श्री अमृतसर साहिब(प्रैसवार्ता) लंगर प्रथा लगभग 15 वीं सदी में शुरू हुई थी। श्री गुरू नानक देव जी के उपदेशों से वाणी में, जो एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है, उससे स्पष्ट है कि लंगर प्रथा श्री गुरू नानक देव जी के समय शुरू हुई थी। बाला-मरदाना के साथ रहकर वह जहां भी गये, भूमि पर बैठकर ही भोजन करते थे। ऊंच-नीच, जात-पात से उपर उठकर ही श्री गुरू नानक देव जी ने अपनी कर्मशीलता को प्राथमिकता दी। भाई लालो की उदाहरण, जिसमें साधारण रोटी में दूध के उदाहरण दी गई, भाव कि ईमानदारी की साधारण रोटी दूध की तरह पवित्र होती है, जिसमें ईमानदारी की बरकत होती है। श्री गुरु नानक देव जी के प्रवचन, यात्राएं, सम्पर्क सूत्रों से स्पष्ट होता है, कि वह भूमि पर बैठकर साथियों, श्रद्धालुओं के साथ भोजन करते थे, परन्तु हालात ही नाजुकता और बढ़ रहे अंधविश्वास, रूढिवाद, जातपात, उंच-नीच को समाप्त करने के लिए तीसरे गुरू अमरदास जी ने अमली रूप में लंगर प्रथा को शुरू किया। लंगर प्रथा से विभिन्न जातियों के लोग, छोटे बड़े सब लोग एक ही स्थान पर बैठकर लंगर खाते हैं। इससे मोहभाव, ऐकता भाव, शक्ति बल से सांझी कद्र वाली कीमतों को चार चांद लगते हैं। पूर्ण विश्व में पंजाब ही एक ऐसा राज्य है, जहां सिख संगत में लंगर प्रथा की मर्यादा चली आ रही है। सिख कौम के लोग, जहां भी, देश या विदेश में, लंगर प्रथा सुरजीत है। इसकी मिसाल कहीं ओर नहीं मिलती। लंगर तैयार करने की विधि बहुत ही सरल और शुद्ध पवित्र ढंग की है। जिस स्थान पर भी लंगर लगाना हो, विशेष रूप से औरतों की इसमें अह्म भूमिका होती है। अस्थाई चुल्हा बनाना और उसका आधार जरूरत अनुसार बनाने उपरांत उसके इर्द-गिर्द मिट्टी का लेप कर दिया जाता है-ताकि सेक और अग्रि का प्रयोग सही ढंग से हो सके। आटा काफी मात्रा में गूंथ लिया जाता है। जिसे मिलजुल कर औरतें करती हैं। जलाने के लिए गोबर, पाथी, लक्कड़ चूरा का प्रयोग किया जाता है। लंगर पकाने की सारी विधि और खर्च सामूहिक रूप से साधारण होता है-जो किसी बड़े खर्च से रहित होता है। सिख जगत में लंगर मर्यादा खुशी, गम के अतिरिकत त्यौहार मेले व शुभ अवसरों पर लाभकारी होता है और लोग खुशी-खुशी से इसमें अपना योगदान देते हैं। वर्तमान में लंगर तैयार करने के लिए आधुनिक तकनीक का भी प्रयोग होने लगा है-जिसमें रोटी बेलना, आटा गूंथना और बर्तन साफ करने वाली मशीने विशेष रोल अदा करती है। लंगर प्रथा सिख धर्म में एकता, सांझे भाई-चारे की मजबूत नींव का आधार है।
2 टिप्पणियाँ:
लंगर की यह प्रथा विदेशों में भी बखूबी चल रही है! सिख धरम की इस प्रथा से हिन्दू समाज को भी सबक लेना चयिएयेह : लोगों को जोड़ने का अच्छा प्रयास है यह.
अत्यन्त उत्तम आलेख.........
लंगर व्यवस्था के क्या कहने.........
दीपोत्सव पर आपको
और आपके परिवार को हार्दिक बधाइयां
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