उल्लू एक अनोखा पक्षी है। दिन में इसे कुछ दिखाई नहीं देता। रात में ही यह अपने शिकार के लिए निकलता है। उल्लू का रंग अधिकतर सुरमई होता है। कुछ उल्लू मटमैले होते है। इसका सिर काफी बड़ा, बिल्ली की तरह गोल और बालों से भरा होता है। आंखें मनुष्यों की तरह खोपड़ी में स्थित होती है। उल्लू को शिकारी पक्षी माना जाता है, परंतु इसका शिकार करना पाप माना जाता है। यह लक्ष्मी का वाहन भी है। उल्लू की तीन जातियां: घुग्घू उल्लू और खूसठ। इसमें से सबसे छोटे को उल्ले कहते हैं और सबसे बड़े को घुग्घु के नाम से जाना जाता है। घुग्घु कहलाने वाली जाति के बाल और पंख मुड़ कर सींग की तरह हो जाते हैं। इसकी तीन उंगलियां आगे की ओर होती है और एक पीछे की ओर। यह अपनी अगली उंगलियों को पीछे की ओर भी आसानी से मोड़ लेता है। पंख कोमल और कान बड़े-बड़े होते हैं। उड़ते समय यह अपने पंखों से बिल्कुल भी आवाज नहीं करता। रात के समय चाहे जितना भी सन्नाटा हो, इसके शिकार को इसके आने का बिल्कुल भी आभास नहीं होता। इसके पैर अंगूठे तक पंखों से ढके रहते हैं। यह शिकार को पूरे का पूरा निगल जाता है। इसलिए शिकार साफ करने के लिए उल्लू अपने पैरों की मदद नहीं लेता।उल्लू लगभग 14 इंच तक लंबा होता है। चूहे, मक्खियां, सांप ओर कीड़े-मकौड़े इसका ्िरप्रय भोजन है। उल्लू की भद्दी आवाज के कारण ही लोग इसे मनहूस समझते हं। मादा उल्लू अपने अंडे मई से जुलाई तक देती है। अंडे गिनती में तीन या चार होते है और उनका रंग सफेद होता है। उल्लू अपना घोंसला पुरानी इमारतों के खंडहरों, पेड़ों के खोखले तनों और सुराखों में बनाना पंसद करता है। उल्लू फसल को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को मारकर खा जाता है। इसलिए यह किसानों का मित्र पक्षी भी है। भारत के अतिरिक्त उल्लू संसार के लगभग सभी देशों में मिलता है।
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