“आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है, आज तो मेरी मम्मी ने अच्छे अच्छे पकवान
बनाये होंगे। ख़ीर पूरी, लड्डू। मज़ा आयेगा घर जाकर” पिन्टु बोला। शाम को
तूँ मेरे घर आयेगा?
”अच्छा आउंगा,”कल शबेबारत है न? मेरे दादा का भी कल फ़ातिहा है कल मुज़े
भी हलवा पुरी ख़ाने को मिलेगा। तूँ भी मेरे घर आना।“ राजा ने कहा।
शाम को राजा पिन्टु के घर पहोंचा। पिन्टु कि मम्मी ने राजा को खीर पूरी,
लड्डू, दिये। पिन्टु ने राजा से कहा “चल छत पर खेलें” पिन्टु और राजा छत
पर खेलने लगे। खेलते खेलते बॉल राजा के हाथ से छुट गइ।, और सीढी से नीचे
की और लुढकने लगी। भागता हुआ राजा नीचे की तरफ उतरने लगा। बॉल सीढी से
सटे कमरे में चली गइ। राजा कमरे की और बढा, दरवाज़ा थोडा ख़ुला सा था।
आतुरता वश राजा ने दरवाज़े को धीरे से खोला। कमरे में अँधेरा था। कुछ बदबु
सी आ रही थी। राजा ने अपने हाथों से टटोलकर बॉल को ढुंढ लिया और जल्दी से
बाहर कि तरफ भागने लगा। भागते भागते उसके पैर से कोइ चीज़ टकरा गइ।“ कौन
है वहां”? किसी बिमार कि आवाज कानों में लगी। और कमरे में लाइट जलने लगी।
राजा ने देखा कि एक बूढा आदमी पलंग पर लेटा हुआ था। पलंग के नजदीक छोटा
सी एक टिपोइ रखी थी। एल्युमिनीयम की प्लेट में एक लड्डु आधा खाया हुआ। एक
कटोरी में ख़ीर थोडी प्लेट में ढुली हुई थी। बूढा आदमी कमज़ोर, बिमार लग
रहा था। कमरे की बदबू ही बता देती थी कि कमरे में बहोत दिनों से सफ़ाइ
नहिं हुई।“
राजा भागता हुआ कमरे से बाहर निकल आया। इतने में पिन्टु भी वहां आगया।
क्या बॉल मिली? चल खेलें कहकर पिंन्टु राजा को फ़िर से छत पर ले गया। पर
राजा का अब मूड नहिं रहा था। उसने पिंन्टु से पूछा तेरे घर में कौन कौन
हैं?
पिन्टु बोला मैं मम्मी पापा और दादाजी।‘ “पर मैने तेरे दादा को तो नहिं
देखा कहां हैं वो?
”वो बिमार हैं, एक बात बताउं राजा! मेरे दादा पहले बिमार नहिं थे। मेरी
दादी के मर जाने के बाद वो बिमार रहने लगे। तूं किसी से कहना मत पर मेरी
मम्मी उन्हें बहोत परेशान करती है। दादी के साथ भी यही होता रहा
था।“पिन्टु ने गंभीर स्वर में कहा। ”तेरे पापा को ये सब पता था?” राजा
बोला। ”नहिं ! पापा पहले ज़्यादातर बाहर टुर पर ही रहते थे। उनके आने पर
भी दादा दादी कुछ नहिं कहते थे।“पता है जब दादी मर गइ तब मेरे दादा बहोत
रोये थे। अभी भी अकेले अकेले रोते है। मुज़े बड़ा तरस आता है अपने दादा
पर, क्या करुं मैं भी मम्मी से डरता हुं। किसी न किसी बहाने मुज़े वो पापा
कि डाँट ख़िलाती रहती है।पिन्टु की आंखें भर आईं। ये मम्मी पापा कैसे होते
हैं राजा? पहले तो हमारे बुज़ुर्गों से पराये सा व्यवहार करते हैं फ़िर
उनके मरने के बाद “श्राद्ध”, और “फ़ातिहा” का नाटक करते है।“ ”मगर मेरी
अम्मी अब्बू ने तो मेरे दादा दादी के साथ ऐसा नहिं किया।?” एक मान भरे
स्वर में राजा ने कहा।‘ ”तूं नसीबदार है राजा! मुज़े तो अब मेरी मम्मी पर
भी तरस आ रहा है कि वो भी जब किसी की सास बनेगी तो क्या उसकी बहु भी
मम्मी के साथ ऐसा ही करेगी?”पिन्टु नम्र स्वर में बोला। ”पता नहिं” चल
बहोत देर हो गई है। अब्बू गुस्सा हो जायेंगे”। राजा बोला “कल तूं भी मेरे
घर ज़रूर आना। हलवा खाएंगे साथ मिलकर”। रातभर राजा करवटें बदलता रहा। उसे
पिन्टु की हर बात याद आ रही थी। छोटा सा दिमाग बडी बडी बातों में उलज़ रहा
था। अचानक उसे कुछ डरावना ख़याल आया। तन पर ओढी हुइ चादर दूर हटाकर एकदम
दौडा अपनी दादी के कमरे की और.. दादी अम्मा एनक़ लगाये क़ुरानशरीफ़ कि
तिलावत कर रही थी। शायद दादाअब्बा की रुह के सवाब के लिये। उसने एक रुख़
अपने अम्मी अब्बू के कमरे कि तरफ़ किया।
दोनों बेख़बर सो रहे थे।
बनाये होंगे। ख़ीर पूरी, लड्डू। मज़ा आयेगा घर जाकर” पिन्टु बोला। शाम को
तूँ मेरे घर आयेगा?
