छिंदवाड़ा(डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव): एम.एन.एस. के डान राज ठाकरे ने फतवा जारी किया कि महाराष्ट्र विधानसभा के सभी विधायक दिनांक 7-11-09 को मराठी में शपथ लेंगे नहीं तो उन्हें देख लिया जायेगा। इससे महाराष्ट्र विधानसभा के सभी सदस्य डर गये। लगता है कि महाराष्ट्र के विधायकों ने राज ठाकरे जैसे उद्दंड बालक का मन रखने के लिए उक्त फतवा मान लिया। उधर बाल ठाकरे को सचिन तेन्दुलकर के देश भक्ति पूर्ण उस वक्तव्य पर आपति है कि मुंबई पूरे देश का है। राज ठाकरे और बाल ठाकरे की तुलना नहीं की जा सकती। जहां बाल ठाकरने ने एक एक तिनका इक_ा करके एक संगठन को खड़ा किया है वहीं राज ठाकरे ने उसे संगठन पर डाका डाला है। उन्हें जो लूट में मिला उससे वे बहुत खुश हैं। हालांकि दोनों ठाकरे चाहते हैं कि राष्ट्र से सब कुछ लेते रहे और महाराष्ट्र के दरवाजे राष्ट्र के लिए बंद कर दिये जायें। अभी राज ठाकरे का नया फतवा जारी हुआ कि केन्द्रीय परीक्षाओं में मात्र मराठी भाषियों को बैठने दिया जाये। यह मराठी भाषा को एक खतरे का संकेत है। यदि यह फतवा मान लिया जाता है तो कल राज ठाकरे कहेंगे कि इन परीक्षाओं में केवल एम.एन.एस. के कार्यकर्ताटों को ही बैठने दिया जाये, क्या पता? इस संकीर्ण फतवें से भारत के विखंडन की बू आ रही है। दूसरी ओर मराठी भाषियों को इन परीक्षाओं की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नहीं मिलेगी प्रतियोगिता के अभाव में वे कूप मण्डूक हो जायेंगे। राज ठाकरे को ज्ञात होना चाहिए कि मराठी पर से हिन्दी का छत्र उठ जाने पर अंग्रेजी मराठी भाषा को निगल लेगी। वैसे भी महाराष्ट्र से विदर्भ कोंकण इत्यादि प्रांत अलग होने को छटपटा रहे है। गोंदिया, इत्यादि क्षेत्रों में तो हिन्दी ही बोली जाती है। उनका जय महाराष्ट्र का नारा मात्र जय मुंबई होकर न रह जाये, फिर मुंबई में भी पचास प्रतिशत लोग हिन्दी ही बोलते हैं। हिन्दी ने फिल्मों के माध्यम से वहां के कलाकारों को केवल समृद्ध नहीं किया बल्कि विश्व भर में एक पहचान दी है। ऐसा न हो कि राज ठाकरे जैसे अति वादियों के चलते विदर्भ, कोंकण गोंदिया सहित महाराष्ट्र जम्मू कश्मीर की तरह गरीब प्रांत होकर न रह जाये। फिर क्या आज जो पूरे भारत में महाराष्ट्रियों को इज्जत की नजरों से देखा जाता है वह इज्जत उनसे छिन नहीं जायेगी? मुंबई देश की आर्थिक राजधानी का दर्जा खो नहीं देगा उन्हें अपने संकुचित राजनैतिक हितों के लिए मराठी भाषियों की बलि नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्होंने हिन्दी में विधान सभा में शपथ लेने वाले अबू आजमी की पिटाई लगा कर संसदीय गरिमा का हनन किया है। कहीं यह कदम एक साम्प्रदायिक भेदभाव एवं दंगों को जन्म न दे दे। जहां उन्हें एक अल्पसंख्यक सदस्य द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर प्रसन्नता जाहिर करनी थी वहीं सदन में उसकी पिटाई लगा कर पागल पन का इजहार किया है। यह एक शर्मनाक बात है। विचित्र बात है कि उनके सदस्यों ने अंग्रेजी में शपथ लेने पर आपत्ति प्रस्तुत नहीं की जबकि फतवा यह था कि सभी सदस्य मराठी में शपथ लेंगे। यह उनकी गुलाम मानसिकता का परिचायक है। राज ठाकरे अभी भी अंग्रेजी एवं अंग्रेजों के गुलाम है। ब्रिटेन और अमरीका के लोग अब उन पर थूकते होंगे क्योंकि गुलामों के साथ वे यही व्यवहार करते थे। इसी मानसिकता के चलते वे तलाशी के नाम पर हमारे राजनायिको को नंगा कर देते हैं। यहां महाराष्ट्रीयन और मराठी भाषी में भेद करना जरूरी है। सभी महाराष्ट्रीयन मराठी नहीं बोलते। हिन्दी में शपथ लेने पर एक संवैधानिक तरीके से चुन कर आये विधायक को चांटा मारना महाराष्ट्रयनों का अपमान है, यह महाराष्ट्र का भी अपमान है। आज यदि ईमानदारी से सर्वेषण करवाया जावे तो अस्सी प्रतिशत महाराष्ट्रीयन हिन्दी जानते हैं और पचास प्रतिशत मराठी नहीं जानते। अकोला, चन्द्रपुर, नागपुर, गोंदिया, मुंबई, अमरावती इत्यादि के अनेक परिवारों के रिश्ते ग्वालियर, इन्दौर, बैतूल, छिंदवाड़ा, उज्जैन, बालाघाट, सिवनी आदि जिलों के अनेक परिवारों से है। राज ठाकरे ने इस रिश्ते में खटास पैदा कर दी है। आज पचास प्रतिशत महाराष्ट्रीयन दहशत में जी रहे हैं। आज यदि गैर महाराष्ट्रीयनों को महाराष्ट्र से निकाल दिया जाये तो महाराष्ट्र में बचेगा क्या? आर्थिक राजधानी वहां से हट जायेगी, फिल्म उद्योग वहां से हट जायेगा। भगवान न करे ये लोग हमारा शिर्डी, पण्डरपुर, नासिक, शेगांव इत्यादि तीर्थों में जाना बंद न कर दें क्या हम इन लोगों के कहने पर स्वामी राम तीर्थ, छत्रपति शिवाजी, बाबा साहेब अम्बेडकर, लोकामन्य तिलक, बाल गंगाधर तिलक, संत ज्ञानेश्वर, इत्यादि महापुरूषों का आदर बंद कर देंगे क्या हम इन महापुरूषों की पूरे भारतवर्ष में लगी लाखों मूर्तियों को हटा देंगे। नहीं पूरे भारतवर्ष में बिखरे हिन्दी भाषी इतने संकीर्ण नहीं है। दोनों ठाकरे लोगों को महाराष्ट्र को कश्मीर बनाने से रोका जाना चाहिए।
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