वह देश कदापि अपनी प्रगति नहीं कर सकता जहां पर नारी को केवल भोग व मनोरंजन की वस्तु मानकर उसको उसके वास्तविक अधिकारों सम्मानों से दर किनार कर दिया गया हो। नारी की इस विशेष महत्वता को ध्यान में रखते हुए महापुरूषों ने अपने जीवन के अंतिम चरण तक नारी शक्ति को उसका वास्तविक सम्मान और अधिकार दिलाने कठोर संघर्ष किया। परिणामत: जहां नारी को पर्दे में लपेट या फिर सती का नाम देकर आग में झोक दिया जाता था वहीं वह आज देश का नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व का भाग्य लिख रही है। बावजूद इसके गत वर्षों में मातृ शक्ति (नारी शक्ति) पर अत्चाचार बढ़े हैं। कारण साफ है, कि आज भी यह सोच विद्यमान है जहां नारी को विषय भोग या मनोरंजन की वस्तु मानकर उसके साथ ढोर गंवार, शूद्र, पशु, नारी वाली कहावत चरितार्थ कर व्यवहार किया जाता रहा है। विश्व को अपनी साधारण कोख से जन्म देने वाली यह असाधारण शक्ति से परिपूर्ण अर्धागिनी कही जाने वाली इस नारी ने ही सामान्य रसोई घर से अपनी यात्रा आरंभ कर हर क्षेत्र में हर पल चाहे बात शीत युद्ध की हो या शांति की धर्म की हो या राजनीति की, समाज की हो या आर्थिक स्तर की हर स्तर पर अपनी सफलता व विजय का परचम फहराते हुए इतिहास के पन्नों पर अपना स्थान सुरक्षित रख है। यह बात अवश्य स्वीकारने योग्य है, कि विगत वर्षों में महिलाओं पर अचानक बढ़े अत्याचार इस बात की पुष्टि करते हैं, कि नारी अपने अधिकारों, कर्तव्यों और सम्मान के प्रति ज्यादा जागरूक व सतर्क हुई है। वहीं पूर्व में नारी या महिलायें निरक्षरता लोकलाज व समाज के भय से अपने साथ हो रहे अत्याचार को मजबूर होकर मूकदर्शक बने सहती रही, किन्तु उसके विपरीत अगर देखा जाए जो बड़े ही दुर्भाग्य का विषय है, कि सरकार महिलाओं को आरक्षण का लॉलीपाप दिखाकर उनके विकास और पुरूषों के बराबर हक की बातें करतें नहीं थकती। वहीं आज स्वयं ही नारी पर तीन वर्षों से लगातार बढ़ते अत्चारों के कारण संदेह के कटघरे में आकर स्वयं की नीयत पर प्रश्र चिन्ह? अंकित किये खड़ी है। जिसका परिणाम निकट भविष्य में कितना खतरनाक होगा यह कहना मुश्किल है। बहरहाल जो भी हो इतिहास इस बात का साक्षी है कि नारी ही शक्ति स्वरूपा दुर्गा है वही जगत को पालनें वाली लक्ष्मी है। वही संहार करने वाली काली है। सत, रज और तक का रूप नारी समय-समय पर अपना स्वरूप बदलती रहती है। वही घर को स्वर्ग और नर्क बनाती है। आवश्यकता इस बात की है, कि हम उसकी शक्ति व महत्वता को पहचान कर उस पर हो रहे अत्याचार के प्रति प्रतिरोध का शंखनाद करें। -वंश जैन (न्यूज़प्लॅस)
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