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8.12.09

माऊंट आबू नैसर्गिक सौन्दर्य का प्रतीक

रावली पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा नैसर्गिक सौंदर्य का प्रतिमान, सैलानियों को अपनी और आकर्षित करनें में पूर्ण सक्षम, सभी को त्मविभोर कर देने वाला नगर माउण्ड आबू, आबू रोड रेलवे स्टेशन से पंद्रह-बीस किलोमीटर से अधिक दूर नहीं है। पर्वतमाला पर सर्पाकार बनी डामर की सड़क पर सवारियां ले जाती जीपें माउण्ड आबू पहुंचती हैं। सिरोही होकर बस मार्ग से भी माउण्ड आबू जाया जा सकता है। माउण्ड आबू में रोड से ही नीचे की ओर आंखें पसारकर देखने हैं तो मैदानी इलाका दिखाई देता हैं। जिसमें दूर तक खेत ही खे दिखाई देते है। यहां की जलवायु पर्यटकों को आकर्षण के ऐसे मोहपाश में बांधती है कि पर्यटक खिंचे चले आते हैं। माउण्ट आबू के अवलोकन भ्रमण के लिए किसी माने में यह स्थल गुजरात में शुमार किया जाता था पर वर्तमान में राजस्थान की शोभा बढ़ा रहा है। होटल, भोजनालय और गेस्ट हाऊस सभी स्थित हैं यहां पर। घूमने-फिरने के लिए भरपूर संख्या में उपलब्ध टैक्सी, कारें और जीपें। यहां का पोलो ग्राउंड और ब्रम्हाकुमारी विश्ववि़लय दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। नक्की झील- पोलोग्राउंड से चार फर्लांग दूरी पर स्थित है नक्की झील। पानी से लबालब नक्की झील की सतह पर जब चंद्रमा या सूरज की किरणें पड़ती हैं तो जल का कण-कण दमकता है। झील में तैरता हुआ हाऊस बोट और डोगियां पर्यटकों को दिन भर घुमाने के लिए तैयार रहती है। झील के एक ओर हरा-भरा उ़ान अवस्थित है। जिसमें लॉन के बीचों बीच दो आकर्षक फव्वारे सतत् चलते रहते हैं। नक्की झील की सीमा दो किलोमीटर के घेर में फैली हुई हैं। हनीमून पाइंट- नक्कीझील से साढे तीन किलोमीटर दूर है हनीमून पाइंट। यहां सड़क से थोड़ा हटकर पत्थर के जीने से नीचे की ओर उतरते हैं तो एक ऐसे स्थान का अवलोकन होता है, जिसे हनीमून पाइंट कहते हैं। यहां युगल बैठक घंटों गॉशिप का आनंद लेते हैं। यहां पर सामने दो पहाडिय़ों आमने-सामने खड़ी दिखाई देती हैं जिन्हें लोग स्त्री-पुरुष की संज्ञा देते हुए आलिंगन करने को आतुर बताते हैं। पास में ही गणेश जी का प्राचीन मंदिर स्थित है। चारों ओर पहाडिय़ों से घिरे इस स्थान पर कोहरे जैसी धुंध छाई रहती है। देवलवाड़ा के जैन मंदिर:- यह मंदिर दिगम्बर जैस संप्रदाय का संगमरमर से बना आभायुक्त मंदिर है जिसके तोरण द्वार, गुंबद शिखर और आले तथा जालियों पर खुदाई काकाम देखकर खजुराहो के जैन मंदिरों की याद आती है। इसमें आदिनाथ भगवान की 2500 वर्ष पुरानी कसौटी पर पत्थर से निर्मित श्याम वर्ग मूर्ति है। कहते हैं कि इस मूर्ति को भामाशाह ने अम्बाजी की तपस्या कर भू-गर्भ मे प्राप्त किया था। नेमी नाथ जी का मंदिर- यह मंदिर वास्तुपाल-तेजपाल द्वारा . सन् 1231 में बारह करोड़ त्रेपन लाख रुपए की लागत से मनाया था। पूरा मंदिर संगमरमर का बना है। बेहतरीन पच्चीकारी का अनोखा संगम है। इस मंदिर में भगवान नेमीनाथ जी की अष्टाधातु की मूर्ति विराजमान है। मंदिर का निर्माण हुए 807 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इस मंदिर के द्वार के दोनों ओर देवरानी-जिठानी के मंदिर बने हुए हैं। ये देवरानी-जिठानी वास्तुपाल-तेजपाल की धर्मपत्नियां थीं। अवलबगढ़- जनश्रुति है कि अचलगढ़ में एक ऐसा कुंड बना था जिस पर ऋषि मुनि यज्ञ किया करते थे। कभी-कभार तीन राक्षस उनके यज्ञ में विध्न पैदा किया करते थे। राजा भृर्तहरि को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने उन तीनों राक्षसों को जो भैंसा के रूप में प्रकट होकर आते थे, मार दिया। प्रतीक के रूप में यहां राजा भृर्तहरि और तीनों राक्षसों की भैंसा के रूप में मूर्तियां बनी हुई हैं। सामने यज्ञ कुंड बना है। अर्बुद्ध देवी का मंदिर- यह मंदिर ऊपरी पहाड़ी पर बना है। सड़क के तल से 225 सीढिय़ां चढ़कर मंदिर में प्रवेश किया जाता है। मंदिर का द्वार काफी नीचा है इस वजह से श्रद्धालु भक्तजन झुककर मां को प्रणाम करते हैं। मंदिर का भीतरी भाग संगमरमर से निर्मित है। माउण्ड आबू ने हमें इतना प्रभावित किया है कि इसकी स्मृतियों को इस जीवन में भुला पाना हमारे लिए संभव नहीं हैं। यह एक ऐसा मनोरम स्थान है जो यहां आने की मन में बार-बार लालसा जगाता है।

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