”अच्छा आउंगा,”कल शबेबारत है न? मेरे दादा का भी कल फ़ातिहा है कल मुज़े
भी हलवा पुरी ख़ाने को मिलेगा। तूँ भी मेरे घर आना।“ राजा ने कहा।
शाम को राजा पिन्टु के घर पहोंचा। पिन्टु कि मम्मी ने राजा को खीर पूरी,
लड्डू, दिये। पिन्टु ने राजा से कहा “चल छत पर खेलें” पिन्टु और राजा छत
पर खेलने लगे। खेलते खेलते बॉल राजा के हाथ से छुट गइ।, और सीढी से नीचे
की और लुढकने लगी। भागता हुआ राजा नीचे की तरफ उतरने लगा। बॉल सीढी से
सटे कमरे में चली गइ। राजा कमरे की और बढा, दरवाज़ा थोडा ख़ुला सा था।
आतुरता वश राजा ने दरवाज़े को धीरे से खोला। कमरे में अँधेरा था। कुछ बदबु
सी आ रही थी। राजा ने अपने हाथों से टटोलकर बॉल को ढुंढ लिया और जल्दी से
बाहर कि तरफ भागने लगा। भागते भागते उसके पैर से कोइ चीज़ टकरा गइ।“ कौन
है वहां”? किसी बिमार कि आवाज कानों में लगी। और कमरे में लाइट जलने लगी।
राजा ने देखा कि एक बूढा आदमी पलंग पर लेटा हुआ था। पलंग के नजदीक छोटा
सी एक टिपोइ रखी थी। एल्युमिनीयम की प्लेट में एक लड्डु आधा खाया हुआ। एक
कटोरी में ख़ीर थोडी प्लेट में ढुली हुई थी। बूढा आदमी कमज़ोर, बिमार लग
रहा था। कमरे की बदबू ही बता देती थी कि कमरे में बहोत दिनों से सफ़ाइ
नहिं हुई।“
राजा भागता हुआ कमरे से बाहर निकल आया। इतने में पिन्टु भी वहां आगया।
क्या बॉल मिली? चल खेलें कहकर पिंन्टु राजा को फ़िर से छत पर ले गया। पर
राजा का अब मूड नहिं रहा था। उसने पिंन्टु से पूछा तेरे घर में कौन कौन
हैं?
पिन्टु बोला मैं मम्मी पापा और दादाजी।‘ “पर मैने तेरे दादा को तो नहिं
देखा कहां हैं वो?
”वो बिमार हैं, एक बात बताउं राजा! मेरे दादा पहले बिमार नहिं थे। मेरी
दादी के मर जाने के बाद वो बिमार रहने लगे। तूं किसी से कहना मत पर मेरी
मम्मी उन्हें बहोत परेशान करती है। दादी के साथ भी यही होता रहा
था।“पिन्टु ने गंभीर स्वर में कहा। ”तेरे पापा को ये सब पता था?” राजा
बोला। ”नहिं ! पापा पहले ज़्यादातर बाहर टुर पर ही रहते थे। उनके आने पर
भी दादा दादी कुछ नहिं कहते थे।“पता है जब दादी मर गइ तब मेरे दादा बहोत
रोये थे। अभी भी अकेले अकेले रोते है। मुज़े बड़ा तरस आता है अपने दादा
पर, क्या करुं मैं भी मम्मी से डरता हुं। किसी न किसी बहाने मुज़े वो पापा
कि डाँट ख़िलाती रहती है।पिन्टु की आंखें भर आईं। ये मम्मी पापा कैसे होते
हैं राजा? पहले तो हमारे बुज़ुर्गों से पराये सा व्यवहार करते हैं फ़िर
उनके मरने के बाद “श्राद्ध”, और “फ़ातिहा” का नाटक करते है।“ ”मगर मेरी
अम्मी अब्बू ने तो मेरे दादा दादी के साथ ऐसा नहिं किया।?” एक मान भरे
स्वर में राजा ने कहा।‘ ”तूं नसीबदार है राजा! मुज़े तो अब मेरी मम्मी पर
भी तरस आ रहा है कि वो भी जब किसी की सास बनेगी तो क्या उसकी बहु भी
मम्मी के साथ ऐसा ही करेगी?”पिन्टु नम्र स्वर में बोला। ”पता नहिं” चल
बहोत देर हो गई है। अब्बू गुस्सा हो जायेंगे”। राजा बोला “कल तूं भी मेरे
घर ज़रूर आना। हलवा खाएंगे साथ मिलकर”। रातभर राजा करवटें बदलता रहा। उसे
पिन्टु की हर बात याद आ रही थी। छोटा सा दिमाग बडी बडी बातों में उलज़ रहा
था। अचानक उसे कुछ डरावना ख़याल आया। तन पर ओढी हुइ चादर दूर हटाकर एकदम
दौडा अपनी दादी के कमरे की और.. दादी अम्मा एनक़ लगाये क़ुरानशरीफ़ कि
तिलावत कर रही थी। शायद दादाअब्बा की रुह के सवाब के लिये। उसने एक रुख़
अपने अम्मी अब्बू के कमरे कि तरफ़ किया।
दोनों बेख़बर सो रहे थे।
1 टिप्पणियाँ:
BAHUT BADIAA DHANG SE KALAM BADH KIYAA HAI BADHAAI.
jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot.com
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