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जाने कहाँ से
रहने लगा था दिल में भी पहचान बनके वो।
वो
मेरा तो
करने लगा था राज भी सुलतान बन के वो।
वो जानता था उसकी दीवानी हुं बन गई।
उसके क़्दम से मानो सयानी सी बन गई।
ख़्वाबों में
हरवक़्त बातें करने की आदत सी पड गई।
उस के लिये तो सारे जहां से मैं लड गई।
एक दिन कहाँ चला गया अन्जान बनके वो।
कहते हैं “राज़” प्यार, वफ़ा का है दुजा नाम।
ईस पे तो
उस रासते चला है जो
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