जाने कैसा ये बंधन है?
उजला तन और मैला मन है।
एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से क्यों जाने लेता।
रहता बन के दोस्त सभी का।
पर ये तो उनका दुश्मन है।
इन्सानो के भेष में रहता।
शैतानों से काम वो करता।
बन के रहता देव सभी का।
पर ना ये दानव से कम है।
चाहे कितने भेष बनाये।
चाहे कितने भेद छुपाये।
”राज़” उसके चेहरे में क्या है?
देखो सच कहता दर्पण है।
1 टिप्पणियाँ:
एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से क्यों जाने लेता।
बहुत सुन्दर
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