लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पर बहस के दौरान संसद में श्री बेनी प्रसाद वर्मा सांसद ने माननीय अटल बिहारी वाजपेई पर टिपण्णी कर दी जिससे संसदीय चर्चा रुक गई और भारतीय जनता पार्टी ने श्री बेनी प्रसाद वर्मा से माफ़ी मांगने के लिए कहा किंतु श्री वर्मा ने माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया। सवाल इस बात का नही है कि माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी हमारे प्रधानमंत्री रहे है हिन्दी के अच्छे वक्ता हैं । सवाल यह है कि बाबरी मस्जिद के समय उनकी भूमिका एक षड़्यंत्रकारी की थी जिसकी पुष्टि भी लिब्रहान आयोग ने की है। हमारे छात्रजीवन में श्री अटल बिहारी बाजपेई जी जब चुनाव लड़े थे और पराजित हुए थे । उस समय उनपर यह आरोप था कि वह क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तरफ़ से गवाही देने का कार्य किया करते थे जिसके बड़े-बड़े पोस्टर लखनऊ शहर में लगते थे और उसका कभी भी खंडन माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने नही किया । उसी चुनाव में माननीय अटल जी के चाचा जी जिनका नाम मुझे अब याद नही है, उन्होंने ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तरफ़ से उनके द्वारा गवाही देने वाली बात की पुष्टि भी की थी । माननीय अटल जी कभी भी निर्विवाद नेता नही रहे है। हिंदू राष्ट्र बनने की परिकल्पना में आज भी वह शामिल हैं जो भारतीय संविधान के विरुद्ध है जबकि धर्म आधारित राज्य जनता को न्याय लोकतंत्र स्वतंत्रता नही दे सकते हैं। हमारा देश एक बहुजातीय, बहुधर्मीय, बहुभाषीय है । विविधिता में एकता हमारा मूलमंत्र है इसी आधार पर हम प्रगति कर सकते हैं । श्री बेनी प्रसाद वर्मा एक समझदार व बुजुर्ग राजनेता हैं उनकी टिपण्णी भी ग़लत नही हो सकती है लेकिन तमाम सारे विवादों को टालने के लिए उन्होंने खेद प्रकट किया जो उचित था ।
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