सितम्बर माह की २३ तारीख कई मजदूरों के लिए काल बनकर आई. कई घरों में घरों में अँधेरा कर गई, कईयों के घर का चिराग बुझा गई, अपरान्ह ३.४० मिनट को वेदान्त बालको पावर प्लांट विस्तार परियोजना कोरबा(छत्तीसगढ़)की निर्माणाधीन चिमनी धराशायी हो गई, जिसमे लग-भग-४५ मजदूरों की मौत हो गयी. कम्पनी का मालिक अभी तक फरार है.पुलिस उसे ढूंढ़ रही है. दूसरी चिमनी में भी घथिया निर्माण सामग्री लगे होने का आरोप लगने के पश्चात् आई.आई.टी रुढ़की एक प्रोफेसर जे.प्रसाद को दुर्घटना के बाद बालको प्रबंधन ने दुर्घटना के कारणों की पड़ताल करने के लिए बुलाया था और इस बालको के प्रायोजित प्रोफेसर ने आते ही आनन फानन में कह दिया कि आकाशीय बिजली गिरने के कारण यह दुर्घटना हुयी है. जब इस बयान पर हल्ला मचा कि बालको प्रबंधन के प्रभाव में आकर बिना किसी जाँच पड़ताल के दुर्घटना को प्राकृतिक हादसा बताया और दूसरी चिमनी को सुरक्षित घोषित कर दिया . पुलिस अधीक्षक रतनलाल दांगी ने इस बयान पर संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस भेजा.जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि घटन स्थल पर जो जानकारी लोगों ने दी थी उसके आधार पर मैंने यह बयान दिया था.इस बयान की जबरदस्त प्रतिक्रिया हो रही है.किसी को समझ में नहीं आया कि एक सदस्यीय कमेटी ने एक बार ही निरिक्षण के बाद कैसे बालको प्रबंधन को क्लीन चिट दे दी. आई.आई टी दिल्ली के प्रोफेसर डाक्टर एस.एस.सिन्हा की रिपोर्ट भी शक के दायरे में है. इन्होने भी जी.डी.सी.एल के द्वारा उपलब्ध करी जानकारी के आधार पर ही अंतिम निष्कर्ष दे दिया था. यह सब न्यायिक जाँच को भटकाने के लिए किया जा रहा है. क्या उन मृतकों के गरीब परिवारों को न्याय मिल पायेगा और दोषियों को सजा हो पायेगी. ये एक यक्ष प्रश्न है.इतने मज्दोरों की मौत के बाद इस दुर्घटना को प्रकितिक हादसा बताने इनको शरम नहीं आती.
(चित्र नवभारत से साभार)
(चित्र नवभारत से साभार)
1 टिप्पणियाँ:
ऐसे लोगों के मकान नीलाम करके भी मजदूरों के परवार वलून को मुआवजा मिलना चाहिए !!!
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