-पुलट कर पुष्टता परजीव्याभिता के लिए जाचना-परखना होता है| अंड-निक्षेपण के लिए उपयुक्त पाए जाने पर ही अपने अंड-निक्षेपक के जरिये एक अंडा चेपे के शरीर में रख देती है| अंड-विस्फोटन के बाद मोयली का नन्हा लार्वा चेपे के शरीर को अन्दर से खाना शरू करता है| चेपे के शरीर को अन्दर ही अन्दर खाते-पीते रहकर यह लार्वा पूर्ण विकसित होकर प्युपेसन भी चेपे के शरीर में करता है| पेट में पराया पाप पड़ते ही चेपे का रंग हाव-भाव बदलने लगता है| इसका रंग बादामी या सुनैहरा हो जाता है तथा शरीर फूलकर कुप्पा हो जाता है| इसी कुप्पे में गोल सुराख़ करके एक दिन मोयली का प्रौढ़ स्वतंत्र जीवन जीने के लिए बाहर आता है| अंडे से प्रौढ़ के रूप में विकसित होने के लिए इसे 14 -15 दिन का समय लगता है| इस प्रक्रिया में चेपे को नसीब होती है सिर्फ मौत और किसान को भरपूर उत्पादन|
हरियाणा
प्रान्त में भी विभिन्न फसलों पर चेपे / अल का आक्रमण अमूमन आये साल की आम बात है| इसमें अगर खास बात है तो वो यह है कि कीट नियंत्रण रूपी फल की आस में किसान केवल कीटनाशकों के छिडकाव का कर्म ही करते हैं| पर काला सच यह भी है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र का थोड़ा सा भी ज्ञान रखने वाला इंसान इस चेपे / अल के प्रबंधन में मोयली नामक सम्भीरकाओं की महत्ती भूमिका को नही नकार सकता| मोयली आकार में बहुत छोटे तथा बनावट में भीरड़नुमा कीट होते हैं जिनके शरीर की लम्बाई एक से तीन मिलीमीटर होती है| इन मोयली नामक परजीव्याभ सम्भीरकाओं को अपनी लार्वल एवं प्यूपल अवस्थाएं चेपे के शरीर में बितानी पड़ती हैं| मोयली के लार्वा का बसेरा एवं भोजन चेपे का शरीर ही होता है| "त्वमेव भोजनं त्वमेव आवास:" मोयली का लार्वा चेपे के शरीर को अन्दर ही अन्दर खा-पीकर पलता-बढ़ता है तथा पूर्ण विकसित होकर चेपे के शरीर में ही प्युपेसन करता है| इस प्रक्रिया में चेपे को नशीब होती है सिर्फ मौत यानि कि वही सज़ा जो किसान इस चेपे को कीटनाशकों का इस्तेमाल करके देना चाहता है|

1 टिप्पणियाँ:

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