आज कल जिला जींद में कपास, बाजरा व ज्वार की फसलों में चमकीले हरे रंग का कीट नजर आ रहा है। आकार व बुनावट में यह भुंड गोबर वाले (गबरैला) भुंड से मिलताजुलता है। बाजरे की सिरट्टियों पर तो यह भुंड किसानों को दूर से दिखाई दे जाता है। बाजरे की सिरट्टियों पर इस के दर्शन होने पर आमतौर पर तीन काम होते हैं। एक -कीटनाशकों पर होने वाले खर्चे के रूप में किसानो की गोज पर डाका; दो -कीटनाशकों की बिक्री से डीलरों के यहाँ मुनाफे के रूप में लक्ष्मी का आगमन व तीन -कीटनाशकों के अवशेषों के रूप में लोगों की सेहत पर डाका। काश! किसानों को इस कीट की पहचान होती व इसकी भक्षण-क्षमता, भोजन-विविधता व प्रजनन्ता का ज्ञान होता? यह सबसे जरुरी काम किया- अनुपगढ के भूपेश व सुरेश नै, ईगराह के मनबीर, धर्मबीर व नरेंद्र नै, रूपगढ के राजेश व कुलदीप नै व निडाना के रत्तन, जिले, कप्तान, चन्द्र पाल व रणबीर नै। इन किसानों ने बताया की इस भुंड के मुखांग कुतर कर चबाने वाले होते हैं। इन किसानों ने आगे यह भी बताया की यह भुंड कपास, बाजरा व ज्वार के फूलों से पराग-कण खाकर गुजरा करता है। इन किसानों ने इस भुंड को ज्वार के बंद फुल खोल कर पराग-कण खाते अपनी आंखों से देखा है। इस लिए इस भुंड के शाकारी होने के बावजूद, इसका फसलों में लंबा-चौडा नुकशान नहीं होता। इन किसानों का साफ़ कहना है की इस भुंड का इन फसलों में इतना भी नुकशान नही होता जितना की हम इसके नियंत्रण के लिए कीटनाशकों पर खर्च देते हैं।
3 टिप्पणियाँ:
साधारण जानकारी
महत्वपुर्ण जानकारी
गॊज करेगी भारी
interesting and cost effective information
कीटों की जानकारी
कीसान हित में,
समाज हित में॥
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