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20.8.09

अतीतजीवी राजनीति की बंधक एक पार्टी

जिन्ना पर जसवंत सिंह के उन्मुक्तविचार भाजपा को रास नहीं आए। पड़ोसी देश के मृत राष्ट्रपिता पर ऐसी क्या नीति है, जिसका उल्लंघन उन्होंने किया है? जिन्ना भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते रहे हैं, पर मरने के बाद वह भारतीय जनता पार्टी के विभाजन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, यह सोचकर उन्हें कब्र में भी आश्चर्य हो रहा होगा। पहली बार जब लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के बारे में दो मीठे शब्द कहे थे तो उनके रहनुमा से लेकर अनुयाइयों तक में फूट पड़ गई। अब वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना पर एक पुस्तक लिखी है जो जिन्ना के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करती है। एक दिन पहले ही पार्टी ने इस पुस्तक से अपने को अलग करते हुए कहा था कि जसवंत सिंह के व्यक्तिगत विचारों का पार्टी की नीतियों से कोई लेना-देना नही, पर जसवंत के उन्मुक्त विचार पार्टी नेताओं को रास नहीं आए। यह सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की एक पड़ोसी देश के मृत राष्ट्रपिता को लेकर ऐसी क्या नीति है, जिसका उल्लंघन जसवंत सिंह ने किया है? इसका उत्तर स्पष्ट मगर चिंताजनक है। भाजपा अभी भी भूतकाल के परदे में आराम महसूस करती है। पीछे देखने की आदत इतनी गंभीर है कि पार्टी का भविष्य दिख रहा है और ही भविष्य की राजनीति की चिंता है। मंदिर वहीं बनाओ जहां भूत में मंदिर था, भारत सोने की चिड़िया था, कभी पूरा एशिया हिंदू था और हमारी ऐतिहासिक धरोहर में कुछ काला नहीं, ऐसे विचारों को जेहन में भरकर राजनीति करने से एक व्यावहारिक कट्टरपंथ पार्टी में घर कर गया है। तभी तो वरुणगांधी के विषैले शब्दों पर आपत्ति नहीं हुई, जो चुनाव में भारी पड़ा। प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने युवा नेताओं की एक कतार खड़ी कर रखी है वहीं भाजपा आडवाणी का विकल्प ढूंढ़ने में विफल रही और उन्हें फिर से विपक्ष के नेता का पद थमा दिया। इस्तीफा देने के बाद उन्हें भी पद वापस स्वीकारना पड़ा, क्योंकि नकारने का मतलब था पार्टी को अंतर्कलह के अंधड़ में अकेला छोड़ना। भाजपा के अंदर की उठापटक के बीच हो रही चिंतन बैठक से भारतीय राजनीति में रुचि रखने वालों को इस पार्टी के भविष्य को लेकर ही चिंता हो रही होगी। दरअसल पिछले चुनाव में हारने से पहले ही पार्टी के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न् लग चुका था। जनता इस ऊहापोह को भांप चुकी थी, तभी उसने केंद्र की सत्ता में आने का मौका नहीं दिया। अब सवाल यह है कि भाजपा अगला चुनाव लड़ने के लिए बचेगी और बचेगी तो किस रूप में ?

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