महंगाई जिससे 90 करोड़ से अधिक लोगो का जीवन त्रस्त हो गया है लोग भूखो मर रहे हैं। उसकी चर्चा हमारे देश की संसद में हुई तब जब जमाखोरों, मिलावटखोरों ने अथाह मुनाफा कम लिया । संसद नहीं बोली क्योंकि वह चाहती थी कि जिनके चंदे से उनकी पार्टियां चल राही हैं वह मुनाफा कम लें और जनता में भी उनकी छवि थोड़ी-बहुत ठीक रहे तो महंगाई पर चर्चा कर ली । दोनों हाथों में लड्डू होने चाहिए । माननीय सांसदों ने यही किया। संसद में लगभग 300 सदस्य उद्योगपति हैं या आर्थिक आधार पर अरबपति से ज्यादा मजबूत स्तिथि वाले लोग हैं। उनको महंगाई की पीड़ा से कोई लेना देना नहीं है। संसद में मेहनतकश तबको का प्रतिनिधित्व कम है। उनकी आवाज का कोई भी अर्थ वहां नहीं रह जाता है। शशि थरूर से लेकर तृणमूल कांग्रेस के संसद को 5 स्टार बिलों को देखकर यह लगता है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ज़माने से राजा महाराजाओं कि शानो शौकत इनके आगे फीकी है। जनता को अपना प्रतिनिधि चुनते समाये विभिन्न तरीके से बरगलाने में यही लोग सक्षम होते हैं ।
सुमन
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