आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

14.11.09

लो क सं घ र्ष !: जेलों में सड़ने को अभिषप्त हैं मुस्लिम युवा-2

आतंकी घटनाओं के संबंध में विभिन्न जगहों से गिरफ्तार आरोपियों पर दर्ज मुकदमे

नाम

अहमदाबाद

ै सूरत

दिल्ली

मुबंई

जयपुर

अन्य

योग

सदिक षेख

20

15

5

1


हैदराबाद कोलकाता

54

आरिफ बदर

20

15

5

1



41

मंसूर असगर

20

15

5

1



41

मो सैफ

20

15

5


5


45

मुफ्ती अबुल बषर

21

15




बेलगाम, हैदराबाद

40

ैं सैफुर रहमान

20

15



6


40

कयामुद्दीन कपाड़िया

21

15

5



इंदौर

40

जावेद अहमद सागीर अहमद

21

15





36

गयासुद्दीन

21

15





36

र्


र् जाकिर षेख

20

15


1



36

ैुंसाकिब निसार

20

15

5




40

र्


र् जीषान

20

15

5




40

पुलिस ने उनकी चार्जषीट को भी तोड़मरोड़ कर पेष किया। अहमदाबाद व सूरत के 35 मामलों में पुलिस ने 60 हजार पेजों की आरोप पत्र पेष किया। मुबंई अपराध ब्यूरो ने 18 हजार पेजों का आरोप पत्र पेष किया। इसी प्रकार जयपुर विस्फोट के मामले में 12 हजार पेजों का आरोप पत्र पेष किया गया। सभी आरोप पत्र हिंदी, मराठी व गुजराती में हैं यदि यह मामले सुप्रीम कोर्ट तक जाते हैं तो आरोप पत्रों को अंग्रेजी में अनुवाद करने में और ज्यादा परिश्रम व समय की जरूरत होगी।

विभिन्न मामलों में दर्ज मुकदमे व आरोप पत्र

षहर

केसों की संख्या

आरोपी

गिरफ्तार

आरोप पत्र के पेज

अहमदाबाद व सूरत

36

102

52

60ए000

मुंबई

1

26

21

18009

जयपुर

8

11

4

12ए000

दिल्ली

7

28

16

10ए000

अभियोजन पक्ष इन सभी मामलों में चष्मदीदों की भीड़ भी जुटा चुका है। हर केस में 50-250 चष्मदीद गवाह हैं। अहमदाबाद व सूरत केस में तो कई दोशी विस्फोट के पहले से ही जेलों में हैं। उदाहरण के लिए सफदर नागौरी, षिब्ली, हाफिज, आमील परवेज सहित 13 अन्य को 27 मार्च 2008 को ही मध्य प्रदेष से गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हें अहमदाबाद व सूरत मामले का मुख्य आरोपी बताया गया। इसी तरह राजुद्दीन नासिर, अल्ला बक्ष और मिर्जा अहमद जून 2008 से कर्नाटक पुलिस की हिरासत में थे, लेकिन उन्हें भी अहमदाबाद व सूरत मामलों का दोशी बताया गया।

एडवोकेट षाहिद आजमी कहते हैं कि साजिष रचने का आरोप एक हथियार की तरह है जिसे पुलिस कभी भी किसी भी मामले में प्रयोग कर सकती है। आफकार-ए-मिल्ली से बातचीत में वह कहते हैं कि अफजल मुतालिब उस्मानी जिसे 24 सितम्बर को मुंबई से गिरफ्तार दिखाया गया, उसे वास्तव में 27 अगस्त को लोकमान्य टर्मिनल से पकड़ा गया था। वह अपने घर वह अपने घर से गोदान एक्सप्रेस पकड़ मुंबई पहुंचा था। हमने संबंधित अधिकारियों को तुरंत टेलीग्राम से इसकी सूचना दी लेकिन उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। 28 अगस्त को उसे मेट्ोपोलिटीन मजिस्टे्ट के सामने पेष किया गया। लेकिन मुंबई अपराध ब्यूरो के अनुरोध पर मजिस्टे्ट ने उसकी गिरफ्तारी और रिमांड को रजिस्ट्र में दर्ज नहीं किया। इसी तरह सादिक षेख को 17 अगस्त को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उसे 24 अगस्त को विस्फोटक, हथियारों व पांच अन्य के साथ गिरफ्तार दिखाया गया। विषेशों के अनुसार पकड़े गए आरोपियों के किसी भी मुकदमें का निस्तारण दो साल से कम समय में नहीं होगा। अलग-अलग मामलों में अलग-अलग जगहों से पकड़े गए आरोपियों के केस और लंबे खिचेंगे।

सवाल उठता है कि एक बूढ़ा पिता अपने बेटे को छुड़ाने के लिए कब तक लड़ेगा। गिरफ्तारी के एक साल बाद भी न तो आरोपियों पर आरोप तय हो सके हैं न ही मुकदमे षुरू हो सके हैं। उन्हें खुद को निर्दोश्ज्ञ साबित करने में और कितना समय लगेगा? न्याय की धीमी गति को देखकर लगता है कि वह केस का अंत देख सकेंगे? यह सादिक षेख, अबुल बषर, मंसूर असगर, आरिफ बद्र या सैफुर रहमान के ही सवाल नहीं बल्कि उन 200 युवकों के सवाल भी हैं जो पिछले एक साल से जेलों में सड़ रहे हैं।

अनुवाद व प्रस्तुति- विजय प्रताप


लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित

3 टिप्पणियाँ:

सुमन जी:
मैं आप के आलेख पढता रहता हूँ. वैसे तो मैं आपके आलेखों से सहमत नहीं हूँ, लेकिन इस आलेख ने मुझे लिखने को विवश किया है. भारतीय जेलों में बंदी लोग भारतीय है, उन्हें हिन्दू या मुस्लिम चश्मे से देखना गलत होगा. भारतीय न्याय प्रणाली की धीमी गति के चलते लाखों भारतीय जेलों में बंद हैं , जिनके मुकद्दमे सुलझाए नहीं जा रहें हैं. अच्छा होता, आप न्याय प्रणाली के मूल में जा कर सुधारों की बात करें ताकि समस्या का समाधान हो. भारत जैसे सेकुलर रास्त्र में कानून के सामने सभी नागरिक भारतीय है, धर्म एक निजी मसला है. आज मजोरिटी तथा मिनोरिटी के नाम पर जो राजनीती की जा रही है, यह देश को अग्रसर करने की बजाय हम सब का नुक्सान कर रही है. आपके ऐसे लेखों से समाज तथा देश को लेकर कोई सार्थक चिंतन मिल पायेगा, मुझे शक है. आपका चिंतन समाज के प्रति है, ऐसा लगता है. अपने "लोक संघर्ष " को रास्ट्र निर्माण के सदुपयोग में लाइए, ऐसी सुभ कामनाओं सहित!

आदरणीय सुमन जी आप एक जाने-माने वकील हैं. हमें पता है आप सदा सत्यता की वकालत करते हैं. तो फिर समाज के एक वर्ग-विशेष की ही बात क्यों की जाए? भारत में विभिन्न वर्गों पर जुल्मो-सितम आम बात है. सबसे पहले तो हमें अपने ही बीच में मौजूद उन रिश्वतखोरों और देशद्रोहियों को सबक सिखाने का बीडा उठाना चाहिए, जो इस भारतीय समाज को घुन की तरह खाकर खोखला बनाए जा रहा है. अगर हम सबके दिलों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा हो जाए तो सभी समस्याएं हल हो जाएँगी. अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बात छोड़कर भारत कल्याण की बात आप जैसे बुद्दिजीवी करें तो मेरे ख्याल में ज्यादा बेहतर होगा.

Dr. Munish Raizada,
dr sahab namaskaar sahmat aur asahmat ehsas ka savaal hai kisis cheej ka ehsaas kisi vyakti ko jyada hota hai kisi vyakti ko kam sambandhit aalekh mein muslims nauvjavano k sambandh mein hai muslim shabd isliye prayog kiya gaya hai yadi vah musalmaan nahi hote to ukt apradhon mein unka chalaan nahi hota kalkattta mein police hirasat mein maujood vyakti ko lucknow mein sarkari agency RDX chipate hue dikhaye to ya to kalkatta police va nyaypalika jhoonthi hai ya lucknow mein RDX chipate hue dikhane vaale log jhootein hain . ek mamla yah hai ki khalid mujahid naam k naujavan ko 16 december 2007 ko madiyahoon jila jaunpur se STF pakad kar lai soochna adhikaar adhinayam k tahat chetradhikaari police madiyahoon ne likhkar diya hai ki khalid mujahid ko STF pakad kar le hayi hai .22 december 2007 ko hi barabanki railway station par RDX k sath khalid mujahid ki giraftaari dikhai jaati hai ab aap bataiye khalid mujahid ka jeevan barbaad ho gaya 2007 se vah jail mein hai . rajy dvara kiye gaye apradhon k dandit karne k liye koi uchit vyavastha nahi hai . rahi nyaypalika ki dheemi gati ki baat to yah uchit nahi hai F T C mein bahut kam samay mein hi nirnay aa rahe hain haann yah jaroor hai ki vidhi dvara many sidhanton ko andekha kar sajaein sunai ja rahi hai had to yahan tak ho gayi hai ki aadmi mara nahi hai aur uski hatya k aarop mein sajayein di ja rahi hai is tarah k apvaad ek do nahi hain. jab ham aap kisi samuday se bhartiy hone ka pramaan chahte hain to ham sampradayik ho jaate hain . yah aisi samashyaein hain ki bhartiyta ka jhunjhuna bajane se hal nahi hone vaali hain . imaandaari se minorties ki samashyaon ko dekhne ki jaroorat hai aur unki samashyaon ko hal karne se desh ekta aur akhandta majboot hogi . Aap se anurodh hai ki bhavishy mein bhi aap hamare dvara prakashit aalekhon par tippani dete rahenge .

sadar
suman

एक टिप्पणी भेजें