घर में कुछ चहल पहल हो रही है। तैयारी की जा रही है किसी कार्यक्रम की।
देखुं , आज कौन-कौन मेरे घर पर आया है? एक कोने में दादा दादी और नाना नानी बैठे है।
अंकल आंटी भी आये हुए हैं। मामा मामी के साथ चिंकु, बंटी, भी आये हैं। सूरत वाले अंकल ने तो मेसेज भेजा है कि उन्हें कहीं ओफ़िस के काम से जाना हुआ है, इसीलिये नहीं आ सकते।
आज कोई फ़ंकशन है। मेरे प्रिंसिपल और कुछ टिचर्स भी आये हैं। पर......अभी तक मेरी सहेलियां क्यों नहीं आई? परेशान हुं मैं!!!!
मेरी मौसी-मौसा भी नहीं आये। अंकल आंटी दूर क्यों बैठे हैं मुझसे?
हरबार प्यार से मेरे साथ खेलनेवाले चिंकु बंटी आज मेरे पास क्यों नहीं बैठते?
क्यों सब मुझसे दूर दूर भाग रहे हैं ?
कहीं से घी की तो कहीं से आ रही अगरबत्ती के धुएं की बदबू मुझे बेचैन कर रही है।
ये कैसा कार्यक्रम है जिसमें सन्नाटा छाया हुआ है?
मैं ये नहीं समझ पा रही कि मुझे कोई प्यार से पुचकारता क्यों नहीं है?
साथ में खेलनेवाली सहेलियां भी आज गायब हैं। घर के बाहर लगी भीड़ में कानाफुसी चल रही है।
लो अब मेरी विदाई का वक़्त आ गया।
मेरे चहेरे से कपड़ा हटाया गया ताक़ि कोई मुझसे मिलना चाहे तो मिल ले।
पर सब लोग मुंह पर कपड़ा डालकर रोने लगे। कोई आगे नहीं आया।
मुझे विदा करने भी नहीं
हाँ....... मेरी मम्मी दौड़ती चिल्लाती मेरे करीब आई। मेरे चहेरे को चूमने लगी। रिश्तेदार लोग उसे मुझसे दूर हटाने की कोशिश कर रहे थे पर वो थी कि मुझे छोड़ ही नहीं रही थी।
छोड़ती भी कैसे....?
उसने मुझे अपने उदर में नौ महिने जो रखा था। मुझे अपना अमृत जो पिलाया था।
वो अच्छी तरह जानती थी कि उसकी बेटी का आख़री दिन है। फिर मैं कभी वापस आनेवाली नहीं हुं।
क्योंकि आज मेरी मृत्यु हुई है।
लोग कह रहे थे कि मेरी मृत्यु “स्वाइन फ़्ल्यु” से हुई है।
अब मैं समझी कि सब कोई दूर दूर क्यों भाग रहे थे मुझसे।
वाह री दुनिया ! क्या रिश्ते निभाते है लोग!!!! जब जान पर बनती है, अपने भी पराये हो जाते हैं।
1 टिप्पणियाँ:
Badhaai. Maarmik rachnaa hai.
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