एक समय में वनों को बचाए रखने के लिए वन सम्पदा को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित किया गया । वन सम्पदा को बनाये रखने के लिए विभिन्न तरह के विधियों का निर्माण किया गया। जिसका असर यह हुआ कि सरकार, उद्योगपति विभिन्न योजनाओ के नाम पर जमकर वन सम्पदा को नष्ट करने के अधिकारी हो गए । वन सम्पदा से जनता वंचित हो गयी । वन विभाग ने विभिन्न योजनाओ के तहत कागज पर ही पेड़ लगाये। जनता ने अपनी जमीनों के ऊपर पेड़ लगाकर पर्यावरण से लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाही । जिसका हश्र यह हुआ कि पेड़ मालिक को जब अपने उपयोग के लिए अथवा व्यावासिक उपयोग के लिए उनको कटवाने की जरूरत होती है तो नियमो और उपनियमों का सहारा लेकर पुलिस कुल बिक्री मूल्य का 60 प्रतिशत रुपया ले लेती है। 10 प्रतिशत वन विभाग ले लेता है पेड़ मालिक को बिक्री मूल्य का 30 प्रतिशत ही मिलता है उसी तरह से इजारेदार कम्पनियां उद्योगपति जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने के लिए काफी दिनों से प्रयासरत हैं। उनकी योजना यह है कि जल राष्ट्रीय सम्पदा घोषित हो जाए और आम आदमी अपने इस्तेमाल के लिए जल सोत्रों से जल बिना अनुमति के न प्राप्त कर पावे । जल व्यापार करने के इच्छुक बड़े-बड़े उद्योगपति शहरों की जल आपूर्ति प्राप्त करना चाहते हैं और उनका एकाधिकार हो जाने पर गरीब तबके के लोग, पशु-पक्षी पानी नहीं पा सकेंगे। पानी के बगैर जीवन असंभव है जिसपर वह एकाधिकार चाहते हैं । उत्तर प्रदेश में नगर निगम वाले शहरों में वाटर टैक्स वसूलने की व्यापक तैयारियां की जा रही हैं और मीटर से पानी दिया जायेगा और मीटर के हिसाब से ही पानी का मूल्य वसूला जायेगा । शहरों के अन्दर एक बड़ा हिस्सा पानी खरीद कर अपना जीवन बचा सकता है उस तबके का क्या होगा ? पानी के सोत्रों को गन्दा करने का काम सबसे ज्यादा उद्योगजगत करता है । आज जरूरत इस बात की है कि जल स्रोत्रों को गन्दा न होने दिया जाए । जल स्रोत्रों को गन्दा करने वाले उद्योगजगत को व नगर नियोजकों के खिलाफ कानून बनाने की आवश्यकता है। न की जल को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने की । मुनाफा खोर चाहते हैं की शहरों में मीटर प्रणाली के हिसाब से पानी की आपूर्ति होने लगे और आपूर्ति में असफल होने के नाम पर स्वायतशाषी संस्थाओं से जल आपूर्ति उन्हें मिल जाए।
- सुमन
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें