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23.10.09

एक मेहमान ऐसा भी- हास्य व्यंग्य

मेहमान सभी के यहां आते हैं। कुछ खास और कुछ लागे लगाए के, लेकिन खातिर-तवज्जो तो सभी मेहमानों की करनी होती है। दरअसल मेहमान नवाजी में सभी लोगों को खुशी ही मिलती है, क्योंकि इसी से पता लगता है कि भाई इनके भी कोई है। इसी भावना से कुछ ऐसे लोग अपनी नाक ऊंची किए घूमते रहते हैं, जिनके घर में खूब मेहमान आते हैं। अब मेहमानों की क्या है, जितना अधिक दोस्तों और परिचितों का दायरा होगा, उतनी ही अधिक संख्या में मेहमान भी आएंगे घर में। बहुत सारे लोग ऐसे भी मिल जाते हैं जिनमें यह सब खूबियां नहीं होती। यानिकि सीमित परिवार और दोस्त रिश्तेदार तो फिर उनके यहां मेहमान भी उंगलियों पर गिने चुने ही आने चाहिए। ऐसा होता भी है, लेकिन जनाब ये चंट लोग अक्सर ही यही कह कर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं और अपना चेहरा साफ किए रहते हैं? क्या करें, हम तो कारोबारी लोग हैं। कहीं आने जाने की फुर्सत ही नहीं मिलती। उनका मतलब यह कि जब वे किसी के यहां नहीं जा पाते तो, फिर कोई उनके यहां क्या खाक आए। तो साहब समाज के कुछ कारोबारी और तराजू के कमाल से फलने फूलने वाले भाई लोगों ने अपने घरों में हमेशा न सही तो कम से कम किसी काम-काज या संस्कार के अवसर पर ही मेहमानों की भीड़ जुटाने का एक और तरीका ईजाद कर रखा है। मेहमान यानी कि खास मेहमान कम हैं तो क्या, वे थोक में कार्ड छपवा कर अपने ग्राहकों में ही बंटवा देते हैं। यदि पूरे न सही तो पचीस प्रतिशत ग्राहक आएंगे ही। व्यवहार का लिफाफा हाथों में लहराते हुए अपनी फीकी मुस्कानों के साथ आयोजक के हाथ में उसे सौंप ही जाएंगे, फिर आयोजक भाई अपनी बनियागिरी का हिसाब लगाते और गदगद होते लोगों से यही हांकते नजर आएंगे, अरे मेरे मुन्ने के मुंडन में तो छ: हजार रुपए का व्यवहार आया। तो साहब यह तो हुई व्यवहार की बात, लेकिन असली मुद्दा था मेहमानों का। तो मेहमाननवाजी भी कोई एकतरफा थोड़े ही करता है। कुछ ही समय बाद वह भी सवाई समेत वसूल लेता है। मेहमान भाई अकेले आए थे तो अपने राम पूरे परिवार के साथ मेहमानी कर आए, वह भी पूरे एक हफ्ते तक। जब लौटे तब तक मेहमाननवाजी करने वाले भाई पीले पडऩे लगे थे। आजकल महंगाई का जमाना है, तो मेहमान की आकांक्षा भी कम ही लोग खुशी-खुशी करते हैं। लेकिन जिस तरह बीमारी-हारी आने के लिए कुछ भी नहीं देखती, उसी प्रकार मेहमान भाई भी तंगी-तंगी नहीं देखते। बस धर धमकते हैं। आएंगे तो कऊछ न कुछ तो मिलेगा ही छानने के लिए चाहे घर में पहले ही छन्ना लगा हो। वैसे कुछ चालाक और होशियार मेहमान भी होते हैं। वे पार्टी देखकर या उनकी माली हालत देखकर ही उनके यहां मेहमानी करते हैं। यार वो मिश्रा जी, वहीं वो गढ़ी कनौसी वाले उनके यहां तो मुंह बांध के सेवा होता है। नहीं जाना उनके यहां मेहमानी करने। जब जाओ बस सत्तू पिला देते हैं। लेकिन फिर कहां चलें। अपना मेहमानी का राउन्ड तो पूरा हो चुका। अच्छा उस घर फूंक तमाशा देखने वाले मधोभाई के यहां फिर से चलते हैं। इस तरह आनन फानन में मेहमानी का कार्यक्रम बनाने वाले हजारों हैं। वास्तव में सैकड़ों किस्में पाई जाती है मेहमानों की ओर अपनी समाथ्र्य के अनुसार गरीब अमीर सभी खातिरदारी भी कर ही लेते हैं। अब साहब एक पते की बात उठ रही है इस प्रकरण मेहमानी में। हुआ यह कि वही माधोभाई अपनी दरियादिली के लिए कुछ ज्यादा ही मशहूर हो गए। अब मुफ्त में छानने फूंकने को मिले और मेजबान के चेहरे पर शिकन तक न आए तो फिर घर वापस जाने का मन किस अहमक मेहमान का होगा? जो आए तो चार-छ: दिन टिके जरुर। माधोभाई थे तो दिलदार लेकिन चार साल की शहंशाही में ही बोल गए और उन्होंने इस मेहमाननवाजी से छूटने के लिए कस्बे में घर बनवा लिया। गांव से काफी दूर और परिचितों व रिश्तेदारों की पहुंच से काफी दूर। फिर भी चीटियों की तरह संूघते कुछ तरकीबी रिश्तेदार उनके मेहमान बनते ही रहे। माधो भाई उन्हें संभालते रहे, लेकिन एक मेहमान ऐसा निकला कि माधोभाई को रक्त के आंसू रुला गया। हुआ ये कि माधोभाई कहीं बाहर निकल रहे थे। घर में उनकी सीधी सरल पत्नी थी। मेहमाननवाली में कभी भी पीछे नहीं रहीं। घर में अकेली थीं। तभी एक अपरिचित मेहमान आ गया। आप कौन हैं? ये तो कीं बाहर गए हैं। अपरिचित को देखते ही उन्होंने कहा-सुना तो उस मेहमन ने भी मौका ताड़ लिया। बोला झट से, अरे भाभी आप ने नहीं पहचाना मुझे। पहचानों भी कैसे? शादी के बाद पहली बार तो मैंने ही आप को देखा। मैं द्वारिका प्रसाद, माधो और हम मौसेरे, अरे सगे मौसेरे भाई हैं। शहर में रहते हैं। न आज आपके दर्शन कर पाए। ये लीजिए कुछ मिठाई है। उसने कुछ इस तरह का रोब डाला कि बेचारी भाभी मेहमाननवाजी में जुट ही गईं। खूब खिलाया पिलाया और मौका लगते ही द्वारका मेहमान तिजोरी तोड़ कर नकदी जेवर के साथ कपड़े भी साथ लेकर चंपत हो गये। माधो भाई लौटे तो पत्नी ने रो-रो कर सब हाल कहे तो वे मूच्र्छित ही हो गए। तब से वे आने वाले मेहमानों से बड़े सावधान रहने लगे हैं। -डॉ. सुरेश प्रकाश शुक्ल, लखनऊ (प्रैसवार्ता)

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