रूड़की (प्रैसवार्ता) दीपावली पर हर कोई चाहता है कि उसके घर लक्ष्मी आए, जिसके लिए लोग श्रद्धाभाव के साथ पूजा अर्चना करते हैं। घरों की साफ-सफाई कर रोशन के द्वारा लक्ष्मी जी को खुश करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन लक्ष्मी की सवारी उल्लू की तरफ कोई तरफ कोई ध्यान नहीं देता, जब उल्लू ही नहीं रहेंगे तो लक्ष्मी जी आएंगी कैसे। पहले हर गांव-शहर के पुराने वृक्षों की खोखर उल्लू का आशियान हुआ करते थे। उल्लूओं का वृक्षों की साख पर बैठना आम बात हुआ करती थी। कहावत भी है हर साख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा, लेकिन आज उल्लू गर्दिश में है। जब से तंत्र-मंत्र और काले जादू के नाम पर उल्लूओं का अवैध व्यापार होने लगा है तब से लक्ष्मी के वाहन उल्लू पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कई ऐसे तांत्रिक हैं जो पूजा-पाठ के लिए उल्लू के शारीरिक अवशेषों के इस्तेमाल की सलाह देकर इस दुर्लभ जीव का अस्तित्व मिटाने में लगे हैं। प्रकृति मित्र दिवाकर की माने तो भारत के साथ-साथ नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, बंगलादेश और दक्षिण पूर्वोत्तर देशों में काले जादू के लिए उल्लूओं की मांग की जाती है। पाकिस्तान बार्डर अटारी क्षेत्र, अमृतसर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, आसाम, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में विभिन्न जगहों पर उल्लुओं की अवैध तरीके से तस्करी की जाती है। इसी तस्करी और उनके शिकार के कारण उल्लू की जान खतरे में हैं। अब आप ही बताईए उल्लू यानी लक्ष्मी के वाहन की जान खतरे में हो तो लक्ष्मी कैसे प्रसन्न हो सकती है। वन्य तस्कर अधिकतर मटमैले रंगे के उल्लू का ही शिकार करते हैं। कुछ लोगों में यह भ्रांति है कि उल्लू के खून से न्यूकोडरमा, अस्थमा व नपुंसकता का इलाज हो सकता है, लेकिन इसमें वैज्ञानिक स्तर पर कोई सच्चाई नहीं है। काले जादू के लिए धनई व ब्राउन फिश उल्लू का ही उपयोग किया जाना बताया गया है। उल्लू को पकडऩे के लिए शिकारी गोंद लगी लम्बी डंडी का प्रयोग करता है। इस प्रक्रिया में 50 प्रतिशत उल्लू डर व सदमे के कारण मौके पर ही मर जाते हैं, जबकि शेष बचे उल्लूओं में भी 40 प्रतिशत उल्लू एक सप्ताह में दम तोड़ देते हैं। ऐसे में लक्ष्मी के वाहन उल्लू की संख्या लगातार कम हो रही है। इसी कारण उल्लू अब दिखाई पडऩे बंद हो गए हैं। उल्लू को संस्कृत में उल्लूक, नत्रचारी, दिवांधधर्धर, बंगाली में पेचक, अरबी में बूम, लेटिन में आथेनेब्रामा इण्डिा नाम से जाना जाता है, वहीं उल्लू को कुचकुचवा, खूसट, कुम्हार का डिंगरा, धुधना व घुग्घु भी कहा जाता है। उल्लू की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अपना सिर 160 कोण से भी अधिक घुमा सकता है। निशाचार पक्षी होने के कारण उल्लू चूहे व खरगोश आदि खाकर अपना पेट भरता है।
1 टिप्पणियाँ:
उल्लू .
nice
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