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8.9.09

......उसे तलाश करो.....






सफर में ख़ो गई मंज़िल,उसे तलाश करो।.
किनारे छूटा है साहिल, उसे तलाश करो।.

था अपना साया भी इस वक़्त साथ छोड़ गया।
कहॉ वो हो गया ओझल उसे तलाश करो।

ना ही ज़ख़म,ना तो है खून फिर भी मार गया।
कहॉ छुपा है वो कातिल, उसे तलाश करो।

भूला चला है वक़्त जिन्दगी के लम्हों को।
मगर धड़कता है क्यों दिल? उसे तलाश करो।

ये कारवॉ है तलाशी का, लो तलाश करें।
लो हम भी हो गये शामिल, उसे तलाश करो।

वो बोले हम है गुनाहगार उनके साये के।
कहां पे रह गये ग़ाफिल उसे तलाश करो।

लूटा दिया था हरेक वक़्त उनके साये में।
मगर नहिं है क्यों क़ाबिल, उसे तलाश करो।

समझ रहे थे ज़माने में हम भी कामिल हैं।
हमारा खयाल था बातिल उसे तलाश करो।

अय “राज” खूब तलाशी में जुट गये तुम भी।
बताओ क्या हुआ हॉसिल? ,उसे तलाश करो।

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