युवा वेश तो विदेशी आचार-विचार स्टाइल फैशन का क्रेजी होता ही है, हमारे बुजुर्ग जो कभी अंग्रेजी माहौल में पले बढ़े थे अब भी उसी पाश्चात्य संस्कृति के दीवाने नजर आते है, लेकिन हम आखिर कब तक उस खोखली संस्कृति के गुन गाते रहेंगे, हमारे कुछ युवक बड़े अरमान से आस्ट्रेलिया गये थे, शिक्षित होने के लिए तथा अमीर बनने के लिये परन्तु दुखद है कि उन्हे गरीब बनने की घुट्टी पिलाई जा रही है।
भारतीय छात्रों पर वहां जो नस्ली हमले काफी समय से हो रहे है, उसमें लगता है कि वहाँ की सरकार, अधिकारी तथा वहाँ की जनता का एक वर्ग पूरे तौर पर शामिल है, अजब हास्यास्पद है यह समाचार कि विक्टोरिया प्रान्त के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी साइमन आवेरलैंड ने छात्रों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी से बचते हुए यह सलाह दे डाली दी उनको हमलों से बचने के लिये अत्यधिक गरीब दिखना चाहिये, इस से ज्यादा आश्चर्यजनक यह बात है कि विक्टोरिया के प्रीमियर जान ब्रम्बी ने इस सुझाव का सर्मथन किया है। इस मामले पर भारतीय उच्चायुक्त सुजाता सिंह ने प्रीमियर से मिल कर कड़ी आपत्ति जता दी है।
राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीय, देशभक्ति, वतनपरस्ती पर देश-विदेश के चिंतको, लेखकों ने बड़ी-बड़ी बाते कही है, टैगोर, इकबाल, गोल्डस्मिथ सभी के विचार तथा प्राचीन भारतीय विचारो से भी हम अवगत है, भारत के विचारकों ने बसुधैव कुटम्बकम की बात कही थी, गोल्डस्थिम ने कहा था कि मैं सांसारिक नागरिक हॅू। (I am citizen of the world ) इकबाल ने संकुचित विचारधारा के मुकाबले के लिये अपने को ऐसी मछली के समान माना जो पूरे समुद्र में विचरण करती है और मक़ामी क़ैद की तबाही से छुटकारा चाहती है।
राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीय, देशभक्ति, वतनपरस्ती पर देश-विदेश के चिंतको, लेखकों ने बड़ी-बड़ी बाते कही है, टैगोर, इकबाल, गोल्डस्मिथ सभी के विचार तथा प्राचीन भारतीय विचारो से भी हम अवगत है, भारत के विचारकों ने बसुधैव कुटम्बकम की बात कही थी, गोल्डस्थिम ने कहा था कि मैं सांसारिक नागरिक हॅू। (I am citizen of the world ) इकबाल ने संकुचित विचारधारा के मुकाबले के लिये अपने को ऐसी मछली के समान माना जो पूरे समुद्र में विचरण करती है और मक़ामी क़ैद की तबाही से छुटकारा चाहती है।
हो कै़दे मक़ामी तो नतीजा है तबाही
रह बह में आज़ोर वतन सूरते माही।
रह बह में आज़ोर वतन सूरते माही।
परन्तु दुखद यह है कि इस वैज्ञानिक दौर में जब कि हम लौकिक या भौतिक विकास की सीढ़ियो पर चढ़ते चले जा रहे है, मानवीय क्षेत्र में हम पतनोन्मुख है और एक मानव को दूसरा मानव बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, नस्लवाद हो, भाषावाद हो या क्षेत्रवाद हो, इन सब बातों से हम मानव तो क्या बन पायेंगे हाँ दानव ज़रूर बनते जा रहे है। सरकारों का परम कर्तव्य अपने नागरिकों या विदेशियों के रूप में आये मेहमानो को सुरक्षा प्रदान करना है, उनकी जान माल तथा आबरू को बचाना है मगर यह कैसी सरकारें है जो अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाय तथा उल्टी सीधी सलाहे देने लगें, पुलिस अधिकारी चोर को न पकड़े और जिसके यहाँ चोरी हो उस को इस अपराध में पकड़ कर बन्द कर दें कि वह रात को सोया क्यों जिसके कारण चोर उसके घर का माल लूट ले गये। अब एक किस्सा सुनिये और बात खत्म:-
एक बार चुनाव में एक बेटा अपने बाप के मुकाबले पर खड़ा हो गया, फिर दिलावर फ़िगार ने इसी ऑस्ट्रेलिया अधिकारी के समान अपनी बात इस प्रकार कही थीः-
बाप का बेटा एलेक्शन में मकाबिल आ गया
इसलिये हर शख्स ने इल्ज़ाम बेटे को दिया
मैं यह कहता हूँ कि बेटे की ख़ता कुछ भी नही
सब ख़ता वालिद की है, बेटे को पैदा क्यों किया
इसलिये हर शख्स ने इल्ज़ाम बेटे को दिया
मैं यह कहता हूँ कि बेटे की ख़ता कुछ भी नही
सब ख़ता वालिद की है, बेटे को पैदा क्यों किया
फोन- 05248-220866
1 टिप्पणियाँ:
आपका लेख बडा ही सोचने लायक़ है। विश्व में हर जगह ,हर प्रांत में ये नस्लवाद हावी हो रहा है। कारण......? जवाब तो यही है कि नस्लवाद उन पर हावी होता है जो लोग आगे बढ्नेवाले लोगों से जलते हैं। वो उन लोगों कि तरहाँ किसी काम के लिये असमर्थ होते हैं जो काम करने में या आगे बढ्ने में समर्थ होते हैं।उन्हें ही नस्लवाद का भूत सताता रहता है।
यानि कि "नस्लवाद हारे हुए लोगों कि एक जाति का नाम है"।
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