चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) राजनीतिक विशेषज्ञ हरियाणवी राजनीति को लेकर उलझन में है तथा हर संभव प्रयास उपरांत भी कुछ नहीं समझ पा रहे। हरियाणवी राजनेताओं का कब हृदय परिर्वतन हो जाये, कोई नहीं जानता और यह जानना भी कठिन है कि प्रात: पानी पी-पी कर जिसे कोसा जा रहा है, सांय उसी की प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं। ''आया राम-गया राम'' के लिए अपनी एक पहचान बना चुका हरियाणा एक बार फिर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति को गड़बड़ाने में सफल रहा है। 13 अक्तूबर 2009 को हुए विधानसभा चुनावों में हरियाणवी मतदाता ने कांग्रेस को 40, इनैलो को 32, हजकां को 6, बसपा को एक, भाजपा को चार, अकाली दल को एक तथा सात निर्दलीयों को विधायक बनाकर अपना निर्णय देकर राजनीतिक समीकरणों में उबाल ला दिया है। कांग्रेस भले ही सात दिर्नलीय विधायकों का समर्थन जुटाकर सरकार बनाने की कवायद शुरू कर चुकी है, मगर अपनी ही लुटिया डुबोने वाली कांग्रेस मुख्यमंत्री पद को लेकर एक बार आपसी कलह से उलझ कर रह गई है। विधानसभा चुनावों से पूर्व गठबंधनों का बनना और टूटना भी किसी राजनीतिक रिकार्ड से कम नहीं आकां जा सकता।
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