इतने लंबे विकास के क्रम के बावजूद मानव जीवन में मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर लोगों के मन में भय के उपस्थित होने के कारण समाज में कई प्रकार की बुरी मान्यताएं , बुरी प्रथाएं आती जाती रही , ये तो विभिन्न उदाहरणों और कहानियों द्वारा हमारे सामने रखी जाती हैं , जिसे दूर करने के लिए समय समय पर हमारे समाजसेवियों ने संघर्ष भी किया , कई दूर भी हुईं , फिर भी आज भी कई मान्यताएं अच्दे और बुरे रूप में समाज में मौजूद हैं , इसे स्वीकारने में मुझे कोई आपत्ति नहीं। आज अन्य क्षेत्रों की तरह ही ज्योतिष जैसा पवित्र विषय भी बहुत सारे स्वार्थी लोगों के द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति का एक साधन बन गया है , एक तो यहां सच्चे अध्येताओं की कमी भी है , जो हैं भी तो उनके सामने कई प्रकार के प्रश्न मुहं बाए खडे हैं , समाधान की कोई जगह नहीं , इसके कारण आज के युग के हर विज्ञान के समानांतर इसमें अध्ययन नहीं हो पा रहा , जिससे इसकी कुछ कमियों को स्वीकारने में मुझे परहेज नहीं , पर हमारे वैदिककालीन ग्रंथों में चर्चित वेदों को नेत्र कहा जानेवाला ज्योतिष अंधविश्वास कैसे हो गया , यह आजतक तो मेरी समझ में नहीं आया।
जिस प्रकार एक ज्योतिषी किसी प्रयोगशाला में प्रयोग कर ग्रहों के प्रभाव को प्रमाणित करने में असमर्थ हैं , उसी प्रकार वैज्ञानिक भी ये स्पष्ट नहीं कर पाते कि ग्रहों का प्रभाव जड चेतन पर नहीं पडता है , यही कारण है कि लोगों की भ्रांति नहीं दूर हो पाती। जब किसी प्रकार की भ्रांति दूर ही न की जा सके , तो फिर पत्र पत्रिकाओं में या टी वी चैनलों में ज्योतिष के कार्यक्रमों का जनसाधारण के लिए कोई उपयोग नहीं रह जाता। हां , पाठकों के भ्रम के कारण , कि शायद इस बार कोई निष्कर्ष निकलकर सामने आए , चैनलों को उनके उद्देश्य के अनुरूप विज्ञापन के द्वारा बडे लाभ की व्यवस्था अवश्य हो जाती है। मीडिया को ही क्या दोष दिया जाए , आजतक सरकार या जनता ने भी कभी ज्योतिष की परीक्षा के लिए सार्थक कदम नहीं उठाए हैं, ज्योतिष की विवादास्पद स्थिति के यही सारे कारण है, आगे पढें ।
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