लोकतंत्र जनता का , जनता के लिए और जनता द्वारा शाशित शाशन कहलाता है । क्या आज के बदलते दौर के साथ इसके मायने नही बदल गया हैं , और इसे नए सिरे से परिभाषित किए जाने की जरूरत नही है । तो क्या आज की जननायक के चाल चलन और चरित्र को देखकर नही लगता है । वो पाँच सितारा होटलों का रहन सहन , वो भरी भरकम सुरक्षा का ताम झाम , वो बड़े बड़े बुतों और स्मारकों का जंगल क्या ये सब काफी नही आज के लोकतंत्र की परिभाषा बदलने के लिए ।
जन्हा जनता का शासन कहकर लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है उसी के नाम पर मंत्री जी आलिशान पाँच सितारा होटल मैं लाख रुपयों प्रतिदिन किराए के खर्च पर ना जाने कौन सी विदेश नीति बना रहे हैं और पड़ोसी देश देश की सीमाओं को लांघकर कुत्षित कारनामे को अंजाम दे रहें है । चुनाव के समय जो जनता भगवान् होती है उसी से डर कर करोड़ों रुपयों वाली भरी भरकम ताम झाम वाली सुरक्षा का लबादा ओढ़कर विशिष्ट होने का स्वांग रच रहे हैं और दूसरी और जनता आतंकवाद , नक्सल वाद , तोड़फोड़ और आगजनी के भय और असुरक्षा के साए मैं जीने को मजबूर है । एक और तो करोड़ों रुपयों खर्च करके बड़ी बड़ी मूर्तियों और बुत बनाए जा रहे हैं वन्ही जनता रोटी , बिजली , स्वास्थय , शिक्षा और सुरक्षा के आभाव मैं बुत बनी जा रही है । मंच पर से नेता जी और मंत्रीजी द्वारा बड़े बड़े वादे , आश्वाशन और घोषणाएं हो रही है वन्ही दूसरी और नकली नोटों से चरमराती अर्थव्यवस्था , भ्रष्टाचार और अव्यवस्था इनकी पोल खोल खोलकर सरकार और प्रशासन को मुंह चिढा रही है । एक और जन्हा मंत्री और नेताओ द्वारा पाँच सितारा होटलों मैं दावतें और पार्टियाँ उडाई जा रही है वन्ही देश के लोगों की कमर तोड़ मंहगाई , कालाबाजारी और जमा खोरी जनता के चेहरे की रंगत और हवाइयां उड़ा रही है । जनता किम कर्तव्य विमूढ़ होकर अपने खून पसीने कमाई से भरे गए सरकारी खजाने को इस तरह से लुटते देख रही है और लोकतंत्र के नाम पर मातृ वोट का झुनझुना पाकर शासन करने और शाशित होने की भ्रम मैं जी रही है ।
तो क्या लोकतंत्र को कुछ इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है की लोकतंत्र जननेता और जनसेवकों का जनता के ऊपर शासन करने और जनता के पैसों पर सुखासन करने का नाम है ।
जन्हा जनता का शासन कहकर लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है उसी के नाम पर मंत्री जी आलिशान पाँच सितारा होटल मैं लाख रुपयों प्रतिदिन किराए के खर्च पर ना जाने कौन सी विदेश नीति बना रहे हैं और पड़ोसी देश देश की सीमाओं को लांघकर कुत्षित कारनामे को अंजाम दे रहें है । चुनाव के समय जो जनता भगवान् होती है उसी से डर कर करोड़ों रुपयों वाली भरी भरकम ताम झाम वाली सुरक्षा का लबादा ओढ़कर विशिष्ट होने का स्वांग रच रहे हैं और दूसरी और जनता आतंकवाद , नक्सल वाद , तोड़फोड़ और आगजनी के भय और असुरक्षा के साए मैं जीने को मजबूर है । एक और तो करोड़ों रुपयों खर्च करके बड़ी बड़ी मूर्तियों और बुत बनाए जा रहे हैं वन्ही जनता रोटी , बिजली , स्वास्थय , शिक्षा और सुरक्षा के आभाव मैं बुत बनी जा रही है । मंच पर से नेता जी और मंत्रीजी द्वारा बड़े बड़े वादे , आश्वाशन और घोषणाएं हो रही है वन्ही दूसरी और नकली नोटों से चरमराती अर्थव्यवस्था , भ्रष्टाचार और अव्यवस्था इनकी पोल खोल खोलकर सरकार और प्रशासन को मुंह चिढा रही है । एक और जन्हा मंत्री और नेताओ द्वारा पाँच सितारा होटलों मैं दावतें और पार्टियाँ उडाई जा रही है वन्ही देश के लोगों की कमर तोड़ मंहगाई , कालाबाजारी और जमा खोरी जनता के चेहरे की रंगत और हवाइयां उड़ा रही है । जनता किम कर्तव्य विमूढ़ होकर अपने खून पसीने कमाई से भरे गए सरकारी खजाने को इस तरह से लुटते देख रही है और लोकतंत्र के नाम पर मातृ वोट का झुनझुना पाकर शासन करने और शाशित होने की भ्रम मैं जी रही है ।
तो क्या लोकतंत्र को कुछ इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है की लोकतंत्र जननेता और जनसेवकों का जनता के ऊपर शासन करने और जनता के पैसों पर सुखासन करने का नाम है ।
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